Daulat Aai Maut Lai Hindi Novel | Grehlakshmi
daulat aai maut lai by james hadley chase दौलत आई मौत लाई (The World is in My Pocket)

अपनी कार के नजदीक पहुंचकर जौनी थोड़ा हिचकिचाया। उसने अपनी कलाई घड़ी पर दृष्टिपात किया – नौ बजकर पांच मिनट हो चुके थे। मैलानी की आदत से परिचित होने के कारण वह जानता था कि उसे डिनर समाप्त करने में अभी और आधा घंटे का समय लगेगा। उसने सोचा, इस बीच क्यों न बर्नी शुल्ज से ही मुलाकात कर ली जाए।

वह बर्नी के पास पहुंचा। बर्नी उस समय टेलीविजन पर कोई कार्यक्रम देखने में व्यस्त है। जौनी को आया देखकर उसने टेलीविजन का स्विच ऑफ कर दिया तथा उसे बीयर पेश करने का प्रयत्न किया।

दौलत आई मौत लाई नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

परन्तु जोनी ने इंकार कर दिया और उससे सीधे-सीधे बात करना आरंभ कर दिया।

‘मैं अभी-अभी मिस्टर जोये से बातचीत करके लाया हूं मिस्टर बर्नी-तुम्हारी छुट्टी होने वाली है इस नौकरी से और तुम्हारा काम मुझे सौंप दिया गया है।’

बर्नी ने अजीब से भाव से उसकी ओर घूरा।

‘क्या कह रहे हो तुम – जरा दोहराना तो।’

जौनी ने दोबारा उसे बताया और फिर पूछा – ‘नौकरी से छुट्टी हो जाने के बाद तुम क्या करोगे मिस्टर बर्नी?’

बर्नी का चेहरा खुशी से उल्लसित हो उठा – ‘ईश्वर का धन्यवाद है जौनी कि इस नामुराद नौकरी से छुटकारा तो मिला।’

‘तुम्हें खुशी हो रही है?’

‘बेहद!’

‘क्यों? नौकरी छूटने का मलाल नहीं है तुम्हें?’

‘कतई नहीं जौनी! मैं तो कब का इस जंजाल से मुक्त होना चाहता था, परन्तु मैं स्वयं की तरफ से कोई पहल नहीं करना चाहता था – मिस्टर मसीनो की नाराजगी का भी डर था। अब वह जब स्वयं ही मुझे इस नौकरी से मुक्त कर रहे हैं तो…।’

‘अब तुम क्या करोगे?’

‘मैंने कुछ धन जमा किया हुआ है जौनी। मैं कैलीफोर्निया चला जाऊंगा। वहां मेरा साला रहता है, जिसके फलों के बगीचे हैं। मैं उसकी साझेदारी में फलों का काम आरंभ कर दूंगा। कहने को तो मुझे यहां आठ सौ डॉलर प्रति सप्ताह और एक प्रतिशत कमीशन मिलता था, किन्तु सिवा आठ सौ डॉलर के मैं कमीशन के नाम पर आज तक एक फूटी कौड़ी भी प्राप्त नहीं कर सका, क्योंकि इस हरामजादे एन्डी ने जो टारगेट रखा था वह मैं आज तक पूरा न कर सका। हां, आठ सौ डॉलर प्रति सप्ताह जरूर मिलते रहे मेरी कमरतोड़ मेहनत के एवज में।’

‘आठ सौ डॉलर प्रति सप्ताह!’

‘हां।’

क्रोध से जौनी की आंखें जल उठीं और मसीनो ने तो उसे सिर्फ चार सौ डॉलर प्रति सप्ताह नियुक्त किया है, यानि बर्नी से चार सौ डॉलर कम पर और कमीशन की बात तो बकौल बर्नी के एक सपना मात्र थी, क्योंकि जब बर्नी जैसा तजुर्बेकार व्यक्ति भी कमीशन के नाम पर एक फूटी कौड़ी तक न ले सका था तो वह…

गुस्से की एक जबरदस्त लहर जौनी के मस्तिष्क में उठी, किन्तु उसने किसी तरह से उसे दबा दिया। उसके मस्तिष्क में मसीनो द्वारा कहे गए वाक्य गूंजने लगे-

तुम मेरे सर्वाधिक विश्वस्त व्यक्ति हो -तुमने तीन-तीन बार मेरे प्राणों की रक्षा की है। अतः तुम्हारी सेवाओं का पुरस्कार मिलना ही चाहिए। तो यह पुरस्कार दिया है उस सूअर की औलाद ने।

कोई बात नहीं, अगर मेरे एहसानों का वह इस प्रकार बदला दे सकता है तो मैं भी उसे ऐसा सबक सिखाऊंगा कि वह वर्षों याद रखेगा।

‘किस सोच में डूब गए जौनी?’

