Rajesh Khanna Home
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Rajesh Khanna Home: बॉलीवुड की चमचमाती दुनिया में शोहरत और दौलत अक्सर ऐसे भव्य बंगलों में बसती है जो खुद सितारों की तरह मशहूर हो जाते हैं। जैसे शाहरुख़ ख़ान का ‘मन्नत’ या अमिताभ बच्चन का ‘जलसा’, ये बंगले अब किसी टूरिस्ट स्पॉट से कम नहीं। लेकिन इन आधुनिक प्रतीकों के आने से पहले, एक ऐसा बंगला था जिसने ना सिर्फ स्टारडम को परिभाषित किया बल्कि अंधविश्वास को भी जन्म दिया। और वो था ‘आशीर्वाद’, जो मुंबई के कार्टर रोड पर स्थित था।

यह बंगला सिर्फ भारत के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना का घर नहीं था, बल्कि एक रहस्यमय कहानी का हिस्सा भी था। फिल्मी दुनिया में कहा जाता है कि यह बंगला ‘मनहूस’ था। यहां जो भी सुपरस्टार रहा, पहले आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचा, फिर वहीं से गर्त में चला गया। यह बंगला पहले एक एंग्लो-इंडियन परिवार के पास था। फिर इसे 1950 के दशक के मशहूर अभिनेता भरत भूषण ने खरीदा। ‘बैजू बावरा’ और ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ जैसी फिल्मों के लिए प्रसिद्ध, भरत भूषण दिलीप कुमार और राज कपूर के बराबर माने जाते थे। लेकिन जब से वे इस बंगले में आए, उनकी फिल्में फ्लॉप होने लगीं, आर्थिक संकट गहराया और अंततः उन्हें बंगला बेचकर जाना पड़ा। तभी से अफवाहें उड़ने लगीं कि यह घर मनहूस है।

इसके बाद इस बंगले में आए राजेंद्र कुमार, जिन्हें उनकी हिट फिल्मों के लिए ‘जुबली कुमार’ कहा जाता था। 1960 के दशक में उन्होंने यह बंगला ₹60,000 में खरीदा। उस समय वे हिंदी सिनेमा के सबसे सफल सितारों में से एक थे। लेकिन इतिहास दोहराया गया। जैसे ही उन्होंने वहां रहना शुरू किया, उनके करियर का ग्राफ गिरने लगा। दशक के अंत तक उन्हें भी घर छोड़ना पड़ा। अब यह सिलसिला डरावना लगने लगा था।

फिर आए राजेश खन्ना, वह शख्स जिसने सुपरस्टारडम को एक नया रूप दिया। 1970 के दशक की शुरुआत में वे अपने करियर के चरम पर थे। उन्होंने यह बंगला ₹3.5 लाख में खरीदा और इसका नाम रखा आशीर्वाद। यह नाम उनकी लोकप्रियता और आध्यात्मिक सोच दोनों का प्रतीक था। उनके पास 17 लगातार हिट फिल्में थीं। हर दिन कार्टर रोड पर हजारों फैंस इकट्ठा होते थे, बस उन्हें बालकनी से देखने के लिए। ‘आशीर्वाद’ अब सिर्फ घर नहीं था, यह स्टारडम की पहचान बन गया था।

लेकिन अच्छे दिन ज़्यादा नहीं टिके। 1970 के दशक के अंत में बॉलीवुड में एक नया दौर आया। और एक नया नायक… अमिताभ बच्चन छा गया। कहानियां बदलीं और राजेश खन्ना की चमक फीकी पड़ने लगी। उनकी फिल्में फ्लॉप होने लगीं और उनकी निजी ज़िंदगी भी विवादों में घिरने लगी। फिर भी वे ‘आशीर्वाद’ में ही रहे। यह बंगला उनकी ज़िंदगी का अंतिम ठिकाना बना रहा, 2011 में उनकी मृत्यु तक।

तीन बड़े सितारे। तीनों की चमकदार शुरुआत और फिर अचानक पतन।… और ये सब एक ही पते पर। यह सिर्फ संयोग था या कुछ और? इंडस्ट्री में इस बंगले को ‘भूत बंगला’ कहकर पुकारा जाने लगा। एक ऐसा घर जो शोहरत देता है, लेकिन भारी कीमत लेकर। 

आज यह बंगला अपनी असली शक्ल में नहीं बचा है। इसे तोड़कर नया निर्माण हो चुका है। लेकिन इसकी कहानी अब भी जिंदा है, गॉसिप कॉलमों में, डॉक्यूमेंट्री फिल्मों में और बॉलीवुड के पुराने  प्रेमियों की चर्चा में। 

ढाई दशक से पत्रकारिता में हैं। दैनिक भास्कर, नई दुनिया और जागरण में कई वर्षों तक काम किया। हर हफ्ते 'पहले दिन पहले शो' का अगर कोई रिकॉर्ड होता तो शायद इनके नाम होता। 2001 से अभी तक यह क्रम जारी है और विभिन्न प्लेटफॉर्म के लिए फिल्म समीक्षा...