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दूसरी बार डैड बनने की ख्वाहिश है तो इन बातों का पति रखे ख्याल

गर्भधारण करवाने से पहले डैड क्या करें :- डॉक्टर से मिलें :- अपनी शारीरिक जाँच कराके तय कर लें कि आप टेस्टीकल सिस्ट,ट्यूमर या डिप्रेशन जैसे किसी रोग से ग्रस्त नहीं हैं या आपको ऐसा कोई रोग नहीं है जो आपके साथ की स्वस्थ गर्भावस्था में रुकावट पैदा कर सके। किसी भी तरह की दवा लेने से पहले पता कर लें कि उसका असर आपकी यौन क्षमता पर तो नहीं पड़ेगा। कई बार उनकी वजह से स्पर्म की संख्या घट भी जाती है, उम्मीद है कि आप ऐसा तो नहीं चाहेंगे। जैनेटिक स्क्रीनिंग कराएँ, अगर जरूरत हो तो:- यदि परिवार में पहले ऐसा हो चुका है तो गर्भाधारण से पहले जैनेटिक स्क्रीनिंग अवश्य करवा लें। बर्थ कंट्रोल के तरीके छोड़ दें :- यदि आपकी पत्नी बर्थ कंट्रोल का कोई तरीका अपना रही है या कोई गोलियाँ ले रही है तो वह सब बंद कर दें। कम से कम दो मासिक चक्र खुल कर होने दें। यदि चाहें तो उस दौरान स्पर्मीसाइड के बिना कंडोम इस्तेमाल करें। आहार में सुधार :- आहार जितना बेहतर होगा, गर्भधारण के लिए स्पर्म भी उतने ही स्वस्थ होंगे। गर्भधारण से पूर्व माता-पिता, दोनों को ही पौष्टिक आहार लेना चाहिए। कोशिश करें कि आपके आहार में विटामिन सी, ई, जिंक, कैल्शियम व विटामिन डी की भरपूर मात्रा हो। गर्भधारण करवाने से पहले विटामिन-मिनरल का सप्लीमेंट लें। इनमें थोड़ा फौलिक सीसा भी होगा तो आपके काम आएगी। यदि आप मधुमेह के रोगी हैं तो ब्लडशुगर नियंत्रित कर लें। जीवनशैली में सुधार :- शोध व अध्ययनों से पता चला है कि अगर गर्भधारण करवाने से पहले पुरुष साथी किसी भी तरह के ड्रग्स लेता है तो इससे उसकी यौन क्षमता प्रभावित होती है। ड्रग्स व शराब से न केवल स्पर्म की संरचना व गुणवत्ता प्रभावित होती है बल्कि टेस्टोसेहरान का स्तर भी घट जाता है। शिशु में जन्मजात दोष भी आ सकते हैं। शिशु का वजन घट सकता है। यदि आप ड्रग्स व शराब छोड़ सकें तो आपके महिला साथी के लिए भी ऐसा करना आसान हो सकता है। धूम्रपान न करें :- धूम्रपान करने से स्पर्म की संख्या घटती है तथा गर्भधारण करवाने में कठिनाई हो सकती है। यह धुँआ आपके आने वाले शिशु व महिला साथ के लिए भी खतरनाक है इसलिए इससे बचाव करना जरूरी है। इनसे बचें :- जी हां, पेंट, वार्निश, मैटल डीग्रीसर व पेस्टीसाइड आदि में ऐसे हानिकारक रसायन पाए जाते हैं, जिनके कारण आपको गर्भ धारण करवाने में कठिनाई हो सकती है। इनसे बचें या जहाँ तक संभव हो, इनके अधिक निकट संपर्क में न आएँ।  उन्हें रखें शीतल :- जी हाँ, हम आपके वृषणों (टेस्टीकल) की बात कर रहे हैं। यदि इन्हें जरूरत से ज्यादा गर्माहट मिले तो भी स्पर्म की संख्या घट सकती है। इन्हें बाकी शरीर के तापमान से थोड़ा ठंडा रखना ही बेहतर होता है। हॉट टब, हॉट बाथ, सोना बाथ, टाइट कपड़े व अंतर्वस्त्रों का ज्यादा प्रयोग न करें। सिंथैटिक पेंट व अंडरवियर भी गरमी के दिनों में ज्यादा गर्म होते हैं। उन्हें रखें सुरक्षित :- यदि आप फुटबॉल, सॉकटए बास्केट बॉल या घुड़सवारी जैसे खेल खेलते हैं तो शरीर के इन नाजुक अंगों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें। जरूरत से ज्यादा साईकलिंग भी नुकसान पहुँचा सकती है क्योंकि उसमें लगातार निचले अंगों पर दबाव पड़ता है। यदि वह हिस्सा साइकिल चलाते समय थोड़ा सुन्न सा लगे तो गर्भधारण के दिनों में उसका इस्तेमाल न करना ही बेहतर होगा। परेशानी बढ़ने पर डॉक्टर के पास जाने से न घबराएँ।  शांत रहें :– यह आप दोनों के लिए बहुत अहमियत रखता है। तनाव से न केवल काम क्षमता घटेगी बल्कि स्पर्म की संख्या में भी कमी आएगी। इस बारे में ज्यादा न सोचें, सब कुछ प्राकृतिक तौर पर सहज हो जाएगा। इसके बाद…….? एक नई शुरूआत का वक्त है। गर्भधारण से पूर्व की तैयारी होने के बाद गर्भधारण वाले अध्याय से पढ़ना शुरू कर दें और इसका पूरा आनंद लें! यह भी पढ़ें – दूसरी बार कर रही हैं प्रेगनेंसी प्लान तो पहले क्रॉनिक रोगों पर पाएं काबू क्रॉनिक रोगों पर काबू पाएं

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डिलीवरी के बाद मां को हो सकता है संक्रमण