‘आं …कुछ नहीं मिस्टर बर्नी – मैं सोच रहा था कि बकौल तुम्हारे अब तुम स्वच्छंद जीवन व्यतीत करोगे – किसी का भी बन्धन नहीं होगा तुम्हारे ऊपर।’

‘हां।’

‘गुडलक मिस्टर बर्नी! ईश्वर तुम्हारे अरमान पूरे करे। जाने से पहले मुझे मशीनों आदि का काम समझाते जाना।’

‘श्योरे जौनी।’

‘बाई द वे मैं चलता हूं।’

ऊपर से मुस्कराहट का प्रदर्शन करता और मन ही मन जलता-भुनता जौनी बर्नी के घर से बाहर निकल आया।

बाहर आकर उसने अपनी कार स्टार्ट की और उसे सड़क पर दौड़ा दिया।

अब उसका रुख मैलानी के अपार्टमेंट की ओर था।


दूसरे दिन को सुबह मैलानी तो अपने काम पर चली गई और वह अपने अपार्टमेंट में चला गया। घर आकर उसने नाश्ता तैयार किया और अभी वह नाश्ता आरंभ करना ही चाहता था कि टेलीफोन की घंटी बज उठी।

मन ही मन कुढ़ते हुए उसने टेलीफोन उठाया। दूसरी ओर से बोलने वाला एन्डी लुकास था।

मुझे मिस्टर मसीनो से अभी-अभी मालूम हुआ है कि तुम बर्नी की जगह लेने वाले हो। तुम बर्नी के पास आज ही चले जाओ और उससे आवश्यक जानकारी हासिल कर लो, आपस में विचार-विमर्श के बाद जरूरी बातों के अलावा तुम सम्बन्धित व्यक्तियों की भी जानकारी कर लो।’

ठीक है – ‘मैं चला जाऊंगा।’

‘और सुनो, सुनो।’ एन्डी के स्वर में कटुता थी – ‘बर्नी हमेशा मुझसे झूठ बोलता रहा कि वह नई मशीने लगाने का भरसक प्रयत्न करता रहा। लेकिन मुझे उम्मीद है कि तुम बिजनेस बढ़ाने की भरसक चेष्टा करोगे। कम से कम दो सौ मशीनें और नई लगानी चाहिए। समझ गए?’

‘हां।’

‘तो ठीक है। कारोबार को अच्छी तरह से समझने के लिए बर्नी से मिल लेना।’ कहकर एन्डी ने सम्बंध विच्छेद कर दिया।

जौनी ने नाश्ता करना आरंभ कर दिया परन्तु जब उसकी भूख गायब हो चुकी थी, उसे हर चीज बेजायका लग रही थी।

ग्यारह बजे के कुछ देर बाद वह बर्नी के ऑफिस जाने को तैयार हो गया। ठीक उस वक्त वह ट्रैफिक के हरे सिग्नल होने का इंतजार कर रहा था, उसकी दृष्टि सैमी पर जा पड़ी। सैमी भी विपरीत दिशा से सड़क पार करने की प्रतीक्षा कर रहा था।

सैमी ने उसे देखते ही दूर ही से उसकी ओर हाथ हिलाया। जब ट्रैफिक रुक गया तो वह जौनी के समीप पहुंच गया।

‘हैलो सैमी – कैसे हो? क्या कर रहे हो आजकल?’

