…………… रात के लगभग दो बज रहे थे। कैम्प में पलंग पर लेटे-लेटे राधा ने अपनी आंखों को कई बार बंद करना चाहा था, परंतु नींद कोसों दूर थी। एक पल भी उसे चैन नहीं मिला। बार-बार वह सोचती रही, यह सब क्या हो गया? कैसे हो गया? क्यों हो गया? क्या वास्तव में एक अबला की आहों में इतनी शक्ति होती है? इतने बड़े राजा की बर्बादी यूं एकदम से तो हो नहीं सकती।
कमल बगल के पलंग पर सो रहा था बिलकुल बेख़बर, निश्चिंत, मां के दिल के अंदर उठते तूफान से बहुत दूर पलंग से उठकर उसने कई बार कमल को सोते हुए देखा था‒बहुत गौर से, बहुत प्यार से, जैसे जीवन में पहली बार उसे देख रही हो। उसके बालों पर हाथ फेरकर उसने उसका मस्तक भी चूम लिया था। हू-ब-हू वही राजा विजयभान सिंह, अपने पिता का प्रतिबिम्ब।
सहसा उसके कानों में कैम्प के बाहर किसी के कदमों की चाप सुनाई पड़ी। उसने करवट बदली। इधर-उधर देखा। कमल उसी प्रकार निश्चिंत सो रहा था। कदमों की चाप कैम्प की ओर बढ़ रही थी। कदमों तले आए सूखे पत्ते चरमरा जाते थे। एक अज्ञात भय के कारण वह झट उठकर बैठ गई। चाप और समीप आई तो राधा कैम्प की खिड़की के पास चली आई, बहुत धीमे से, दबे पांवों झुककर उसने खिड़की का पर्दा थोड़ा ऊपर उठाया और बाहर झांका‒घना अंधकार परंतु तभी वह चौंक गई। घोर अंधकार में भी उसने अपनी ओर बढ़ती एक छाया देख ली। उसका दिल बुरी तरह से धड़कने लगा। लंबी-चौड़ी छाया, परंतु कुछ झुकी-झुकी-सी थी। उसे यह अनुमान लगाना कठिन हो गया कि यह कोई सत्यता है, स्वप्न नहीं। एक ही दृष्टि में वह इस छाया को पहचान गई तो अपने होंठों पर काबू पाना उसके लिए असंभव हो गया। उसकी चीख़ निकल पड़ी।
‘नहीं।’
और उसका स्वर सुनकर कमल जाग गया, अगल-बगल लगे कैम्प में शोर मच गया।
कमल लपककर मां के समीप पहुंचा। राधा बुरी तरह कांप रही थी। खिड़की का पर्दा हाथों द्वारा उसी प्रकार उठा हुआ था और राधा की आंखें बाहर अंधकार में खोई हुई थीं।
‘मां।’ कमल ने झुककर राधा की बांहें थामीं। आश्चर्य से बाहर झांका, फिर उसके परेशान मुखड़े की ओर दृष्टि फेरी, ‘क्या बात है मां?’
‘बेटा…वह…वह…।’ राधा एकदम से कांपते स्वर में बोली‒ ‘वह आए थे।’
‘कौन मां‒वह कौन?’ कमल ने उसकी बांहें पकड़कर झिंझोड़ डालीं, इस प्रकार कि राधा के हाथ से पर्दा छूट गया। खिड़की बंद हो गई।
‘राजा विजयभान सिंह।’ राधा के मुंह से अचानक ही निकल गया।
‘राजा विजयभान सिंह।’ कमल को विश्वास ही नहीं हुआ।
‘हां बेटा! यह उन्हीं की आत्मा थी।’
‘मां।’ कमल को अपनी मां की स्थिति पर तरस आया, उसे तसल्ली देता हुआ बोला, ‘यह तुम कैसी बातें कर रही हो, अवश्य ही तुमने कोई सपना देखा है।’
‘नहीं बेटा।’ राधा बोली, ‘यह सपना नहीं था यह हकीकत है। अपनी आंखों से मैंने उन्हें इधर आते देखा है।’
‘ओ मां! आजकल तुम्हें क्या हो रहा है? कमल ने उसे पलंग पर बिठाया और प्यार से बोला, ‘भला राजा विजयभान सिंह की आत्मा तुम्हारे पास क्यों आने लगी?’
