अगर आपके पास फिल्म ‘छपाक’ जैसी कोई कहानी आए, जिसमें आप अन्य फिल्मों की तरह बहुत ज्यादा खूबसूरत न दिखें, तो क्या आप ऐसे किरदार निभाएंगी?
जी हां, क्यों नहीं, जरूर करूंगी इस तरह की फिल्म। परदे पर खूबसूरत न दिखने को लेकर मेरे अंदर कोई हिचक जैसी बात नहीं है। कहानी के हिसाब से जिस तरह मेरा किरदार दिखना चाहिए, मैं उसी तरह दिखना चाहूंगी। अगर मेरा किरदार गांव की किसी लड़की का है हो, जो ज्यादा साफ न रहती हो, अब उस किरदार के लिए यदि मैं हेयर-मेकअप, ब्लो ड्राय और ग्लैमरस कपड़े पहन कर आ जाऊं तो वह किरदार और कहानी को सूट नहीं करेगा और अंत में फिल्म ही अच्छी नहीं लगेगी, सब फेक लगेगा, जरूरी खूबसूरत दिखना नहीं, बल्कि कैरक्टर में दिखना है। रही बात असल जिंदगी में खूबसूरती की तो मेरे हिसाब से लक्ष्मी अग्रवाल और मालती बिल्कुल भी बदसूरत नहीं हैं। मेरे हिसाब से बदसूरत कोई नहीं होता, मेरे लिए वह इंसान बदसूरत है, जिसके मन या दिल में कड़वापन हो।

कोई ऐसा सामाजिक मुद्दा, जो आपके दिल के करीब है, जिस विषय पर आप फिल्म करना चाहती हों?
सामाजिक मुद्दे तो इस दुनिया में बहुत सारे हैं, जिन पर आधारित फिल्में करना चाहूंगी, लेकिन मेरे हिसाब से मेंटल हेल्थ इस समय सबसे जरूरी विषय है, जिस पर मुझे फिल्म करना है, इसी से मिलता-जुलता विषय है रिलेशनशिप ड्रामा, इस पर भी मुझे फिल्म करना है। ह्यूमन साइकी एक ऐसा सब्जेक्ट है, जो मुझे हमेशा ही आकर्षित करता है। एक इंसान का दिमाग इतना ज्यादा जटिल होता है कि एक अच्छी जिंदगी में भी लगता है कि आप मुश्किलों से गुजर रहे हैं, किसी किरदार की इसी जटिलता को एक्स्प्लोर करना चाहूंगी।

आप सच कह रही हैं, पहले डिप्रेशन जैसी कोई समस्या की बात ही नहीं होती थी, आज एक बड़ा वर्ग इससे प्रभावित है, आपके हिसाब से ऐसा क्यों?
मेंटल हेल्थ जैसी बातों को अब तक गंभीरता से नहीं लिया गया है। जैसे किसी को कैंसर है, बुखार है, सर्दी-जुखाम है, ठीक उसी तरह मेंटल हेल्थ भी गंभीर समस्या है। हालांकि यह ऐसी बीमारी नहीं, जिसका उपचार न हो, लेकिन इस मेडिकल कंडीशन के बारे में ज्यादा लोगों को पता नहीं है, इस वजह से लोग समझते नहीं है। लोगों को मेंटल हेल्थ के बारे में जागरूक करना जरूरी है, क्योंकि जब भी कोई मेंटल हेल्थ से जुड़ी प्रॉब्लम से गुजर रहा होता है तो लोग कहते हैं कि वह अटेंशन के लिए कर रही है, पागल हो गई है। मेंटल हेल्थ एक वास्तविक प्रॉब्लम है, मुझे लगता है कि आज के जमाने में यह समस्या और भी बढ़ गई है।
दरअसल, पहले लोग अकेले बैठ कर सोशल मीडिया में समय नहीं गुजारते थे, बल्कि अपने परिवार, दोस्तों, मोहल्ले वालों और करीबियों के साथ बैठकर समय बिताते थे, लोगों का लोगों के साथ असली कनेक्शन होता था, जो आज के जमाने में कम है, मुझे लगता है यही असली जड़ है डिप्रेशन की, आपसी कनेक्शन, बातचीत की कमी के कारण आज लोग पहले से ज्यादा डिप्रेशन में होते हैं।

