एपीलैप्सी

‘‘मुझे एपीलैप्सी है लेकिन मैं माँ बनना चाहती हूँ। क्या मेरी गर्भावस्था सुरक्षित हो सकती है?”

सही देखभाल के साथ आप भी एक स्वस्थ शिशु की माँ बन सकती हैं। गर्भधारण से पहले अपने डॉक्टर व न्यूरो सर्जन से मिलें व उनकी देखरेख में रहें। वे आपको दवा व अपेक्षित सावधानी के बारे में बताएँगे। अधिकतर गर्भवती महिलाओं ने पाया है कि एपीलैप्सी, गर्भावस्था में ज्यादा नहीं उभरती। रोग में कोई खास बदलाव भी नहीं आता। केवल उतना देखने में आया है कि ऐसी माँओं को उल्टी आने व सिर चकराने की शिकायत ज्यादा होती है, जिसके कोई खास गंभीर परिणाम सामने नहीं आते।

ऐसी माँओं के शिशुओं में हल्की जन्मजात विकृति पाई जा सकती है लेकिन इसे भी आप एपीलैप्सी का नहीं, गर्भावस्था के दौरान की गई एंटीकंवलसेंट दवाओं का असर मान सकते हैं।

गर्भधारण से पूर्व ही डॉक्टर से इसकी दवाओं के बारे में चर्चा करें। अपने रोग को काबू में करने के बाद ही कदम आगे बढ़ाएँ।डॉक्टर आपको एक या फिर कई दवाओं का मेल दे सकते हैं ताकि गर्भावस्था सुरक्षित रहे व रोग पर भी नियंत्रण बना रहे। शिशु को खतरा होने के डर से दवा लेना बंद न करें।इससे नुकसान हो सकता है।

इस दौरान अल्ट्रासाउंड द्वारा बारीक जांच व गर्भास्था से पूर्व स्क्रीनिंग के निर्देश दिए जा सकते हैं। यदि आप वैल्प्रोहक एसिड ले रही हैं तो डॉक्टर ‘न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट’ की भी जांच करना चाहेंगे।

आपको ढेर सी नींद व पौष्टिक आहार पर बल देना चाहिए। तरल पदार्थों की भरपूर मात्रा व विटामिन डी की खुराक लें। गर्भावस्था के आखिरी चार सप्ताह में विटामिन के की खुराक दी जा सकती है। प्रसव व डिलीवरी में भी इस वजह से कोई खास हिम्मत नहीं आती और आप अपने शिशु को स्तनपान भी करा सकती हैं। दवाओं का दूध में बहुत हल्का असर ही जाता है।

 

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