प्राणायाम से केवल शरीर ही नहीं, मन को भी वश में किया जा सकता है। मन वश में होने से बुद्धि भी तीव्र होती है। इससे न सिर्फ बॉडी एक्टिव रहती है, साथ ही उसमें लचक, चुस्ती-फुर्ती और कान्ति भी आ जाती है।
वैसे प्राणायाम का पूरी तरह से लाभ पाने के लिए इन बातों को हमेशा याद रखें-
प्राणायाम में सांस नाक से ही लेनी चाहिए।
1. सांस को जबरदस्ती न रोकें।
2. प्राणायाम करने के दौरान अगर थकान महसूस हो तो बीच-बीच में छोटे व्यायाम या स्ट्रेचिंग भी कर सकते हैं।
3. प्राणायाम करने से पहले ओम का 3 बार उच्चारण भी कर लेना चाहिए।
4. इस दौरान हमेशा चेहरे पर मुस्कराहट रहनी चाहिए।
5. गर्भवती स्त्रिायों को भी प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
6. बुखार के दौरान प्राणायाम न करें।
7. प्राणायाम शुरू करने के पहले अन्य योगासन जरूर करें।
क्या है प्राणायाम
योग की वैज्ञानिक प्रक्रिया का चतुर्थ अंग है ‘प्राणायाम’। आसन के द्वारा जब हमारा शरीर एक सुखी व शांत अवस्था में आ गया तो अब शरीर की शांत अवस्था में श्वास को नियमित व नियंत्रित किया जा सकता है। मानसिक व आध्यात्मिक उन्नति के साथ शारीरिक उन्नति के लिए भी प्राणायाम एक विशेष महत्त्व रखता है। सामान्य अर्थों में श्वास के नियंत्रण को प्राणायाम कहा गया है। प्राणायाम शब्द दो शब्दों ‘प्राण’ और ‘आयाम’ से मिलकर बना है। ‘प्राण’ यह हमारी जीवनी शक्ति है और ‘आयाम’ शब्द का अर्थ प्राणगति का विस्तार तथा ऐच्छिक नियंत्रण।
प्राणों के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के निश्चल होने पर मन भी स्वत: निश्चल तथा स्थाणु हो जाता है। अत: योगी को श्वास पर नियन्त्रण करना चाहिए।
इस प्रकार कह सकते हैं कि श्वास का चित्त की स्थितियों पर प्रभाव पड़ता है। प्रयोगों और अनुभवों में देखा जाए तो जैसे- क्रोध में, कामवासना में, भय में, उद्धिगनता आदि मनोभाव में श्वास की गति अस्थिर व भिन्न-भिन्न होती है। प्रेम में, करुणा में, मैत्री में, भावुकता आदि मन की वृत्तियों में श्वास की गति भिन्न होती है। मन की भाव दशा और श्वास प्रक्रिया के बीच एक गहन संबंध है। मन की भाव दशा बदलने से श्वास की गति तत्काल परिवर्तित व प्रभावित हो जाती है। जब मन की भिन्न दशाओं में श्वास की गति अव्यवस्थित हो सकती है तो क्या यह संभव नहीं है कि यदि श्वासों पर नियन्त्रण कर लिया जाये तो मन व उसकी वृत्तियों को नियंत्रित किया जा सकता है। यह घटना संभव है। श्वास नियन्त्रण से। इसी कारण योग प्राणायाम को एक महत्त्वपूर्ण अंग मानता है।
प्राणों के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के निश्चल होने पर मन भी स्वत: निश्चल तथा स्थाणु हो जाता है। अत: योगी को श्वास पर नियन्त्रण करना चाहिए।
इस प्रकार कह सकते हैं कि श्वास का चित्त की स्थितियों पर प्रभाव पड़ता है। प्रयोगों और अनुभवों में देखा जाए तो जैसे- क्रोध में, कामवासना में, भय में, उद्धिगनता आदि मनोभाव में श्वास की गति अस्थिर व भिन्न-भिन्न होती है। प्रेम में, करुणा में, मैत्री में, भावुकता आदि मन की वृत्तियों में श्वास की गति भिन्न होती है। मन की भाव दशा और श्वास प्रक्रिया के बीच एक गहन संबंध है। मन की भाव दशा बदलने से श्वास की गति तत्काल परिवर्तित व प्रभावित हो जाती है। जब मन की भिन्न दशाओं में श्वास की गति अव्यवस्थित हो सकती है तो क्या यह संभव नहीं है कि यदि श्वासों पर नियन्त्रण कर लिया जाये तो मन व उसकी वृत्तियों को नियंत्रित किया जा सकता है। यह घटना संभव है। श्वास नियन्त्रण से। इसी कारण योग प्राणायाम को एक महत्त्वपूर्ण अंग मानता है।
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