आपने कब डिप्रेशन जैसी चीज को समझा?
देखिए, कभी स्कूल, कभी कॉलेज में हम छोटी-छोटी बातों पर कहते थे कि आज बहुत डिप्रेस फील कर रही हूं मैं हमेशा से इस शब्द का इस्तेमाल जरूर करती थी, लेकिन इसका अर्थ मुझे अभी समझ में आया है, जब मैंने जिंदगी का एक और हिस्सा देखा, उस दौरान मुझे समझ में आया कि एक इंसान कितना दर्द सह सकता है, उस हिसाब से मुझे महसूस होता है कि मैं जिंदगी में कभी डिप्रेस हुई ही नहीं हूं। मैं दु:खी बहुत रही हूं, दु:ख बड़ी आसानी से मुझे घेर लेता है, लेकिन डिप्रेस नहीं हुई हूं। हां, ऐसे लोगों को जरूर देखा है, जो डिप्रेशन का शिकार रहे हैं, उनका माइंड सेट बहुत ही अलग हो जाता है, मैं यह विश करती हूं कि जो भी डिप्रेश है, उनको सही मदद मिले, उनको लगना चाहिए कि वह अकेले नहीं हैं।

घर में पापा बोनी कपूर, भाई अर्जुन, बहन अंशुला और खुशी के साथ फिल्मों की चर्चा होती हैं?
जी हां, घर में फिल्मों की खूब चर्चा होती है। मतलब सुबह उठती हूं तो फिल्मों की चर्चा शुरू होती है, जो सोते समय तक चलती है। हमारे घर में हर समय सोते-जागते- खाते-पीते फिल्मों की बात ही होती है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि अगर फिल्मों की बात नहीं करनी तो किस चीज के बारे में बात करनी है। मेरे जहन में हर समय यही दौड़ता है कि अब क्या करना चाहिए, कैसे काम करना है, क्या ज्यादा करना है, क्या कम करना है, इस तरह 24 घंटे का फोकस वहीं है। मैं अपना सारा समय उसी दिशा में देना चाहती हूं, हो सकता है बाकी लोगों को और चीजों के बारे में बात करने की इच्छा हो लेकिन मुझे चर्चा के लिए सिर्फ फिल्म का टॉपिक ही पसंद है, यही मेरी जिंदगी है।

आप अर्जुन, अंशुला और खुशी को लेकर कितनी प्रोटेक्टिव हैं?
मैं सबको लेकर बहुत ही ज्यादा प्रोटेक्टिव और जिम्मेदार हूं। मैंने अंशुला दीदी के साथ बहुत वक्त बिताया है, क्योंकि काम के दौरान हमने साथ में खूब ट्रैवल किया है। एक लंबे समय तक हम दूर रहे हैं, लेकिन आज अंशुला दीदी के साथ मेरी ऐसी बॉन्डिंग बन गई है कि कोई भी काम हो मेरा सबसे पहला कॉल उन्हीं को जाएगा। अगर मैं कभी अच्छा फील नहीं कर रही तो उनके घर जाकर समय बिता लेती हूं, वहां हंसी-मजाक और बातचीत के बाद बहुत तरोताजा महसूस करने लगती हूं, सब अच्छा लगने लगता है। यह जो रिश्ता अभी-अभी हम सभी भाई-बहनों के बीच बना है, अभी नया जरूर है, लेकिन बहुत ही मजबूत है। मुझे अंशुला दीदी और अर्जुन भैया ने इतना प्यार दिया है कि ऐसा लगता है कि हम बहुत समय तक एक-दूसरे की लाइफ में उपस्थित नहीं थे, लेकिन अब वह कमी बहुत तेजी से पूरी हो रही है।

