फाइबरोमाइलगिया

‘‘मुझे कुछ साल पहले फाइबरोमाइलगिया हुआ था। इसका मेरी गर्भावस्था पर क्या असर होगा?”

  यदि आपको अपनी किसी अवस्था का पहले से पता हो तो इससे काफी फायदा हो जाता है। इसके लक्षणों में दर्द, जलन, मांसपेशियों व ऊतकों में दर्द आदि प्रमुख हैं। गर्भावस्था में थकान की वजह से ये आसानी से पहचान में नहीं आते।इससे उत्पन्न तनाव को भी गर्भावस्था का ही एक लक्षण मान लिया जाता है। आपके शिशु पर इस रोग का कोई असर नहीं होगा हालांकि गर्भावस्था आपके लिए थोड़ी जटिल हो सकती है। आपके शरीर में ज्यादा थकान व दर्द रहता है। इससे बचाव के लिए तनाव घटाने की कोशिश करें।योग ध्यान व व्यायाम द्वारा शरीर को राहत दें।वजन को जरूरत से ज्यादा बढ़ने न दें। डॉक्टर से पूछकर ऐसी अवस्था में ली जाने वाली दवाएँ लें जो कि गर्भावस्था में पूरी तरह से सुरक्षित हों।

क्रॉनिक फॅटीग सिंड्रोम

इसका गर्भावस्था व स्वस्थ शिशु से कोई लेना-देना नहीं होता। यह पता नहीं चल पाया कि इस सिंड्रोम से गर्भावस्था पर कैसा असर होता है। कई महिलाओं के लक्षण पहले जैसे रहते हैं तो कइयों के काफी बिगड़ जाते हैं। यदि आप भी इस सिंड्रोम से ग्रस्त हैं तो अपने डॉक्टर को गर्भावस्था की सूचना दें ताकि वे पहले से चली आ रही दवा में बदलाव ला सकें वे आपको इस दौरान कुछ और सलाह भी दे सकते हैं ताकि आपको शिशु के प्रसव या देखभाल में कोई परेशानी न हो।

दवाओं से लाभ

यदि आप लंबी बीमारी `1q“से रोकथाम के लिए दवाएँ लेती हैं तो थोड़ा ध्यान दें।उन्हें रात को सोते समय लें ताकि वे आपके सिस्टम को पूरा आराम दे सकें।सुबह उल्टी आने की वजह से सारी दवा बाहर निकल सकती है। कई बार गर्भकाल में दवा की खुराक बदलनी पड़ सकती है इस बारे में समय-समय पर डॉक्टर की राय लें। इस बारे में कोई भी शक होने पर पहले डॉक्टर से पूछ लें।

हाइपरटेंशन

‘‘मुझे कई सालों से हाइपरटेंशन है। मेरा उच्च रक्तचाप गर्भावस्था को कैसे प्रभावित कर सकता है?”

जितनी भी अधिक आयु की महिलाएं गर्भधारण कर रही हैं, उनमें उच्च रक्तचाप की यह समस्या पाई जा रही है, यह अवस्था उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती जाती है। आपकी प्रेगनेंसी को हाई रिस्क माना जाएगा यानी आपको डॉक्टर के पास ज्यादा चक्कर लगाने होंगे। नियंत्रित रक्तचाप, बढ़िया मेडिकल देखभाल व अपनी देखरेख से गर्भावस्था पूरी तरह सुरक्षित होगी व आप स्वस्थ शिशु को जन्म दे पाएंगी। आपको निम्नलिखित सुझावों का पालन करना चाहिए:-

सही मेडिकल टीम :- आपके डॉक्टर को हाइपरटेंशन के बारे में अच्छी तरह जानकारी होनी चाहिए। आप अपने प्रसूति विशेषज्ञ से इस डॉक्टर को मिला दें।

