……………… कृपाल सिंह तथा उनकी बेटी रुक्मिणी के व्यवहार पर राधा और बाबा कदमों तले झुक जाते थे। उनके लिए यहां हर प्रकार की सुविधाएं थीं। रुक्मिणी राधा को प्यार से आज्ञा देती कि सख्त वस्तुएं मत खाओ, भारी चीज मत उठाओ, सीढ़ियां मत चढ़ो आदि-आदि। रुक्मिणी ने अपने स्वभाव से राधा के दिल के साथ, उसके मस्तक का घाव भी भर दिया था ‒ अब केवल निशान ही बाकी था, जिसे राधा जब भी दर्पण में देखती तो एक बार अवश्य ही विजयभान सिंह को कोसती।
एक शाम राधा को प्रसव-पीड़ा शुरू हो गई।
चौधरी कृपाल सिंह उसे अपनी पुरानी कार में लेकर अस्पताल पहुंचे। बाबा को उसके साथ छोड़कर वह वापस चले आए। वहां वह अधिक ठहरकर किसी को अपने ऊपर संदेह का अवसर नहीं देना चाहते थे। उनके चाल-चलन से कौन नहीं परिचित था? राधा जवान लड़की है, सुंदर भी है। यूं भी उनके पास तीन-तीन पत्नियां थीं… एक जायज, दो नाजायज!
उस रात लगभग आठ बजे राधा के शरीर की पीड़ा बर्दाश्त से बाहर हो गई। ऐसा लगता था कि उसकी जान ही निकल जाएगी। वह फूट-फूटकर रो पड़ी। अपनी सिसकियों के मध्य विजयभान सिंह को याद करके कोसती रही ‒ भगवान उसके साथ भी ऐसा ही करे, जिसने उसकी यह दुर्दशा कर दी है।
‘बेटी…!’ बाबा उसकी हालत देखकर तड़प उठा। बोला‒‘मैं अभी डॉक्टर को बुलाता हूं।’
वह दौड़ता हुआ नर्स के पास पहुंचा। एक कुर्सी पर धंसी वह उपन्यास पढ़ने में व्यस्त थी। उन्होंने नर्स से पूछा‒ ‘डॉक्टर साहब कहां मिलेंगे?’
‘इस समय उनकी ड्यूटी ऑफ है।’
‘कोई दूसरा डॉक्टर नहीं है यहां?’
‘नहीं।’
‘लेकिन मेरी बच्ची की अवस्था बहुत खराब है।’
नर्स ने एक पल के लिए चिंता प्रकट की, फिर बोली‒ ‘लेकिन डॉक्टर ने कहा था कि उसको सुबह दस बजे तक संतान उत्पन्न होगी!’
‘वह…। वह तो आप ही जानें, परंतु उसकी अवस्था तो देखिए, कैसी तड़प रही है बेचारी।’ बाबा रो पड़ा।
नर्स ने एक बार सोचा, फिर किताब बंद कर दी। बोली‒ ‘आपकी बच्ची को तो चौधरी कृपाल सिंह लेकर आते हैं?’
‘जी हां।’
‘तो फिर उनसे जाकर डॉक्टर साहब के नाम एक पत्र लिखा लो। पत्र लेकर डॉक्टर साहब के बंगले पहुंचो। वह पढ़ते ही दौड़ते चले आएंगे। चौधरी कृपाल सिंह की लड़की से उनका प्रेम जो चल रहा है।’
‘ओह!’ बाबा ने संतोष की सांस ली। अपने निर्बल शरीर के साथ वह कोठी की ओर दौड़ा। ठंडी-ठंडी हवाएं वर्षा की अंतिम झड़ी का समाचार दे रही थीं, फिर भी उसे पसीना आ गया। कोठी के सूने गेट पर खड़े होकर उसने दम लिया। फिर तेज कदमों से चलता हुआ वह अंदर पहुंचा। अधिक समय न बीतने के कारण लगभग सभी दरवाजे खुले हुए थे। चौधरी कृपाल सिंह के कमरे का दरवाज़ा वह खटखटाने ही वाला था कि कानों में विजयभान सिंह का नाम सुनकर वह ठिठक गया। अपने को संभालकर उसने अपना कान चुपके से दरवाजे से लगा दिया।
‘अब विजयभान सिंह से बदला लेने का समय आया है।’ कृपाल सिंह मानो शराब के नशे में डूबे कह रहे थे‒ ‘अब राधा के बच्चे को मैं अपनी शतरंज का मोहरा बनाकर उसकी सारी संपत्ति बर्बाद कर दूंगा। सब कुछ मैं हड़प लूंगा। राधा की ली हुई तस्वीरें इस बात की साक्षी होंगी कि वह हमारे यहां रही… और बहुत ख़ुशी से रही। जिस दिन बच्चा अपनी मां का दूध पीना छोड़ेगा, राधा की मौत हो जाएगी।’