आप चारों में मदर वाली फीलिंग कौन देता है, सभी को?
अंशुला दीदी, वही सबको संभालती हैं, वही सभी को मां वाली फीलिंग देती हैं, मां के जैसे ही केयर भी करती हैं।

आपके हिसाब से एक फिल्म किन चीजों से सफल होती है?
देखिए सफल फिल्में तो रिलीज़ होती रहती हैं, कई बार सफलता के लिए फॉर्म्युला भी होता है, लेकिन मेरे हिसाब से एक सक्सेसफुल फिल्म वह नहीं है, जो बॉक्स ऑफिस पर 200 करोड़ कमाए, शायद 10 साल बाद उस फिल्म को कोई याद भी न रखे या उसकी चर्चा भी न हो, मेरे लिए वही फिल्म सफल है, जो लोगों का दिल छुए, जो बहुत बड़े दर्शक वर्ग तक पहुंचे, जो फिल्म मूवमेंट की तरह बन जाए। उदाहरण के लिए हम फिल्म ‘गली बॉयÓ को देख लें, वह एक ऐसी फिल्म थी, जिसने 300 करोड़ तो नहीं कमाए, एक अच्छा नंबर जरूर था, लेकिन फिल्म का एक गाना ‘अपना टाइम आएगाÓ, वह लाइन किसी न किसी रूप में हर किसी के दिल तक पहुंची है। वह गाना लोगों के लिए एक ऐन्थम बन गया था, लोगों ने गली बॉय के किरदारों में अपने आपको देखा है, उनकी कहानी से लोगों को हिम्मत मिली है कि उनका टाइम आएगा। जब मैं अपने घर के बाहर से गुजरती हूं तो देखती हूं कई जगह ऐसे पोस्टर लगे होते हैं, जिसमें लिखा होता है, अपना टाइम आएगा। 12 या 20 साल बाद लोग कहेंगे कि अपना टाइम आएगा, वाली लाइन उस फिल्म से थी, वह फिल्म उस बारे में थी, हमारी कहानी थी। मैं ऐसी ही फिल्मों का हिस्सा बनना चाहूंगी, मेरे हिसाब से ऐसी ही फिल्में सबसे ज्यादा सफल होती हैं।

आप हमेशा ऐक्ट्रेस ही बनना चाहती थीं या किसी और प्रोफेशन में जाना चाहती थीं?
देखिए मैं तो शुरू से ही सिर्फ ऐक्ट्रेस ही बनना चाहती थी, बीच में जरूर एक बार इस बात से भागने लगी थी और सोचती थी आॢकयोलॉजिस्ट बन जाऊं, उस चीज से बहुत लगाव था, कभी सोचती थी राइटर बनना है, लेकिन घूम-फिर कर ऐक्ट्रेस ही बन गई।

क्या लिखती हैं आप, हाल ही में क्या लिखा था?
बहुत दिनों से नहीं लिखा है मैंने, लगभग एक साल हो गया है, पहले बहुत लिखती थी। मैं ज्यादातर कविताएं लिखती हूं, लेकिन आज-कल कैरेक्टर के बारे में नोट्स लिखती हूं। कभी-कभी कोई सीन होता है और उससे जुड़े मेरे कोई अपने विचार होते हैं तो लिखती हूं। मेरे फोन में मेरा लिखा सब कुछ है। मैं साल 2018 में जब भारत के 49वें
अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह, गोवा में गई थी, तब मां के बारे में एक कविता वहां के मंच पर सुनाई थी।

फिल्म इंडस्ट्री में सबसे अच्छा एडवाइजर अपने लिए किसे मानती हैं?
2 साल में जो मैंने सीखा है, उस हिसाब से पापा (बोनी कपूर) हैं, करण जौहर हैं और मेरी टीम है, जो मेरे हर डिसीजन के बारे में बहुत सोचती है। वैसे हर निर्णय की जिम्मेदारी आपके अपने कंधों पर होती है क्योंकि आप अपने आपको सबसे ज्यादा और सबसे अच्छी तरह खुद को जानते हैं। मुझे ऐसा लगने लगा है कि एडवाइज के लिए मैं इनमें से किसी के पास भी जा सकती हूं, लेकिन अंत में फैसला मेरा अपना होता है।

