COPD Patient Care: सीओपीडी यानी क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, जिसमें फेफड़ों की एक स्थिति है जो सांस लेने में तकलीफ और लगातार खांसी का कारण बनती है। दुनिया भर की जनता के बीच सीओपीडी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रत्येक साल नवंबर महीने में एक वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम आयोजित होता है। सर्दियों का मौसम दस्तक दे रहा है। ऐसे में वातावरण में मौजूद ठंडी हवाएं और प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण सीओपीडी जैसी रेस्पेरेटरी समस्याएं भी सिर उठा रही हैं। सीओपीडी में सांस लेने में दिक्कत होना, लगातार खांसी रहना, ज्यादा बलगम बनना बहुत आम है।
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डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सीओपीडी के मामले में दुनिया की राजधानी है। हमारे देश में एड्स टीवी, डायबिटीज और मलेरिया से जितनी मौतें होती हैं, उन्हें मिलाकर होने वाली मौतें सीओपीडी से कहीं कम हैं। समुचित उपचार न हो पाने के कारण सीओपीडी से पीड़ित मरीज के फेफड़े ही क्षतिग्रस्त नहीं होते, बल्कि खून की नलियों को भी खराब करती है। इससे होने वाली सूजन ह्रदय, हड्डियों और मांसपेशियों को भी नुकसान पहुंचाती है।
सीओपीडी बीमारी सांस की ब्रोन्कियल ट्यूब के सिकुड़ने या फेफड़ों के टिशूज में लचीलापन कम होने से होती है। जब कोई व्यक्ति सिगरेट, चिमनी, चूल्हे से निकलने वाली हानिकारक गैसों के संपर्क में रहता है या ऐसे वातावरण में काम करता है तो उनके फेफड़े तक ऑक्सीजन पहुंचाने वाली ब्रोन्कियल ट्यूब क्षतिग्रस्त हो जाती है और सूजन आ जाती है। जिससे फेफड़ों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती और उसे सांस लेने में दिक्कत होती है। आमतौर पर सीओपीडी बीमारी 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में पाई जाती है। हमारे देश में सीओपीडी पुरूषों में ज्यादा देखने को मिलती है। लेकिन चूल्हा, पेसिव स्मोकिंग, बायोमास एक्सपोजर, प्रदूषण की वजह से महिलाएं भी इसका शिकार हो रही हैं।
कितने प्रकार

दो तरह की होती है-क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और एंफिसेमा। क्रोनिक ब्रोंकाइटिस में मरीज को खांसी, बलगम ज्यादा होता है। 60 साल के बाद शुरू होती है। एंफिसेना में जबकि जो लोग बीड़ी-सिगरेट, पान-तंबाकू का सेवन अधिक करते हैं या धूल-मिट्टी का काम करने वाले लोगों को एंफिसेमा सीओपीडी होती है।
कारण

- धूल-मिट्टी, धुंआ या वायु प्रदूषण, ठंडे पानी या फ्रिज में रखी चीजें खाने से, बदलते मौसम में होने वाली बारिश मे भीगने पर व्यक्ति बीमार हो जाते हैं।
- कई मामलों में व्यक्ति के अत्यधिक व्यायाम या बॉडी बिल्डिंग एक्सरसाइज ज्यादा करने से भी कई लोगों को सांस लेने में कई तरह की समस्याएं हो जाती हैं, जिन पर ध्यान न दिए जाने पर ये सम्यस्याएं सीओपीडी का रूप ले लेती हैं।
- कुपोषण होने पर या बैलेंस न्यूट्रीशियस डाइट न लेना।
- कई बार इमोशनल ट्रॉमा, स्ट्रेस की वजह से व्यक्ति के शरीर के ऑर्गन ठीक से काम नहीं करते और व्यक्ति को सांस संबंधी समस्याएं होने लगती हैं।
- एनीमियाग्रस्त हों।
- रसायनबहुल क्षेत्र में रहने वाले लोगों को भी रेस्पेरेटरी समस्याएं होती हैं।
लक्षण
लगातार खांसी, पुराना कफ, सांस लेने में तकलीफ या कठिनाई, तेजी से सांस लेना या श्वसन दर में वृद्धि, फुसफुसाहट की आवाज, सांस लेने में दर्द, बार-बार थूकना, कफ में खून आना। कफ का रंग हरा या मटमैला और दुर्गंधयुक्त होना, छींक आना, नींद न आना, लेटने पर सांस न ले पाना, सांस लेने में दिक्कत होना, तनाव में रहना और अस्वस्थ महसूस करना।
कैसे करें बचाव
सीओपीडी मरीजों के लिए इस मौसम में सावधानी बरतना बहुत जरूरी है, तभी वे सुरक्षित रह सकते हैं -इसलिए बदलते मौसम के साथ बढ़ रहे श्वसन संक्रमण से खुद को बचाने के लिए सीओपीडी मरीजों के लिए कुछ सावधानियां बरतना जरूरी है।
- रेस्पेरेटरी समस्याओं से पीड़ित व्यक्ति को बाहर निकलने से पहले मास्क का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। क्योंकि यह किसी भी तरह के संक्रमण के साथ-साथ प्रदूषण से भी बचाने का एक सशक्त माध्यम है।
- अपनी दवाएं समय पर और नियमित रूप से लेते रहें। डॉक्टर की सलाह के बाद ही इन्हें कम करें या बढ़ाएं।
- अपनी दवाइयां समय पर और नियमित रूप से लेते रहें। डॉक्टर की सलाह के बाद ही इनमें कटौती या बढ़ोतरी करें।
- सीओपीडी मरीजों को इनहेलर थेरेपी दी जाती है। इसमें दवा बहुत कम मात्रा में दी जाती है जो सीधे फेफड़ों में जाती है। इनहेलर का सही उपयोग करना सुनिश्चित करें। यदि संभव हो, तो अपने डॉक्टर से सीखें कि इनहेलर का उपयोग कैसे करें। क्योंकि कई बार गलत तरीके से इस्तेमाल करने पर इनहेलर की दवा मुंह या गले में ही रह जाती है, जिससे सांस लेने में दिक्कत, गले में खराश आदि समस्याएं जस की तस बनी रहती हैं।
- वजन को नियंत्रित रखें क्योकि मोटापे से सांस की बीमारी बढ़ती है।
- बहुत सुबह जल्दी और देर शाम को टहलने न जाएं। इस समय हवा ठंडी और घनी होने के कारण पृथ्वी पर प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है और बाहर लोग आसानी से इसकी चपेट में आ सकते हैं। दिन के समय सूर्य की किरणें हवा को थोड़ा गर्म और हल्का बनाती हैं। यह कम हो जाता है क्योंकि हवा वायुमंडल में मौजूद प्रदूषकों को ऊपर की ओर ले जाती है।
- सीओपीडी के मरीजों को खांसी, बुखार नहीं जा रहा हो, तो बिना देर किए डॉक्टर को कंसल्ट करना चाहिए।
- यदि मधुमेह भी है तो यथासंभव नियंत्रण में रहें। इससे हार्ट अटैक का ज्यादा खतरा रहता है।
- आहार में एंटीऑक्सीडेंट तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को अधिक से अधिक शामिल करें जैसे- हरी सब्जियां, मौसमी फल, सूखे फल। इनके नियमित सेवन से शरीर में इंफेक्शन और इंफेक्शन का खतरा कम होता है।
- सांस की तकलीफ से बचने के लिए धूम्रपान से परहेज करें।
(डॉ विनी कांतरू, सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली)