मेडिकल देखरेख :– आपको डॉक्टर के पास ज्यादा चक्कर लगाने होंगे व कई तरह की जांच-पड़ताल भी की जाएगी। प्रेगनेंसी में कई जटिलताओं के अलावा प्रीक्लैंपसिया भी हो सकता है इसलिए डॉक्टर पूरे 40 सप्ताह तक आपकी सेहत का खास ध्यान रखेंगे।

रिलैक्सेशन :– हाइपरटेंशन के महीनों के लिए रिलैक्सेशन तकनीकें बहुत मायने रखती हैं।अध्ययनों से पता चला है कि इन तकनीकों के माध्यमों से रक्तचाप घटाया जा सकता है।

दूसरे वैकल्पिक उपचार :- अपने डॉक्टर की राय से बायोफीडबैक, एक्यूपंचर या मालिश जैसे वैकल्पिक उपचारों की भी मदद लें।

आराम :- मानसिक या शारीरिक तनाव उच्चरक्तचाप की वजह बन सकता है अतः किसी भी काम की अति न करें। दिन में पांव ऊंचे रखकर आराम करें। यदि नौकरी में काफी काम करना पड़ता है तो कुछ दिन की छुट्टी लें क्योंकि आपके लिए आराम बहुत जरूरी है।यदि घर में दूसरे बच्चे भी हैं तो काम-काज में किसी की मदद लें।

रक्तचाप की देखरेख :- आपको घर में अपने रक्तचाप का रिकॉर्ड रखना पड़ सकता है। पूरी तरह रिलैक्स होने पर ही रक्तचाप मापें।

अच्छा आहार:प्रेगनेंसी के दौरान अच्छा पोषक आहार लें व अपने डॉक्टर की राय से उसमें बदलाव लाएं। फल व सब्जियों की मात्रा बढ़ाते हुए, कम वसा वाले खाद्य पदार्थ लें,साबुत अनाज लेने से आपके रक्तचाप की बढ़ी हुई मात्रा घट सकती है।

तरल पदार्थ :- दिन में कम से कम आठ गिलास पानी अवश्य पिएं ताकि पैरों व टखनों की सूजन घट सके।

सही दवा :- प्रेगनेंसी में आपकी दवा बदली जाएगी या नहीं, यह डॉक्टर की राय के हिसाब से ही होगा क्योंकि कुछ दवाएं गर्भावस्था में सुरक्षित नहीं मानी जातीं।

इरिटेबल बाउल सिंड्रोम

‘‘मुझेइरिटेबल बाउल सिंड्रोमहै क्या गर्भावस्था में इसके लक्षण ज्यादा नहीं बिगड़ जाएंगे?”

यह अलग-अलग महिलाओं पर अलग-अलग तरीके से अपना असर दिखाती हैं। कह नहीं सकते कि आप पर इसका कैसा असर होगा। कुछ महिलाओं में कोई लक्षण नहीं उभरते और कुछ महिलाओं के लक्षण पहले से काफी बिगड़ जाते हैं। दरअसल गर्भावस्था में कुछ लक्षण तो पहले हो सकते हैं। कब्ज हो सकती है या फिर पतले दस्त आते हैं। गैस की वजह से हालात और भी बिगड़ जाते हैं। गर्भावस्था के हार्मोन इतने असरकारक होते हैं कि ‘इरिटेबल बाउल सिंड्रोम’ का पता तक नहीं चल पाता। डायरिया ग्रस्त महिला को अचानक कब्ज हो सकती है ओर कब्ज ग्रस्त महिला को शौच में काफी आसानी हो सकती है।

इन दिनों एक बार में सब खाने की बजाय थोड़ी मात्रा में खाएं, रेशायुक्त आहार लें,पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ लें, मसालेदार भोजन से बचें, ज्यादा तनाव न पालें। अपने आहार में थोड़े प्रोबायोटिक्स शामिल कर लें। इस सिंड्रोम की वजह से प्रीमेच्योर डिलीवरी का खतरा हो सकता है। इस हालत में सी-सैक्शन की नौबत भी आ सकती है।

लूपस

‘‘कहीं लूपस की वजह से मेरी गर्भावस्था प्रभावित तो नहीं होगी?”