शिशु जन्म के बाद संक्रमण यह क्या है? कई बार महिलाओं को शिशु जन्म के बाद संक्रमण भी हो जाता है क्योंकि आपके शरीर के भीतरी अंग पूरी तरह से बंद नहीं हुए होते। किसी में टांके नरम भी हो सकते हैं।कैथीटर की वजह से ब्लैडर या किडनी में संक्रमण हो सकता है। गर्भाशय में छूटे प्लेसेंटा के अंश से भी संक्रमण हो सकता है लेकिन इनमें से एंडोमैट्रीटिस (यूटरस की लाइनिंग) का संक्रमण सबसे ज्यादा सामान्य है। यदि इन संक्रमणों का इलाज न हो पाए तो ये खतरनाक हो सकते हैं क्योंकि ये काम करने की सारी ऊर्जा सोख लेते हैं व आपको कमजोरी घेर लेती है। आप प्रसव के बाद आसानी से संभल नहीं पातीं व शिशु की ओर पूरा ध्यान नहीं दे पातीं। यह कितना सामान्य है?  करीब 8 प्रतिशत गर्भावस्थाओं में संक्रमण होता है सी-सैक्शन या मैम्ब्रेन का रप्चर हुआ हो तो संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? वे निम्नलिखित हैं‒   बुखार   संक्रमित हिस्से में दर्द   बदबूदार स्राव   सर्दी लगना आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं? यदि 100 से ज्यादा उससे तेज बुखार है तो डॉक्टर को बुलाने में देर न करें। एंटीबायोटिक दवाएँ लेने के साथ-साथ भरपूर आराम भी करें।तरल पदार्थों की मात्रा बढ़ा दें। स्तनपान करा रही हैं तो डॉक्टर को बता दें ताकि वे आपके लिए दवा चुनते समय सावधानी रखें। क्या इससे बचाव हो सकता है? थोड़ा साफ-सफाई का ध्यान रखें। जख्मों पर दवा लगाएँ। रक्तस्राव में टैंपून की बजाए पैड लगाएं।इस तरह आप निश्चित ही संक्रमण से अपना बचाव कर सकती हैं। यह भी पढ़ें –शिशु को पर्याप्त पोषण न मिलने पर बन सकती है आई.यू.जी.आर की स्थिति

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जब होने लगे प्रसव के बाद अत्यधिक ब्लीडिंग

प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव यह क्या है?  डिलीवरी के बाद होने वाला रक्तस्राव तो सामान्य है। लेकिन कई बार गर्भाशय जन्म के बाद इतना नहीं सिकुड़ता, जितना उसे सिकुड़ना चाहिए जिससे उस जगह से भारी रक्तस्राव होने लगता है, जहाँ से प्लेसेंटा जुड़ा था। यदि गर्भाशय में प्लेसेंटा का अंश रह जाए, तो भी ऐसा हो सकता है। इसकी वजह से डिलीवरी के फौरन बाद संक्रमण भी हो सकता है। यह कितना सामान्य है?  यह 2 से 4 प्रतिशत गर्भावस्था मामलों में होता है। यदि लंबे प्रसव काल के बाद, गर्भाशय जगह पर न आए मल्टीपल प्रेगनेंसी की वजह से ढीला पड़ गया हो शिशु बड़ा हो या एम्नियोटिक द्रव्य की अधिकता हो, प्लेसेंटा का आकार असामान्य हो, कोई फायब्रायड हो या डिलीवरी के समय माँ काफी कमजोर हो तो पोस्टपार्टम हेमरेज का खतरा हो सकता है।   इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? इसके निम्नलिखित संकेत हो सकते हैं :-   लगातार कई घंटे तक भारी रक्तस्राव   कुछ दिन बाद भी लाल रक्त स्राव होता रहे   बड़े-बड़े थक्के निकलें   पेट में निचले हिस्से में सूजन या दर्द बना रहे।   खून की कमी की वजह से बेहोशी सिर चकराना या सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या पैदा हो सकती है।   आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं  जब प्लेसेंटा की डिलीवरी हो जाएगी तो डॉक्टर जांच से पता लगाएँगे कि उसका कोई अंश भीतर तो नहीं रह गया। वे आपको पिटोसिन देंगे या गर्भाशय की मालिश करेंगे ताकि वह सिकुड़ जाए व रक्तस्राव ज्यादा न हो। स्तनपान कराने से भी गर्भाशय संकुचन में मदद मिलेगी। 

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शिशु का जन्म व उसके बाद होने वाली जटिलताएँ

