Ayurveda Eating Manners: आधुनिक जीवनशैली के चलते हम अक्सर अपनी मूलभूत जरूरत भोजन को दरकिनार कर जाते हैं। व्यवस्थित दिनचर्या के अभाव में न तो भोजन सही समय पर खाते हैं, न ही सेहतमंद रहने के लिए पौष्टिक और संतुलित आहार का सेवन करतेे हैं। भले ही इसके पीछे अव्यवस्थित दिनचर्या, समयाभाव, जंक फास्ट फूड का बढ़ता क्रेज़ जैसे कारण रहें, लेकिन इसका असर देर-सवेर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। अघ्ययनों के बाद वैज्ञानिकों ने भी साबित किया है कि खाना समय पर और सही तरीके से करने पर हम 90 फीसदी गंभीर बीमारियों से बच सकते हैं। भोजन के प्रति बरती जाने वाली कोताही हमें फायदा पहुंचाने के बजाय नुकसान पहुंचा सकता है।
दरअसल, ज्यादातर लोगों को खाने का सही टाइम और सही तरीका पता ही नहीं होता। वो जब भी भूख लगती है, तब खाना खाने लगते हैं। लेकिन यह सेहत के लिए उपयुक्त नहीं है। अमेरिका की न्यूट्रीशियन एंड डायटेटिक एकेडमी की रिपोर्ट में भी इस बात का खुलासा हुआ है कि जो लोग खाना खाने के सही नियम को फोलो करते हैं, वो कम बीमार होते हैं।
हम दिन भर में जो भी खाते-पीते हैं, जरूरी नहीं कि वह शरीर के लिए फायदेमंद हो। आयुर्वेद में हर चीज को खाने-पीने का समय मौसम और व्यक्ति की शारीरिक प्रकृति के अनुसार तय किया गया है। शरीर की तीन प्रमुख प्रकृति या तत्व होते हैं-वात, पित्त और कफ। शरीर में जब इन तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता है, तो व्यक्ति बीमार हो जाता है। इससे बचने के लिए ऐसा खाना खाने की सलाह दी जाती है जो जल्दी पच जाता हो और पौषक तत्वों से भरपूर हो। भोजन में 6 रस जरूर शामिल होने चाहिए- मधुर, लवण, अम्ल, कटु, तीखा, कसैला।
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भोजन करने का समय

आयुर्वेद में भी भोजन करने के सही समय के बारे में काफी वर्णन है। आयुर्वेद के हिसाब से दिन को तीन हिस्से में बांटा गया है-
- दिन का पहला हिस्सा सुबह 6 बजे से 10 बजे तक होता है। इसे हम कफ प्रधान हिस्सा कहते हैं।
- दूसरा भाग जो सुबह 10 बजे से लेकर दोपहर 2 बजे तक होता है। यह पित्त प्रधान होता है।
- दिन का तीसरा हिस्सा दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक होता है। उसे हम वात प्रधान कहते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार जितनी भी बीमारियां हैं, उनके पीछे यही वात, पित्त और कफ मूल वजह रहती है। इसीलिए आयुर्वेद के अनुसार हमें अपना ब्रेकफास्ट सुबह 6-10 बजे के बीच कर लेना चाहिए। इस दौरान चूंकि हमारी पाचन शक्ति यानी अग्नि मंद होती है, ठंडी तासीर वाला भोजन करना चाहिए। वहीं लंच का समय दोपहर 2 बजे से पहले होना चाहिए। इस दौरान हमारी पाचन शक्ति या जठराग्नि चरम पर होती है जिसकी वजह से हम जो कुछ भी खाते हैं, आसानी से पच जाता है। इसलिए इस दौरान दिन का सबसे भारी और वसायुक्त भोजन कर लेना चाहिए। पेट भर कर खाना खाना चाहिए। जरूरी है कि लंच और डिनर के बीच में कम से कम 5 घंटे का अंतराल जरूर होना चाहिए। डिनर रात को 8 बजे से पहले कर लेना चाहिए क्योंकि सूर्यास्त के बाद पाचन शक्ति बहुत धीमी होने लगती है। सबसे जरूरी है कि डिनर में जितना हो सके, हल्का भोजन करना चाहिए। डिनर के कम से कम 3 घंटे बाद ही सोना चाहिए।
भोजन करने का सही तरीका

