Jitendra Kumar Career
Jitendra Kumar Career

Summary: IIT से एक्टिंग तक, 'पंचायत' फेम जितेंद्र कुमार की जुनून भरी कहानी

IIT छोड़ एक्टिंग की राह चुनने वाले जितेंद्र कुमार की कहानी संघर्ष, आत्मविश्वास और जुनून की मिसाल है।
'पंचायत' फेम जितेंद्र ने दिखाया कि सच्ची पहचान डिग्री से नहीं, अपने पैशन को जीने से बनती है।

Jitendra Kumar Career: यह कहानी है उस नौजवान की, जो न किसी बड़े शहर से आया था, न किसी एक्टिंग स्कूल से, न ही उसके पास कोई फ़िल्मी बैकग्राउंड था। पंचायत के हीरो जितेंद्र कुमार तो बस एक मध्यमवर्गीय परिवार के बेटे थे, जो हर साल लाखों छात्रों की तरह जेईई की तैयारी कर रहे थे। इस उम्मीद में कि आईआईटी में दाख़िला मिलेगा तो ज़िंदगी संवर जाएगी।

आईआईटी में दाख़िला तो मिल गया, पर वहां जाकर जो महसूस हुआ…. उससे मजा नहीं आ रहा था। ये वो चीज नहीं है जिसकी तलाश थी। जिस छात्र ने जेईई हिंदी में दिया था, उसे अंग्रेज़ी के उस माहौल में ढालना मुश्किल हो रहा था, जहां हर शब्द किसी पहेली जैसा लगता था। प्रोफेसर अंग्रेज़ी में बोलते, क्लास में कठिन शब्दों की बारिश होती, और वह बेबस भीगता रहता… चुपचाप। वक्त बीता, पर पढ़ाई का मन नहीं लग पाया। एक बार दोस्तों के कहने पर उसने ड्रामा सोसायटी जॉइन कर ली। शुरुआत में यह भी बस टाइम पास था, लेकिन ड्रामा करते-करते जैसे जितेंद्र ने अपनी पहचान हासिल कर ली। धीरे-धीरे उसे महसूस हुआ कि वह मंच पर सबसे ज़्यादा ज़िंदा महसूस करता है।

उसी दौरान जितेंद्र की मुलाकात हुई एक सीनियर से… जो थे विश्वपति सरकार। यही सीनियर, जो बाद में उसकी किस्मत की चाबी बने। विश्वपति सरकार ने एक दिन मज़ाक-मज़ाक में जितेंद्र से कहा, “तेरी नौकरी तो लग नहीं रही है, चल मुंबई… तू एक्टिंग कर लेना, मैं लिख लूंगा।” उस वक्त शायद दोनों को नहीं पता था कि ये लाइनें हकीकत बनने वाली ‘फिल्मी’ कहानी का हिस्सा थीं।

जून 2012 में जितेंद्र ‘गरीब रथ’ से मुंबई पहुंचे। पहले ही दिन एक वीडियो शूट हुआ जिसका नाम था, “हर एक फ्रेंड ज़रूरी नहीं होता”… जो ठीक-ठाक चला। फिर “मुन्ना जज़्बाती” बना, लेकिन यह रिलीज़ ही नहीं हुआ। जितेंद्र हताश हुए और बेंगलुरु जाकर एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी करने लेगे। कुछ महीने बाद वह अधूरा वीडियो अचानक रिलीज़ हुआ… और वायरल हो गया। लोगों ने उनकी खूब तारीफ की। अब जितेंद्र के उसी सीनियर का फोन आया. “अब तुझे लोग बुला रहे हैं।” और फिर शुरू हुई उनकी दूसरी पारी… इस बार ज्यादा भरोसे और आत्मविश्वास के साथ। शुरुआती दिनों में हर असफल वीडियो जितेंद्र हिला देता था। वो अक्सर खुद पर शक करते, लेकिन फिर सीनियर्स उन्हें समझाते, “हर चीज में वक्त लगता है, एक्टिंग भी कोई अलग नहीं।” धीरे-धीरे जितेंद्र ने सीखा कि सफलता कोई तात्कालिक पुरस्कार नहीं, बल्कि धैर्य का फल होती है।

जितेंद्र कहते हैं, जिंदगी में सुरक्षा कभी भी प्राथमिकता नहीं होना चाहिए, बल्कि खुशी और संतोष होना चाहिए। मैंने आईआईटी देखा, इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, लेकिन मन वहीं टिका जहां आत्मा को सुकून मिला यानी कला में, अभिनय में, मंच पर। आज पहचान काम से है, न कि किसी डिग्री से। जो काम दिल को छूता हो, उसे कभी न छोड़ें। भले मंज़िल न मिले, लेकिन कम से कम मलाल नहीं रहेगा कि कोशिश नहीं की। जब तक मिडिल क्लास परिवार सिर्फ सुरक्षित करियर के पीछे भागते रहेंगे, तब तक वे कला, संगीत, खेल और रचनात्मकता में छिपी अपार संभावनाओं को खोते रहेंगे। जरूरत है सोच को बदलने की … जो सोचा नहीं, वो करेंगे कैसे? और जो करेंगे नहीं, वो उड़ेंगे कैसे?

ढाई दशक से पत्रकारिता में हैं। दैनिक भास्कर, नई दुनिया और जागरण में कई वर्षों तक काम किया। हर हफ्ते 'पहले दिन पहले शो' का अगर कोई रिकॉर्ड होता तो शायद इनके नाम होता। 2001 से अभी तक यह क्रम जारी है और विभिन्न प्लेटफॉर्म के लिए फिल्म समीक्षा...