‘तो क्या आप राधा को मरवा देंगे?’ यह आवाज़ रुक्मिणी की थी।
बाबा के कदम लड़खड़ा गए। उसके वहम और गुमान में भी नहीं था कि बाप-बेटी बहुत दिनों से उसके और उसकी बच्ची राधा के विरुद्ध कोई साजिश कर रहे हैं। उसका दिल कांप गया।
‘हां…।’ कृपाल सिंह कह रहे थे‒‘फिर हम विजय को इस बात का यकीन दिला देंगे कि यह संतान उसी की है, जिसे राधा ने मरते समय तुम्हें सौंप दिया था। बच्चा पैदा होने के बाद भी हम जो तस्वीरें खींचेंगे, वह उसके लिए बहुत होंगी। राधा समझेगी कि हम प्यार और मोहब्बत के कारण यह तस्वीरें उसके बच्चे के साथ ले रहे हैं। फिर हम इस बच्चे का पूरा अधिकार तुम्हें सौंप देंगे, क्योंकि राधा के बाद तुम इसकी मां होगी। राधा को अब तक यह बात मालूम नहीं कि…।’
सहसा दूसरी ओर से बाबा के कान में किसी के कदमों की चाप सुनाई पड़ी तो वह ठिठक गया। आगे की बात नहीं सुन सका। झट वहां से हटकर वह दूसरी ओर निकल गया। आगे बढ़ा तो बरामदे में पहुंच गया। सामने से कृपाल सिंह की नाजायज औलादें आ रही थीं, वह वहीं एक खम्भे की आड़ में छिप गया, नाजायज संतानों के कदम लड़खड़ा रहे थे। मुंह से देसी शराब की गंध आ रही थी, समीप से गुज़रते हुए उसने सुना, एक संतान कह रही थी‒‘अब राधा जल्दी से खाली हो जाए तो सबसे पहले मैं उसे अपने साथ रखूंगा। कमबख्त की आंखें क्या हैं, जैसे जादू की पिटारी।’
बाबा के पैरों तले से धरती सरक गई। यहां तो एक से बढ़कर एक लोग हैं। बाप की योजना कुछ है, तो बेटों की कुछ। सभी एक अबला की मजबूरी से पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। उसका मन करता था वह पलटकर वापस भाग जाए। कृपाल सिंह के दरवाजे से कान लगाकर उनकी बातें सुने। आख़िर ऐसी क्या बात है, जो राधा को नहीं मालूम। शायद यही कि यहां के सभी लोग उस पर दृष्टि रखते हैं। उससे लाभ उठाने वाले हैं। उसकी हत्या कर देंगे। हां, यही बात कहने वाले थे। और बात हो भी क्या सकती है? बाबा ने आगे बढ़ना उचित नहीं समझा। समय कम है और उसे जो भी कदम उठाना है, तुरंत ही उठाना है। फिर जाने क्या मुसीबत आ जाए।
वह इस बात का अनुमान लगाने से वंचित रहा कि कृपाल सिंह यह कहना चाहते थे‒ राधा को अब तक यह नहीं मालूम कि विजयभान सिंह राधा को प्यार करता है, उसके बच्चे की ख़ातिर वह अपनी सारी संपत्ति लुटा देगा, राधा की अंतिम इच्छा को दृष्टि में रखकर रुक्मिणी से विवाह कर लेगा इत्यादि-इत्यादि। ऐसी बात सोचने का उसके लिए प्रश्न ही नहीं उठता। प्रश्न उठता भी कैसे? उसकी दृष्टि में तो विजयभान सिंह जालिम राजा था, जिसने उसकी पोतियों की इज्जत लूट ली थी और बेटे की हत्या करवा दी थी। कभी ऐसा कोई अवसर नहीं पड़ा था, जिसके कारण वह विजयभान सिंह के पक्ष में भी कुछ सोचता।………….
आगे की कहानी कल पढ़ें, इसी जगह, इसी समय….
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