निर्देशक- जॉन फेवरोऊ

कलाकार- नील सेठी

अवधि- 1 घंटे 47 मिनट

 

 

 

 

 

 ‘द जंगल बुक’ पर पहली बार डिज़नी ने साल 1993 में टेलीविज़न के लिए एनिमेटेड सीरीज़ बनाई थी और अब डिज़नी ने रुडयार्ड किपलिंग की इस बुक को कुछ ऐसे परोसा है कि न सिर्फ आज के बच्चे, बल्कि 90 के दशक के वे बच्चे जो अब पैरेन्ट्स बन चुके हैं, उन्हें भी ये फिल्म बेहद भा रही है। इस फिल्म की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगा लें कि दिल्ली-एनसीआर में वीकेंड पर फिल्म के टिकट्स न ऑनलाइन मिल रहे थे, न खिड़कियों पर । ऐसे में लोग एक सीट बुक करने के लिए रिक्वेस्ट करने से भी पीछे नहीं हट रहे थे।

कहानी-  फिल्म की कहानी तो वही है, लेकिन इसकी प्रस्तुति नई है। फिल्म में ‘क्या होगा’ दिखाने की जगह ‘कैसे होगा’ पर ज्यादा जोर दिया गया है। फिल्म में कहानी वहां से शुरू होती है जब मोगली इंसानों से मिलने की अपनी यात्रा शुरू करता है। जंगल के बाकी जानवर तो मोगली की मौजूदगी को स्वीकार कर चुके हैं, लेकिन शेर खान उससे नफरत करता है क्योंकि मोगली उसे इंसानों के साथ उसके खुद के मुठभेड़ की याद दिलाता है।

कलाकार- फिल्म में मोगली यानी नील सेठी को छोड़कर बाकी सभी किरदार ऐनिमेशन से बनाऐ गऐ हैं । भालू बालू को इऱफान खान की आवाज़ ने पर्दे पर जीवंत कर दिया है। नील सेठी के साथ बालू की यात्रा को स्पेशल इफेक्ट्स से इतना रोमांचक बना दिया गया है कि आप पर्दे से नज़र नहीं हटा पाएंगे। बता दें कि इस फिल्म के लिए निर्देशक जॉन फेवरोऊ ने नील को दुनियाभर के हजारों कलाकारों का ऑडिशन लेने के बाद चुना था और फिल्म देखकर आप मान जाएंगे कि नील के अलावा ये रोल कोई और नहीं कर सकता था। 

इंडिया में इस फिल्म की सफलता का श्रेय फिल्म के स्पेशल इफेक्ट्स और कहानी की प्रस्तुति के अलावा फिल्म में आवाज़ देने वाले कलाकारों को भी जाता है। इऱफान खान के अलावा फिल्म में प्रियंका चोपड़ा, नाना पाटेकर, शेफाली शाह और ओम पूरी ने अपनी आवाज़ों से फिल्म को और रोमांचक बना दिया है। 

फिल्म का गाना ‘जंगल जंगल पता चला है ‘ 90 के दशक के बच्चों की जुबान पर आज भी चढ़ा हुआ है, लेकिन इस गीत को दुबारा विशाल भारद्वाज ने गुल्जार के साथ मिलकर फिल्म के अनुरूप बनाया है।

निर्देशन-  इस फिल्म को भारतीय सेंसर बोर्ड ने यू/ए का सर्टिफिकेट दिया है यानी इस फिल्म को देखने के लिए माता-पिता के मार्गदर्शन की जरूरत है। फिल्म के  3डी इफेक्ट्स इतने जबरदस्त हैं कि कुछ सीन्स बच्चों को वाकई डरा सकते हैं।  

फाइनल डिसिज़न-  खुद भी देखें और पूरे परिवार को दिखाएं। हां, अगर अपके बच्चे बहुत छोटे हैं या संवेदनशील हैं, तो बच्चों को 3डी की जगह 2डी फिल्म दिखाएं।

 

 

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