World Arthritis Day 2022: अपने आसपास नजर दौड़ाएं तो हमें छोटी-बड़ी उम्र के कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो घुटने के दर्द को लेकर परेशान हैं। जोड़ों के दर्द ने उनके दूसरे काम तो दूर, चलना-फिरना तक मुहाल कर रखा है। उनमें से कइयों को हार कर नी-रिप्लेसमेंट सर्जरी तक करानी पड़ी है। मेडिकल टर्म में जोड़ों के दर्द की समस्या को आर्थराइटिस या गठिया रोग कहा जाता है। अकसर इसकी अनदेखी की जाती है और दर्द से राहत पाने के लिए पेनकिलर का सहारा लिया जाता है। जिसकी वजह से आगे चलकर आर्थराइटिस गंभीर रूप ले सकता है। अंगों में विकृति आ सकती है और विकलांगता को भी झेलना पड़ सकता है।
आर्थराइटिस हमारे शरीर में मौजूद हड्डियों के जोड़ों की बीमारी है। जोड़ दो हड्डियों के जुड़ाव वाली जगह को कहते हैं जिनके बीच में 5-6 मिलीमीटर की चिकनी लेयर यानी कार्टिलेज होता है। यह कार्टिलेज हड्डियों को सपोर्ट करता है और जोड़े रखता है। आर्थराइटिस में हड्डियों के बीच मौजूद कार्टिलेज कम होने लगती है। इससे जोड़ों, आसपास की मांसपेशियों में अकड़न और काफी दर्द रहता है। जोड़ टेढ़े पड़ने लगते हैं, मरीज को चलने-फिरने में दिक्कत आ जाती है।
आर्थराइटिस बीमारी को कई वैज्ञानिक इम्यून सिस्टम से भी जोड़ते हैं। जो प्रोटीन बाॅयोकैमिकल्स और कोशिकाओं से मिलकर बनता है और शरीर को बीमारियों से बचाते हैं। कभी-कभी इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी होने के कारण शरीर में मौजूद प्रोटीन खत्म होने लगता है। समय के साथ हड्डियों को आपस में जोड़ने वाले लिगामेंट्स कमजोर हो जाते हैं। ऐसे में हड्डी अपनी जगह से हट जाती है और विकृत भी हो सकती है।
क्या कहते हैं आंकड़े?-
डब्ल्यूएचओ के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं ( तकरीबन 60 प्रतिशत) में अधिक मिलता है। इसकी मुख्य वजह है- प्राकृतिक रूप् से महिलाओं की हड्डियां पुरुषों के मुकाबले छोटी, पतली और मुलायम होती हैं जिससे आर्थराइटिस की गिरफ्त में जल्दी आ जाती हैं। 45-50 साल की उम्र में मेनोपाॅज की स्टेज पर पहुंची महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन बहुत तेजी से कम होने लगता है। हड्डियों के क्षरण होने लगता है जिससे उनमें सूजन और दर्द रहता है और आर्थराइटिस की समस्या उभर जाती है।
भारत में आर्थराइटिस के तकरीबन 18 करोड़ मामले देखने को मिलते हैं। आर्थराइटिस के मरीजों में 20 फीसदी लोग 30 साल से कम उम्र के होते हैं। पहले यह समस्या जहां 50 साल के पार के बुजुर्गो में देखी जाती थी। आज के बदलते परिवेश में गतिहीन जीवनशैली, खान-पान की गलत आदतें जैसे कारणों के चलते 30 साल के 20 फीसदी युवा भी आर्थराइटिस की चपेट में आ रहे हैं। आनुवांशिक कारणों से जुवेनाइल आर्थराइटिस 14 साल से भी कम उम्र के बच्चों में देखा जाता है।
कितने तरह का होता है आर्थराइटिस?