‘ठीक हूं मिस्टर जौनी – मुझे और क्या करना है – शनिवार का दिन है, थोड़ी – बहुत आवारागर्दी कर लूंगा बस।’ सैमी ने लापरवाही से उत्तर दिया।

जौनी भूल ही गया था कि आज शनिवार है। कल इतवार होगा और इतवार से उसे सख्त नफरत थी। दुकानें बंद रहती थीं और लोग शहर से बाहर जाने में व्यस्त रहते थे। इतवार की सुबह का वक्त वह आमतौर से अखबार पढ़ने में ही गुजार देता था और दोपहर बाद मैलानी के पास जा पहुंचता। सुबह के समय वह भी अपने आवास की सफाई इत्यादि में व्यस्त रहती थी।

‘कॉफी पीयोगे?’ जौनी ने पूछा।

‘श्योर मिस्टर जौनी-कॉफी के लिए तो मैं हमेशा तैयार हूं।’ सहसा सैमी ने बेचैनी-सी अनुभव की। जौनी के चेहरे पर छाई कठोरता के भावों ने उसे विचलित कर दिया था।

‘क्या बात है मिस्टर जौनी-कुछ परेशान से लगते हो?’

‘आओ रेस्तरां में चलकर बात करेंगे।’ जौनी उसे लेकर रेस्तरां में पहुंच गया। कॉफी के आर्डर के बाद उसने मसीनो द्वारा कही गई बातें उसे सुना दीं और आखिर में पूछा – ‘क्या तुम कार ड्राइव करना जानते हो?’

सैमी के चेहरे पर प्रसन्नता उभरी – ‘क्या यह सच है मिस्टर जौनी?’

‘हां, कहा तो उसने यही है।’

‘फिर तो मैं ड्राइवर बनना ज्यादा पसंद करूंगा।’ प्रसन्नता से ताली बजाता हुआ सैमी बोला -‘तुम्हारा मतलब है अब मुझे कलैक्शन के लिए नहीं जाना पड़ेगा।’

जौनी को अपना मुंह कड़वा-सा होता लगा। बर्नी और सैमी दोनों इस परिवर्तन से बेहद खुश प्रतीत हो रहे थे जबकि वह स्वयं दिल ही दिल में कुढ़ा जा रहा था।

‘तुम्हें यूनिफॉर्म पहनकर राल्स ड्राइव करनी होगी। समझे।’

‘समझ गया।’ कुछ पल रुककर सैमी ने पूछा – ‘काम कब से आरंभ करना होगा?’

‘अगले हफ्ते के बाद।’

सैमी का दिल बुझ-सा गया – ‘इसका मतलब आगामी शुक्रवार को भी मुझे कलैक्शन के लिए जाना पड़ेगा?’

‘हां।’

सैमी के चेहरे पर पसीने की बूंदें उभरने लगीं।

‘क्या नया आदमी इसी शुक्रवार से कलैक्शन का काम नहीं कर सकता मिस्टर जौनी – वैसे नया आदमी कौन?’

‘अभी पता नहीं है – वैसे उनतीस तारीख को कलैक्शन हमीं दोनों ने साथ करनी है। अतः अभी से इस बारे में सोचना बिल्कुल बेकार है सैमी।’ कहते हुए जौनी ने कॉफी समाप्त की और उठ खड़ा हुआ।

‘आपका क्या विचार है मिस्टर जौनी? उस दिन कोई गड़बड़ तो नहीं होगी? माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए सैमी ने पूछा।

‘घबराओ मत – कुछ नहीं होगा -’ जौनी ने उसे टालने के विचार से कहा – ‘तुम एन्डी से मिल लो – उससे कहना तुम्हें शोफर का काम करना पसन्द है। एन्डी सभी जरूरी इंतजाम कर देगा। तुम्हारा वेतन डेढ़ सौ डालर प्रति सप्ताह होगा।’

‘डेढ़ सौ डॉलर प्रति सप्ताह।’ जौनी आश्चर्य भरे विस्फारित नेत्रों से देखकर बोला।

‘हां।’ जौनी ने प्रश्नवाचक नजरों से उसे देखते हुए पूछा – ‘क्या अपनी बचत की रकम तुम अब भी अपने बिस्तर के नीचे रखते हो?’

