COPD Treatment: आयुर्वेद के हिसाब से सीओपीडी प्राणवाह स्रोतस है यानी रेस्पेरेटरी ट्रेक में होने वाली मुख्य व्याधि है जिससे हम सांस लेते हैं और छोड़ते हैं। इसमें व्यक्ति को दो तरह की समस्याएं होती हैं- श्वास और कफ। या तो ज्यादा तेजी से श्वास चलती है या बलगम ज्यादा आता है।
कारण
धूल-मिट्टी, धुंआ या वायु प्रदूषण, ठंडे पानी या फ्रिज में रखी चीजें खाने से, बदलते मौसम में होने वाली बारिश मे भीगने पर व्यक्ति बीमार हो जाते हैं। इनके अलावा कई मामलों में व्यक्ति के अत्यधिक व्यायाम या बॉडी बिल्डिंग एक्सरसाइज ज्यादा करने से भी कई लोगों को सांस लेने में कई तरह की समस्याएं हो जाती हैं, जिन पर ध्यान न दिए जाने पर ये सम्यस्याएं सीओपीडी का रूप लेती हैं। मालन्यूट्रीशियन होने पर या बैलेंस न्यूट्रीशियस डाइट न लेने या फिर दही-बड़ेे और दूध-फल या शेक जैसे विरुद्ध-आहार (अनकम्बीनेशन-आहार) का सेवन करने के कारण भी व्यक्ति का प्राणवाह स्रोतस कमजोर हो जाता है जिससे आगे जाकर सीपीओडी की बीमारी हो सकती है। कई बार इमोशनल ट्रॉमा, स्ट्रेस की वजह से व्यक्ति के शरीर के ऑर्गन प्राणवाह स्रोतस के साथ ठीक से काम नहीं करते और व्यक्ति को सांस संबंधी समस्याएं होने लगती हैं। एनीमियाग्रस्त हों या रसायनबहुल क्षेत्र में रहने वाले लोगों को भी रेस्पेरेटरी समस्याएं होती हैं।
लक्षण

खांसी लगातार आना, क्रोनिक कफ, डिस्निया या सांस लेने में दिक्कत होना, तेज सांस चलना या सांस का रेस्पेरेटरी रेट बढ़ जाता है, हीज़िंग की आवाज आना, सांस लेने में दर्द महसूस होना, बार-बार थूक आना, कफ के साथ ब्लड आना, कफ का रंग हरा या मटमैला और दुर्गन्धयुक्त होना, छीेेंके आना, नींद नहीं आती, लेटने पर सांस न ले पाना, सांस लेने में दिक्कत होने पर तबीयत खराब होने के स्ट्रेस में रहना।
बचाव के लिए अपनाए आयुर्वेद –

आयुर्वेद में शरीर को स्वस्थ रखने और सीपीओडी व्याधि से बचाव के लिए व्यक्ति को नियमानुसार 6 ऋतु-संशोधन चिकित्सा विधियों का अनुपालन करना फायदेमंद माना गया है। इसमें विभिन्न पंचकर्म विधियों का वर्णन है जिससे शरीर का शोधन आसानी से किया जा सकता है। आयुर्वेदाचार्य की देखरेख में व्यक्ति को ऋतुओं के हिसाब से पंचकर्म चिकित्सा विधियों का अनुपालन करना चाहिए। आयुर्वेदाचार्य के परामर्श पर सामान्यतया पंचकर्म की ये विधियां एक बार की जाती हैं। लेकिन बीमारी की गंभीरता को देखते हुए ये पंचकर्म चिकित्सा विधियां व्यक्ति को 2 से 3 बार भी करने की सलाह दी जा सकती है-
वमन
फरवरी-मार्च में वसंत ऋतु को कफ का काल कहा जाता है यानी इस दिनों कफ ज्यादा बनता है, उस समय पंचकर्म के अनुसार वमन करवा लिया जाए, तो सीओपीडी से बचाव में सहायक है।
विरेचन
सर्दी के मौसम में स्वाभाविक रूप से शरीर में पित्त बढ़ता है और सीओपीडी पित्त की अधिकता के कारण होती है। विरेचन कराने से कफ में ब्लड आने जैसी सीओपीडी की गंभीर स्थिति से बचाव होगा।
अनुवासन वस्ति और आस्थापन वस्ति
बारिश के मौसम में वात दोष का प्रधान काल है। और वात सीओपीडी का अहम् कारण भी है। गर्मी के बाद अचानक मौसम ठंडा हुआ और बारिश हुई तो वात दोष बढ़ जाता है। इससे बचने के लिए आयुर्वेद में वस्ति पंचकर्म विधि का उपयोग किया जाता है
नस्य
जिन्हें बार-बार खांसी-जुकाम होता रहता है, उनके लिए नस्य विधि लाभकारी है। अनुतेल नस्य का उपयोग किया जाता है जिसे कोरोना काल में भी बहुपयोगी रहा। नाक में अनुतेल की कुछ बूंदे डालने से संक्रमण से बचाव करती हैं। सीओपीडी में व्यक्ति की श्वसन तंत्र साफ रहे, किसी तरह की ब्लॉकेज या रुकावट न हो, तो तकलीफ कम होगी। इससे बचने के लिए नस्य कर्म किया जाता है।
निदान परिवर्जन
आयुर्वेद में सीपीओडी के मूल कारणों को ध्यान में रखने और व्यक्ति को उनसे बचाव के यथासंभव कोशिश करने पर बल दिया गया है। यानी अगर किसी व्यक्ति को धूल-मिट्टी में जाने या प्रदूषण के कारण तकलीफ होती है तो व्यक्ति को इनसे बचने के प्रयास जरूर करने चाहिए। जैसे- प्रदूषण का स्तर बढ़ने में घर से बाहर कम से कम जाएं या अनुतेल नस्य कर्म करके जाएं। सिगरेट पीने से परहेज करें।
उपचार के लिए हर्ब्स हैं उपयोगी-
आयुर्वेद में कई दशमूल हर्ब्स का वर्णन भी किया गया है जिन्हें व्यक्ति को आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श से लेना चाहिए। ये हर्ब्स कफ को खत्म करने यानी ब्रोंकोडायलेटर का काम करती हैं जिनसे सीओपीडी मरीज की स्थिति में सुधार होता है। जैसे- कंटकारी , वासा-आड़ूसा, हरिद्रा, हरितकी गिलोय, शुंटी, हल्दी, पिपली, अश्वगंधा, भारंगी, गुडुची, अगस्त्या हरितकी, वासा अवलेह सिरप पानी में मिलाकर भोजन करने के बाद, सुबह खाली पेट दूध के साथ च्यवनप्राश, शहद के साथ सीतोप्लादी, त्रिकटू या तुलसी चूर्ण दिया जाता है। पोदीना, तुलसी का अर्क पानी में मिलाकर दिया जाता है।
स्वेदन या स्टीम लेना
सीओपीडी के मरीज की स्टीमर या पतीले में गर्म पानी करके स्टीम लेने से श्वसन तंत्र में रुकावट खत्म हो सकती है।
(आचार्य महेश कुमार व्यास, ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद, दिल्ली,से बातचीत पर आधारित )
