Winter Injuries: चोट उम्र के किसी भी पड़ाव पर, किसी को भी और घर-बाहर कहीं भी लग सकती हैं। उसका दर्द पीड़ित व्यक्ति को चाहे-अनचाहे झेलना ही पड़ता है। अमूमन सर्दी के मौसम में लगने वाली चोटें गर्मियों की अपेक्षा ज्यादा पीड़ादायक होती हैं। इसकी मूल वजह हैे- ठंड की वजह से सर्दियों में हमारे शरीर की ब्लड वेसल्स या रक्त धमनियों का सिकुड़ना और ब्लड सर्कुलेशन का कम होना। खुष्क वातावरण की वजह से चोट लगने पर सर्दियों में बाहरी स्किन में होने से घाव भरने में भी ज्यादा समय लगता है। चोट में खिंचाव और दर्द होने की वजह से मरहम-पट्टी में बरती जाने वाली कोताही भी एक बड़ी वजह रहती है।
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यह भी जरूरी नहीं कि चोट लगने के पीछे कोई बड़ा कारण ही हो जैसे खेलते समय, कही जाते वक्त या रोड एक्सीडेंट। ये चोटें तो घर पर जरा-सा झटका लगने या पैर स्लिप होने पर भी लग सकती हैं और बैठे-बैठे तकलीफ दे जाती हैं। जरूरी है थोड़ी-सी एहतियात बरतने की और चोट लगने पर तुरंत प्राथमिक उपचार करने की और हालात गंभीर होने पर ठीक समय पर डाॅक्टर के पास ले जाने की।
गिरने या फाॅल्स से लगने वाली चोटें
गिरने पर अक्सर गुम चोट लगती हैं जब तक कि वे किसी नुकीली चीज से न टकरा जाएं। यानी गिरने पर खून तो नहीं निकलता, मसल्स पूल होने केी वजह से सूजन और दर्द होता है। या ंसिर में गंभीर चोट भी लग सकती है कई बार रीढ़ की हड्डी का फ्रैक्चर, फिमूर या कूल्हे की हड्डी का फ्रैक्चर भी हो सकता है।
सर्दी के मौसम में ज्यादातर लोग घर में चप्पल के साथ जुराबें पहनते हैं। ग्रिप न बन पाने के कारण कई बार चलते वक्त बैलेंस बिगड़ जाता है या पैर स्लिप हो जाता है।
रात में सोते -सोते छोटे बच्चे बैड पर अक्सर घूमते रहते हैंै। सर्दियो में गर्मी लगने पर खिसकते-खिसकते कई बार रजाई या कंबल से बाहर निकल जाते हैं और बैलेंस न कर पाने पर गिर जाते है।
सर्दियों की लंबी रात मे टाॅयलेट के लिए जाना पड़ता है। जिसमें कई बार छोटे बच्चे या बुजुर्ग स्लिप होकर गिर जाते हैं।
कभी-कभी बिस्तर से उठते वक्त या खड़े हेाने पर बुजुर्गो में ब्लड प्रेशर कम हो जाता है और बैलेंस बिगड़ने पर गिर जाते हैं जिसे पोश्चरल हाइपोटेंशन कहते हैं।
शाारीरिक रूप् से कमजोर होने के कारण कभी-कभी तो थोडा सा झटका लगने या किसी फर्नीचर के टकरा जाने पर भी वे गिर जाते हैं।
सावधानियां
फाॅल्स से बचने के लिए जरूरी है कि जुराबों के साथ सही तरह के जूतों का चुनाव जो पहनने में आरामदायक हों और स्लिपरी न हों।
बैड से गिरने पर लगने वाली चोट के प्रभाव को कम करने के लिए बैड के चारों ओर कार्पेट लगाना चाहिए।
बाथरूम में स्लिप होने से बचने के लिए पकड़ कर उठने-बैठने के लिए हैंडल या राॅड जैसे समुचित अटैचमंट लगाए जाएं।
फर्श की टाइल्स स्लिपरी नही होनी चाहिए। अनहोनी से बचने के लिए लाइट और बेल की समुचित व्यवस्था हो।
हीटिंग डिवाइज से होने वाले खतरे
