Color of Food Oil: कचौड़ी, समोसे, आलू बड़े… इनका नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है। किसी भी बाजार में घूमते हुए गरमागरम तली हुई चीजों की खुशबू हमें रोक ही लेती है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जिस कुरकुरी परत और लाजवाब स्वाद के लिए आप लालायित रहते हैं, उसके पीछे एक बड़ा खतरा छुपा हो सकता है?

जब भी आप किसी ठेले, दुकान या होटल में कुछ तला-भुना खाने के लिए जाएं, तो एक छोटी-सी आदत डालें— वहां इस्तेमाल किए जा रहे तेल का रंग देखने की।

अगर तेल हल्का पीला (येलो) है – तो समझिए यह फ्रेश तेल है और इसका अभी कम ही इस्तेमाल हुआ है।

अगर तेल नारंगी (ऑरेंज) हो चुका है – इसका मतलब यह तेल कई बार गर्म किया जा चुका है, जिससे इसमें मौजूद पोषक तत्व नष्ट हो चुके हैं।

अगर तेल गहरा भूरा या काला दिखने लगे – तो तुरंत वहां से हट जाइए! यह तेल कई बार इस्तेमाल हो चुका है और इसमें ट्रांस फैट की मात्रा बहुत अधिक होती है।

बार-बार गर्म किया गया तेल ट्रांस फैट से भर जाता है, जो हमारे शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल बढ़ाता है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को कम कर देता है। यही वजह है कि आजकल कम उम्र में ही लोगों को हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, मोटापा और डायबिटीज जैसी बीमारियाँ हो रही हैं।

बाजार के बजाय घर पर ताजा तेल में तली हुई चीजें बनाएं और संतुलित मात्रा में खाएं।

मूंगफली तेल, सरसों तेल या घी का उपयोग करें और एक बार से ज्यादा इस्तेमाल न करें।

तली हुई चीजों की जगह रोस्टेड, ग्रिल्ड या बेक किए गए विकल्पों को प्राथमिकता दें।

किसी भी दुकान पर खाने से पहले तेल का रंग जरूर जांचें।

स्वाद जरूरी है, लेकिन सेहत ज्यादा जरूरी है। अगली बार जब आप सड़क किनारे गरमागरम समोसे, पकौड़े या कचौड़ी देखकर ललचाएं, तो तेल की हकीकत जरूर परख लें।

सोनल शर्मा एक अनुभवी कंटेंट राइटर और पत्रकार हैं, जिन्हें डिजिटल मीडिया, प्रिंट और पीआर में 20 वर्षों का अनुभव है। उन्होंने दैनिक भास्कर, पत्रिका, नईदुनिया-जागरण, टाइम्स ऑफ इंडिया और द हितवाद जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम किया...