राधा इस प्रश्न पर चौंक पड़ी। वास्तविकता उगल देने से कमल के भविष्य पर पहाड़ टूट पड़ेगा। जो शादी होने जा रही है वह भी टूट जाएगी। अपने को संभालने में उसे कठिनाई होने लगी।
तभी बाहर कुछेक नौकर इकट्ठा हो गए, प्रवेश द्वार पर।
‘क्या बात है साहब?’ एक व्यक्ति पूछ रहा था।
‘कुछ नहीं, कुछ नहीं।’ कमल ने कहा, ‘मां कोई भयानक सपना देखकर डर गई थीं।’
राधा ने कमल को बहुत बेबस दृष्टि से देखा, इस प्रकार मानो मां की बात का विश्वास न करके उसने उसका अपमान कर दिया है। कमल ने इस बात को बुरी तरह महसूस किया। मन-ही-मन लज्जित भी हुआ। फिर तेज आवाज़ के साथ वहीं से पूछा, ‘किसी आदमी को तो बाहर नहीं देखा, मेरा मतलब किसी बाहरी आदमी को?’
‘इधर तो कोई भी नहीं है।’ बाहर के नौकर ने आश्चर्य से उत्तर दिया‒ ‘यहां दिन में तो कोई आता नहीं, इस समय क्या आएगा!’
कमल ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसने राधा को देखा, तब तक वह संभल चुकी थी। राजा विजयभान सिंह के प्रति मन में उठता प्यार फिर घृणा में परिवर्तित हो चुका था, अपनी ममता के दबाव में आकर वह बोली, ‘बेटा! अवश्य ही राजा विजयभान सिंह की आत्मा हमसे बदला लेना चाहती है।’
‘क्या कहती हो मां?’ कमल ने नींद की झोंके में खिसियाकर कहा।
‘मैं ठीक कह रही हूं बेटा।’ राधा ने पूरे विश्वास से कहा‒ ‘मेरी आहें इस हवेली को खा गई हैं, इसीलिए अब उनकी आत्मा मेरी भी ख़ुशियां छीन लेना चाहती है।’
‘यदि उनकी आत्मा को तुम्हारी ख़ुशियां ही छीननी होती तो वह यहां क्यों आती? वह दिल्ली में हमारे घर भी तो आकर मेरा गला घोंट सकती थी।’
‘नहीं बेटा! ऐसी बात नहीं है।’ राधा ने उसे समझाया‒ ‘जहां शरीर दम तोड़ता है, आत्माएं वहीं आसपास मंडराती रहती हैं। दूर नहीं जा सकतीं।’
‘क्यों नहीं जा सकतीं? आख़िर उसे रोक-टोक ही क्या?’ कमल इस बहस से उकता चला था।
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राधा निरुत्तर हो गई, परंतु यह बात उसके मस्तिष्क में बैठ चुकी थी कि जब उसके कारण राजा विजयभान सिंह की हवेली की यह अवस्था हुई है, उसका खानदान तबाह और बर्बाद हो गया है, स्वयं राजा विजयभान सिंह का जीवन भी उसकी आंखों से निकलती नफरत की चिंगारी ने जलाकर भस्म कर दिया है, तो फिर उनकी आत्मा उसको भला क्यों चैन से बैठने देगी? अवश्य उनकी आत्मा कमल के साथ उसका गला दबाने ही आई होगी। मन में सहानुभूति तथा प्यार के बाद दुबारा घृणा उत्पन्न होने का यही एक कारण था।
‘अब तुम सो जाओ मां…’ कमल ने उठकर अपना पलंग राधा के पलंग के और समीप खींच लिया। लालटेन थोड़ी तेज कर दी ताकि मां का मन न घबराए। फिर बोला‒ ‘कल सुबह ही मैं तुम्हें घर पहुंचा दूंगा वरना यहां पर रहते हुए अपनी बीती याद कर-करके तुम पागल हो जाओगी, तो फिर मेरा क्या होगा?’