इनमें से कई समस्याएँ प्रसव या डिलीवरी से पहले सामने नहीं आतीं इसलिए आप भी उन्हें पहले से पढ़कर चिंतित न हों। ये परेशानियाँ शिशु जन्म के बाद होती हैं। यहाँ इन्हें इसलिए दिया गया है ताकि आपको इनमें से कोई दिक्कत हो तो आपको उसके बारे में पूरी जानकारी हो। फैटल डिसट्रेस यह क्या है? जब गर्भाशय में शिशु के पास ऑक्सीजन की भरपाई नहीं होती तो इसे फैटलडिसट्रेस कहते हैं ऐसा प्रसव से पहले या इसके दौरान हो सकता है। ऐसा अनियंत्रित मधुमेह,प्रीक्लैंपसिया, एम्नियोटिक द्रव्य की कम या अधिक मात्रा, गर्भानाल के घटने या बढ़ने या माँ द्वारा रक्त नलिकाओं पर दबाव पड़ने की स्थिति में ऐसा हो सकता है। इससे शिशु को ऑक्सीजन की कम मात्रा मिलने लगती है। ऑक्सीजन की घटी मात्रा या शिशु की हृदयगति से तत्काल सी-सैक्शन करना पड़ता है वरना उसके लिए खतरा बन सकता है। यह कितना सामान्य है? हर 100 में से 1 मामला ऐसा हो ही जाता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? यदि शिशु को पूरी तरह ऑक्सीजन नहीं मिलेगी तो उसकी हृदय गति घट जाएगी, उसकी हलचल में कमी आएगी तथा वह डिलवरी के समय गर्भाशय में ही मल (मैकोनियम) कर देगा। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? यदि शिशु के हलचल में कमी महसूस हो तो अपने डॉक्टर को बताएँ। अस्पताल में फैटल मॉनीटर की मदद से जांच होगी। यदि इसके लक्षण हुए तो आपको ऑक्सीजन दी जाएगी व आई बी. लगाया जाएगा ताकि शिशु की हृदय गति सामान्य हो सके। बाईं ओर लेटने से भी रक्त नलिकाओं पर दबाव घटेगा। यदि ये तकनीकें काम न आईं तो डिलीवरी करनी होगी।  कॉर्ड प्रोलैप्स यह क्या है? कॉर्ड प्रोलैप्स तब होता है, जब गर्भनाल सर्विक्स से फिसलकर, बर्थ कैनाल में आ जाती है। ऐसी अवस्था में डिलीवरी के दौरान शिशु को ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।   यह कितना सामान्य है? 300 में से किसी एक मामले में ऐसा होता है, कुछ गर्भावस्था जटिलताओं से प्रोलैप्स का खतरा बढ़ जाता है।जिनमें हाइड्रमजिमोस, ब्रीच या प्रीमैच्योर डिलीवरी को शामिल कर सकते हैं। यह दूसरे जुड़वां की डिलीवरी के समय भी हो सकता है। यदि शिशु का सिर बर्थ कैनाल में सैट होने से पहले ही पानी की थैली फट जाए, तो भी खतरा बढ़ जाता है।   इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? यदि यह नाल योनि तक आ जाए तो आप इसे देख सकती हैं या छू सकती हैं। यदि यह शिशु के सिर के नीचे दबेगी तो फैटल मॉनीटर पर फैटल डिस्ट्रेस के लक्षण दिखेंगे।   आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? इस बारे में पहले से जानने का कोई उपाय नहीं है। फैटल मॉनीटर के बिना तो इस बारे में पता नहीं चल सकता। यदि आपको घर में ऐसा एहसास हो तो अपने हाथों व घुटनों के बल बैठें ताकि पेल्विक क्षेत्र पर ज्यादा दबाव न पड़े।यदि वह योनि मार्ग से दिखे तो उसे साफ तौलिए से संभालें। अपने शरीर का निचला हिस्सा ऊंचा करके लेटें। डॉक्टर आपको आपकी अवस्था के हिसाब से किसी दूसरी मुद्रा में लेटने को कह सकते हैं। इसके बाद जल्दी से सी-सैक्शन करना होगा। शोल्डर डिस्टोकिया यह क्या है? इस अवस्था में लेबर या डिलीवरी के दौरान शिशु के दोनों कंधे मां की पेल्विक बोन में फंस जाते हैं व शिशु बर्थ कैनाल में नीचे की ओर जाने लगता है।यह कितना सामान्य है? ऐसा अक्सर अधिक वजन वाले शिशुओं में होता है। अनियंत्रित या गैस्टेशनल मधुमेह से ग्रस्त माँओं को इस स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। यदि आपकी डिलीवरी दिए गए समय के बाद भी न हो या आपके साथ पहले भी ऐसा हुआ हो तो दोबारा होने का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि इन कारणों के न होने पर भी प्रसव के दौरान शोल्डर डिस्टोकिया हो सकता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? ऐसी अवस्था अचानक ही प्रसव के दौरान पैदा होती है। आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं? माँ के पेट पर दबाव देकर या उसकी स्थिति बदलकर कई तकनीकें अपनाई जाती हैं ताकि शिशु की सुरक्षित डिलीवरी हो सके। क्या इससे बचाव हो सकता है? अपने वजन का ध्यान रखें। शिशु का वजन भी जरूरत से ज्यादा न बढ़ने दें। मधुमेह को नियंत्रित रखें।प्रसव के दौरान ऐसी पोजीशन बनाएं ताकि शोल्डर डिस्टोकिया की नौबत ही न आए। सीरियस पैरीनियल टीयर्स यह क्या है? जब डिलीवरी के दौरान शिशु का बड़ा सिर बाहर आता है तो योनि व गुदा मार्ग के बीच वाले हिस्से पर दबाव की वजह से कट आ सकते हैं। फर्स्ट डिग्री टीयर्स में सिर्फ त्वचा फटती है। सैकेंड डिग्री टीयर्स में त्वचा के साथ योनि की मांसपेशियाँ भी फटती हैं लेकिन गंभीर टीयर्स में योनि की त्वचा, उत्तम व पैरीनियल की मांसपेशियाँ भी फटती हैं। इनसे प्रसव के बाद काफी तकलीफ होती है। तथा पेल्विक क्षेत्र से जुड़ी कई समस्याएं भी हो जाती हैं।