Motivational Story in Hindi: देश की एक प्रसिद्ध अन्तरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी जो अपने आप में बहुत बड़ा नाम थी क्योंकि यहां पढ़ के कोई निकल जाए तो बहुत बड़ी बात मानी जाती थी, क्योंकि यहां सीनियर अपने जूनियर से रैगिंग बहुत करते थे, यहीं पर गेट में गार्ड की नौकरी पर रामू काका जो कि जवानी के दिनों से अब कमर टेढ़ी होने तक का सफ़र तय कर रहे थे लेकिन यूनिवर्सिटी नहीं छोडी,इतने बड़े बाप की औलादें यहां पढ़ती थी एक से बढ़ के एक रईस ज्यादा यहां रहता था । यही कारण था के वो लोग अपने से छोटे जूनियर को कुछ नहीं समझते थे बल्कि उनको बहुत दण्ड देते थे। लेकिन इस यूनिवर्सिटी का इतना नाम था के जो भी पढ़ के निकले वो बड़े से बड़े पद पर आसानी से नौकरी पा जाता था इसी उम्मीद से रामू काका भी अपनी बेटी के लिए परेशान थे कि वो भी इसी युनिवर्सिटी में पढ़े ,लेकिन इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी में भला गार्ड की बेटी का एडमिशन कैसे हो जाए ।रामू काका इसी बात से परेशान रहते थे उन्होंने कई प्रोफेसर से बहुत रिक्वेस्ट भी की थी कि उनकी बेटी पढ़ने में बहुत ठीक है किसी तरह उसका एडमिशन यहां हो जाए एक प्रोफेसर ने रामू काका की तकलीफ और उनके भाव को समझ कर उनकी बेटी जो की इकलौती बेटी थी बिन मां की बच्ची जैसे ही अंजलि का जन्म हुआ रामू काका की पत्नी दोनों को छोड़कर हमेशा के लिए चली गई है अब रामू काका ने ही अपनी बेटी को बड़े नाजों से पाला है मां-बाप बन करके ,किसी तरह से अंजलि का एडमिशन बड़ी यूनिवर्सिटी में हो जाता है लेकिन यहां दो रईस बाप की औलादें विवेक और शौर्य जो दोनों ही अंजलि के साथ बहुत रैगिंग करते थे, उठक – बैठक कराना अपने ही गाल पर तमाचा मरवाना ,उसके कपड़ों में पानी मार देना और साथ-साथ उससे अपना असाइनमेंट कंप्लीट कराना ,अंजलि का गेट के अंदर आने से लेकर के जाने तक में वह लोग उसे कोई कसर नहीं छोड़ते थे उसको परेशान करने की,अंजलि हर रोज रो कर घर जाती थी विवेक और शौर्य को मजा आता था अंजलि की गरीबी का मजाक उड़ाने में इसी लिए वो इतना ज्यादा रैगिंग करते थे कि वो परेशान हो कर यूनिवर्सिटी छोड़ कर चली जाए ,शुरू में तो अंजलि ने रामू काका को कुछ नहीं बताया लेकिन धीरे-धीरे उसने यूनिवर्सिटी छोड़ने का फैसला ले लिया क्योंकि अब वह सह नहीं पा रही थी रामू काका ने एक बार फिर से समझाया कि बेटा तू मेरा अभिमान है ऐसे लोगों से क्या तू डर जाएगी यूनिवर्सिटी में बहुत बड़ा फंक्शन होने वाला है फंक्शन में अगर अंजलि ने अच्छा परफॉर्म कर दिया तो उसको एक मौका मिल जाएगा यहां से अच्छे पद पर नौकरी का अपॉइंटमेंट उसको मिल जाएगा बस इस बात के लिए रामू काका उसको समझा रहे थे कि बेटा यह परफॉर्म कर लो फिर उसके बाद तुम छोड़ देना। किस तरह से गर्मी की परवाह किये बिना मैं रात दिन खड़ा रहा हूं बस तुम वहां पहुंच जाओ जहां मैं देखना चाहता हूं, अगले दिन परफॉर्मेंस में अंजलि ने बहुत अच्छा किया और उसको इतनी उम्मीद थी कि उसका चयन निचले स्तर पर जरूर हो जाएगा।
रामू काका को कुलपति महोदय ने बुलाया है यह संदेश सुनकर हाथ पैर कांप रहे थे के क्या गलती हो गई है,रामू काका अपने हाथों को धोकर साफ़ किया और चल दिया, कार्यालय की ओर।रामू काका की हृदयगति बढ़ गई थी कि क्या गलती हो गई है जो बड़े साहब ने बुला लिया आज तक तो उनको देखा भी नहीं इतने सालों में , यही सोच रहा था कि उससे क्या ग़लत हो गया जो आज साहब ने तुरंत ही अपने कार्यालय में आने को कहा।
वह एक ईमानदार कर्मचारी था काम लग्न से करता था किसी तरह सोचते हुए वह कार्यालय पहुँचा..
