Overview:
किसी की उन्नति से जलने वाले लोग दुनियाभर में मौजूद हैं। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे विकसित देशों में टॉल पॉप्पी सिंड्रोम शब्द काफी प्रचलित है। लेकिन भारत के दफ्तरों में भी आपको यह आमतौर पर देखने को मिल जाता है।
Tall Poppy Syndrome: वर्कप्लेस जब भी किसी शख्स का प्रमोशन होता है तो उसकी तारीफ करने वाले कम और उससे जलने वाले ज्यादा होते हैं। अगर प्रमोशन किसी महिला का हुआ है तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। लोग प्रमोशन और पोस्ट तो देखते हैं, लेकिन मेहनत और ईमानदारी को देखना भूल जाते हैं। यहीं से शुरुआत हुई है ‘टॉल पॉपी सिंड्रोम’ की। यह सिंड्रोम आज के समय की कड़वी सच्चाई है। अगर आप भी एक वर्किंग वूमन हैं तो इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए।
जानिए क्या है टॉल पॉपी सिंड्रोम

किसी की उन्नति से जलने वाले लोग दुनियाभर में मौजूद हैं। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे विकसित देशों में टॉल पॉपी सिंड्रोम शब्द काफी प्रचलित है। लेकिन भारत के दफ्तरों में भी आपको यह आमतौर पर देखने को मिल जाता है। उसमें जो लोग आगे बढ़ते हैं, उन्हें अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा लंबा या ऊंचा माना जाता है। और ऐसे में बाकी लोग मिलकर उसे काटने की यानी नीचे गिराने की कोशिश में जुट जाते हैं। चिंता की बात यह है कि इस सिंड्रोम का शिकार महिलाएं ज्यादा होती हैं।
हजारों महिलाओं ने बताया दर्द
हाल ही में एक इंटरनेशनल रिसर्च प्रोजेक्ट के तरह टॉल पॉपी सिंड्रोम को लेकर अध्ययन किया गया। इसमें वर्कप्लेस पर महिलाओं की स्थिति को लेकर कई चौकाने वाली बातें सामने आईं। इस रिसर्च में 103 देशों की 4700 से ज्यादा महिलाओं को शामिल किया गया। अध्ययन के दौरान महिलाओं ने बताया कि कैसे ऑफिस में उनकी सफलता ही उनके लिए मुश्किल बन गई। और उन्हें हर बात पर नीचा दिखाया जाता है।
मेहनत पर मिली सजा
कुछ महिलाओं ने स्वीकारा कि उन्हें उनकी कड़ी मेहनत के लिए सजा मिली। उन्हें आॅफिस ग्रुप से अलग कर दिया गया। जानबूझकर उनसे जरूरी जानकारी छुपाई जाने लगी। इतना ही नहीं उनके काम को क्रेडिट नहीं दिया जाता था। और अक्सर वही ऑफिस गॉसिप का टॉपिक बन जाती थीं। कई महिलाओं ने बताया कि उन्हें बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी बता कर प्रोजेक्ट्स से हटाया गया और कई बार सीनियर्स ने उनका प्रमोशन तक रोक दिया। ये सभी परेशानी टॉल पॉपी सिंड्रोम का इशारा है, क्योंकि यह कोई साधारण जलन नहीं है।
महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन
साल 2011 की एक अन्य स्टडी में पाया गया कि कई बार महिलाएं खुद ही उन महिलाओं के खिलाफ हो जाती हैं, जिन्हें वे ज्यादा स्मार्ट या सफल मानती हैं। इसके पीछे कई सामाजिक और मानसिक वजहें हो सकती हैं। मेहनती महिलाओं को कॉम्पिटिशन मान लिया जाता है। दूसरी महिलाएं इससे असुरक्षा महसूस करती हैं। ऐसे में महिलाएं एक-दूसरे को सपोर्ट करने के बजाय आलोचना करने लगती हैं। इस तरह के व्यवहार से न सिर्फ ऑफिस का माहौल खराब होता है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। इससे परफॉर्मेंस और कॉन्फिडेंस दोनों कम होती हैं।
आप ऐसे करें इस सिंड्रोम का सामना
लोगों की इस छोटी मानसिकता से निपटने के लिए सिर्फ महिलाओं को नहीं, बल्कि कंपनीज को भी बदलना होगा। काम की जगह पर आजादी और सहयोग का माहौल बनाना जरूरी है। एक ऐसा कल्चर विकसित करें जहां सफलता की सराहना हो और लोग उसे बिना डरे स्वीकार करें। वहीं महिलाओं को एक-दूसरे की ताकत बनने पर फोकस करना होगा। मिलकर आगे बढ़ने की कोशिश ही बेस्ट तरीका हो सकता है। अगर आप महसूस करती हैं कि आपको सभी नीचा दिखा रहे हैं तो इससे डरने की जगह मन लगाकर अपना काम करें। बेकार की बातों को दिल पर न लें।