गर्भाशय के मुख पर भी कट आ सकते हैं। यह कितना सामान्य है? योनिमार्ग से होनेवाली डिलीवरी में इसका थोड़ा बहुत खतरा तो होता ही है। हालांकि गंभीर किस्म के कट ज्यादा महिलाओं को नहीं लगते। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? रक्तस्राव होता है। जख्म भरने पर हल्की खारिश व दर्द होता है। आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं? ऐसे कट में टांके लगा दिए जाते हैं। इसके लिए पहले लोकल एनस्थीसिया देते हैं। यदि चीरा लगा है तो कटि स्नान, आइसपैक, एंटीसैप्टिक स्प्रे, दवा व जख्म को खुली हवा में रखने से जल्दी आराम आ जाएगा। क्या इससे बचाव हो सकता है? प्रसव से पहले कीगल व्यायाम व पैरीनियल की मालिश से उस हिस्से को ज्यादा बेहतर स्ट्रैच कर सकते हैं। प्रसव के दौरान गर्म सेंक व मालिश भी बेहतर रहेंगे। यूटेराइन रप्चर यूटेराइन की दीवार में यदि पहले किसी सर्जरी, सी-सैक्शन फायब्रायड रिमूवल की वजह से कमजोर बिंदु हो लेबर और डिलीवरी के दौरान उस हिस्से में चीरा आ सकता है। इससे पेट से अनियंत्रित रक्तस्राव होने लगता है तथा उस हिस्से की तरफ जाने लगता है, जहाँ से प्लेसेंटा पेट में प्रवेश करता है। यह कितना सामान्य है? यदि किसी महिला को पहले सी-सैक्शन या यूटेराइन रप्चर न हुआ हो तो उसे ऐसी दिक्कत नहीं होती जो महिलाएँ सी-सैक्शन के बाद योनि मार्ग से डिलीवरी करवाती हैं या जिनमें भ्रूण की स्थिति या सामान्य प्लेसेंटा की जटिलता होती है, उनके लिए खतरा बढ़ जाता है। जिन महिलाओं के छः से अधिक बच्चे हों या वे मल्टीपल प्रेगनेंसी में हों,उनके लिए भी खतरा होता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? पेट में तेज दर्द होता है। फैटल मॉनीटर पर शिशु की घटती हृदयगति दिखने लगती है। माँ का रक्तचाप व हृदय गति घट जाते हैं, सांस लेने में तकलीफ होती है तथा बेहोशी होने लगती है। आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं? यदि आप पहले सी-सैक्शन या सर्जरी करवा चुकी हैं, जिस दौरान यूटेराइन वॉल पूरी तरह काटी गई थी तो लेबर के सही तरीके का चुनाव करना होगा यदि ऐसा भयानक हो जाए तो सी-सैक्शन के बाद गर्भाशय की मरम्मत की जरूरत होती है व आपको संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं। क्या इससे बचाव हो सकता है? जिन महिलाओं को इसका खतरा हो, उनके लिए फैटल मॉनीटरिंग जरूरी हो जाती है ताकि किसी भी जटिलता का पता लग सके। यदि वे पहले सी-सैक्शन के बाद योनि मार्ग से डिलीवरी कराने जा रही हैं तो उनका प्रसव आरंभ दवाओं से नहीं कराना चाहिए। यूटेराइन इन्वर्ज़न यह क्या है? ऐसा तब होता है जब यूटेराइनवॉल टूट जाती है तथा अंदर वाला हिस्सा बाहर की ओर आ जाता है। कई बार यह सर्विक्स व योनि से भी बाहर को उभर आता है। हालांकि इसके सभी कारणों का पता नहीं चल सका लेकिन इसका इलाज न होने पर हेमरेज और सदमा लग सकता है। हालांकि ऐसा भी संभव नहीं कि कोई इसे देखने के बावजूद अनदेखा कर देगा व इलाज नहीं कराएगा। यह कितना सामान्य है? ऐसा 2000 में से किसी 1 मामले में होता है। यदि पिछली डिलीवरी में ऐसा हो चुका हो, या प्रसव का समय लंबा खिंच जाए, प्रीटर्म लेबर रोकने की दवाएँ दी जाएँ या पहले कई योनिमार्ग से डिलीवरी हो चुकी हो तो इसका खतरा बढ़ जाता है। यदि गर्भाशय जरूरत से ज्यादा ढीलाहो तो यह भी बाहर को आ सकता है या शिशु जन्म के तीसरे चरण में कॉर्ड को ज्यादा जोर से खींचा जाए। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं?   पेट में दर्द   तेज रक्तस्राव   माँ को सदमे के संकेत   कई बार गर्भाशय भी योनि से दिखने लगता है। आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं ? खतरे के कारण पहचानने के बाद डॉक्टर को उनकी सूचना दें। यदि आपके साथ ऐसा हुआ तो डॉक्टर उस हिस्से को हाथों से सही जगह बिठाने की कोशिश करेगा तथा मांसपेशियों के संकुचन के लिए दवा देगा। यदि यह तरीका काम न आए तो सर्जरी करनी पड़ सकती है।आपको रक्त की कमी के लिए रक्त भी चढ़ाना पड़ सकता है। संक्रमण रोकने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाएंगे। क्या इससे बचाव हो सकता है? यदि आपको पहले भी ऐसा हो चुका है तो डॉक्टर को अवश्य बताएँ क्योंकि आपके लिए इसका ज्यादा खतरा हो सकता है। यह भी पढ़ें –प्लेसेंटा प्रीवीया और प्लेसेंटल एबरप्शन, दोनों […]

