Chanakya – India's leading economist
Chanakya – India's leading economist

चाणक्य भारतीय इतिहास के महान व्यक्तियों में से हैं। वे सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के सलाहकार व प्रधानमंत्री थे। वे तक्षशिला विश्वविद्यालय में आचार्य थे व वाणिज्य, अर्थशास्त्र तथा दूसरे विषयों में विशेषज्ञता के लिए जाने जाते थे। चाणक्य को कौटिल्य व विष्णुगुप्त शर्मा नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 370 ई. पू. में हुआ। उन्हें भारत का अग्रणी अर्थशास्त्री होने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने भारत को अर्थशास्त्र व नीतिशास्त्र जैसे दो महान ग्रंथ दिए। चंद्रगुप्त मौर्य की सहायता से, चाणक्य ने नंद राजाओं को हटाकर मौर्य वंश की स्थापना की।

चाणक्य का जन्म बिहार, पटना के एक ब्राह्मण परिवार में, 370 ई. पू. में हुआ। उनके पिता आचार्य ‘चणक’ एक शिक्षक थे। वे अपने पुत्र को भी श्रेष्ठ शिक्षा दिलवाना चाहते थे। चाणक्य ने तक्षशिला से शिक्षा ग्रहण की जो शिक्षा व संस्कृति का प्राचीन केंद्र था। उन्होंने अल्पायु में ही कठिन माने जाने वाले वेदग्रंथ भी कंठस्थ कर लिए थे। बचपन से ही उनकी रुचि राजनीति विज्ञान में थी। उनके स्वभाव में ही असाधारण बुद्धिमता व चतुराई झलकती थी। उन्हें अर्थशास्त्र के विषय से भी लगाव था।

Birth and early years of Chanakya
Birth and early years of Chanakya

शिक्षा पूरी करने के बाद चाणक्य तक्षशिला में ही पढ़ाने लगे। वे चाहते थे कि शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो, ताकि उससे सभी लाभ पा सकें। वे एक आदर्श शिक्षक थे। शीघ्र ही उनकी गिनती अपने समय के योग्य व लोकप्रिय आचार्यों में होने लगी। उनके शिष्य राजसी परिवारों से थे इसलिए उन्हें देश की राजनीतिक हलचल का भी पता चलता रहता था। एक बार चाणक्य को पता चला कि भारत पर विदेशी आक्रमण का भय था। यूरोप के महान योद्धा सालुक की सेनाएं हमले की तैयारी में थीं। वहीं दूसरी ओर पाटलिपुत्र का धनानंद प्रजा पर अत्याचार कर रहा था। पड़ोसी देश भी भारत के दुर्बल क्षेत्रों पर कब्जे की चाल में थे। देश के बाहरी व भीतरी हालात को देखते हुए चाणक्य ने तय किया कि वे अध्यापन छोड़कर राष्ट्र के लिए कुछ करेंगे। यह विचार मन में आते ही, वे तक्षशिला छोड़कर पाटलिपुत्र रवाना हो गए।

Birth and early years of Chanakya
birth and early years od chanakya

पाटलिपुत्र (वर्तमान में पटना) का समृद्ध राज्य अपनी महान संस्कृति के लिए प्रसिद्ध था। यह एक वाणिज्यिक केंद्र भी था। वहां विद्वानों व कलाकारों का स्वागत किया जाता। चाणक्य ने पहला अभियान वहीं से आरंभ किया। पाटलिपुत्र का शासक धनानंद एक क्रूर राजा था। वह धन बटोरने के लिए प्रजा से भारी कर लेता। चाणक्य पाटलिपुत्र की दशा देख दुखी हो उठे। उन्होंने राजा द्वारा बनाई एक परिषद् में नियुक्ति ली जो कल्याणकारी कार्यों की देखरेख करती थी।

Chanakya in Pataliputra
Chanakya in Pataliputra

उस संघ में नगर के प्रभावशाली लोग व विद्वान शामिल थे। चाणक्य को बाद में संघ का अध्यक्ष बना दिया गया। इस सिलसिले में उन्हें कई बार राजा से मिलना पड़ता। वे दूसरे दरबारियों की तरह राजा को प्रभावित करने का प्रयास नहीं करते थे। हमेशा साफ व दो टूक बात करते। राजा को चाणक्य का यह रूखा व खरा स्वभाव सहन नहीं होता था। उसने उन्हें अकारण ही उनके पद से हटा दिया। चाणक्य क्रोधित हो उठे। राजा ने सैनिकों को आदेश दिया कि उन्हें महल से बाहर फेंक दिया जाए। इसी धक्का-मुक्की के बीच चाणक्य के बालों की शिखा (चोटी) खुल गई। चाणक्य ने अपमानित होकर संकल्प लिया कि वे नंद वंश का नाश करने तक शिखा नहीं बांधेंगे।

Chanakya in Pataliputra
Chanakya in Pataliputra

पाटलिपुत्र की सड़कों से जाते समय क्रोधित चाणक्य का पांव घास में जा उलझा। उन्होंने गुस्सा निकालने का सही उपाय सोच लिया। वे बैठकर घास को जड़ से उखाड़ने लगे। तभी उन्होंने पास ही कुछ लड़कों को खेलते हुए देखा। उनमें से एक लड़का राजा व दूसरे दरबारी-प्रजा बने हुए थे। राजा बना लड़का प्रजा की समस्याएं सुनता व उनके हल सुनाता। चाणक्य लड़के की न्यायशक्ति व बुद्धिमता से प्रसन्न हुए। उसके पास जाकर पूछा- ‘‘कौन हो तुम?’’ ‘‘महोदय, मैं चंद्रगुप्त हूं।’’ लड़के ने कहा। चंद्रगुप्त ने चाणक्य को अपने परिवार व जीवन की पृष्ठभूमि के बारे में सब कुछ बता दिया।

