Overview: सैनिटरी पैड में छुपे हानिकारक केमिकल्स गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं
सैनिटरी पैड्स महिलाओं के लिए जरूरी हैं, लेकिन इनमें मौजूद केमिकल्स शरीर के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। डायऑक्सिन, फथैलेट्स और कृत्रिम खुशबू हार्मोनल असंतुलन और कैंसर जैसी समस्याओं का कारण बनते हैं। इसलिए सही विकल्प चुनना और जागरूक रहना ही सेहतमंद रहने का सबसे अच्छा उपाय है।
Harmful Effects of Sanitary Pads: पीरियड्स के दौरान महिलाएं ज़्यादातर सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। यह सच है कि पैड सुविधा और सुरक्षा देते हैं, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इन पैड्स में मौजूद कुछ हानिकारक केमिकल्स शरीर के लिए कितने खतरनाक साबित हो सकते हैं। लंबे समय तक इनके लगातार इस्तेमाल से हार्मोनल असंतुलन, प्रजनन संबंधी समस्याएं और यहां तक कि कैंसर का खतरा भी बढ़ सकता है। आइए विस्तार से समझते हैं कि आखिर कैसे ये केमिकल्स हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं और किन उपायों से बचाव किया जा सकता है।
पैड बनाने में इस्तेमाल होने वाले हानिकारक केमिकल्स

अधिकतर डिस्पोजेबल पैड्स में डायऑक्सिन, फथैलेट्स, आर्टिफिशियल फ्रेगरेंस और प्लास्टिक-बेस्ड केमिकल्स पाए जाते हैं। इन्हें पैड को ज्यादा सफेद, मुलायम और महकदार बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यही पदार्थ बाद में शरीर में जाकर विषाक्त प्रभाव छोड़ते हैं।
डायऑक्सिन से कैंसर का बढ़ता खतरा
सैनिटरी पैड्स को ब्लीचिंग प्रोसेस से सफेद करने के लिए डायऑक्सिन का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक कार्सिनोजेनिक (कैंसर पैदा करने वाला) तत्व है। लंबे समय तक डायऑक्सिन के संपर्क में रहने से गर्भाशय कैंसर और स्तन कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
फथैलेट्स और हार्मोनल असंतुलन
फथैलेट्स ऐसे केमिकल्स हैं जो पैड्स को लचीला और सॉफ्ट बनाने के लिए डाले जाते हैं। ये शरीर में जाकर एस्ट्रोजन हार्मोन की नकल करते हैं, जिससे हार्मोनल असंतुलन हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप अनियमित पीरियड्स, मूड स्विंग्स और प्रजनन क्षमता में कमी देखी जाती है।
कृत्रिम खुशबू और एलर्जी का खतरा
कई पैड्स में महक लाने के लिए कृत्रिम सुगंध (फ्रेगरेंस) मिलाई जाती है। यह वेजाइनल पीएच को बिगाड़ सकती है और संक्रमण, खुजली, जलन जैसी समस्याएं बढ़ा सकती है। लगातार इसका इस्तेमाल यूट्राइन और ओवेरियन हेल्थ पर बुरा असर डाल सकता है।
प्लास्टिक लेयर और केमिकल अवशोषण
पैड्स में लगी प्लास्टिक लेयर और केमिकल-कोटेड फाइबर वजाइना की त्वचा से सीधे अवशोषित होकर ब्लडस्ट्रीम तक पहुंच जाते हैं। यह धीरे-धीरे लिवर और किडनी पर दबाव डालते हैं और शरीर में टॉक्सिन्स जमा कर देते हैं।
इन समस्याओं से कैसे बचें?
नेचुरल और ऑर्गेनिक पैड्स चुनें जो बायोडिग्रेडेबल हों और बिना ब्लीचिंग प्रोसेस के बने हों।
मेंस्ट्रुअल कप या कपड़े से बने पैड्स अपनाना भी सुरक्षित विकल्प है।
लंबे समय तक एक ही पैड पहनने से बचें और हर 4–6 घंटे में बदलें।
पैड खरीदते समय लेबल जरूर पढ़ें और फ्रेगरेंस-फ्री व केमिकल-फ्री विकल्प चुनें।
जागरूकता ही बचाव है
महिलाओं की सेहत के लिए जरूरी है कि हम केवल सुविधा ही नहीं, बल्कि सुरक्षा पर भी ध्यान दें। पैड खरीदते समय सस्ती और आकर्षक पैकेजिंग पर न जाएं, बल्कि उनके अंदर इस्तेमाल होने वाले मटीरियल्स की जानकारी लें। जागरूकता से ही हम आने वाली गंभीर बीमारियों से बच सकते हैं।