आयुर्वेद के हिसाब से स्वस्थ रहना है तो भोजन को चबाकर पानी की तरह पीना और पानी को रोटी की तरह खाना चाहिए। इससे शरीर में वात, पित्त और पाचन संबंधी समस्या नहीं आएगी।
भोजन करने का सबसे पहला और महत्वपूर्ण तरीका है कि हमें भोजन धीरे-धीरे आराम से 32-40 बार चबा-चबाकर खाना चाहिए। भोजन चबा-चबाकर खाने से भोजन में मौजूद पौष्टिक तत्व हमारी लार के साथ मिल जाते हैं। जिससे खाना पेट में जाकर आसानी से और अच्छी तरह डायजेस्ट हो जाता है।
भोजन करते समय हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि भोजन धीरे-धीरे और आराम से खाएं। जल्दबाजी में भोजन करने से खाना हमारी श्वास नली में भी फंस सकता है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
भोजन हमेशा बैठ कर खाएं। खड़े होकर भोजन करने से डायजेशन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। जमीन पर आलती-पालती मारकर बैठ कर खाना सबसे ज्यादा कारगर है।
भोजन करते समय पानी न पिएं। भोजन करने से करीब आधा घंटा पहले और बाद में करीब एक घंटे बाद ही पानी पिएं। भोजन के साथ पानी पीने से जठराग्नि या डायजेस्टिव जूस का उत्सर्जन कम हो जाता है जिससे पचाने में दिक्कत आती है। खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीने से मोटापा बढ़ता है। अगर जरूरी हो तो हल्का गुनगुना पानी एक-दो घूंट ही पीना बेहतर है। सबसे जरूरी है कि जब भी पानी पिएं, हमेशा बैठ कर और घूंट-घूंट करके पिएं। खड़े होकर पानी पीने से डायजेशन में दिक्कत आती है।
भोजन करने के तुरंत बाद फल खाना, धूम्रपान करना, चाय-कॉफी पीनेे से परहेज करना चाहिए। फल खाना हो, तो भोजन करने से करीब आधा घंटा पहले या फिर भोजन करने के एक घंटे के बाद खाना बेहतर है। इससे एक तो आप ज्यादा खाने से बचेंगे। चाय-कॉफी पीने से पेट में गैस बनने लगती है और खाना ठीक तरह हजम नहीं होता।
अन्य बातों का ध्यान रखना भी है जरूरी

आयुर्वेद में माना गया है कि भोजन करने से पूर्व हमें अपने शरीर के 5 अंगों को स्वच्छ करना चाहिए- दोनों हाथ, दोनों पैर और मुंह।
भोजन गर्म खाना चाहिए ताकि पाचन में दिक्कत न हो
कोशिश करें मौन रहकर और शांत भाव से भोजन करें। जरूरी हो, तो सिर्फ सकारात्मक बातें ही करें। भोजन करते समय किसी भी प्रकार की समस्या पर चर्चा न करें। आपका ध्यान भोजन करने पर ही होना चाहिए और मन में ज्यादा सोच-विचार करने से बचना चाहिए।
भोजन में स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। एक-दूसरे का जूठा भोजन ग्रहण करने से बचें। इससे रोगों में वृद्धि होने की आशंका रहती है।
तीन प्रहर यानी नौ घंटे से अधिक पुराना या बासी भोजन नहीं खाना चाहिए।
अपनी भूख से आधा भोजन करना श्रेयस्कर है। इससे वह आसानी से पच जाता है।
भोजन करने के बाद टहलना और कुछ समय वज्रासन में बैठना चाहिए। इससे डायजेशन अच्छा होता है।
(डॉ संजना शर्मा, आयुर्वेदिक चिकित्सक, दिल्ली)
