World Alzheimer Day: अपने घर-बाहर नजर डालें तो हमें ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जो अपनी याददाश्त या सुध-बुध खो बैठते हैं और अपनी दुनिया में खोए रहते हैं। उन्हें न तो अपने अस्तित्व के बारे में याद रहता है, न ही आसपास के वर्तमान परिवेश का कुछ अहसास होता है। ऐसे व्यक्ति अल्जाइमर जैसे मनोविकार (ब्रेन डिसऑर्डर) का शिकार हो सकते हैं। ब्रेन में निरंतर होने वाले परिवर्तनों के कारण इसे प्रगतिशील बीमारी कहा जा सकता है। धीरे-धीरे उस व्यक्ति की याददाश्त या मस्तिष्क के सभी हिस्से प्रभावित हो जाते हैं, वह पागलपन की अवस्था में पहुंच जाता है। समय पर ध्यान न दिया जाए तो उस व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।
क्या है अल्ज़ाइमर
![World Alzheimer Day](https://i0.wp.com/grehlakshmi.com/wp-content/uploads/2023/09/SIP-2023-09-20T142408.626.jpg?resize=780%2C439&ssl=1)
अल्जाइमर मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली एक लाइलाज बीमारी है। यह मनोभ्रंश या डिमेंशिया का एक रूप है। अल्जाइमर होने पर मस्तिष्क में तंत्रिका तंत्र की कोशिकाएं विकृत या नष्ट हो जाती हैं। न्यूरोट्रांसमीटर के जरिये संदेश पहुंचाने वाले ऐसीटिल कोलाइन रसायन का संचार नहीं हो पाता और मस्तिष्क में एक तरह के विशेष बीटा एमीलाॅयड प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होने लगती है। दिमाग में प्लाक और टैंगल सामग्री जमने लगती है। इससे तंत्रिका कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं, एक-दूसरे के साथ संवाद करना बाधित हो जाता है या उनके बीच कनेक्शन बाधित हो जाता है। मरीज की अनभूति, याददाश्त, मानसिक प्रक्रिया, व्यवहार और रोजमर्रा की गतिविधियों में लगातार गिरावट आ जाती है।
अल्जाइमर… एक बढ़ती महामारी
चूंकि अल्जाइमर पीड़ित व्यक्ति को समुचित देखभाल और इलाज की जरूरत होती है जिसे अक्सर नजरअंदाज किया जाता है। इसी का दुष्परिणाम है कि आज दुनिया भर में अल्जाइमर मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के हिसाब से हर 4 सेेकंड में दुनिया भर में अल्जाइमर के नए मामले सामने आ रहे हैं। उनका समुचित इलाज न होने के कारण करीब 38 मिलियन लोग अल्जाइमर से पीड़ित हैं। आंकड़ों के मुताबिक, अल्जाइमर पीड़ितों की अगर यही स्थिति रही, तो इनकी संख्या 2030 तक 76 मिलियन और 2050 तक 135 मिलियन हो जाएगी।
कौन होता है शिकार
हालांकि अल्ज़ाइमर उम्रदराज लोगों को अधिक प्रभावित करता है लेकिन यह उम्र बढ़ने का एक हिस्सा या सिंड्रोम नहीं है। यानी जरूरी नहीं कि उम्र बढ़ने पर सभी अल्ज़ाइमर का शिकार हों। अनुसंधानों से साबित हुआ है कि दुनिया भर में अक्सर बड़ी उम्र (60 साल से अधिक) के 50 प्रतिशत से अधिक लोग अल्जाइमर से पीड़ित हैं लेकिन अगर ध्यान दें तो 10 प्रतिशत छोटी उम्र के व्यक्ति (45 से 60 साल के) भी इस समस्या से ग्रस्त हैं। हालांकि उनकी संख्या बहुत कम है। उन्हें यह बीमारी या तो आनुवांशिक तौर पर मिलती है या फिर उनके ऊपर काम के दबाव से यह समस्या खड़ी होती है। विरासत में मिलने वाला म्यूटेशन जीन व्यक्ति को छोटी उम्र में ही अल्जाइमर का शिकार बना देता है।
कुछ अन्य कारण
![World Alzheimer's Day](https://i0.wp.com/grehlakshmi.com/wp-content/uploads/2023/09/SIP-2023-09-20T142556.145.jpg?resize=780%2C439&ssl=1)