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प्रीटर्म प्रीमेच्योर रप्चर ऑफ मैम्ब्रेन को सही समय पर पहचान कर स्वस्थ रह सकते हैं मां और शिशु

प्रीटर्म प्रीमेच्योर रप्चर ऑफ मैम्ब्रेन यदि 37 सप्ताह से पहले पानी की थैली फट जाए तो इसे पी.वी.आर.ओ.एम. कहते हैं। इसकी वजह से शिशु का समय से पहले जन्म हो सकता है या उसे किसी तरह का संक्रमण हो सकता है। यह कितना सामान्य है? यह 3 प्रतिशत से भी कम मामलों में होता है। धूम्रपान करने वाली,एस.टी.डी. रोगों से ग्रस्त, योनि से रक्तस्राव होने के रोग या प्लेसेंटल एवरप्शन वाली महिलाओं को इसका खतरा ज्यादा होता है। यदि जुड़वां शिशु हों या बैक्टीरियल वैजिनिओसिस हो तो खतरा और भी बढ़ जाता है। आप जानना चाहेंगी यदि प्रीमेच्योर शिशु को आईसीयू में नवजात को भर्ती किया जाए तो आप कुछ ही दिनों में स्वस्थ नवजात के साथ घर-वापसी कर सकती हैं मेडीकल तकनीकों को धन्यवाद। आप जानना चाहेंगी पी.पी.आर.ओ.एम. को सही वक्त पर पहचानने व इलाज करने से माँ व शिशु स्वस्थ रहते हैं। शिशु का समय से पूर्व जन्म होने पर भी उसे आईसीयू में रख कर सुरक्षा दी जा सकती है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? योनि से द्रव्य का स्राव होता है। मूत्र व एम्नियोटिक द्रव्य में फर्क जानने के लिए उसे सूंघ कर देखें। मूत्र की गंध अमोनिया जैसी होगी। यदि द्रव्य संक्रमित न हो तो उसकी गंध बुरी नहीं होती। यदि आपको इस बारे में कोई भी शक हो तो डॉक्टर को बताने में देर न करें। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं?:- यदि 34 सप्ताह के बाद मैम्ब्रेन फटी है तो शिशु की डिलीवरी कर दी जाएगी। यदि अभी डिलीवरी होना संभव नहीं है तो आपको अस्पताल में रखा जाएगा व संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाएँगे। शिशु के फेफड़े मजबूत करने के लिए स्टीरॉयड दिए जाएँगे।यदि शिशु डिलीवरी के लिए काफी छोटा है तो इस प्रक्रिया को रोकने की दवाएँ दी जाएँगी। ऐसा बहुत कम होता है कि मैम्ब्रेन अपने-आप ठीक हो जाए व द्रव्य का रिसाव बंद हो जाए। यदि ऐसा हो तो आपको घर जाने की इजाजत मिल जाएगी बस थोड़ा सावधान रहने को कहा जाएगा। क्या इससे बचाव हो सकता है? :- यदि आप पी.पी.आर.ओ.एम. से अपना बचाव चाहती है तो योनि संक्रमण से बचें क्योंकि उसी वजह से यह होता है। प्रीटर्म या प्रीमेच्योर लेबर ऐसा प्रसव जो बीसवें सप्ताह के बाद लेकिन 37वें सप्ताह से पहले शुरू हो, प्रीटर्म लेबर कहलाता है। यह कितना सामान्य है? यह एक आम समस्या है। धूम्रपान, मदिरापान, मादक द्रव्यों के सेवन, कम वजन, ज्यादा वजन, अपर्याप्त पोषण, मसूड़ों के संक्रमण, एस.टी.डी., लेक्टीरियल,मूत्राशय मार्ग व एम्नियोटिक द्रव्य के संक्रमण, अक्ष्यम सर्विक्स, यूटेराइन की गड़बड़ी, माँ की लंबी बीमारी, प्लेसेंटल एवरशन व प्लेसंटाप्रीविया की वजह से इसका खतरा बढ़ जाता है। 17 से कम व 35 से अधिक आयु की महिलाओं, मल्टीपल शिशुओं की मांओं व प्रीमेच्योर डिलीवरी का इतिहास रखने वाली महिलाओं में भी इसका खतरा बढ़ जाता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? :- इसमें निम्नलिखित लक्षण शामिल हो सकते हैं‒ आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? शिशु जितने दिन कोख में रहता है उसके स्वास्थ्य व सुरक्षा के लिहाज से अच्छा ही होता है इसलिए प्रसव को रोकना ही प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिए। यदि संकुचन भी हो रहा हो तो डॉक्टर स्थिति के हिसाब से अंदाजा लगाएँगे कि आपको घर पर ही आराम करना है या अस्पताल में रह कर दबाएँ व इंजेक्शन लेने हैं। आपकी स्थिति के हिसाब से दवा व इंजेक्शन दिए जाएँगे। यदि डॉक्टर को ऐसा लगे कि डिलीवरी रोकने से आपको या शिशु को किसी भी तरह का खतरा हो सकता है तो वे उसे स्थगित करने का कोई उपाय नहीं करेंगे। क्या इससे बचाव हो सकता है? सभी प्रीटर्म बर्थ रोके नहीं जा सकते क्योंकि उनके कारणों पर हमारा बस नहीं चलता। हालांकि प्रसव-पूर्व अच्छी देखभाल, बढ़िया खान-पान दांतों की प्रीटर्म लेबर का पता लगाना आजकल कई प्रकार के टेस्टो, जांच की मदद से प्रीटर्म लेबर का अनुमान लगाया जा सकता है। गर्भाशय या योनि के स्राव एफएफ एन की मदद से इसका पता चलता है।यदि जांच में पॉजिटिव नतीजा आए तो प्रीटर्म लेबर को रोकने के कदम उठाने चाहिए। यह टेस्ट उन्हीं महिलाओं में किया जाता है, जिन्हें इसका ज्यादा खतरा हो।इसके अलावा सर्विक्स की लंबाई मापने कास्क्रीनिंग टेस्ट भी होता है इसमें अल्ट्रासांउड की मदद से सर्विक्स की लंबाई मापी जाती है अगर वह छोटी हो या खुल रही हो तो उसे रोकने के उपाय किए जा सकते हैं। अच्छी देखभाल , कोकेन व मदिरा जैसे नशीले पदार्थों के त्याग, जांच व संक्रमण से बचाव के उपाय अपनाकर डॉक्टर के सभी निर्देशों का पालन करके, काफी हद तक प्रीटर्म बर्थ को रोक सकते हैं। जिन महिलाओं को पहले से भी यह समस्या रही हो, उनके लिए भी कोई न कोई उपाय किया जा सकता है। यह भी पढ़ें –प्रेगनेंसी में मिसकैरिज से जुड़े इन फैक्ट्स की जानकारी होनी चाहिए

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प्रेगनेंसी में क्या होता है कोरियोएमनिओनिटिस, ओलिगोहाइड्रामनिओस व हाइड्रमनिओस

