Parul Chauhan: अगर कोई कलाकार अपने किरदार के जरिए दर्शकों के दिलों में सालों साल बसता है तो उस कलाकार की अदाकारी ही इसकी वजह होती है। ऐसी ही एक कलाकार हैं पारूल चौहान जिन्होंने ‘बिदाई सपना बाबुल का ‘ के जरिए टीवी इंडस्ट्री में कदम रखा और अपने सीधे- साधे से किरदार के जरिए दर्शकों को लुभाया। सांवली सी मासूम रागिनी के किरदार के नाम पर आज भी उनकी पहचान बरकरार है। हालांकि उन्होंने अलग-अलग शोज में कई किरदार निभाए। अपने पहले सीरियल के मासूम अवतार से ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ कि स्वर्णा जैसी एक अच्छी सास के रूप में पॉजिटिव किरदार करने के बाद वे निगेटिव रोल में अपनी अदाकारी का जौहर दिखाने का प्रयास कर रही हैं। दर्शकों के जरिए किसी किरदार को सराहे या कोसे जाने पर कलाकार की मेहनत सफल हो जाती है। ऐसा ही अनुभव पारूल कुछ इन दिनों कर रही हैं, ‘धर्म योद्धा गरूड’ में उनके निगेटिव रोल में उन्हें दर्शकों ने पसंद किया है। पारूल भले ही आज मुंबई में अपना मुकाम बना चुकी हैं लेकिन उनके लिए ये आसान नहीं था।
शुरूआत में निराशा मिली फिर भी हार नहीं मानी
उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर लखीमपुर खीरी में जन्मीं पारूल ने कभी सोचा नहीं था कि वे एक्टिंग करेंगी लेकिन उन्हें डांस करना बेहद पसंद था। उनके डांस की वजह से उनके जान पहचान के लोग उन्हें पसंद करते और कई बार एक्टिंग में हाथ आजमाने की सलाह देते। पढाई पूरी करने के बाद मां के सपोर्ट की वजह से वे अपने भाई के साथ एक्टिंग में किस्मत आजमाने के लिए मुंबई आईं। कुछ महीने रूकने के बाद उन्हें मुंबई में कुछ समझ नहीं आ रहा था। उन्होंने वापस जाने का फैसला किया और घर जाकर खुद को वापस तैयार करने का निर्णय लिया। उन्हें घर वापस जाने पर ताने सुनने पडे फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और एक बार फिर वापस मुंबई आकर संघर्ष किया। इस बार वे खुद को पूरी तरह तैयार करके आई थीं और मन में ठान लिया था कि बिना कुछ हासिल किए वापस नहीं जाना है। ढाई साल के बाद उन्हें पहला ब्रेक मिला और उसके बाद वे आगे बढती गईं।
पहली तनख्वाह सोच से कहीं ज्यादा
हर किसी के लिए उसकी पहली तनख्वाह बहुत मायने रखती है। अगर वह उम्मीद से ज्यादा हो तो बात ही कुछ अलग है। पारूल को जब पहली तनख्वाह मिली तब उनकी आंखें नम हो गईं । मिडिल क्लास फैमिली से होने की वजह से उन्होने कभी उम्मीद नहीं की थी कि एक्टिंग में उन्हें इतनी तनख्वाह मिलेगी। उन्हें पहला चेक दो लाख रूपए से ज्यादा का मिला था और उस चेक को देख उनकी आखों में खुशी के आंसू भर आए। वह खुशी कुछ अलग ही थी। उनकी मेहनत और संघर्ष का रंग उम्मीद से ज्यादा खिल कर आया था। उनकी सफलता के बाद माता पिता भी बेहद खुश थे। छोटी जगह से होने के बाद भी उनके पेरेंट्स ने उनका सपोर्ट किया और जब लोग सफलता के बाद पेरेंट्स को पारूल के नाम से पहचानने लगे तब उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाया
चाहे वो पहले सीरियल का मासूम किरदार हो या अभी वे जिसमें काम कर रही हैं यानि ‘धर्म योद्धा गरूड’ का निगेटिव किरदार पारूल ने काम को हमेशा शिद्दत से किया है। पारूल का मानना है कि अगर किरदार पसंद नहीं आए तो उसे करना समझदारी नहीं है। ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ सीरियल छोडने के वक्त भी उनकी कुछ ऐसी ही वजह थी। वे काम के साथ समझौता करने वालों में से नहीं हैं। उनका मानना है कि भले ही काम के लिए इंतजार करना पडे लेकिन टैलेंट को ऐसे ही कहीं भी जाया नहीं करना चाहिए। 2019 के बाद काम में गैप आने के बाद जब गरूड के लिए निगेटिव रोल करने की बात हुई तो उन्होंने इसे करने का फैसला लिया। एक एक्टर के तौर पर ये चुनौती भरा किरदार है। दर्शकों के बीच अब तक की उनकी इमेज से बिल्कुल अलग रोल को करने के लिए उन्होंने पूरी तैयारी की। उनका मानना है कि रोल पॉजिटिव हो या निगेटिव अगर दर्शक आपके किरदार को याद रखते हैं तो मेहनत सफल हो जाती है। जिस तरह दर्शक पाजिटिव रोल के लिए मुझे प्यार देते हैं वैसे ही निगेटिव रोल के लिए अगर कोसते हैं तो इसका मतलब मैं किरदार के साथ न्याय कर पाई।
