Soha Ali Childhood Story: सोहा अली खान जन्म से ही एक प्रतिष्ठित विरासत से जुड़ी रहीं। उनकी मां शर्मिला टैगोर मशहूर अभिनेत्री हैं और उनके पिता मंसूर अली खान पटौदी मशहूर क्रिकेटर थे। क्रिकेट की दुनिया में टाइगर पटौदी के नाम से मंसूर को जाना जाता है और वो भारत के सबसे सम्मानित क्रिकेटरों में से एक थे। सोहा का जन्म 1978 में हुआ था, यह वो दौर था जब उनके पिता क्रिकेट से संन्यास ले चुके थे। हाल ही में एक इंटरव्यू में सोहा ने अपने जन्म के वक्त का एक किस्सा जाहिर किया है और बताया है कि उनके पिता कितने उत्साहित थे कि उन्हें लगा था कि बेटा हुआ है।
सोहा ने उस दिन का एक मजेदार कुछ ऐसे बताया, “जब मैं पैदा हुई थी, तो मेरे पिता अस्पताल की गलियारों में चिल्ला रहे थे, ‘बेटा हुआ है… हम इसे तेज गेंदबाज बनाएंगे’। बाद में उन्हें पता चला कि लड़की हुई है। उस वक्त लड़कियों के लिए क्रिकेट में ज्यादा मौके नहीं थे, जैसे आज हैं। शायद अगर वो मौके होते, तो वो मुझे वाकई एक गेंदबाज बनाते”। हालांकि सोहा ने क्रिकेट को करियर नहीं बनाया, लेकिन उन्हें खेलों में रुचि रही। खासतौर पर बैडमिंटन में। वे मानती हैं कि उन्होंने कभी क्रिकेट की प्रोफेशनल ट्रेनिंग नहीं ली, लेकिन उनके रिफ्लेक्सेस हमेशा अच्छे रहे हैं।
पटौदी परिवार में शारीरिक फिटनेस हमेशा से एक प्राथमिकता रही है। सोहा ने बताया कि फिट रहना केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर बनने के लिए जरूरी है। यही बात वह और उनके पति कुणाल खेमू अपनी बेटी इनाया को बचपन से सिखाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “अक्सर हम चाहते हैं कि हमारी लड़कियां ‘अच्छी’ हों और लड़के ‘मजबूत’। लेकिन हम चाहते हैं कि इनाया शारीरिक रूप से मजबूत बने, ताकि उसे कभी किसी और पर निर्भर न होना पड़े। अगर कोई उसे असुरक्षित महसूस कराए, तो उसे लगे कि ‘मेरे पास खुद की रक्षा करने की ताकत है’। हम शारीरिक रूप से कमजोर माने जाते हैं और इसीलिए हम अक्सर आसान निशाना बनते हैं लेकिन हमें मानसिक रूप से मजबूत होना चाहिए।” सोहा ने ये भी कहा कि अगर उनकी बेटी इनाया को यह पता चले कि आज भी बेटे को बेटियों से ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है, तो वह हैरान रह जाएगी।
सोहा ने 2004 में अपनी मां के नक्शे-कदम पर चलते हुए फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा। उन्होंने एक किताब भी लिखी है — The Perils of Being Moderately Famous।
हाल ही में वह फिल्म ‘छोरी 2’ में नजर आईं, जो एक हॉरर फिल्म है। इसे विशाल फुरिया ने डायरेक्ट किया है। इस फिल्म में बाल-विवाह और महिलाओं पर अत्याचार जैसे गंभीर सामाजिक मुद्दों को उठाया गया है। फिल्म को अच्छे रिव्यू मिल रहे हैं क्योंकि पहली फिल्म में जहां कुएं में दर्जनों मृत शिशुओं का सीन था, वहीं दूसरी फिल्म में नाबालिग दुल्हनों से जुड़ा दिल दहला देने वाला दृश्य है। यह फिल्म पहले भाग की थीम को और गहराई देती है और भावनात्मक रूप से भी ज्यादा असर डालती है।
सोहा अली खान ने पटौदी जैसे ऐतिहासिक परिवार से निकलकर अपनी खुद की पहचान बनाई है। फिटनेस, मानसिक ताकत और सामाजिक बदलाव को लेकर उनके विचार उन्हें एक प्रगतिशील मां और कलाकार के रूप में पेश करते हैं। वे लगातार सामाजिक सोच को चुनौती देती हैं और एक नई सोच को आगे बढ़ा रही हैं।
