Wax Statue of Sunita Williams: आसनसोल पश्चिम बंगाल के मोहिशीला कॉलोनी से एक साधारण दिखने वाले लेकिन असाधारण प्रतिभा के धनी मूर्तिकार सुसांता रे ने कुछ ऐसा रचा है जो आज चर्चा का विषय बन चुका है। उन्होंने नासा की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स की मोम की प्रतिमा बनाकर न केवल कला का प्रदर्शन किया, बल्कि महिला सशक्तिकरण और विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रहीं महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत भी प्रस्तुत किया।
क्यों खास है यह मूर्ति?

यह सिर्फ एक मोम की प्रतिमा नहीं है यह साहस, संकल्प और प्रेरणा की जीवंत मिसाल है। सुनीता विलियम्स, जिन्होंने 9 महीने से अधिक समय तक अंतरिक्ष में रहकर इतिहास रचा, उनके जीवन के इस संघर्ष और धैर्य को सुसांता रे ने कला के माध्यम से मूर्त रूप दिया है।
रे कहते हैं, “अगर हमें एक दिन के लिए भी एक कमरे में बंद कर दिया जाए, तो बेचैनी होने लगती है। ऐसे में, एक महिला का 9 महीने तक अंतरिक्ष में रहकर मिशन पूरा करना और सुरक्षित लौटना किसी चमत्कार से कम नहीं।”
दो महीने की मेहनत और ढाई लाख का खर्च
इस प्रतिमा को बनाने में करीब 2 महीने लगे और 2.5 लाख रुपये का खर्च आया। खास बात यह थी कि रे चाहते थे कि प्रतिमा वही पोशाक पहने जिसमें सुनीता ने अंतरिक्ष यात्रा की थी। उन्होंने भारत में कई प्रयास किए लेकिन वैसी ड्रेस नहीं बन पाई। अमेरिका में रहने वाले एक दोस्त ने वैसी ड्रेस ₹10,000 में खरीदी और ₹10,000 में भारत भेजी।
पहले भी बना चुके हैं कई मशहूर मूर्तियां
सुसांता रे ने इससे पहले कई जानी-मानी हस्तियों की मूर्तियां बनाई हैं फिल्मी सितारों से लेकर नेताओं तक। लेकिन सुनीता विलियम्स की प्रतिमा बनाना उनके लिए एक बिल्कुल अलग और भावनात्मक अनुभव था। उन्होंने कहा, “इस मूर्ति को बनाते समय मैं केवल कलाकार नहीं था, एक भारतीय और एक इंसान के तौर पर गर्व महसूस कर रहा था।”
सुनीता विलियम्स का सफर
19 सितंबर 1965 को अमेरिका के ओहायो में जन्मीं सुनीता विलियम्स के पिता भारतीय और मां स्लोवेनियाई मूल की हैं। उन्होंने यूएस नेवल यूनिवर्सिटी से भौतिकी में डिग्री प्राप्त की और इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में मास्टर्स किया। वे अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने वाली महिलाओं में से एक हैं। 2008 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
एक मूर्ति, अनेक संदेश
यह प्रतिमा सिर्फ एक सजावटी कलाकृति नहीं, बल्कि आज की लड़कियों को यह बताने का माध्यम है कि अगर आत्मविश्वास और मेहनत हो, तो अंतरिक्ष भी आपकी पहुंच से दूर नहीं। सुसांता रे की यह कृति इस बात की गवाही देती है कि कला के ज़रिए भी बदलाव और प्रेरणा की लहर चलाई जा सकती है।
