प्रियाल गौर उर्फ इच्छाप्यारी नागिन की इच्छा 
 
 
मैं वास्तव में सौभाग्यशाली महसूस करती हूं, क्योंकि मेरे माता-पिता ने मुझे एक स्वतंत्र लड़की बनाया है। मैं 15 वर्ष की उम्र से काम कर रही हूँ, जिसने मुझे काफी सहायता की है। माता-पिता अपनी लड़कियों को स्वतंत्र बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन हमारे समाज में महिलाओं का अभी भी समुचित सम्मान नहीं होता है। हालांकि हमारे धारावाहिक महिलाओं पर केंद्रित होते हैं, लेकिन फिर भी पुरुषों को अपने आस-पास की महिलाओं का सम्मान करने की जरूरत है। इस पीढ़ी की महिलाएं स्वतंत्र हैं और खुद पर गर्व करती हैं, लेकिन हमारे समाज के पुरुष अब भी परिवार के मुखिया के तौर पर महिलाओं से काफी आकांक्षाएं रखते हैं। मुझे यह नहीं मालूम कि महिला दिवस इस संदर्भ में वास्तव में कुछ सहायक साबित होगा, क्योंकि महिलाओं के विषय में लोगों की धारणा में कोई खास बदलाव नहीं आया है। यदि महिला आगे निकलती है तब पुरुष असुरक्षित महसूस करता है, चाहे कॅरियर का मामला हो अथवा पैसा कमाने की बात हो, उनमें असुरक्षा का भाव देखा जा सकता है।
 
 

 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
ऐश्वर्या सखूजा उर्फ त्रिदेवियां की धनुश्री 
 
 
 
 
हम महिलाओं को सेलिब्रेट करने के लिए एक दिन समर्पित करना यह स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि हमारे समाज में अब भी समानता नहीं है। हमें महिला दिवस की आवश्यकता क्यों है? हम हर समय महिलाओं को स्पेशल तरीके से ट्रीट क्यों नहीं करते हैं। समानता तो हर दिन होनी चाहिए। प्रत्येक महिला को यह समझना चाहिए कि महिला सशक्तीकरण उनके अंदर ही मौजूद है। उन्हें यह विश्वास करने की आवश्यकता है कि वह जो चाहे, कर सकती हैं और आगे बढ़ कर अपनी उम्मीदों से भी बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं। आप को यह समझने की आवश्यकता है कि मामला यह नहीं है कि कौन अधिक शक्तिशाली है और कोई भी एनजीओ आप की तब तक सहायता नहीं कर सकता जब तक कि आप अपनी सहायता नहीं करना चाहेंगी। यहां तक कि टीवी इंडस्ट्री में भी हमें ‘सास-बहू’ ड्रामा को प्रदर्शित करना बंद कर देना चाहिए, जहां पर यह दिखाया जाता है कि जब मुख्य नायिका चाय में चीनी डालना भूल जाती है तो उसके साथ कैसा खराब व्यवहार किया जाता है। हमें महिलाओं को कमजोर एवं निरीह दिखाना बंद कर देना चाहिए।
 

 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
शोमा आनंद उर्फ यारों का टशन की दादी 
 
 
 
 
मैं यह समझती हूं कि महिला दिवस मनाना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमें गर्व महसूस करना चाहिए एवं अपनी सफलता के लिए एक दिन को सेलिब्रेट करना चाहिए। भारत में महिलाएं प्रगति कर रही हैं। इन्होंने अपनी स्वयं की पहचान बनायी है और वे भारत की बेहतरी की दिशा में पूरी मजबूती से आगे बढ़ रही हैं। यहां तक कि हमारी इंडस्ट्री में भी ऐसे शोज हैं, जो नारी सशक्तीकरण को प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन सीरियल्स में कुछ चटपटी नाटकीयता को प्रदर्शित किया जाता है, जिसे मैं समझती हूँ कि जल्द से जल्द बंद किया जाना चाहिए। मेरा मानना है कि प्रत्येक महिला को अपने जीवन में दूसरी महिलाओं की इज्जत करनी चाहिए और जब आवश्यकता हो तब जरुरतमंद महिला की सहायता करनी चाहिए, तब जाकर असली सशक्तीकरण संभव हो सकेगा। 
 

 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
अदिति सजवान उर्फ चिड़ियाघर की कोयल 
 
 
 
 
मैं समझती हूं कि महिला दिवस को कुछ ज्यादा ही तूल दिया जाता है। यदि हम वर्तमान स्थिति पर गौर करें, तो हम महिला सशक्तीकरण, नारी शिक्षा व महिला अधिकारों के मामले में अब भी पिछड़े हुये हैं। हमारे देश में महिलाएं अपने पुरुषों पर आर्थिक रुप से निर्भर करती हैं। उन्हें अपने आत्म-सम्मान के लिए आर्थिक रुप से अपने पैरों पर खड़ा होना होगा। दूसरी बात यह है कि महिलाओं एवं पहनावे के प्रति समाज का नजरिया अब भी नहीं बदला है। हमें अब भी हमारे पहनावे, हमारे व्यवहार करने के तरीके के अनुसार जज किया जाता है तथा यदि कोई बात होती है तब हमारे ऊपर ही लांछन लगाया जाता है। हमारी इंडस्ट्री में अभिनेत्रियों को पर्याप्त स्वतंत्रता प्रदान की गयी है, लेकिन इस प्रकार की स्वतंत्रता को पर्दे पर नहीं प्रदर्शित किया जाता है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि पुरुषों को यह समझाया जाए कि हर व्यक्ति बराबर होता है। प्रत्येक महिला को अपने अधिकरों के लिए पूरी ताकत से खड़ा होना चाहिए एवं अपने उत्साह को शिखर पर रखना चाहिए। मैं यह कामना करती हूं कि वे अपने क्षेत्र में पूरी मजबूती से अपनी बात रखें एवं अपने आप को अनूठा बनाएं। और यह केवल शिक्षा के माध्यम से ही संभव हो सकता है।
 
 
 
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