कोरियोएमनिओनिटिस यह क्या है?  यह एम्नियोटिक मैम्ब्रेन व द्रव्य का संक्रमण है जो कि शिशु की सुरक्षा करता है। यह बैक्टीरिया की वजह से होता है। इसे ही प्रीमेच्योर डिलीवरी व मैम्ब्रेन करने की वजह माना जाता है। यह कितना सामान्य है? यह 1 से 2 प्रतिशत गर्भावस्था में होता है। मैकब्रेन जल्दी फटने के बाद इस संक्रमण का खतरा बढ़ जाता सकता है क्योंकि योनि से बैक्टीरिया वहां प्रवेश कर सकते हैं। जिन महिलाओं को पहली गर्भावस्था में यह संक्रमण हो चुका हो, उन्हें दूसरी गर्भावस्था में भी ऐसा होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं ? :- संक्रमण की उपस्थिति की जांच के लिए कोई सादा टेस्ट नहीं किया जाता। इसके लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं :-   बुखार   गर्भाशय में दर्द   शिशु व आपकी हृदय गति बढ़ना आप जानना चाहेंगी यदि सही समय पर कोटियोएमनिओनिटिस को पहचान कर इलाज किया जाए तो माँ व शिशु दोनों के लिए खतरा घट जाता है।  मैम्ब्रेन फटने पर, एम्नियोटिक द्रव का रिसाव  मैम्ब्रेन न फटने पर, दुर्गंधयुक्त योनिस्राव  सफेद रक्तकणों की संख्या बढ़ना आप व आपका डॉक्टर क्या कर सकते हैं? किसी भी तरह के दुर्गंधयुक्त स्राव का पता चलते ही डॉक्टर को बताएँ ताकि संक्रमण रोकने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जा सकें। जल्दी से डिलीवरी की जाएगी व उसके बाद भी शिशु व आपको एंटीबायोटिक्स दिए जाएँगे ताकि आपको व शिशु को दोबारा संक्रमण न हो सके।  ओलिगोहाइड्रामनिओस यह क्या है? इस अवस्था में शिशु के आसपास एम्नियोटिक द्रव्य की कमी हो जाती है। यह तीसरी तिमाही के अंत में होता है हालांकि ऐसा पहले भी हो सकता है। वैसे तो ऐसी महिलाओं की गर्भावस्था सामान्य होती है बस गर्भ नाल की वजह से थोड़ी परेशानी हो सकती है। कई बार इसकी वजह से यह भी पता चलता है कि शिशु की बढ़त में कोई कमी है। यह कितना सामान्य है? प्रायः 4 से 8 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में यह रोग पाया जाता है। यदि प्रसव की अनुमानित तिथि निकल जाए तो ऐसे मामलों की संख्या 12 प्रतिशत तक पहुँच जाती है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? माता में कोई लक्षण नहीं दिखते किंतु गर्भावस्था का आकार सामान्य से छोटा होता है। एम्नियोटिक द्रव्य की मात्रा भी कम होती है। कुछ मामलों में शिशु की हलचल भी थोड़ी घट सकती है। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? ढेर सा आराम करें व खूब पानी पीएं। एम्नियोटिकद्रव्य की मात्रा का ध्यान रखा जाएगा। यदि मामला न संभले तो डॉक्टर जल्दी डिलीवरी की सलाह भी दे सकते हैं। हाइड्रमनिओस यह क्या है? शिशु के आसपास एम्नियोटिकद्रव्य की मात्रा जरूरत से ज्यादा हो जाती है। हालांकि बिना किसी इलाज के इसका संतुलन कायम हो जाता है। यदि जमाव ज्यादा हो तो यह शिशु में स्नायु तंत्र, गैस्टेशनल विकृति या निकलने की क्षमता में कमी का सूचक हो सकता है। इससे मैम्ब्रेन जल्दी फटने, प्रीटर्म लेबर, प्लेसेंटलएवरप्शन, ब्रीच या गर्भनाल के प्रोलैप्स होने का खतरा बढ़ जाता है। यह कितना सामान्य है? :- यह उसे 4 प्रतिशत गर्भावस्थाओं में होता है। यदि शिशु जुड़वां हो या माँ की मधुमेह का इलाज न हो तो, ऐसा हो सकता है।   इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? :- इसके कुछ खास लक्षण नहीं होते‒   शिशु की हलचल का ज्यादा पता नहीं चलता   गर्भाशय का आकार काफी बढ़ जाता है   पेट के निचले हिस्से में तकलीफ   अपच   टाँगों में सूजन   सांस लेने में तकलीफ   गर्भाशय संकुचन   डॉक्टर द्वारा भीतरी जांच या अल्ट्रासाउंड के दौरान इसका पता चलता है। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? जब तक द्रव्य का जमाव ज्यादा रहेगा आपको लगातार डॉक्टर के पास जांच के लिए जाना होगा यदि जमाव गंभीर हुआ तो आपको एमनियोसेंटेसिस करवाना पड़ सकता है। यदि लेबर से पहले ही पानी की थैली फट जाए तो डॉक्टर को बुलाने में देर न करें।

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प्लेसेंटा प्रीवीया और प्लेसेंटल एबरप्शन, दोनों ही मामलों में करना पड़ता है सी-सेक्शन

