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बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर यानी बीडीडी एक कॉमन विकार हैै। यह एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है। फिल्ममेकर करण जौहर भी इसके शिकार हैं।
किसी भी पार्टी-फंक्शन में जाने से पहले क्या आप भी 10 बार अपने आपको शीशे में निहारती हैं। क्या सबसे बार-बार यह जानने की कोशिश करती रहती हैं कि आप कैसी लग रही हैं। अच्छे से ड्रेसअप होने और मेकअप करने के बावजूद आपको यह कॉन्फिडेंस नहीं आ पाता है कि आप अच्छी लग रही हैं। अगर आपके साथ अक्सर ऐसा होता है तो हो सकता है कि आप बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर का शिकार हों। फिल्ममेकर करण जौहर भी इसके शिकार हैं। आइए जानते हैं इस डिसऑर्डर के बारे में।
जानिए क्या है बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर

बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर यानी बीडीडी एक कॉमन विकार हैै। यह एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है। इसमें इंसान अपनी शारीरिक बनावट को लेकर हमेशा शंका में रहता है। उसे खामियों की चिंता रहती है। हालांकि यह उनकी खुद की सोच होती है। दूसरे इनको न देखते हैं, न ही इनके बारे में सोचते हैं। लेकिन बीडीडी से पीड़ित लोगों को लगता है कि सब उनके बारे में ही सोच रहे होंगे या बातें कर रहे होंगे। इसके कारण वे टेंशन, एंग्जायटी और डिप्रेशन का शिकार होने लगते हैं।
कभी नहीं होते हैं संतुष्ठ
इन लोगों को हमेशा यही लगता है कि वे बहुत कम सुंदर हैं। ऐसे में वे हमेशा सर्जरी करवाते रहते हैं। कॉस्मेटिक का इस्तेमाल कर खुद को सुंदर बनाने की कोशिश करते रहते हैं। लेकिन फिर भी वे सभी संतुष्ठ नहीं होते हैं। उन्हें हमेशा अपने आप में कुछ कमियां नजर आती हैं। इसके कारण वे चिंता और तनाव में घिरे रहते हैं। जिसका असर उनके दैनिक जीवन पर भी पड़ता है। वे सोशल गैदरिंग में जाने से, लोगों से मिलने में या सामाजिक संबंध बनाने में डरने लगते हैं।
लक्षणों को जानना है जरूरी
बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर के लक्षण बहुत ही नॉर्मल लगते हैं। लेकिन इन्हें पहचानना बहुत जरूरी है। इस डिसऑर्डर से पीड़ित शख्स हमेशा अपने रूप रंग को लेकर चिंता में रहता है। वह आईने में खुद को बार-बार देखते हैं। ऐसे शख्स हमेशा दूसरों से खुद की तुलना करने लगते हैं। इन्हें दूसरे ज्यादा सुंदर लगते हैं। यही कारण हैं कि ये अक्सर कॉस्मेटिक सर्जरी या ट्रीटमेंट करवाते रहते हैं। अगर ऐसे लक्षण आपको खुद में नजर आ रहे हैं तो आपको संभलने की जरूरत है।
साइंस की नजर से देखें बीडीडी
इंटरनेशनल ओसीडी फाउंडेशन के अनुसार कई अध्ययन यह बताते हैं कि बीडीडी से पीड़ित लोगों की याददाश्त में कमी आने लगती है। ऐसे लोगों में फोकस की कमी हो सकती है। एक अन्य अध्ययन के अनुसार बीडीडी से पीड़ित लोग दूसरों की भावनाओं को पहचानने में भी कमजोर होते हैं। दूसरों के चुप रहने को वे गुस्सा या घृणा समझ लेते हैं। ऐसे में उनकी प्रतिक्रियाएं भी प्रभावित होती हैं।
जानिए क्या है केमिकल लोचा
इंटरनेशनल ओसीडी फाउंडेशन के अनुसार न्यूरोकेमिकल अध्ययनों से यह पता चलता है कि बीडीडी व सेरोटोनिन और ऑक्सीटोसिन हार्मोन के बीच कनेक्शन है। बीडीडी से ग्रसित लोगों में सेरोटोनिन हार्मोन की कमी होती है। जिससे भावनात्मक संकट पैदा होता है। वहीं जब मस्तिष्क में ऑक्सीटोसिन हार्मोन का स्तर बढ़ता है तो भी बीडीडी की आशंका रहती है। कई बार इसके आनुवंशिक कारण हो सकते हैं। कई बार आस-पास के माहौल का असर भी लोगों की मानसिकता पर पड़ता है।
आप खुद कर सकते हैं इलाज
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. ध्रुति अंकलेसरिया ने हाल ही में बीडीडी को लेकर एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया। उन्होंने बताया कि इस डिसऑर्डर के लक्षणों को पहचानना कर आप खुद इसका इलाज कर सकते हैं। आप खुद को लेकर अपना कॉन्फिडेंस बढ़ाएं। आप दूसरों की चिंता किए बिना खुद को खुश रखने की कोशिश करें। जरूरत पड़ने पर काउंसलिंग लें।