गर्भावस्था में कई महिलाओं के लिए इसके लक्षण काफी बुरे होते है। और कइयों को पता तक नहीं चलता। जरूरी नहीं कि एक गर्भावस्था पर पड़ने वाले प्रभाव भी अस्पष्ट हैं। बेहतर होगा कि आप रोग शांत होने पर ही गर्भ धारण करें लेकिन अगर आप गर्भवती हो चुकी हैं तो डॉक्टर के पास जांच, टेस्ट व दवाओं द्वारा स्थिति को गंभीर बनने से रोका जा सकता है।अपने लूपस का इलाज करने वाले डॉक्टर को प्रसूति विशेषज्ञ से मिलवा दें ताकि वे मिलकर आपके बारे में सही फैसला ले सकें।

मल्टीपल स्क्लीरोसिस

‘‘मुझे कई साल पहले मल्टीपल स्क्लीरोसिस हुआ था। मुझे दो बार हल्का एम.एस. दिया गया था। क्या उस वजह से मेरी गर्भावस्था प्रभावित हो सकती है?”

आप दोनों के लिए अच्छी खबर है। इस खबर से आपकी गर्भावस्था को कोई नुकसान नहीं होने वाला। प्रसव पूर्व अच्छी देखभाल,न्यूरोलॉजिस्ट की सलाह व देखरेख से बेहतर नतीजे ही सामने आएंगे। इसका लेबर व डिलीवरी पर भी कोई असर नहीं होता। इस दौरान आप एपीड्यूरल व दर्द निवारक दवा का इस्तेमाल भी कर सकती हैं।वैसे अधिकतर महिलाएं लक्षणों से अछूती ही रहती हैं लेकिन कुछ महिलाओं का वजन बढ़ सकता है जिससे चलने में तकलीफ हो सकती है इसलिए लक्षण उभरें या न उभरें, इलाज से परहेज कहीं बेहतर होता है। तनाव से बचें व भरपूर आराम लें। अपने शरीर का तापमान न बढ़ने दें व मूत्रमार्ग के संक्रमण से बचें।

गर्भावस्था की वजह से एम.एस. के इलाज पर असर पड़ सकता है। आपको डॉक्टर से मिलकर गर्भावस्था में सुरक्षित मानी जाने वाली दवाएं इस्तेमाल करनी होंगी।

यदि डिलीवरी के बाद स्तनपान की इजाजतन मिले तो निराश न हों, फार्मूला दूध भी शिशु के लिए बुरा नहीं होता। आपको एकदम से काम का बोझ सिर पर नहीं लेना चाहिए वरना इससे तनाव बढ़ जाएगा। इस रोग का मां से शिशु को होने का खतरा न के बराबर ही होता है अतः इस बारे में तनाव न पालें।

फिनाइल कीटोनयूरिया

‘‘मुझे जन्म से ही पी.के.यू. रोग था। डॉक्टर ने मुझे किशोरावस्था में लोफिनाइलालेनाइनडाइट पर रखा था और मैं ठीक हो गई। अब वे गर्भवती होने पर मुझे वही डाइट लेने को कह रहे हैं। क्या यह जरूरी है?”

इसमें दवाओं के साथ फल, सब्जी व ब्रेड आदि आहार की सीमित मात्रा होती है तथा हाई-प्रोटीन युक्त आहार नहीं लिया जाता। इसे खाना सचमुच आसान नहीं है लेकिन गर्भावस्था में आपके लिए यह बहुत जरूरी है। यदि आपने इस डाइट का पालन न किया तो शिशु को कई तरह की मेडिकल दिक्कते हो सकती हैं।आपको गर्भधारण से तीन माह पहले ही यह डाइट लेनी चालू कर देनी चाहिए ताकि रोग काबू में रहे।

हालांकि कई साल बाद डाइट पर लौटना थोड़ा मुश्किल होगा लेकिन बच्चे की सेहत के लिए ऐसा करना आवश्यक है। इस बारे में आहार विशेषज्ञ से राय ले लें तो बेहतर होगा।