प्लेसेंटा प्रीविया यह क्या है? इस अवस्था में प्लेसेंटा सर्विक्स को थोड़ा या फिर पूरी तरह से ढक लेता है।अर्ली प्रेगनेंसी में प्लेसेंटा नीचा ही होता है लेकिन ज्यों-ज्यों गर्भावस्था के साथ-साथ गर्भाशय का आकार बढ़ता है तो प्लेसेंटा सर्विक्स के आगे से हट जाता है। यदि यह वहाँ से न हटे या सर्विक्स को थोड़ा ढक ले तो यह‘पार्शियल प्रीविया’ कहलाता है। यदि यह सर्विक्स को पूरी तरह ढक ले तो इसे टोटल प्रीविया कहते हैं। इन दोनों की वजह से शिशु का जन्मयोनि मार्ग से नहीं हो पाता। इससे गर्भावस्था में अंत में या डिलीवरी के समय रक्तस्राव भी हो सकता है। प्लेसेंटा सर्विक्स के जितना पास होगा रक्तस्राव की संभावना उतनी ज्यादा होगी। यह कितना सामान्य है? हर 200 गर्भावस्थाओं में से 1 मामला ऐसा होता है। यह 20 से कम व 30 से ज्यादा अधिक आयु की महिला में होता है या फिर उस महिला का डी एंड सी,या सी सैक्शन हुआ हो। धूम्रपान व जुड़वां बच्चों के जन्म से भी यह खतरा बढ़ जाता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? यह आमतौर से लक्षणों से नहीं पहचाना जाता। दूसरी तिमाही के अल्ट्रासाउंड में इसका पता चलता है कई बार तीसरी तिमाही में रक्तस्राव से भी स्थिति पता चल जाती है। रक्तस्राव इसका एक मात्र लक्षण है, जिसके साथ कोई दर्द नहीं होता। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है। तीसरी तिमाही के आखिर तक प्लेसेंटा प्रीविया के कई मामले अपने-आप सुलझ जाते हैं। यदि प्रीविया के साथ रक्तस्राव न हो तो कई बार किसी इलाज की भी जरूरत नहीं होती। यदि रक्तस्राव होगा तो बैडरैस्ट की सलाह दी जाएगी, सेक्स की मनाही होगी व आपकी ज्यादा बेहतर देखभाल की जाएगी। यदि समय से पूर्व प्रसव का खतरा लगा तो आपके शिशु के फेफड़े परिपक्व करने के लिए स्टीरॉयड के इंजेक्शन देने होंगे। चाहे आपको कोई और तकलीफ न हो, किंतु आपके शिशु की डिलीवरी सी सैक्शन से की जाएगी। प्लेसेंटल एबरप्शन :- यह क्या है? जब प्लेसेंटा डिलीवरी से पहले, गर्भावस्था के दौरान ही यूटेराइन वॉल से अलग हो जाता है तो इसेप्लेसेंटल एवरप्शन कहते हैं। यदि यह अधिक मात्रा में नहीं है तो थोड़े से इलाज व सावधानी के साथ माँ व शिशु को ज्यादा खतरा नहीं रहता। यदि यह गंभीर हो तो शिशु को थोड़ा खतरा रहता है। इसका मतलब है कि प्लेसेंटा अलग होने के बाद शिशु को ऑक्सीजन व पोषण नहीं मिलेगा। यह कितना सामान्य है? :- ऐसा 1 प्रतिशत से भी कम गर्भावस्था में होता है। यह अक्सर तीसरी तिमाही के आसपास होता है। यह किसी के भी साथ हो सकता है लेकिन जिन महिलाओं के यहाँ जुड़वाँ होने वाले हों, ऐसा पहले भी हो चुका है, धूम्रपान या मादक द्रव्यों का सेवन करती हों या गैस्टेशनल मधुमेह की मरीज हों।इसके अलावा प्रीक्ले पसिंया या रक्तचाप की वजह से भी ऐसा हो सकता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? ये निम्नलिखित हैं :   भारी या कम रक्तस्राव   पेट के निचले हिस्से में ऐंठन या दर्द   पीठ या पेट में दर्द आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं गर्भावस्था के बीचोंबीच ऐसा कोई भी रक्तस्राव या पेट में ऐंठन होते ही डॉक्टर को सूचना दें।मरीज की मेडिकल हिस्ट्री, उसकी हालत, संकुचन व शिशु की प्रतिक्रिया देखने के बाद ही कोई फैसला लिया जाता है। अल्ट्रासाउंड से मदद मिल सकती है, केवल 25 प्रतिशत एबरप्शन ही इसकी पकड़ में आते हैं। यदि पता चल जाए कि प्लेसेंटापूरी तरह से अलग नहीं हुआ तो आपके सिर्फ आराम की सलाह दी जाएगी। यदि रक्तस्राव जारी रहे तो आई वी फ्ल्यूड देना पड़ सकता है यदि डिलीवरी जल्दी करनी हो तो स्टीरॉयड के इंजेक्शन दिए जाएंगे। ताकि शिशु के फेफड़े मजबूत हो सकें। यदि एवरप्शन जारी रहे तो फिर सी-सैक्शन का उपाय ही बचता है। यह भी पढ़ें –प्रेगनेंसी में अगर सामना करना पड़े अर्ली मिसकैरिज का

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शिशु को पर्याप्त पोषण न मिलने पर बन सकती है आई.यू.जी.आर की स्थिति

इंट्रायूटेराइन ग्रोथ रिसट्रिक्शन यह क्या है? आई.यू.जी.आर.उस शिशु के लिए कहते हैं, जो सामान्य शिशुओं की तुलना में छोटा होता है। यदि शिशु का वजन उसकी गर्भाशय के 10 प्रतिशत से भी कम हो तो आई.यू.जी.आर. का पता चलता है। यदि शिशु को पर्याप्त पोषण न मिल रहा हो तो ऐसी स्थिति बन सकती है। यह कितना सामान्य है? यह तकरीबन 60 प्रतिशत गर्भावस्था में होता है। यह पहली,पांचवीं व उसके बाद की गर्भावस्था, 17 से कम व 25 से अधिक आयु की महिलाओं या पहले कम वजन वाले शिशु को जन्म दे चुकी महिलाओं या प्लेसेंटा व यूटेराइन की असमानताओं वाली महिलाओं में होता है। यदि महिला का वजन भी जन्म के समय कम रहा हो तो इससे उससे यहाँ की कम वजन वाले शिशु के जन्म का खतरा बढ़ जाता है। यदि शिशु के पिता का वजन भी जन्म के समय कम था तो खतरा और भी ज्यादा हो जाता है। आप जानना चाहेंगी एक बार कम वजन वाले शिशु को जन्म देने वाली माँ के लिए अगली बार का भी खतरा बढ़ जाता है। हालांकि पहले से वजन का कुछ फर्क होता है पर आपको इस बारे में काफी ध्यान देना चाहिए। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? भ्रूण की लंबाई-ऊंचाई मापते समय, डॉक्टर को पता चलता है कि शिशु अपनी गर्भावधि की तुलना में छोटा लग रहा है। अल्ट्रासाउंड से भी कमबढ़त वाले शिशु का पता लग सकता है। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? जन्म के वजन से ही शिशु की सेहत का पता चलता है। यदि शिशु का वजन कम होगा तो उसे कई तरह के संक्रमण हो सकते हैं तभी इस समस्या का पहले पता चलना जरूरी है ताकि शिशु की सेहत का खास ध्यान रखा जा सके।यदि हर तरह के प्रयत्न व दवा के बावजूद शिशु का विकास न हो तो उसके थोड़ा परिपक्व होते ही डिलीवरी कर दी जाती है ताकि उसे बेहतर देखभाल दी जा सके। क्या इससे बचाव हो सकता है? सही मात्रा में पोषण दें व गलत आदतों को त्याग दें, जैसे धूम्रपान, मदिरापान, मादक द्रव्यों का सेवन व अन्य रक्तचाप आदि। इस तरह परहेज व चिकित्सा के बावजूद कम वजन वाला शिशु पैदा हो तो नियोनेटल देखभाल से उसकी हालत सुधारी जा सकती है। आप जानना चाहेंगी जन्म के समय कम वजन वाले 90 प्रतिशत शिशु एक-दो साल में ही सामान्य शिशुओं जितना वजन पा लेते हैं। यह भी पढ़ें –डिलीवरी के बाद मां को हो सकता है संक्रमण

