रयूमेटायड आर्थराइटिस

‘‘मुझे रयूमेटायड आर्थराइटिस है। इससे मेरी गर्भावस्था कैसे प्रभावित होगी?”

आपकी अवस्था का गर्भावस्था पर कोई असर नहीं होगा लेकिन गर्भावस्था आपकी अवस्था को बेशक प्रभावित कर सकती है। इन दिनों आपके जोड़ों का दर्द व सूजन घट सकते हैं हालांकि प्रसव के बाद यह परेशानी थोड़ी बढ़ सकती है। आपकी गर्भावस्था के दिनों में काफी बदलाव आ सकता है। आपको अपनी गर्भावस्था के दिनों में पुरानी दवाएं छोड़कर दूसरी सुरक्षित दवाएं लेनी पड़ सकती हैं। लेबर के दौरान ऐसी मुद्रा चुनें, जिससे जोड़ों पर ज्यादा दबाव न पड़े। आपके डॉक्टर इस बारे में बेहतर राय दे सकते हैं।

स्कॉलिओसिस

‘‘मुझे किशोरावस्था में स्कॉलिओसिस हुआ था। मेरी रीढ़ की हड्डी के मोड़ का गर्भावस्था पर क्या असर पड़ सकता है?”

आमतौर पर आप जैसी महिलाएं स्वस्थ शिशुओं को जन्म देती हैं। अध्ययनों से पता चला है कि स्कॉलिओसिस से कोई परेशानी नहीं होती। जिन महिलाओं के स्कॉलिओसिस में नितंब पेल्विस व कंधे भी शामिल होते हैं, उन्हें सांस लेने में तकलीफ या गर्भावस्था के आखिर में वजन उठाने की तकलीफ झेलनी पड़ सकती है। अगर उन दिनों पीठ का दर्द काफी बढ़ जाए तो अपने पांव ऊँचे रखें, गुनगुने पानी से नहाएं, पीठ की हल्की मालिश करवाएं। आप किसी फिजियोथेरेपिस्ट की मदद ले सकती हैं लेकिन उसे अपनी गर्भावस्था की सूचना अवश्य दें। यदि आप लेबर के दौरान एपीड्यूरल लेना चाहें तो इस विषय के विशेषज्ञ की राय लें। अनुभवी विशेषज्ञ इस काम को ज्यादा बेहतर तरीके से कर पाएगा।

 सिकल सैल एनीमिया

‘‘मुझे सिकल सैल एनीमिया है और मुझे अभी अपनी गर्भावस्था का पता चला। क्या मेरा शिशु ठीक रहेगा?”

अब यह खबर इतनी डरावनी नहीं रही। जटिल रोग होने के बावजूद आप स्वस्थ शिशु की मां बन सकती हैं। वैसे आपकी गर्भावस्था को हाई रिस्क वाली माना जाएगा क्योंकि इसकी वजह से मिसकैरिज, प्रीटर्म लेबर, प्रीक्लैंपसिया या शिशु की बढ़त रुकने का खतरा हो सकता है। आपको डॉक्टर के पास कई बार जांच के लिए जाना पड़ेगा। आपके डॉक्टर को भी सिकल सैल के बारे में पता होना चाहिए ताकि उसी हिसाब से आपकी देखरेख की जा सके।आप भी दूसरी मांओं की तरह योनिमार्ग से शिशु को जन्म देंगी। प्रसव के बाद संक्रमण से बचाव के लिए आपको एंटीबायोटिक्स दिए जा सकते हैं। यदि आप व आपका पति दोनों ही इस रोग से ग्रस्त हैं तो शिशु में यह रोग होने की संभावना बढ़ जाती है तब आप को किसी जेनेटिक सलाहकार से मिलकर एमनिओसेंटेसिस कराना पड़ सकता है।

थॉइरॉइड

‘‘किशोरावस्था में मैं हाइपोथाइरॉइड से और अब भी थाइरॉइड की दवा लेती हूं। गर्भावस्था में इसे लेना सुरक्षित रहेगा?”

यह न सिर्फ सुरक्षित बल्कि आपकी व शिशु की सेहत के लिए भी जरूरी है। यदि हाइपोथाइरॉइड का इलाज न हुआ तो मिसकैरिज की संभावना बढ़ जाती है। शिशु के दिमागी विकास के लिए भी थाइरॉइड हार्मोन जरूरी हैं।पहली तिमाही में शिशु को ये हार्मोन न मिलें तो उसे जन्मजात न्यूरो समस्याएं हो सकती हैं।पहली तिमाही के बाद उसके शरीर में स्वयं ये हार्मोन बनने लगते हैं। थाइरॉइड का स्तर कम होने से अवसाद की संभावना भी बढ़ जाती है इसलिए आपका अपना इलाज लगातार जारी रखना चाहिए। शरीर के थाइरॉइड हार्मोन की जरूरत के हिसाब से खुराक को घटाना-बढ़ाना पड़ सकता है। डॉक्टर समय-समय पर जांच के बाद ही खुराक तय करेंगे। अपने थाइरॉइड के घटने या बढ़ने के संकेत पहचानें व डॉक्टर को सूचित करें हालांकि इन लक्षणों को गर्भावस्था के लक्षणों से थोड़ा अलग करना मुश्किल हो जाता है। आपको आयोडीन की पूर्ति के लिए आयोडीन युक्त नमक व सी-फूड का सेवन करना चाहिए।

‘‘मुझे ग्रेव्स रोग है। क्या इससे मेरी गर्भावस्था प्रभावित होगी?”

इस रोग में थाइरॉइड ग्रंथि से अधिक मात्रा में थाइरॉइड हार्मोन बनने लगता है कुछ मामले गर्भावस्था के दौरान थोड़ा संभल जाते हैं। हालांकि सही तरीके से इलाज न होने पर मिसकैरिज या प्रीटर्म बर्थ की संभावना बढ़ जाती है इसलिए सही इलाज होना जरूरी है।सही इलाज होने पर बेशक आप एक स्वस्थ शिशु की मां बन सकती हैं। इस दौरान आपको एंटी थाइरॉइड दवा दी जाती है। यदि किसी दवा से बात न बने तो इस ग्रंथि को निकालने के लिए सर्जरी करनी पड़ सकती है,जिसे दूसरी तिमाही में किया जाना चाहिए ताकि पहली तिमाही में मिसकैरिज का डर न रहे।गर्भावस्था में रेडियोएक्टिव आयोडीन का इस्तेमाल आपके हित में नहीं होगा। यदि आप गर्भवती होने से पहले रेडियोएक्टिव आयोडीन उपचार ले चुकी हैं तो थाइरॉइड रिप्लेसमेंट थेरेपी जारी रखना ही ठीक रहेगा यह न केवल सुरक्षित है बल्कि शिशु के विकास के लिए भी जरूरी है।

 

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