शरीर के जोड़ों के हिसाब से आर्थराइटिस कई प्रकार का होता है-
- ऑस्टियो आर्थराइटिस उम्र बढ़ने के साथ विकसित होती हैं। ऑस्टियो आर्थराइटिस भारत में सबसे ज्यादा पाई जाती है जिसमें घुटनों और हिप आर्थराइटिस आती हैं।
- कुछ मरीजों में रूमेटाॅयड या गठिया आर्थराइटिस आनुवांशिक होती है यानी अगर किसी के पेरेंट्स को आर्थराइटिस है, तो बच्चों में भी उसके जीन आ सकते हैं। ऐसे बच्चों को कम उम्र में या युवावस्था में आर्थराइटिस के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। मरीज के हाथ-पैर की उंगलियां, बड़े जोड़ खराब हो जाते है। उनमें अकड़न आ जाती है और उंगलियां टेढ़ी हो जाती हैं। कमर की हड्डी में भी एंकाइलोजिकल स्पोंडेलाइटिस होता है जिसमें कमर जाम हो जाती है।
- हड्डी के जोड़ के अंदर टीबी या बचपन में पैप्टिक बैक्टीरियल इंफेक्शन होने पर कार्टिलेज प्रभावित होती है। यह इंफेक्शन कार्टिलेज को धीरे-धीरे खत्म करता जाता है जिससे आर्थराइटिस होता है।
- मेटाबाॅलिक गाउट आर्थराइटिस जिसमें ब्लड के अंदर मौजूद यूरिक एसिड होता है। ब्लड में यूरिक एसिड का लेवल बढ़ने से जोड़ों के अंदर यूरिक एसिड के क्रिस्टल बढ़ जाते हैं और कार्टिलेज को क्षति पहुंचाते हैं।
- जब जोड़ के अंदर किसी भी कारण से फ्रैक्चर हो जाए, तो मरीज को कुछ समय बाद ट्राॅमेटिक आर्थराइटिस हो जाती है। यह आर्थराइटिस कम उम्र या युवावस्था में भी हो जाती है।
लक्षण
- आर्थराइटिस की शुरूआत में जोडों में दर्द, जकड़न या सूजन आना।
- धीरे-धीरे जोड़ में टेढ़ापन आना जिसकी वजह से सीढ़ियां चढ़ने के बजाय उतरने में तकलीफ और इंडियन टाॅयलेट में न बैठ पाना जैसी समस्याएं होती हैं।
- जोड़ों में किसी भी प्रकार का दर्द जो मूवमेंट में बाधा डालता हो, उसके लिए आर्थोपेडिक डाॅक्टर को कंसल्ट करें।
- यह सच है कि आर्थराइटिस केा पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता। लेकिन ठीक समय पर पकड़ में आने और समय रहते समुचित उपचार कराने पर भविष्य में इसे बढ़ने से रोका जा सकता है।
क्या है उपचार?
- डाॅक्टर की कोशिश रहती है कि आने वाले मरीज में मौजूदा आर्थराइटिस ग्राफ को बढ़ने से रोकें और मरीज को लंबे समय तक आराम पहुंचाएं। ब्लड टेस्ट और एक्स-रे से कार्टिलेज की लेयर की मोटाई की जांच करके आर्थराइटिस किस स्टेज (माइल्ड, मोडरेट या सीवियर) का पता लगाया जाता है।
- आर्थराइटिस के माइल्ड और मोडरेट स्टेज के मरीज नाॅन-ऑपरेटिंग ट्रीटमेंट से लंबे समय तक खुशहाल जिंदगी जी सकते हैं। जिसमें उन्हें अपना वजन नियंत्रित करना, अनियमित जीवनशैली में सुधार करना, नियमित रूप से हर जोड़ की विशिष्ट एक्सरसाइज करना और डाॅक्टर की देख-रेख में समुचित दवाइयों का रेगुलर सेवन करना जरूरी है।