अपनी अगली रिलीज़ के लिए तैयार फिल्म ‘गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल के बारे में आप क्या चाहेंगी?
फिल्म ‘गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल मेरे दिल के बहुत करीब है, पूरी टीम ने इस फिल्म को बनाने में अपनी जान लगा दी है। गुंजन जी की कहानी को जीते हुए असल जिंदगी के लिए बहुत कुछ सीखा है, खुद के बारे में बहुत कुछ पता चला है, खुद में विश्वास बढ़ गया है। उनकी कहानी में यह बताया गया है कि वह एक ऐसे प्रोफेशन में आ गई थीं, जहां लोग उन्हें इस तरह ट्रीट करते थे, जैसे वह उनकी जगह नहीं है, वह उस दुनिया का हिस्सा बनने के काबिल नहीं हैं। ऐसी ही फीलिंग कहीं न कहीं मेरे साथ भी थी, जब मैंने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था, लोग मुझे फील करते थे कि मैं ऐक्ट्रेस बनने के काबिल नहीं हूं। उस समय वह नेपोटिज्म की बहस शुरू हो गई थी, लगता था लोग चाहते ही नहीं थे, कि मैं फिल्म इंडस्ट्री में काम करूं। हालांकि उनकी सिचुऐशन एकदम अलग थी, लेकिन उनके किरदार को निभाते-निभाते उनके साहस को महसूस कर, खुद की हिम्मत बढ़ गई, खुद पर विश्वास बढ़ गया, तो बहुत ही पर्सनल जर्नी रही है।

फिल्म ‘गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल की शूटिंग के दौरान आपने क्या कुछ सीखा?
इस फिल्म की शूटिंग के दौरान बहुत कुछ ऐसा करने को मिला, जो मैं पहली बार कर रही थी, कई तरह की ऐसी ट्रेनिंग जो मुश्किल होती हैं, मार्च पास्ट, गन कैसे पकड़ते हैं, सैल्यूट कैसे करते हैं, बात कैसे करते हैं, मेस में खाना कैसे खाते हैं, युनिफॉर्म कैसे कैरी करते हैं, कैसे चलते-उठते और बैठते हैं, हेलिकॉप्टर कैसे उड़ाते हैं, हेलिकॉप्टर उड़ाने के दौरान तमाम तकनीकी चीजें कहां होती हैं। इन तमाम चीजों की जानकारी शायद मुझे कभी मिलती ही नहीं। मुझे ऐसे लग रहा था कि एक साल से मैं किसी और की जिंदगी जी रही थी, अभी मैं वापस आई हूं। आज मैं हेलिकॉप्टर उड़ाना सीख गई हूं, इतना सीख गई हूं कि एक को-पायलट के साथ हेलिकॉप्टर उड़ा सकती हूं।

अपने आपको फिट रखने के लिए कितनी देर तक जिम में वर्कआउट करती हैं?
मेरा जिम में वर्कआउट करना, उस बात पर निर्भर करता है कि मैं कौन सी फिल्म में काम कर रही हूं। जैसे फिल्म ‘गुंजन सक्सेना’ के दौरान मुझे अपना वजन 5 किलो बढ़ाना पड़ा तो मैं जिम में बहुत कम जाती थी। फिल्म के सेकंड भाग के लिए मुझे बॉडी का अपर बढ़ाना पड़ा उसके लिए मैं एक घंटे जिम और एक घंटे ट्रेनिंग करती थी। उसके बाद फिल्म ‘रूही आफ्जाÓ के लिए मुझे बहुत ही ज्यादा वजन घटाना पड़ा, उसके लिए मैं कार्डियो बहुत ज्यादा करती थी और खाना बहुत काम कहती थी। फिल्म ‘दोस्ताना’ के लिए मुझे बहुत फिट दिखना था, तब मैं हफ्ते में 8 बार जिम जाती थी।