Meeting of Chanakya and Chandragupta
Meeting of Chanakya and Chandragupta

उसने कहा: ‘‘राजा नंद बहुत ही क्रूर एवं अन्यायी है। उसने मेरे माता-पिता पर बहुत अत्याचार किया है। अब मैं उससे बदला लेना चाहता हूं।’’ राजा धनानंद भी एक नंद राजा था व चाणक्य उससे बदला लेना चाहते थे। उन्होंने चंद्रगुप्त को अपने साथ मिला लिया। उन्होंने नंद वंश का नाश करने व पाटलिपुत्र की गद्दी पर चंद्रगुप्त को बिठाने की प्रतिज्ञा ली। फिर चाणक्य उस बालक को लेकर अपने आश्रम आए और उसे शस्त्र-शास्त्र में पारंगत करके मगध का राजा बनाया।

Meeting of Chanakya and Chandragupta
Meeting of Chanakya and Chandragupta

मगध साम्राज्य का उत्तरदायित्व निभाते हुए भी चाणक्य का लेखन चलता रहा। उन्होंने राजनीति व प्रशासन पर ‘अर्थशास्त्र’ नामक ग्रंथ लिखा। इस ग्रंथ में आर्थिक नीतियों, अंतर्राष्ट्रीय सामरिक नीतियों व युद्धकौशल का विराट विवरण है।

Great works of Chanakya
Great works of Chanakya

यह पुस्तक पूरे संसार में लोकप्रिय हुई। कई भारतीय व यूरोपीय भाषाओं में इसका अनुवाद भी किया गया है। उन्होंने चाणक्य नीति की रचना भी की। इसमें आदर्श जीवन जीने के सूत्र दिए गए हैं। उन्होंने 570 नीतिसूत्र रचे, जिनमें से 216 राजनीति विषय पर हैं। राष्ट्र के प्रति असंख्य योगदानों में से एक यह रहा कि उन्होंने मौर्य साम्राज्य को प्रशंसनीय बना दिया।

Great works of Chanakya
Great works of Chanakya

लोकप्रिय किवंदती के अनुसार, चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के भोजन में अल्पायु से ही जरा-सा विष मिलाते थे ताकि उस पर किसी भी तरह के विष का घातक प्रभाव न हो क्योंकि उन दिनों प्रायः राजाओं को विष देकर मारने की कुचालें रची जाती थीं। चाणक्य के मन में कोई दुर्भाव नहीं था किंतु एक दिन गलती से, राजा की गर्भवती पत्नी दुरधरा ने उस भोजन को चख लिया।

Last years of Chanakya's life
Last years of Chanakya’s life

चाणक्य को पता चला तो वे गर्भ में पल रहे शिशु के लिए चिंतित हो उठे। उन्होंने झट से रानी की शल्यक्रिया (चीर-फाड़ द्वारा इलाज) की एवं शिशु को सुरक्षित बाहर निकाल लिया किंतु रानी पर विष का प्रभाव हो चुका था, उन्हें बचाया नहीं जा सका। राजकुमार का नाम ‘बिंदुसार’ रखा गया। बिंदुसार ने बड़े होकर राजगद्दी संभाली तो चंद्रगुप्त ने सब कुछ छोड़कर ध्यान में मन रमाया। वे श्रावण वेलागोला चले गए व वहीं पूजा-ध्यान में मग्न रहने लगे।

Last years of Chanakya's life
Last years of Chanakya’s life

वहीं उनकी मृत्यु भी हुई किंतु चाणक्य अपने पद से सेवाएं देते रहे। बिंदुसार के एक मंत्री सुबंधु को चाणक्य पसंद नहीं थे। एक दिन उसने बिंदुसार को बता दिया कि चाणक्य ही उसकी माता की मृत्यु का कारण थे। बिंदुसार ने उसकी बात पर विश्वास कर लिया व चाणक्य से बदला लेने की ठानी। चाणक्य ने यह जाना तो स्वयं ही सब कुछ त्याग दिया। अपना धन निर्धनों में बांट दिया।

Last years of Chanakya's life
Last years of Chanakya’s life

अन्न-जल त्यागकर गहन ध्यान रमा लिया। इसी दौरान बिंदुसार को अपनी धायमां से, अपने जन्म का पूरा प्रसंग पता चला। तब उसने जाना कि चाणक्य ने ही उसकी प्राणरक्षा की थी। वह उनसे क्षमा लेने भी गया किंतु चाणक्य ने अपना विचार नहीं बदला। 283 ई. पू. में, 87 वर्षीय महान चाणक्य चल बसे। बिंदुसार अपने किए पर बहुत पछताया। उसने गुस्से में आकर सुबंधु के भी प्राण ले लिए। चाणक्य की मृत्यु न केवल बिंदुसार बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए बहुत बड़ी हानि थी। चाणक्य अनेक प्रशासकों व राजाओं के आदर्श रहे हैं। उनका राजनीतिक व अर्थशास्त्र का ज्ञान अद्वितीय था।

Last years of Chanakya's life
Last years of Chanakya’s life

उनके सिद्धांतों ने हमारे देश को नया रंगरूप दिया। कुल मिलाकर भारतीय इतिहास में उनका असाधारण योगदान रहा। उनके जीवन से यही शिक्षा मिलती है कि दृढ़संकल्प के बल पर जीवन में कुछ भी पाया जा सकता है।