राधा का मन खिल उठा। गंभीर मुखड़े पर मुस्कान छा गई। लेटते हुए उसने सोचा, उसका बेटा उसे कितना प्यार करता है। यहां से वापस जाने के बाद अब इसे वह दुबारा यहां हरगिज़ नहीं आने देगी, यहां रहकर तो वह आत्मा इसका पीछा कभी नहीं छोड़ेगी। निश्चय ही राजा विजयभान सिंह की आत्मा उससे अपनी बर्बादी का बदला लेने आई थी।
और दूसरे पलंग पर कमल सोच रहा था कि मां को छोड़ने और वापस आने में उसके दो दिन और नष्ट हो जाएंगे। उसके साथ आए लोगों को उसके आने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, कितना समय नष्ट जा रहा है। कितनी परेशानी बढ़ जाएगी। नारी चाहे मां हो, बेटी हो, बहन हो या पत्नी हो, पुरुष की तरक्की में एक बाधा अवश्य है।
दूसरी सुबह उसके सहायक ने जीप द्वारा उन्हें लखनऊ स्टेशन पर छोड़ा तो वे पहली ट्रेन से ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए। कमल ने सोचा मां का वापस जाना ही अच्छा है। सरोज के शीघ्र-से-शीघ्र संबंध जोड़ने की उसे स्वयं चिंता थी।
राधा ने दिल्ली में कमल को बहुत रोकना चाहा परंतु कमल के लिए रामगढ़ जाने का निश्चय एक बार कर लेने के बाद अब इसे छोड़ना उसके बस की बात नहीं थी। बड़ी कठिनाई के बाद उसने राधा को राजी किया, इस शर्त पर कि रात-भर लखनऊ शहर के बड़े होटल में रहेगा और सुबह से सूर्यास्त होने तक रामगढ़ में। राजमहल में वह एक बार भी पग नहीं रखेगा। कमल ने भी राधा से शोखी के साथ वचन लिया कि वह पहली फुर्सत में ही सरोज के घर जाएगी।
……राधा की टैक्सी एक बड़े और सुंदर बंगले के बाहरी गेट पर रुकी, उतरते हुए उसने गेट पर लगी नाम प्लेट पढ़ी ‒ धीरेंद्र सिंह। टैक्सी वाले को पैसे देते हुए उसने खद्दर की साड़ी ठीक की और बंगले के लॉन में पग रखा। पोर्टिको में सरोज की कार खड़ी थी, वही सफ़ेद लंबी विदेशी कार। बरामदे में उसने पग रखा ही था कि एक नौकर उसे देखकर बढ़ आया।
‘ठाकुर साहब हैं?’ उसने पूछा।
‘जी हां!’
‘उनसे कह दो कि कमल की मां आई हैं।’
‘आइए बैठिए!’ नौकर उसे सभ्यता के साथ अंदर ले गया, उसे सोफ़े पर बिठाकर वह अंदर चला गया।
राधा कमरे की सजावट में खो गई। सबसे पहले उसकी दृष्टि एक सुंदर तस्वीर पर पड़ी जो एक मोटे से फ्रेम में सामने ही टंगी थी। राधा की आंखें स्थिर होकर रह गईं। तूफान में घिरी एक कश्ती, पतवार टूट गए थे फिर भी नाविक ने अपना साहस नहीं छोड़ा था, यह तस्वीर वह किस प्रकार भूल सकती थी, इस तस्वीर से तो उसके साहसी जीवन का धागा बंधा हुआ है। इसी को देखकर तो उसमें जीवन को स्थिर रखने की अभिलाषा बलवती हो उठी थी परंतु यह तस्वीर यहां कैसे आई? यह तस्वीर तो उसने राजा विजयभान सिंह के महल में देखी थी। ऊंह! यह भी कोई सोचने की बात है? इस संसार में ऐसी तस्वीरें तो लाखों की गिनती में होंगी। फिर यहां इसका आ जाना कौन-सी असाधारण बात है! बड़े लोगों के घरों में तो यह बात होती रहती है, अपनी दृष्टि फेरकर वह दूसरी ओर देखने लगी, कीमती अखरोट की लकड़ी के फर्नीचर, रेडियोग्राम, प्यानो, दीवारों पर दूसरी तस्वीरें भी थीं।
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