मैं अपनी पुस्तक के लोकार्पण समारोह के सिलसिले में मध्य प्रदेश गई हुई थी। वहां एक परिवार ने मुझे बताया कि उन्होंने अपनी साफ्टवेयर इंजीनियर बेटी की शादी पास के ही शहर में की थी। शादी के बाद से ही ससुराल वालों ने उसे तंग करना शुरू कर दिया। लड़की के पति व ससुराल वालों ने उसे उसके माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्यों से मिलने-जुलने पर पाबंदी लगा दी। जब वह लड़की के ससुराल में फोन करते हैं, लड़की के सास-ससुर कह देते हैं कि वह फोन पर बात नहीं कर सकती और फिर फोन पटक देते हैं। उन्होंने मुझे बताया कि वह अपनी बेटी की खबर न पाकर परेशान हैं और खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। वह नहीं जानते कि ऐसे हालात में वे क्या करें, किससे सलाह लें, कौन उनकी सहायता करेगा? उनकी करुणामयी पुकार ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया।
मैंने अपने मोबाइल फोन से उस लड़की के ससुराल में फोन किया और अपना परिचय देते हुए लड़की से बात करने को कहा। मैंने उस लड़की का नाम भी बताया, लेकिन जिस आदमी ने फोन उठाया उसने फोन किसी दूसरे व्यक्ति को थमा दिया। मैंने पुन: अपना परिचय दिया और कहा मैं काफी दूर से बोल रही हूं और मुझे उनकी बहू को उसके माता-पिता का संदेश देना है। मेरे पूछने पर उस व्यक्ति ने अपने आपको उस लड़की का ससुर बताया। लड़की के ससुर ने बड़ी ही अभद्रता से मेरा फोन काट दिया। मैं समझ गई कि लड़की के माता-पिता का डर निराधार नहीं है और ससुराल में लड़की की स्थिति ठीक नहीं है।
दिल्ली लौटने पर मैंने लड़की के ससुराल फोन मिलाया। लड़की के पति ने ही फोन उठाया। उसने अपने आपको बाहर का व्यक्ति बताया और लड़की को संदेश देने से मना कर दिया, फिर गुस्से में फोन पटक दिया। मैंने फिर फोन मिलाया। इस बार उसने कुछ नर्मी दिखाते हुए मेरा फोन नंबर लिखा और कहा कि लड़की घर पर नहीं है। एक घंटे बाद मैंने दोबारा फोन किया। इस बार लड़की के ससुर ने फोन उठाया और कहा कि लड़की के आने पर वह मेरा संदेश पहुंचा देगा। मैंने लड़की को स्वयं संदेश देने की इच्छा जताई। इस पर उसने साफ इनकार कर पूछताछ शुरू कर दी कि मैं उससे क्यों बात करना चाहती हूं और इस मामले में क्यों दखलंदाजी कर रही हूं। मैंने खुद को मामले से संबंधित एक सरकारी अधिकारी बताया तो उसने फिर फोन काट दिया। तभी मुझे पता चला कि लड़की के माता-पिता को अपनी शिकायत वापस लेने की धमकियां दी जा रही थीं। इन धमकियों से लड़की के माता-पिता घबरा गए और उन्होंने रात ही में रेल से लड़की के ससुराल जाने की योजना बना ली। जाने से पूर्व उन्होंने मुझे फोन किया तो मैंने उन्हें पुलिस स्टेशन से सहायता लेकर लड़की के ससुराल जाने की सलाह दी। उन्होंने ऐसा ही किया। वह पुलिस के साथ लड़की के ससुराल पहुंचे, लेकिन लड़की के ससुराल वालों ने उन्हें घर के अंदर नहीं आने दिया।
तब लड़की के माता-पिता ने घर के बाहर से ही लड़की से बात की तो उसका पति बिचौलिए की भांति बीच में खड़ा रहा। बातचीत के दौरान लड़की ने अपने माता-पिता को अपने तीन महीने की गर्भावस्था के बारे में बताया और कहा कि उसके सास-ससुर उसके माता-पिता को पसंद नहीं करते। उनकी नापसंदगी काफी गंभीर है, जो शायद ही खत्म हो पाए। उसने बताया कि उसकी सास काफी तेज मिजाज की है चूकि वह अभी मां बनने वाली है, इसीलिए घर में शांति बनाए रखने के लिए वह अपनी सास की बात मानने को मजबूर है। उसने यह भी कहा कि वह उनसे संपर्क करने में भी असमर्थ है। लड़की की मां ने उसे समझाया कि उन्होंने उसे कमजोर पड़ जाने के लिए शिक्षित नहीं किया था। लड़की के पास इसका कोई जवाब नहीं था। इसके बाद लड़की के माता-पिता ने मुझसे शिकायत वापस लेने का अनुरोध किया। मुझे गुस्सा आ गया। मैं स्वयं एक महिला हूं और मैंने तथाकथित शिक्षित लड़कियों की मानसिकता को भी भलीभांति देखा है। ऐसे मामलों में लड़कियां शिक्षित होने के बावजूद ससुराल छूटने के डर से घर में ही कैदी बनकर रह जाती हैं, भले ही उनका अपना घर छूट जाए। वह स्वच्छंदता और स्वतंत्रता से डरती हैं। तब उनके अभिभावक असहाय हो जाते हैं। शादी के बाद वह अपनी लड़की को भुला देने को मजबूर होते हैं। दूसरी ओर लड़कियां भी अपने माता-पिता और परिवार के सदस्यों को भूल जाती हैं। ऐसी स्थिति में लड़कियों को शिक्षित करने के प्रयास तथा आधुनिकता निरर्थक साबित हो जाती है। आश्चर्य नहीं बल्कि कटु सत्य है कि आज भी लड़कियों को पसंद नहीं किया जाता। आज भी वह अनचाही मानी जाती हैं। इसमें गलती हमारी ही है।
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