- सीवियर आर्थराइटिस में घुटना और कूल्हा प्रत्यारोपण सर्जरी की जाती है। सर्जरी के बाद मरीज को मसल्स की मजबूती के लिए नियमित रूप से एक्सरसाइज करने, एहतियातन नीचे या आलती-पालती मारकर बैठना, जाॅगिंग नहीं करने की सलाह दी जाती है।
बचाव
आर्थराइटिस से बचाव के लिए यथासंभव रिस्क फैक्टर्स को दूर करना चाहिए। हर जोड़ की हड्डियों के बीच मौजूद कार्टिलेज और उन्हें सपोर्ट देने वाली आसपास की मांसपेशियों को मजबूत, लचीला और हेल्दी बनाना होगा। इसके लिए सबसे जरूरी है- अनियमित जीवनशैली में सुधार किया जाए ताकि पूरी तरह तंदरुस्त रहें।
- आर्थराइटिस से बचाव के लिए युवावस्था से ही शरीर के हर हिस्से को गतिशील बनाए रखें। गतिहीन जीवनशैली अपनाने पर शरीर का वह हिस्सा बूढ़ा या संसेटिव हो जाते हैं, दर्द रहने लगती है।
- हेल्दी वजन मेंटेन करें। बिजी शैड्यूल के बावजूद अपने लिए समय जरूर निकालें और रोजाना एक घंटा वाॅक और माॅडरेट एक्टिविटीज़ करें। हर जोड़ की मूूवमेंट के लिए एक्सरसाइज करें।
- ऐसी एक्सरसाइज न करें जिनसे घुटनों या हड्डियों पर हमारे वजन से कई गुना भार पड़ता है और दर्द बढ़ सकता है। जैसे- जाॅगिंग, सीढ़ियां चढ़ना, स्किपिंग, जंपिंग, सिट-अप, पुशअप, स्कवाॅट, वेट लिफ्टिंग जैसी हार्ड एक्सरसाइज न करें। जरूरत हो तो फिजियोथेरेपिस्ट या एक्सरसाइज ट्रेनर को कंसल्ट करें।
- एक्सरसाइज करते हुए ध्यान रखें कि नियमित करें। शुरू में बहुत तेजी से और लंबे समय तक न करें, इन्हें धीरे-धीरे बढ़ाएं।
- लंबे समय तक आलती-पालती लगाकर बैठने, घुटने मोड़कर बैठने या अकडू़ बैठने वाले काम अवायड करें। जोड़ों में किसी तरह की दिक्कत होने पर पूरी तरह सतर्क रहें।
- जब कभी जोड़ में लंबे समय तक सूजन और दर्द महसूस हो, तो उसे नजरअंदाज करना या कुछ समय के लिए आराम पहुंचाने वाली दर्द निवारक दवाइयां खाने से बचें। यथासंभव आर्थराइटिस की प्रारंभिक स्टेज पर ही हड्डी रोग विशेषज्ञ को कंसल्ट करें। डाॅक्टर द्वारा बताई गई आर्थराइटिस की दवाइयां लें और नियमित एक्सरसाइज करें।
- बहुत ज्यादा दर्द हो तो डाॅक्टर की सलाह पर हीटिंग पैड, गर्म पानी से सिंकाई, ट्रांसक्यूटेनियस इलेक्ट्रिकल नर्व स्टीमुलेशन (टेन्स) यूनिट से सिंकाई, दर्द निवारक तेल या आंयटमेंट लगा सकते हैं। भले ही इनसे आर्थराइटिस ठीक नहीं होता, लेकिन कुछ समय के लिए दर्द से राहत जरूर मिलती है।
- हड्डियों की मजबूती के लिए दिन में कम से कम 20 मिनट धूप सेंके ताकि शरीर में विटामिन-डी की आपूर्ति हो सके। डाॅक्टर की सलाह पर विटामिन डी, कैल्शियम के सप्लीमेंट्स जरूर लें।
- हड्डियों, आसपास की कार्टिलेज और मांसपेशियों की मजबूती के लिए रोजाना पौष्टिक तत्वों और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर संतुलित आहार का सेवन करें।
(डाॅ सी एस यादव, एचओडी, आर्थोपेडिक सर्जन, प्राइमस सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल, दिल्ली)