Mango Story: प्रकृति अपने आप में एक ऐसा चमत्कार है जिसे हम देखकर चकित होते रहते हैं। कहीं पहाड़ हैं तो कहीं मैदान, कहीं सर्द मौसम है तो कहीं गर्म और ये अलग-अलग मौसम अपने साथ खूबसूरत फूल, फल और सब्ज़ियां लाते हैं। इन्हीं पर जीव और जंतुओं का जीवन निर्भर है। प्रकृति के ये तोहफे वाक़ई लाजवाब हैं। इसी तरह प्रकृति ने इंसानों को एक ऐसे तोहफ़े से नवाज़ा है जिसका अहसान इंसान कभी नहीं चुका सकता है। आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या है जो इतना कीमती है। दरअसल वो कीमती चीज़ एक फल है माफ़ कीजिएगा फलों का राजा है। जी हां यहां आम की बात हो रही है।
जब आम की बात होती है तो वो दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाला कार्यक्रम मिर्ज़ा ग़ालिब याद आता है। इस कार्यक्रम में मिर्ज़ा ग़ालिब का किरदार मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने निभाया था। कार्यक्रम में एक जगह मिर्ज़ा ग़ालिब अपने दोस्तों के साथ बैठ कर आम खा रहे हैं और उनके दीवान की चर्चा हो रही है तभी एक आदमी अपने गधे को लेकर गली से गुज़रने लगता है तभी वहां उसे रोक दिया जाता है और दूसरी गली से जाने लिए कहा जाता है तभी उस महफ़िल में बैठे एक शख़्स कहते हैं कि मिर्ज़ा देखा आपने कि गधे ने आम को सूंघ कर छोड़ दिया, मिर्ज़ा आम तो गधे भी नहीं खाते…… इसपर मिर्ज़ा कहते हैं कि गधे हैं जो आम नहीं खाते। और सब हंसने लगते हैं। तो आम वो ख़ास चीज़ है जिसपर मक़बूल शायर मिर्ज़ा ग़ालिब भी फ़िदा थे। आम पसंद बहुत लोगों को है लेकिन जैसी दीवानगी अपने देश में देखी जाती है वो और कहीं नहीं है। आम की हर प्रजाति ख़ास है। फिर चौसा हो या लंगड़ा या फिर मालदा इनकी लोकप्रियता गज़ब की है।
आम की प्रजातियां
देश में कई तरह के आम पाए जाते हैं और हर क़िस्म का अपना जलवा है। आम की हर क़िस्म ख़ास है फिर चाहे वो लंगड़ा आम हो , चौसा हो , अल्फ़ान्सो हो , सिंदूरी हो या फिर मालदा। और सबसे अच्छे आम का झगड़ा चलता ही रहता है। कुछ लोग लंगड़ा को बेहतर मानते हैं कोई मलीहाबादी आम के कायल है तो कोई मालदा को उत्तम मानता है। सबसे पहले हम लंगड़ा आम की बात करते हैं लंगड़ा आम मुख्यतः बनारस का है। इसका रंग निम्बू के पीले रंग जैसा और हरा होता है जो काफी स्वादिष्ट होता है। रेशेदार लंगड़ा मुंह में घुलता हुआ गले से नीचे उतरता है। इस स्वादिष्ट आम में गूदा ज़्यादा होता है। ‘दशहरी’ की भी अपनी लोकप्रियता है। लखनऊ के पास दशहरी गांव इस आम की जन्मभूमि है इसी कारण इसे दशहरी नाम दिया गया। उत्तर प्रदेश में इसे काफी पसंद किया जाता है। उत्तर प्रदेश के हरदोई का चौसा किसे पसंद नहीं। इसी तरह महाराष्ट्र के अल्फान्सो की भी अपनी लोकप्रियता है। ये आम पकने के बाद जल्दी ख़राब नहीं होता और इसकी सुगंध और मिठास लोगों को बहुत लुभाती है। देश के भीतर ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी इसकी काफी मांग है। अल्फांसो सबसे महंगा भी होता है। फिर जब आम की बात हो रही है तो मालदा कैसे पीछे रह जाए। मालदा आम , पश्चिम बंगाल के मालदा जिले से सम्बंधित है इसके अलावा बिहार और उत्तरप्रदेश के कुछ जिलों में भी इसकी खेती होती है। मालदा को फजली भी कहा जाता है।
आम पर गाये जाने वाले लोकगीत

मैथिली में एक लोकगीत है ‘प्रेमक डोली चढ़ि चलली सिया दाइ, हे सखि आम – महु वियाहय’ ये लोकगीत बारात आने से पहले दुल्हन के आम के पेड़ की पूजा करते समय गाया जाता है। आम की ज़रूरत सिर्फ खाने में नहीं बल्कि इसकी पत्तियां और इसके पेड़ का रीती रिवाज़ों से भी गहरा ताल्लुक है। कथा, पूजा पाठ में आम की लकड़ियों और पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है। विवाह गीत भी इससे अछूते नहीं हैं। इसी तरह होली फाग में भी आम का चर्चा मिल जाएगा। जैसे एक गीत है कि ‘कोयलिया कतरय आम सुगा के नीक न लागै पिंजरा’। इसी तरह एक गीत है ‘आम के गाछी में हमर गिर गइल कान के बाली’। न जाने कितने ही लोक गीत हैं जो अलग अलग भाषाओं में आम की लोकप्रियता का प्रमाण है।
मालदा क्यों है ख़ास
आम तो कई हैं लेकिन मालदा की बात और है। इस बात पर वो सभी लोग सहमत होंगे जिन्होंने मालदा को चखा है। तेज़ खुशबू वाला ये मीठा मालदा न जाने कितने लोगों को अपना कायल कर चुका है। मालदा की पहचान बहुत आसान है यदि किसी बाग़ में मालदा हो तो वो बाग़ सिर्फ मालदा से ही महकता रहेगा। इतनी महक किसी और आम में नहीं और मिठास का तो क्या ही कहना। रेशेदार मालदा के छिलके पतले होते हैं इसकी पत्तों को सूंघने पर आम जैसी खुश्बू पत्तियों में भी आती है। मालदा के चाहने वालों की संख्या भी काफी है यही कारण है आम का राजा ‘मालदा’ कहलाता है। मालदा की ये लोकप्रियता हर साल बहस का मुद्दा बनी रहती है। मालदा को चाहने वालों की संख्या में सभी शामिल हैं फिर चाहे वो राजनीति से सम्बन्ध रखते हों या सिनेमा से, हर गलियारे में मालदा की महक बरक़रार है। मालदा के चाहने वाले बहुत हैं। मालदा प्रकृति की ओर से ऐसा तोहफा है जिसे पाकर मनुष्य जाति धन्य है। सोशल मीडिया पर ये बहस का मुद्दा रहता है कि मालदा अच्छा है या फिर कोई अन्य प्रजाति। कोई दशहरी को पसंद करता तो कोई चौसा का चाहने वाला है तो कोई इन दोनों से ज़्यादा मालदा पर फ़िदा है।