अल्जाइमर के पीछे बढ़ती उम्र को मुख्य कारक माना जाता है। इसके अलावा पार्किन्सन, ब्रेन ट्यूमर, हिस्टामिन, एंटी-एंजाइटी, हाइपर थाॅयरायडिज्म, हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्राॅल लेवल का बढ़ना जैसी बीमारियों के लिए ली जाने वाली मेडिसिन भी अहम वजह हो सकती है। लंबे समय से एल्कोहल या स्मोकिंग भी अल्जाइमर के खतरे को बढ़ाता है। इससे मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और मनोभ्रंश की स्थिति आ सकती है। डाइट में विटामिन बी12, फोलिक एसिड जैसे पोषक तत्वों की कमी मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकती है। मेनोपाॅज के बाद हार्मोनल परिवर्तन के कारण महिलाओं में होने वाले अवसाद या कुंठा भी अल्जाइमर का जोखिम बढ़ा देते हैं। एक्सीडेंट या सिर पर गंभीर चोट लगने से भी अल्जाइमर का खतरा हो सकता है।
मौत का कारण
आंकडों के मुताबिक दुनिया भर में होने वाली मौतों में पांचवा प्रमुख कारण अल्जाइमर है। सामाजिक और आर्थिक दृढ़ता के अभाव में अल्जाइमर पीड़ित व्यक्ति का समुचित इलाज और देखभाल नहीं हो पाती जिससे वह कई बार संक्रमण की चपेट में आ जाता है। कई बार उसकी हताशा पराकाष्टा की सीमा लांघ जाती है जिससे वह अपनी जान तक ले लेता है।
अल्जाइमर पीड़ित व्यक्ति में लक्षण को कैसे पहचाने
- अल्ज़ाइमर के मरीज की याददाश्त धीरे-धीरे कमजोर होती जाती है।
- अवसाद और कुंठा से ग्रसित रहना।
- समय, तारीख, स्थान और मौसम के बारे मे भ्रम होना।
- मूड और व्यवहार में निरंतर परिवर्तन आना। सबसे अलग अपनी दुनिया में खोए रहना। आपत्तिजनक बातें करना, हस्तक्षेप करने पर कभी-कभी आक्रामक तक हो जाना।
- याददाश्त का ठीक तरह से काम न कर पाना। यहां तक कि खाना खाने का भी ध्यान न होना।
- भाषा का प्रयोग ठीक प्रकार से न कर पाना।
- दूसरों को यहां तक कि परिवारजनों को पहचानने में गलती करना।
- कुछ नया सीखने में कठिनाई होना।
- दैनिक जीवन के रुटीन में अपने व्यक्तिगत कार्य ठीक से न कर पाना। दूसरों पर आश्रित होना।
- शारीरिक क्रियाओं पर नियंत्रण खो जाना।
कैसे होता है इलाज
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अल्जाइमर के लक्षणों का अंदेशा होने पर जल्द से जल्द डाॅक्टर के पास लेकर जाना ही समझदारी है। हालांकि इसकी चिकित्सा की कोई विशिष्ट तकनीक नहीं है, कुछ दवाइयों से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। न्यूरोलाॅजिस्ट या मनोचिकित्सक डाॅक्टर रोगी और उसके परिवार के साथ आपस में बातचीत करके रोगी की मानसिक स्थिति की पहचान कर इलाज करते है। बाॅयोप्सी और ऑटोप्सी करके उसके ब्रेन की जांच के लिए सी टी स्कैन, एम आर आई या पी ई टी स्कैन जैसे परीक्षण कराए जाते हैं।
वैसे तो अल्जाइमर रोग का कोई इलाज नहीं है। फिर भी फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने मरीज को होने वाली दूसरी समस्याओं को दूर करने और अस्थायी उपचार के लिए कुछ दवाओं की सिफारिश की है। जिन्हें मरीज की स्थिति के हिसाब से रिलेक्स करने के लिए दिया जाता है। डोनेपेज़िल, रिवास्टिग्माइन, गैलेंटामाइन, मेमन्टाइन, टैक्रीन जैसी मेडिसिन दी जाती हैं।
अल्जाइमर के मरीजो की डिप्रेशन कम करने, उनके विचार, भावनाओं, व्यवहार और शारीरिक क्रियाओं को यथासंभव नियंत्रित करने के लिए मनोचिकित्सा की मदद भी लिया जाता है। मनोवैज्ञानिक काॅग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) के माध्यम से मरीज को उनकी स्थिति के बारे में समझाते हैं। उन्हें पाॅजीटिव सोचने, काम करने के तरीकों में बदलाव लाना, डायरी मेंटेन करने, रोजमर्रा में काम आने वाली छोटी-छोटी चीजों को एक फिक्स जगह रखने की हैबिट डालने, परिवार के सदस्यों से तालमेल बिठाना सिखाया जाता है। अल्जाइमर के मरीजों के उपचार के लिए मेडिकेशन के साथ-साथ परिवार के सदस्यों की यथासंभव मदद और समुचित देखभाल बहुत जरूरी है।
(डाॅ दिनेश कुमार सती, न्यूरोसर्जन स्पेशलिस्ट, गुरु तेग बहादुर अस्पताल, नई दिल्ली)