Ashtanga yoga

अष्टांग योग के फायदे और करने का तरीका

Ashtanga yoga : अष्टांग योग करने से स्वास्थ्य को कई लाभ हो सकते हैं। आइए जानते हैं इसके फायदे और स्टेप्स-

Ashtanga yoga : आपने कई बार ‘करो योग, रहो निरोग’ स्लोगन सुना होगा, लेकिन फिर में हम योग करने पर ध्यान देना पसंद नहीं करते हैं। हमारे देश में में योग के कई आसनों को कराया जाता है, उसमें अष्टांग योग भी शामिल है। यह योग अन्य योगों से काफी अलग है। इसलिए इसे सिर्फ शारीरिक योग नहीं, बल्कि कर्म साधना भी माना जाता है। नियमित रूप से अष्टांग योग करने से आपके शरीर को कई लाभ हो सकते हैं। अष्टांग योग के नाम से ही आप समझ गए होंगे कि इसमें आठ अंग होते हैं, जिसमें नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि शामिल है। इस योग का अभ्यास करने से आप कई बीमारियों से दूर रह सकते हैं। आइए जानते हैं अष्टांग योग करने से सेहत को होने वाले लाभ क्या हैं?

Ashtanga yoga
Ashtanga yoga

शारीरिक क्षमता बढ़ाए

अगर आप अष्टांग योग के सभी चरणों को नियमित रू से करते हैं, तो इससे आपकी शारीरिक क्षमता को बढ़ावा मिल सकता है। रोजाना अष्टांग योग के योगाभ्यास से आपकी मांसपेशियों को मजबूती मिल सकती है। साथ ही यह शरीर में लचीलापन, हृदय कार्य क्षमता को बढ़ावा, नींद की परेशानी और श्वसन क्रिया में सुधार कर सकता है।

physical capability
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डायबिटीज की परेशानियों को करे कंट्रोल

रिसर्च के मुताबिक, नियमित रूप से अष्टांग योग के सभी चरणों को अगर आप सही तरीके से करते हैं, तो इससे काफी हद तक डाटबिटीज को कंट्रोल किया जा सकता है। इस योग के विभिन्न चरणों को अगर आप सही तरीके से फॉलो करते हैं, तो यह ब्लड में ग्लूकोज के स्तर को कंट्रोल कर सकता है। साथ ही डायबिटीज के जोखिम को कम करता है।

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मानसिक समस्याओं से रखे दूर

अष्टांग योग में शामिल आसन और प्राणायाम का अभ्यास करने से आपके मन को शांति मिलती है। इससे चिंता, डिप्रेशन, एंग्जायटी जैसी मानसिक स्थितियों से दूर रहा जा सकता है। साथ ही यह आपकी मस्तिष्क की सभी स्थितियों को कंट्रोल कर सकता है। अगर आप अपनी मानसिक परेशानियों को दूर करना चाहते हैं, तो रोजाना अष्टांग योग का अभ्यास जरूर करें।

mental health
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अष्टांग योग करने का सही तरीका क्या है?

अष्टांग योग का अभ्यास करने से पहले आपको इसके सभी उप अंगों को सही तरीके से सझना होगा। तभी आप इसे आप अपने जीवन में समाहित कर सकेंगे। आइए जानते हैं अष्टांग के सभी अंगों के बारे में-

यम

इस अंग में 5 उप अंग होते हैं, जिसमें सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य शामिल है।

अहिंसा : इसमें आपको शारीरिक रूप से किसी भी तरह की हिंसा में शामिल नहीं होना होता है। इसके साथ ही इसके शाधक अपने विचारों और शब्दों से भी हिंसा को दूर रख रखते हैँ। यानि इसका अर्थ मन में किसी भी तरह के बुरे विचार न आने देना और न ही हिंसा का साथ देना।

सत्य : इसमें मनुष्य को सत्य का पालन करना होता है।

अस्तेय : इसका अर्थ चोरी का पूरी तरह से त्याग करना होता है। इसमें आपको किसी तह की वस्तु, धन और संपत्ति के लालच से आपको पूरी तरह से दूर रहना होता है। इस तरह के भावनाओं का भी आपको त्याग करना पड़ता है।

ब्रह्मचर्य : आमतौर पर लोग इसे शारीरिक संबंधों से जोड़ लेते हैं, लेकिन असल में यह प्राकृतिक इन्द्रियों को वश में करना है। उदाहरण के लिए आप खाना, आराम करना, किसी चीज का मोह न रखना होगा।

अपरिग्रह : इसका अर्थ त्याग करने वाला। इसे यम का अंतिम उप अंग माना जाता है, जिसमें आप किसी भी लोभ और मोह में नहीं रहते हैं। साथ ही हर तरह के विकारों से दूर रहते हैं।