“साहब, क्या मैं अंदर आ जाऊँ? आपने मुझे बुलाया था।”
“हाँ। आओ और यह देखो” उनकी आवाज़ में कड़की थी और उनकी उंगली एक पेपर पर इशारा कर रहे थी। “पढ़ो इसे” वॉयस चांसलर ने आदेश दिया।
“मैं, मैं, साहब! मैं तो इंग्लिश पढ़ना नहीं जानता !” रामू काका ने घबरा कर उत्तर दिया।
“मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ कोई गलती हो गयी हो तो। मैं यूनिवर्सिटी का पहले से ही बहुत ऋणी हूँ। क्योंकि मेरी बिटिया को यहां निःशुल्क पढ़ने दिया गया है। कृपया एक और मौक़ा दें मेरी कोई ग़लती हुई है तो सुधारने का। मैं आप का सदैव ऋणी रहूंँगा।” रामू काका बिना रुके घबरा कर बोलते चले जा रहा थे। उसको खड़े वही क्लर्क ने टोका “तुम बिना वज़ह अनुमान लगा रहे हो। थोड़ा इंतज़ार करो, मैं तुम्हारी बिटिया के प्रोफेसर को बुला रहे।”
प्रोफेसर के पहुँचते ही साहब ने कहा, “तुम्हारी बिटिया की प्रतिभा को देखकर और परख कर ही उसे अपने यहां पढ़ने की अनुमति दी गई होगी। तुम्हारी बेटी की परफॉर्मेंस अच्छी थी उसको चयन कर लिया गया है बड़ी कंपनी में और अच्छे पद पर हमारी यूनिवर्सिटी में पहले कभी इतने अच्छे पद पर नहीं हुआ।
प्रोफेसर ने लेटर पढ़ना शुरू किया जो अंजलि ने थीसियस जमा की थी पढ़ना शुरू करने से पहले बताया, ” हम सभी स्टूडेंट्स को अपनी माँ के बारे में लिखने को मिला है। तुम्हारी बिटिया ने जो लिखा उसे सुनो।”
“मैं एक गाँव में रहती थी, एक ऐसा गाँव जहाँ शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं का आज भी अभाव है। चिकित्सक के अभाव में कितनी ही गर्भवती दम तोड़ देती हैं बच्चों के जन्म के समय। मेरी माँ भी उनमें से एक थीं। उन्होंने मुझे छुआ भी नहीं था। मेरे पिता ही वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे गोद में उठाया था। बाक़ी की नज़र में तो मैं अपनी माँ को खा जाने वाली लड़की थी। मेरे पिताजी ने मुझे माँ का प्यार दिया। मेरे दादा – दादी चाहते थे कि मेरे पिताजी दुबारा विवाह करके एक पोते को इस दुनिया में लायें ताकि उनका वंश आगे चल सके। परंतु मेरे पिताजी ने उनकी एक न सुनी और दुबारा विवाह करने से मना कर दिया। इस वज़ह से मेरे दादा – दादीजी ने उनको अपने से अलग कर दिया और पिताजी सब कुछ, ज़मीन, खेती बाड़ी, घर सुविधा आदि छोड़ कर मुझे साथ लेकर शहर चले आये और इसी यूनिवर्सिटी में गार्ड का काम करने लगे। मुझे बहुत ही लाड़ प्यार से बड़ा करने लगे। मेरी ज़रूरतों पर माँ की तरह हर पल ध्यान रखते हैं।”
“आज मुझे समझ आता है कि वे क्यों हर उस चीज़ को जो मुझे पसंद थी ये कह कर खाने से मना कर देते थे कि वह उन्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह आख़िरी टुकड़ा होती थी। आज मुझे बड़ा होने पर उनके इस त्याग के महत्त्व पता चला।”
“मेरे पिता ने अपनी क्षमताओं में मेरी हर प्रकार की सुख – सुविधाओं का ध्यान रखा और यूनिवर्सिटी ने उनको यह सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जो मुझे यहाँ निःशुल्क पढ़ने की अनुमति मिली। उस दिन मेरे पिता की ख़ुशी का कोई ठिकाना न था।”
“यदि माँ, प्यार और देखभाल करने का नाम है तो मेरी माँ मेरे पिताजी हैं।”
“यदि दयाभाव, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी उस परिभाषा के हिसाब से पूरी तरह मेरी माँ हैं।”
“यदि त्याग, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी इस वर्ग में भी सर्वोच्च स्थान पर हैं।”
“यदि संक्षेप में कहूँ कि प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग माँ की पहचान है तो मेरे पिताजी उस पहचान पर खरे उतरते हैं और मेरे पिताजी विश्व की सबसे अच्छी माँ हैं।”
मैं गर्व से कहती हूं कि ये जो हमारे यूनिवर्सिटी के परिश्रमी गार्ड हैं, मेरे पिता हैं।”
“मैं जानती हूँ कि मैं आज की लेखन परीक्षा में फैल हो जाऊँगी। क्योंकि मुझे माँ पर लेख लिखना था और मैंने पिता पर लिखा,पर यह बहुत ही छोटी सी क़ीमत होगी उस सब की जो मेरे पिता ने मेरे लिए किया। धन्यवाद”।
आख़िरी शब्द पढ़ते – पढ़ते प्रोफेसर का गला भर आया था और कार्यालय में शांति छा गयी थी।
इस शांति में केवल रामू काका के सिसकने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। गेट में धूप की गर्मी उसकी कमीज़ को गीला न कर सकी पर बिटिया के लिखे शब्दों ने उस कमीज़ को पिता के आँसुओं से गीला कर दिया था। वह केवल हाथ जोड़ कर वहाँ खड़ा था। उसने उस पेपर को प्रोफेसर से लिया और अपने हृदय से लगाया और रो पड़ा।
कुलपति ने खड़े होकर उसे एक कुर्सी पर बैठाया और एक गिलास पानी दिया तथा कहा, “रामू तुम्हारी बिटिया बहुत सही लिखा है यह थीसिस मेरे अब तक के पूरे जीवन का सबसे अच्छा है। प्रबंधक कमेटी यह निर्णय लेती है कि आज से तुम गेट पर नहीं बल्कि उन्नत होकर कार्यालय में काम करोगे ।