आपको किस तरह की फिल्में पसंद हैं?
मुझे हर तरह की फिल्में पसंद हैं, फिल्म जो आपका दिल छुए। खास तौर पर पुरानी फिल्में मुझे बहुत ज्यादा पसंद हैं। जैसे आज तो मैं दीपिका पादुकोण और रणबीर कपूर स्टारर फिल्म ‘तमाशा’ देख रही थी।

ऐक्ट्रेस बनने के बाद आपकी लाइफ में किस तरह का बदलाव आया है?
मेरा कॉन्फिडेंस बहुत बढ़ गया है। लोग मेरी मम्मी के बारे में कहते थे कि वह बहुत शर्मीली थीं, ज्यादा बात नहीं करती थीं, अपने आपमें ही रहती थीं, मैं भी बिल्कुल उसी तरह थी, लेकिन इस प्रोफेशन में मुझे बहुत सारे लोगों के साथ बातचीत करनी पड़ी तो बहुत ओपनअप हो गई हूं। मुझे यह भी पता चल गया है कि मैं किस तरह की इंसान हूं और किस तरह की इंसान बनना चाहती हूं, इस बात में ज्यादा स्पष्टता आ गई है। इन सब बातों के अलावा भी कई बदलाव आ गए हैं, जिस तरह से पहले घूमती-फिरती थी, अब वह आजादी नहीं रही।

अपनी स्किन को ग्लोइंग बनाए रखने के लिए आप क्या करती हैं?
पानी बहुत पीती हूं, नाश्ते के दौरान जो भी फल बच जाता है, वह मिक्सी में पीस कर चेहरे में लगा लेती हूं। कल सुबह मैं पपीता खा रही थी, अब जो लास्ट में कुछ पीस बच गए वह मैंने चेहरे पर लगा लिया। सीजनल फ्रूट्स जो भी होते हैं, वह आप चेहरे पर लगा सकते हैं, लेकिन यह आपके स्किन टाइप पर भी होता है, जैसे मेरी बहन खुशी यह फ्रूट्स नहीं लगा पातीं हैं, क्योंकि उनकी स्किन बहुत ज्यादा ही ऑयली है और विंटर में बहुत ड्राई हो जाती है, ऐसे में जब वह आलू, पपीता या स्ट्रॉबेरी लगाने की कोशिश करती हैं तो उसके चेहरे पर रिएक्शन हो जाता है। कच्चा दूध एक ऐसी चीज है, जो हर स्किन टाइप को सूट करता है, बहुत सूदिंग है, तो कॉटन को दूध में डूबोकर हल्के से चेहरे पर लगाना अच्छा होता है।

ऐसा क्या है, जो आप अपने बैग में हमेशा रखती हैं?
लिब बॉम और फोन, क्योंकि मेरे होंठ बहुत ड्राई हैं, तो मैं थोड़ी-थोड़ी देर में बॉम अप्लाय करती रहती हूं।

आप अपना कॉम्पटीटर किसे मानती हैं?
खुद को, देखिए कन्टेम्परेरी से बहुत कुछ सीख सकती हूं मैं, उनको देखकर आगे भी बढ़ सकती हूं, लेकिन मेरा यह मानना है कि हम सभी में कुछ ऐसा है, जो हर किसी के अंदर ही है, मतलब वह एक-दूसरे में नहीं है। हां, मैं हर चीज सीखना चाहती हूं, हर चीज में आगे बढ़ना चाहती हूं और ऑफकोर्स मैं नंबर 1 होना चाहती हूं, लेकिन उसके लिए फोकस और ग्रोथ सबसे ज्यादा जरूरी है। मेरे लिए यह सबसे ज्यादा मायने रखता है कि मैं आज अपनी पिछली फिल्म से, पिछले सीन से या फिर पिछले दिन से भी ज्यादा अच्छा परफॉर्म करूं। हां मैं अपने डांस, कला और अभिनय में इतनी जानकारी रखना चाहती हूं कि हर समय एक कलाकार के रूप में एकदम तैयार रहूं।