‘हां मिस्टर जौनी – और रख भी कहां सकता हूं।’

‘यू फूल – मैंने तुम्हें सलाह दी थी कि बैंक में जमा कर दो।’

‘मैं ऐसा नहीं कर सकता मिस्टर जौनी-सैमी ने सिर हिलाकर कहा – ‘बैंक सिर्फ गोरे व्यक्तियों के इस्तेमाल के लिए है।’

जौनी ने अनिच्छापूर्वक अपने कंधे झटकाए। ‘अच्छा सैमी – फिर मिलेंगे।’

उसने कॉफी के दाम चुकाए और रेस्तरां से बाहर निकल गया।

ठीक दस मिनट के बाद वह बर्नी के ऑफिस में उपस्थित था।

बर्नी एक पुराने से डेस्क के पीछे कुर्सी की पुश्त से सिर टिकाए बैठा था। उसने अपने दोनों हाथ कूल्हों पर जमाए हुए थे। जौनी को देखकर वह सीधा होकर बैठ गया।

‘मुझे एन्डी ने भेजा है।’ जौनी बोला, ‘उसने कहा था कि तुम मुझे आवश्यक जानकारी देने के अलावा धंधे से परिचित व्यक्तियों से भी परिचित करवाओ।’

‘अवश्य! लेकिन आज नहीं।’ बर्नी ने उत्तर दिया, ‘क्योंकि वीकएन्ड डे है और आज कोई बिजनेस नहीं होगा। इसके लिए सोमवार का दिन ठीक रहेगा। तुम सुबह दस बजे आ जाना। मैं तुम्हें सब व्यक्तियों से मिलवा दूंगा। ठीक है ना?’

‘तुम कह रहे हो तो ठीक ही होगा।’ जौनी ने कहा और वह मुड़कर दरवाजे की ओर चल दिया।

‘सुनो जौनी।’ पीछे बर्नी का स्वर सुनकर जौनी ने पलटकर बर्नी की ओर देखा।

उसने प्रश्नवाचक नजरों से बर्नी की ओर देखा।

‘मुझे लगता है कि मैं जरूरत से ज्यादा तुम्हारे सामने मुंह फाड़ बैठा हूं।’ बेचैनी से कुर्सी पर पहलू बदलते हुए बर्नी बोला – ‘एन्डी ने कहा है कि मैं तुमसे अपने वेतन के मुतल्लिक कोई बात न बताऊं। क्या तुम रात की बात भूल सकते हो?’

क्रोध से जौनी की मुट्ठियां भिंच गई, किन्तु प्रगट में संयम रखकर वह बोला – ‘मैं उन्हें भूल चुका हूं बर्नी। अच्छा तो अब सोमवार को मिलेंगे।’

बर्नी का दफ्तर ग्रेहाउंड बस स्टेशन के एकदम करीब ही था। अतः जौनी बस स्टेशन में पहुंच गया। सड़क के दूसरी ओर स्थित मसीनो के दफ्तर की ओर देखते हुए उसने सोचा-मसीनो तो शायद सप्ताहान्त मनाने के लिए मियामी रवाना हो चुका होगा, मगर जौनी को यकीन था कि एन्डी अपने छोटे-से दफ्तर में अभी तक भी डटा बैठा होगा।

वह खोये हुए सामान के लिए बने लॉकरों की ओर चल दिया। एक लॉकर के सामने खड़े होकर वह उस पर लिखे निर्देशों को पढ़ने लगा। उसमें लिखा था कि चाबी अटेंडेंट के पास मिलेगी। जौनी ने तीक्ष्ण निगाहों से चारों ओर दृष्टिपात किया किन्तु अपना परिचित कोई भी व्यक्ति उसे दिखाई न पड़ा। वह बेहद सर्तकता बरत रहा था। वह अटेंडेंट के कमरे में घुस गया। जाहिरा तौर पर वह ऐसा जाहिर कर रहा था जैसे अनायास ही वह वहां जा पहुंचा हो।

कुर्सी पर बैठा एक नीग्रो ऊंघ रहा था। जौनी को आया देखकर वह सतर्क होकर बैठ गया।

‘मुझे एक लॉकर की चाबी चाहिए।’ जौनी ने नीग्रो से कहा – ‘कितने डॉलर देने होंगे।’

‘लॉकर कितने दिन के लिए लेना चाहते हैं आप?’ नीग्रो ने पूछा।

‘तीन हफ्ते के लिए – लेकिन हो सकता है अधिक समय भी लग जाए।’

नीग्रो ने एक चाबी उसे थमा दी। बोला – ‘आधा डॉलर प्रति सप्ताह के हिसाब से डेढ़ डॉलर बनता है।’

जौनी ने कीमत चुकाकर चाभी जेब में डाल ली। इसके बाद वह लॉकर की ओर बढ़ गया। लॉकर बड़ी सुविधापूर्ण जगह स्थित था। दरवाजे से सिर्फ थोड़ा ही अंदर की ओर।

