परिवार के अलग-अलग रंगों को दर्शाती ‘गुलमोहर’: Gulmohar Review
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Gulmohar Review: बहुत कम फिल्‍में ऐसी होती हैं जिनको देख हमें कुछ सीख मिलती है या जो भारत की सामाजिक ढांचे की मूल जड़ों को दिखाती हैं। बॉलीवुड में एक दशक ऐसा भी था जब परिवार के महत्‍व को दर्शाने वाली फिल्‍में बनाई जाती थीं। धीरे-धीरे वो चलन बंद हो गया। मगर एक बार फिर वो बयार आई है जब परिवार पर बने कंटेंट को दिखाया जाने लगा और दर्शकों ने उन्‍हें बेहद पसंद भी किया। भले ही ये ओटीटी प्‍लेटफॉर्म पर बनीं सीरीज के जरिए संभव हुआ। अब इसी विषय पर फिल्‍म लेकर आए हैं बॉलीवुड के मंझे हुए कलाकार मनोज बाजपेई और शर्मिला टैगार। इनकी फिल्‍म ‘गुलमोहर’ डिज्‍नी प्‍लस हॉटस्‍टार पर स्‍ट्रीम हो रही है।

गुलमोहर को देखने से पहले आपको इस फिल्‍म के बारे में कुछ बताते हैं। ये फिल्‍म कुछ उन फिल्‍मों में शामिल होती है जो सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं होती बल्कि आपके साथ अनुभव बांटने जैसी होती हैं। ऐसी कहानियों के जरिए आप अपनी जिंदगी के उन गलियारों में झांकने लगते हो जिन्‍हें शायद आप भूल गए थे। आज की आपा धापी वाली जिंदगी में जिन रिश्‍तों से कट से गए हैं, जिन जड़ों से दूर हो गए हैं, उनकी अहमियत एक बार तो दिल में दस्‍तक दे ही जाती है। ‘गुलमोहर’ फिल्‍म एक ऐसी ही कहानी है जो आपको आपसे मिलवाती है।

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Gulmohar Review: क्‍या है फिल्‍म की कहानी

अगर रिश्ते और उनके टकराव न हों तो जीवन कैसा होगा। भले ही हमें टकराव से परेशानी होती है लेकिन सच ये भी है कि जीवन की ख़ूबसूरती रिश्‍तों की अनबन और उनकी उलझनों से है। रूठना मनाना, प्यार तकरार रिश्तों को और मजबूत बनाते हैं। रिश्‍तों की इन्‍हीं अनुभवों को पिरोकर बत्रा परिवार की कहानी के रूप में ‘गुलमोहर’ के जरिए दिखाया गया है। फिल्‍म दिल्ली में बत्रा परिवार के घर ‘गुलमोहर’ और उससे परिवार की यादों की कहानी है। बत्रा परिवार इस घर में तीन पीढ़ियां रहती है और सबकी अपनी अलग विचारधारा है। किन्‍हीं कारणोवश घर की मालकिन कुसुम बत्रा (शर्मिला टैगोर)  ‘गुलमोहर’ को बेचने का फैसला लेती हैं। वे पूरे परिवार के साथ आचिारी दिनों में घर में  खुशी से रहना चाहती हैं और चाहती हैं कि एक साथ होली मनाकर सब अपने अलग अलग मकानों में जाएं। उनका बेटा अरुण (मनोज वाजपेयी) अलग होना नहीं चाहता। लेकिन अरुण का बेटा आदित्य (सूरज शर्मा) अलग रहना चाहता है। इसके चलते घर में सभी एक अजीब कशमकश से गुजरते हैं। क्या ये परिवार अलग होगा या फिर घर की यादें सबको अलग होने से पहले एक कर देंगी। अपने घर से दूर रहने वालों को घर की अहमियत याद दिलाने वाली ‘गुलमोहर’ की इस पहेली को सुलझाने के लिए  आपको ये फिल्म देखनी होगी। हालांकि फिल्‍म का फर्स्‍ट हाफ स्‍लो है लेकिन सेकंड हाफ में फिल्‍म रफ्तार पकडती है। गंभीर विषय होने की वजह से मनोरंजन की कमी लग सकती है। लेकिन बेहतरीन अदाकारी और शर्मिला जी को ग्रेस फिल्‍म से जोडे रखता है।

बात कलाकारों की परफॉर्मेंस की

फिल्‍म का सबसे प्‍लस पॉइंट हैं शर्मिला टैगार और मनोज बाजपेई। शर्मिला टैगोर लम्‍बे अर्से बाद स्क्रीन पर उसी ग्रेस और खूबसूरती से अभिनय करते देखना एक अलग अनुभव है। उन्‍होंने इस किरदार को बहुत ही उम्‍दा तरीके से निभाया है ऐसा लगता है कि जैसे ये  किरदार सिर्फ उनके लिए लिखा गया हो। बात करें मनोज वाजपेयी कि तो हम सभी जानते हैं कि वे शानदार एक्टर हैं। उन्‍होंने किरदार को बखूबी निभाया है। मनोज उन कलाकरों में से हैं जो किरदारों में इस तरह फिट हो जाते हैं जैसे वो असल में वही किरदार हों। उनका यही गुण बेहतरीन एक्टर्स में शुमार करता है। सिमरन ने मनोज की जोड़ी हमें अपने आम घरों की सी लगती है जो पर्दे पर कमाल की दिखी है। एक बहू पत्नी और मां तीनों किरदारों में सिमरन ने शानदार अदाकारी से जान डाल दी है। सूरज शर्मा ने एक ऐसे लड़के का किरदार निभाया है जिसके अपने पिता से मतभेद हैं। सूरज की एक्टिंग भी कमाल है। अमोल पालेकर ने भी अपने हिस्‍से आए काम को शानदार तरीके से निभाया है। फिल्‍म के डायरेक्‍टर ने तीन पीढियों को पर्दे पर शानदार तरीके से पेश किया है। फिल्‍म के हर सीन को उन्‍होंने बखूबी पर्दे पर उकेरा है। जिससे आप अपने परिवार से कनेक्‍ट करते हुए देख सकते हैं।

क्‍यों देखें

परिवार के साथ देखने वाली फिल्‍में बहुत कम होती हैं। आजकल के समय में परिवार के महत्‍व को समझाने वाली इस फिल्‍म को देखना तो बनता है। ये फिल्‍म आपको एक बार फिर अहसास करवाती है कि फैमिली है तो सब है। ये फिल्म देखकर शायद आप अपने परिवार के साथ एकबार फिर उस जुड़ाव को बढ़ाने का प्रयास करें जो बिजी जिंदगी में गुम होता जा रही है। इस फिल्‍म में मनोरंजन भले ही कम हो लेकिन ये आपको वो अनुभव देकर जाती है जो लम्‍बे समय तक रहेगा।