सर्दी से बचने के लिए कई लोग बंद कमरे में अंगीठी, अलाव या फिर हीटर चलाते हैं। ज्यादा देर तक चलाने से नुकसान होता है। इनसे निकलने वाली कार्बन मोनोआक्साइड जैसी जहरीली गैसों से दम घुटने लगता है और कभी-कभी खतरनाक भी साबित होता है। लापरवाही बरतने पर जलने या आग लगने का खतरा रहता है, सो अलग।
सावधानियां
अंगीठी या अलाव जलाते समय कमरे की खिड़की थेाड़ी खुली रहने दें ताकि एयर वेन्टिलेशन हो सके। हीटर वगैरह भी पूरी रात नहीं चलाने चाहिए। रूम टेम्परेचर नार्मल हो जाने पर या फिर सोने से पहले बंद कर देना चाहिए।
हीट पैड या गर्म पानी की बोतल से बर्न
कुछ लोग खासकर बुजुर्ग रात को सोते समय बिस्तर में हीट पैड या गर्म पानी की बोतल रखतेे हैं। इससे ठंड से बचाव हेाने के साथ-साथ बाॅडी-पेन में सिंकाई होने से आराम भी मिलता है। लेकिन कई बार बोतल में ज्यादा गर्म पानी होने या हीट पैड में करंट पास होने पर उनकी स्किन बर्न भी हो सकती है।
सावधानियां
ध्यान रखें कि बोतल ज्यादा गर्म न हो और वह लीक न कर रही हो। कोशिश करें कि उसे कपड़े से कवर कर लें ताकि उसकी हीट सीधी न लगे। हीटिंग पैड इस्तेमाल करने से पहले चैक कर लें कि वो गीला न हो या उस पर किसी तरह के क्रेैक या दरार न हो। इससे करंट पास हो सकता है। पैड को प्लास्टिक के रैपर से कवर करके इस्तेमाल करें। जहां तक हो सके इन्हें सोने से पहले हटा दें।
चोट लगने पर करें प्राथमिक उपचार से बचाव
प्राथमिक उपचार करने पर 10-12 घंटे में आराम मिल जाता है। अगर स्थिति में सुधार न हो तो डाॅक्टर को कंसल्ट करना चाहिए।
चोट लगने पर दर्द होने या सूजन आने की स्थिति में जितनी जल्दी हो सके आइस फाॅर्मेन्टेशन से सिंकाई करनी चाहिए। आइस पैक लगाने से चोट वाली जगह की हर तरह की कोशिकाएं सिकुड़ जाती हैं जिससे वहां बाॅडी के फ्ल्यूड का संचार कम हो जाता है और सूजन कम होती है। चोट में आराम मिलता है।
हाथ-पैर में गुम चोट लगने पर भयंकर दर्द के साथ जब मूवमंेट मुश्किल हो जाती है। चोट वाला हाथ लटके रहने से हाथ में दर्द ज्यादा होता है। ऐसी स्थिति में हाथ को आराम पहुंचाने के लिए तिकोनी गलपट्टी या स्लिंग से सपोर्ट देना बेहतर है। इसमें गले से कोहनी तक की लंबी स्लिंग पट्टी बांध कर हाथ को मोड़ कर उसमें रख देना चाहिए। सपोर्ट मिलने से हाथ में सूजन में कमी आती है और दर्द में आराम मिलता है।
इसी तरह पैर में चोट लगने पर पैर को ऊंचा रखना चाहिए। इससे ब्लड फ्लो बने रहने से सूजन कम होती है। बैठने पर पैर को स्टूल या चेयर पर रखना चाहिए और लेटने पर गाॅव तकिये से सपोर्ट देनी चाहिए। दर्द ज्यादा हो तो पेन किलर मेडिसिन भी ले सकते हैं।
बर्न होने पर सबसे पहले प्रभावित जगह को ठडे पानी से धोना चाहिए। इससे जलन शांत होगी। उसके बाद उस पर बाजार में मिलने वाले आॅयन्टमेंट के बजाय नारियल तेल लगाना चाहिए। नारियल के तेल में चुटकी भर हल्दी मिला कर लगाने से एंटीसेप्टिक का काम करता है।
(डाॅ मोहसिन वली, सीनियर फिजीशियन, सर गंगाराम अस्पताल, नई दिल्ली )