आपके साथ फिल्म इंडस्ट्री में आईं, सारा अली खान, अनन्या पांडे और तारा सुतारिया की अपेक्षा इस समय सबसे ज्यादा फिल्में आपके पास हैं, कैसे देखती हैं इस प्रतियोगिता को?
सच कहूं तो मेरी अब तक सिर्फ एक ही फिल्म ‘धड़कÓ ही रिलीज़ हुई है, जबकि मैंने अपना डेब्यू सबसे पहले किया था। अनन्या, तारा और सारा की 2-2 फिल्में रिलीज़ हो चुकी हैं। मैं इस बीच बस काम करने में जुटी थी। मुझे लगता है हम सबको अपनी-अपनी जगह मालुम है, हमारे बीच हैल्दी कॉम्पटीशन भी है, हम सभी बहुत सेक्योर भी हैं और हम सब कहां जाना चाहते हैं, वह भी अच्छी तरह समझते हैं।

आपके लिए नंबर 1 होने का मतलब क्या है?
नंबर 1 होना हर इंसान के लिए अलग मीनिंग होता है, किसी के लिए नंबर 1 होने का मतलब है कि वह सिर्फ एक डायरेक्टर के साथ काम करे, किसी के लिए उनका बॉक्स ऑफिस कलेक्शन मायने रखता है, लेकिन मेरे लिए नंबर 1 होना कुछ और है। मैं पूरे भारत देश का प्यार चाहती हूं, देश भर के दर्शकों को ऐसा लगना चाहिए कि मैं उनकी फेवरेट हूं, उनकी बेटी हूं, उनकी बहन हूं, उनकी लवर हूं, मैं अपने लोगों से बहुत प्यार करती हूं, मुझे उनका प्यार चाहिए।

अब तक आपने 4 फिल्मों में काम कर लिया, किस डायरेक्टर के साथ आपकी सबसे अच्छी दोस्ती है?
मेरी पहली फिल्म के निर्देशक शशांक खेतान के साथ मेरा रिश्ता फादर-डॉटर जैसा है, उन्होंने मुझे अपनी फिल्म में डायरेक्ट किया था, अगर दोस्ती किससे है पूछ रहे हैं तो फिल्म ‘गुंजन सक्सेना’ के निर्देशक शरन शर्मा मेरे सबसे घनिष्ठ दोस्त हैं। अगर 3 बजे रात में भी मैं किसी दुविधा में हूं, तो मैं उन्हें कॉल करूंगी और वह मेरी दुविधा सुलझा देंगे। उनके साथ मेरी गहरी दोस्ती है, हर रोज मेरा उनसे मिलना या बात करना जरूरी हो गया है, यह जो गुंजन सक्सेना का सफर था, इस सफर के दौरान हम बहुत करीब आ गए, दूसरे को बहुत समझने लगे हैं, व्यक्तित्व के तौर पर और क्रिएटिवली भी।

क्या फिल्म इंडस्ट्री में सच्ची दोस्ती होती है?
मुझे नहीं पता फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी सच्ची दोस्ती होती है या नहीं, लेकिन शरन को मैं कभी भी छोड़ने वाली नहीं हूं, उनको मुझसे कभी भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। करण जौहर और शशांक को भी मुझसे छुटकारा नहीं मिलने वाला है, जितने भी लोग मेरे करीब हैं उनको पता है कि मैंने जिसे पकड़ लिया है, उनको छोडूंगी कभी नहीं।