अगर आप यम को अपने जीवन में पूरी तरह से समाहित कर लेते हैं, तब ही आप अष्टांग योग कर सकते हैं।

नियम

यम को अपने जीवन में समाहित करने के बाद नियम की बारी आती है। इसमें भी 5 उप अंग संतोष, शौच, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान शामिल है।

शौच: इसका अर्थ तन, मन, वस्थ, वस्त्र और स्थान से शुद्ध होना।
संतोष : इसका अर्थ है आप किसी भी फल या फिर परिणाम की इच्छा नहीं रखते हैं और सदैव अपने कार्य में लगे रहते हैं।

तप : तप का अर्थ समझने में आपको शायद परेशानी हो सकती है, लेकिन आपको बता दें कि इसका अर्थ तपस्या नहीं होता है, बल्कि कर्म को पूरी ईमानदारी से निभाना शामिल होता है।

स्वाध्याय : इसका अर्थ होता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी आत्मचिंतन करना और मन को न भटकाना

ईश्वर प्रणिधान : इसका अर्थ है, ईश्वर में पूरी तरह अपनी आस्था रखना और उनपर विश्वास रखना शामिल है।

आसन

यम और नियम का अच्छे से पालन करने के बाद आसन की बारी आती है। योग के कई आसन होते हैं, लेकिन अष्टांग योग में आसन का मतलब अपने शरीर को स्थिर रखकर आराम से बैठना। इस आसन को स्थिर सुखमय आसन का भी नाम दिया गया है। अगर आप नियमित रूप से इस आसन में कुछ समय के लिए बैठते हैं, तो आपके मन को भरपूर रूप से शांति मिलती है। साथ ही शरीर में ऊर्जा का संचलन बेहतर होता है।

aasan
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प्राणायाम

आम में से कई लोग प्राणायाम का अर्थ समझते होंगे, इसका अर्थ सांस लेने की प्रक्रिया को विस्तार देना होता है। अष्टांग योग को करने वाले साधक अपनी प्राण ऊर्जा को कंट्रोल करने रे लिए इस योग का अभ्यास करते हैं, ताकि वे अपनी सांस लेने की प्रक्रिया को केंद्रित कर सकें। इसमें भस्त्रिका प्राणायाम, कपालभाति प्राणायाम और अनुलोम-विलोम प्राणायाम जैसे कुछ योग क्रियाएं शामिल हैं। इससे शरीर का ऊर्जा को नियंत्रित किया जाता है।

प्रत्याहार

प्रत्याहार इसका अर्था है वापस लौटना, अष्टांग योग के दौरान आपकी इन्द्रियों की वजह से जो अनावश्यक ऊर्जा खर्च हुई है, उसपर जोर देना शामिल है। इसमें अंग में आपको सुनने, बोलने, खाने, महसूस करने और देखने जैसी क्रियाओं पर संतुलन व्यवस्थित रखना होता है। इस अंग में अनावश्यक ऊर्जा खर्च नहीं होती है।

धारणा

प्रत्याहार के बाद धारणा की बारी आती है। यदि कोई व्यक्ति अष्टांग योग के सभी पांच अंगों को सही तरीके से साध लेते है, तो उस व्यक्ति में समग्र ऊर्जाओं को इकट्टा करने का गुण उत्पन्न हो जाता है। उन्हें यह अच्छे से समझ आ जाता है कि ऊर्जा किस तरह खर्च करना है और किस तरह संचित करना है। इसी स्थिति को धारणा कहते हैं। इसमें मनुष्य हमेशा वर्तमान में जीता है और अपनी हर चीज से संतुष्ट रहता है। उन्हें विश्वास होता है ईश्वर उनके साथ कुछ भी गलत नहीं करेगा।

ध्यान

अगर आप प्रत्याहार के माध्यम से ऊर्जा को कंट्रोल करने का गुण और धारणा के माध्यम से ऊर्जा को एकत्रित करने का गुण प्राप्त कर पाते हैं, तो ध्यान की स्थिति आप में स्वयं ही आ जाती है। जैसे नींद आती है, इसे लाई नहीं जा सकती है। उसी तरह प्रत्याह और धारणा के बाद ध्यान आती है, इसे लाई नहीं जा सकती है।

समाधि

अष्टांग का सबसे आखिरी चरण समाधि होता है। इसमें एक साधक ध्यान को पूरी तरह से साध लेता है। इस चरण में कुछ भी बाकी नहीं रहता है, इसमें सिर्फ साधक के मन में एक ही भावना रहता है कि मनुष्य ईश्वर की संतान हैं।