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गर्भावस्था के 20वें सप्ताह में हो सकता है ऊंचा रक्तचाप और यूरीन में आने लग सकता है प्रोटीन

प्रीक्लैंपसिया यह क्या है? यह अक्सर गर्भावस्था में 20 वें सप्ताह के बाद होता है इसमें रक्तचाप काफी ऊँचा हो जाता है, जरूरत से ज्यादा सूजन हो जाती है व यूरीन में प्रोटीन आने लगता है। आप जानना चाहेंगी- सही देखभाल से प्रीक्लैंपसिया का इलाज हो सकता है। गर्भवती का रक्तचाप भी सामान्य स्तर का […]

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गर्भावस्था के 24 से 28 सप्ताह के दौरान शुरू हो सकता है गैस्टेशनल डायबिटीज

यह क्या है? ऐसा मधुमेह गर्भावस्था में ही होता है जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बनता। यह गर्भावस्था के 24 से 28 सप्ताह के दौरान शुरू होता है। तभी इस दौरान ग्लूकोज़ स्क्रीनिंग टेस्ट किया जाता है। यह डिलीवरी के बाद भी जारी रहता है। यदि मधुमेह का कोई भी प्रकार गर्भधारण से पहले होता है तो इसे नियंत्रित करने पर मां या भ्रूण को कोई हानि नहीं होती लेकिन यदि माँ के रक्त में जरूरत से ज्यादा शर्करा घुल जाए तो यह प्लेसेंटा तक पहुँचकर, माँ व शिशु दोनों के लिए घातक हो सकता है। वे शिशु भी काफी बड़े होते हैं,जिनकी वजह से गर्भावस्था जटिल हो जाती है।तब प्रीक्लैंपसिया होने का भी डर रहता है।मधुमेह का इलाज न हो तो शिशु को जन्म के बाद पीलिया, सांस लेने में तकलीफ या ब्लडशुगर के घटे हुए स्तर की समस्या हो सकती है हो सकता है कि वह आगे चलकर मोटापे व टाईप-2 मधुमेह का भी शिकार हो जाए।   यह कितना सामान्य है? 4 से 7 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में यह हो सकता है। मोटापे की वजह से यह रोग भी बढ़ता जा रहा है। यदि परिवार में पहले से मधुमेह की हिस्ट्री हो, माँ की उम्र ज्यादा हो तो जी.डी. का खतरा और भी बढ़ जाता है।   इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? हालांकि इसके लक्षण अस्पष्ट ही होते हैं।   अचानक प्यास लगना   बार-बार मूत्र आना   थकान (गर्भावस्था की थकान से अलग)   मूत्र में शुगर। (जांच से पता चलेगा)   आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं? 28वें सप्ताह में आपकी ग्लूकोज स्क्रीनिंग जांच की जाती है यदि ज्यादा जरूरी लगे तो तीन घंटे की ग्लूकोज़ टॉलरेंस जांच भी कर सकते हैं।यदि इस जांच से जी.डी. का पता चले तो डॉक्टर आपको विशेष डाइट व व्यायाम की सलाह देंगे। आपको घर पर भी ग्लूकोज़ मीटर से अपने ग्लूकोज का स्तर जांचना होगा।   यदि डाइट व व्यायाम से ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित न हो तो आपको इंसुलिन देना पड़ सकता है। इसके इंजेक्शन के अलावा ग्लोब्यूराइड दवा के तौर पर दे सकते हैं।   हालांकि सही तरीके से ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित हो जाए तो गर्भावस्था की जटिलताएँ खत्म की जा सकती हैं। आपको अच्छी चिकित्सा देखभाल की जरूरत होगी।  आप जानना चाहेंगी यदि गैस्टेशनल मधुमेह नियंत्रित रहे तो चिंता की कोई बात नहीं है आपकी गर्भावस्था सामान्य रहेगी व शिशु को भी कोई नुकसान नहीं होगा। क्या इससे बचाव हो सकता है? गर्भावस्था से पहले व इसके दौरान अपने वजन पर नजर रखें। बढ़िया खानपान पर ध्यान दें। पोषक आहार के साथ-साथ व्यायाम को भी न भूलें। फॉलिक सीसा की पूरी मात्रा लें। इस तरह जन्म लेने वाले शिशु को भी आगे चलकर मधुमेह का खतरा नहीं रहेगा। याद रखें कि गर्भावस्था में जी.डी. होने पर, गर्भावस्था के बाद टाईप-2 मधुमेह का डर बढ़ जाता है। अपना आदर्श आहार लें, वजन पर नजर रखें व शिशु के जन्म के बाद भी व्यायाम करती रहें ताकि खतरे को टाला जा सके। यह भी पढ़ें –कल्की से लें प्रेगनेंसी में स्टाइलिश फोटो क्लिक करवाने के आइडियाज

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