३ मार्च को संगीतकार Shankar Mahadevan के बर्थडे है इस मौके पर आइए जानते हैं उनके संगीत से जुड़ी अभिनय यात्रा को। शंकर की खास बात यह है कि वे आज एक सीनियर कलाकार हैं लेकिन अपने अंदर के विद्यार्थी को आज भी जिंदा रखे हुए हैं। वे मानते हैं कि बेशक उनकी गुरू अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन वे आज भी उन्हें सिखा रही हैं। वे ये भी मानते हैं कि एक संगीतकार को नंबर के फेर में नहीं पडऩा चाहिए। आपको नहीं पता कि कौन-सा गाना सफल होगा और कौन-सा असफल। बस, प्रयोग करने में हिचकिचाएं नहीं।
जिंदगी का टर्निंग पॉइंट

जीवन में कोई एक घटना, एक बात या किस्सा ऐसा जरूर होता है जो किसी भी इंसान की जिंदगी का टर्निंग पॉइंट बन जाता है। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो कह सकते हैं कि किस्मत एक बार जीवन में आपका दरवाजा जरूर खटखटाती है। शंकर के साथ भी ऐसा हुआ जब उन्होंने साल १९९८ में एलबम ब्रीथलैस बनाया। इसका टाइटल ट्रैक ब्र्रीथलैस में उन्होंने बिना सांस लिए गाना गाया था। इस क्लासिकल सिंगर ने इस एलबम के बाद कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा। बॉलीवुड में कई यादगार गीत वे दे चुके हैं।
आज भी होती है फरमाईश

यह गाना जब ऑन एयर हुआ था तब भी और आज भी फेमस है। इसके बोल कुछ यूं है- कोई जो मिला तो मुझे ऐसा लगता था कि मेरी सारी दुनिया में गीतों की रित और रंगों की बरखा है। इस एलबम ने शंकर को रातों-रात स्टार बना दिया। बहुत लोग उस समय इस गीत को चैलेंज की तरह लेकर गाने की कोशिश करते थे, लेकिन कोई भी बिना सांस रोके इस गाने को नहीं गा पाया। आज भी उनका कोई भी म्सूजिकल कंसर्ट इस गाने के बिना अधूरा है।
शंकर एक वर्सेटाइल सिंगर हैं। कहते हैं मैं प्रयोग इसलिए कर पाता हूं क्योंकि मेरी क्लासिकल म्यूजिक नींव बहुत मजबूत है। यह सभी कुछ मेरी गुरू टीके बालामनी की वजह से है। संगीत के साहित्य पर उनकी जो पकड़ थी वे कमाल की थी। हालांकि वह हमें क्लासिकल सिखाती थीं। लेकिन उनकी सोच बहुत व्यापक थी। वे हमें दूसरे संगीत को सुनने और समझने का मौका देती थी। उन्होंने कल्याणी, मोहन राग सिर्फ गाने नहीं सिखाए नहीं बल्कि राग चाहे कोई भी हो उसकी संरचना, अल्पना को विकसित करना भी सिखाया। नींव चूंकि मेरी इतनी मजबूत हैं ऐसे में कैसा भी संगीत क्यों ना हो मैं प्रयोग करने में कभी नहीं हिचकिचाता।
अब जरा कहानी भी जान लें

ब्रीथलैस एलबम से पहले शंकर विज्ञापनों में जिंगल्स भी दे रहे थे। जब उन्हें पता चला कि जावेद अख्तर उनके साथ काम करना चाहते हैं तो वे बहुत उत्साहित हुए। कहते हैं मैं अंदाजा लगा रखा था कि एलबम में या तो कोई सैड सॉन्ग होगा या फास्ट नंबर। लेकिन जावेद जी के दिमाग में तो कुछ अलग ही चल रहा था। उन्होंने बताया कि कुछ अलग गाना बनाएंगे। यह अपनी तरह का पहला और अनोखा गाना होगा जिसे बिना सांस लिए गाना है। यह आम गीत की तरह नहीं था जिसमें मुखड़ा फिर म्यूजिक, फिर अंतरा फिर म्यूजिक होता। इसमें ऊपर का सुर होगा, नीचे का सुर होगा। यह आइडिया मुझे अच्छा लगा। इस मीटिंग के एक हफ्ते बाद जावेद साहब ने मुझे वह गाना तैयार करके दिया। उन दिनों मैं नवी मुंबई रहता था। अपना काम खत्म करके जब टेक्सी से अपने घर लौट रहा था, उसी दौरान इसका संगीत कंपोज किया। अंदाजा भी नहीं था कि यह इतना सफल हो जाएगा।
मेहनत का कोई तोड़ नहीं

वे कहते हैं कि अच्छी बात है कि आज लोग संगीत को एक हॉबी के तौर पर नहीं एक करिअर के तौर पर ले रहे हैं। आज के युवा में टैलेंट की कोई कमी नहीं। बस थोड़ा धैर्य रखने की जरूरत है। सफलता यों ही नहीं मिलती लगातार मेहनत करनी होती है। हां एक बार सफल हो जाने या लाइमलाइट में आने के बाद उसे बनाए रखना भी जरूरी है। ऐसा सिर्फ निरंतर अभ्यास से ही मिल पाता है।