तो आप अपने निर्देशक दोस्तों और करण जौहर को कहती हैं, जो भी कहानी आप लिखेंगे या कहीं से आपके पास आएगी, पहले मुझे कास्ट करना?
नहीं-नहीं, ऐसा नहीं है, वह बहुत बड़े फिल्म निर्माता हैं, फिल्म की कास्टिंग तो स्क्रिप्ट के हिसाब से होगी, कास्टिंग तो कहानी की मांग के हिसाब से आगे बढ़ेगी। शरन को तो मैं यह बोलती हूं कि उनकी हर फिल्म का हिस्सा मुझे होना है, चाहे मैं उनकी फिल्म की असिस्टेंट वाली टीम में ही क्यों न रहूं। देखिए फाइनली हर सिनारियो में सबसे महत्वपूर्ण फिल्म होती है, यदि मैं फिल्म के किसी रोल में फिट नहीं बैठती हूं तो मैं फिल्म की अच्छाई को ध्यान में रखते हुए, उस फिल्म का हिस्सा नहीं बनना चाहूंगी, लेकिन रोल में फिट बैठती हूं, तब तो शरन के सर पर सवार हो जाऊंगी कि वे मुझे कास्ट करें, वरना सर पर बैठकर तांडव करूंगी, जब तक वह फिल्म मुझे मिले न।

एक बहुत बड़ी फिल्म जिसमें शाहरुख, सलमान, अमिताभ बच्चन जैसे स्टार हों और आपको उस फिल्म में एक छोटा सा रोल मिले तो आप करेंगी?
मुझे किसी भी फिल्म में अपने छोटे-बड़े रोल से कोई फर्क नहीं पड़ता है, किरदार क्या कहना चाहता है, स्क्रिप्ट में कितना मायने रखता है, कितना स्कोप है और कितने मजेदार सीन हैं, उसके मुताबिक मैं अपना निर्णय लूंगी।

आप चारों भाई-बहनों में सबसे ज्यादा बातूनी कौन है?
बहनों में सबसे ज्यादा मैं बातूनी हूं और अगर हम चारों की बात हो तो अर्जुन भैया सबसे ज्यादा बोलते हैं। खुशी और अंशुला दीदी काफी सिमिलर हैं। अर्जुन भैया के पास बहुत समझ है, हर चीज के बारे में, वह बहुत अच्छे इंसान हैं, इसलिए हर किसी के लिए अच्छा चाहते हैं, वैसे वह बिल्कुल पापा की तरह हैं। ज्ञान का भंडार भी पापा की तरह है अर्जुन भैया के पास, वह जो भी बोलते हैं, करते हैं दिल से करते हैं। बहुत फनी भी हैं, उनका सेंस ऑफ ह्यूमर सबसे बेस्ट है, आप उनसे किसी भी विषय पर बात कर लीजिए, उनका चीजों को समझने और देखने का नजरिया सबसे अलग और बेहतर है।

किस मेल ऐक्टर के साथ अब आगे काम करने का सपना है?
पंकज त्रिपाठी के साथ काम करना चाहती थी तो फिल्म ‘गुंजन सक्सेना’ में हो गया, राजकुमार राव के साथ काम करना था, तो ‘रूही आफ्जा’ में हो गया और रणवीर सिंह के साथ काम करना चाहती थी तो वह फिल्म ‘तख्तÓ के जरिए पूरा हो रहा है। अब मुझे रणबीर कपूर के साथ काम करना चाहती हूं।

गृहलक्ष्मी के रीडर्स को क्या कहेंगी?
आइसक्रीम खाते रहो हा…हा…हा…, मुझे कुछ गिफ्ट करना हो तो आइसक्रीम देना हा…हा…हा…, जोक्स अ पार्ट, अपने काम पर पूरा ध्यान दें, जरूरी है कि अपने पैरों में खड़े रहें, खुद की खुशी खुद के हाथों में हैं, माता-पिता को हमेशा खुश रखो, जिंदगी में यह बातें सबसे जरूरी है।
पैसा नहीं प्यार चाहिए – जाह्नïवी का कहना है फिल्मों की असली सफलता उसकी कमाई नहीं, बल्कि उसके लिए फैंस का मिला प्यार है।
स्किन केयर टिप्स- जाह्नïवी का कहना है कि वह बचे फलों का स्क्रब बनाकर चेहरे पर लगाती हैं। इससे त्वचा को एंटी ऑक्सीडेंट्स मिलता है, जिससे स्किन हैल्दी बनती है।

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