Chhorii 2 Review
Chhorii 2 Review

Chhorii 2 Review: निर्देशक विशाल फुरिया ने साल 2017 में मराठी फिल्म ‘लपाछपी’ बनाई थी और बाद में इसे हिंदी में ‘छोरी‘ के रूप में रीमेक किया। नुसरत भरूचा की यह फिल्म एक परफेक्ट थ्रिलर भले ही न रही हो, लेकिन फिर भी उस वक्त लोगों ने इसे खूब देखा था। अपने देश में अधिकतर फिल्मों में हम यही देखते हैं कि एक युवा जोड़ा अपने बच्चे के साथ किसी भूतिया घर में आता है। इसके बाद हमें पता होता है कि अब अजीबोगरीब घटनाएं घटने वाली हैं। बच्चा एक बुरी आत्मा के क़ब्ज़े में आ जाएगा, किसी का सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा या चाकू मार दिया जाएगा, और अंत में वो डराने वाली आत्मा को वो ही लोग भगा देंगे जिन्हें वो परेशान कर रही थी। ‘छोरी’ दरअसल इससे आगे जाने की कोशिश थी। यह नॉर्मल हॉरर बिल्कुल नहीं थी। यह पुरुषों के राज वाले समाज की डरावनी मानसिकता को भी टटोलना चाहती थी।

अब फिल्म की कहानी सात साल आगे बढ़ी है। असल ज़िंदगी में चार साल बाद निर्देशक लौटे हैं ‘छोरी 2’ के साथ। इस बार महिला खलनायिका हैं …सोहा अली खान। कैमरा यहां माहौल बनाता है। स्क्रीन पर अंधेरा हावी है, लेकिन सिहरन पैदा करने वाला बैकग्राउंड म्यूजिक बढ़िया काम कर जाता है। इस बार कई किरदार और उनके संघर्ष सामने आते हैं। दिक्कत यह है कि ‘छोरी 2’ की कहानी से ज़्यादा रोमांचकारी इसका बिल्डअप है। यानी कहानी को शुरू करने का माहौल.. वाकई कमाल है। पहले हिस्से की शुरुआत काफी कमजोर-सी थी, लेकिन ये नई फिल्म पूरी दमदारी के साथ आपका स्वागत करती है। यह दस मिनट में एक अलग माहौल में आपको ले जाती है।

यह कहना भी सही नहीं होगा कि छोरी सीरीज़ में कोई गहराई नहीं है। इसके बनाने का मकसद ठीक ही है। कई सीन बढ़िया हैं, कुछ को पेश करने में जरूर कमजोरी दिखाई दे जाती है। ताकत सोहा अली खान हैं। अरसे बाद उन्हें देखा तो अच्छा लगा। उनका चेहरा दर्द और डर को बख़ूबी दिखाता है। उनका काली साड़ी पहनना तो डर का इम्तिहान है। नुसरत भरूचा ने अपने पुराने रोल को आगे बढ़ाया। वो फिर से एक बेबस मां के रोल में हैं, जो अब एक नए राक्षस से लड़ रही हैं। इस बार उन्हें एक “छोरी” से लड़ना पड़ रहा है, “छोरे” से नहीं। यह इस बात को साबित करता है कि बुराइयां लिंग भेद नहीं करतीं।

बुरा यह है कि फिल्म पूरे वक्त एक जैसी नहीं है। यह टुकड़ों में ही ठीक है। कुछ हिस्से बढ़िया बन गए हैं तो कुछ एकदम कमजोर। यह एक ऐसी कोशिश है जो भले ही पूरी तरह सफल नहीं है, लेकिन मुद्दे पर बात करने में पूरी तरह ईमानदार है। प्राइम वीडियो पर इसे रिलीज किया गया है। आप इसे परिवार के साथ देख सकते हैं। बस, इतना जरूर हो कि अगर नहीं देखा हो तो पहले इसका पहला पार्ट देखें। दोनों साथ देखेंगे तो मजा ज्यादा आएगा। खुशमिजाज फिल्म यह नहीं है, यह जरूर ध्यान रहे। एक खास मूड के साथ ही आप इस हॉरर पर अपना वक्त खर्च करें।

ढाई दशक से पत्रकारिता में हैं। दैनिक भास्कर, नई दुनिया और जागरण में कई वर्षों तक काम किया। हर हफ्ते 'पहले दिन पहले शो' का अगर कोई रिकॉर्ड होता तो शायद इनके नाम होता। 2001 से अभी तक यह क्रम जारी है और विभिन्न प्लेटफॉर्म के लिए फिल्म समीक्षा...