जौनी संतुष्ट होकर बाहर निकला और अपने अपार्टमेंट की ओर चल पड़ा।

घर पहुंचकर उसने करीब आधा घंटा खिड़की के पास बैठकर मसीनो के चिन्तन में गुजार दिया। दो बजे वह लंच के लिए उठने वाला था तो यकायक ही टेलीफोन का बजर बज उठा। उसने बुरा-सा मुंह बनाया और रिसीवर क्रेडिल से उठा लिया।

‘जौनी स्पीकिंग।’

‘हाय जौनी डार्लिंग’ – दूसरी ओर से आते स्वर को सुनकर वह हैरान रह गया, मैलानी बोल रही थी। उसका इतवार की दोपहर का दिन मैलानी के साथ घूमने और फिर उसी के साथ रात व्यतीत करने का कार्यक्रम तय हो चुका था।

‘जौनी डार्लिंग।’ मैलानी कह रही थी -‘क्या हम कल का प्रोग्राम कैंसिल नहीं कर सकते?’

‘क्यों?’

‘बात यह है कि मुझे माहवारी शुरू हो गई है, तुम समझ गए न – स्त्रियों के प्रतिमाह होने वाली माहवारी – मैं बहुत तकलीफ महसूस कर रही हूं।’

जौनी ने झल्लाते हुए सोचा – ये औरतें भी अजीब चीज हैं। हमेशा किसी न किसी से परेशान, लेकिन मैलानी के बारे में उसे अच्छी तरह से पता था कि उसके माहवारी के वे विशेष दिन अक्सर कष्टमय ही गुजरते थे। इसका मतलब था कि सप्ताहान्त का सारा दिन अब अकेले ही ऊबकर काटना पड़ेगा।

‘ये तो बड़ी बुरी खबर सुनाई तुमने।’ उसने शांतिपूर्वक कहा – ‘तब तो कल का प्रोग्राम सचमुच ही कैंसिल करना पड़ेगा परन्तु कोई बात नहीं। और बहुत से इतवार आएंगे। मेरे लिए कोई सेवा हो तो बताओ।’

‘नहीं कुछ नहीं – घर पहुंचते ही मैं आराम से बिस्तर में पड़ जाऊंगी। धीरे-धीरे स्वयं ही सब ठीक हो जाएगा।’

‘खाने-पीने की किसी चीज की तो आवश्यकता नहीं है।’

‘किसी चीज की जरूरत होगी भी तो मैं स्वयं रास्ते में से लेती जाऊंगी। तुम फिक्र मत करो। जैसे ही यह माहवारी खत्म हो जाएगी, मैं तुम्हें सूचित कर दूंगी। फिर हम जी भरके मौज मजे लूटेंगे।’

‘ठीक है।’ कहकर उसने संबंध विच्छेद कर दिया।

रिसीवर क्रेडिल पर टिकाने के बाद वह कमरे में चहलकदमी करने लगा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये छुट्टी का समय कैसे व्यतीत किया जाए। उसने अपना बटुआ निकालकर रकम चैक की। वेतन के सिर्फ एक सौ अस्सी रुपये बचे थे। सप्ताहांत गुजारने के हर प्रोग्राम में धन की जरूरत थी और धन ही की उसके पास कमी थी। मसीनो जैसे आदमियों के मजे हैं – उसने सोचा। ऐसे लोगों को दुनिया-भर के ऐशो-आराम लूटने की साधन सामर्थ्य थी धन ही के कारण। अगर सामर्थ्य नहीं थी तो सिर्फ जौनी वियांडा के पास धन की कमी के कारण, कड़का जो था। सोचता हुआ वह टी.वी. के समीप पहुंचा और उसका स्विच ऑन कर दिया। फुटबाल के खेल की फिल्म दिखाई जा रही थी। सामने बैठे जौनी की आंखें तो स्क्रीन पर टिकी थीं, मगर दिमाग कहीं और विचरण कर रहा था। वह कल्पना कर रहा था उस समय की जब वह अपनी शानदार नौका में बैठा हुआ खुले समुद्र में विचरण कर रहा होगा।

‘धीरज रखो जौनी।’ उसने स्वयं को दिलासा दी। धीरज रखकर ही वह अपना चिर-प्रतीक्षित सपना साकार कर सकता था।

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