Mulla Nasruddin ki kahaniya: नसरुद्दीन का फ़ैसला सुनाने के लिए दरबार लगाया गया।
जब नसरुद्दीन को सिपाही दरबार में लेकर पहुँचे तो दरबारियों ने आँखें नीची कर लीं। आलिम भौहें चढ़ाकर दाढ़ियों पर हाथ फेरने लगे। वे एक-दूसरे को देखते भी शरमा रहे थे। अर्सला बेग लंबी साँस लेता, गला साफ़ करता अमीर दूसरी ओर ताकने लगा।
लेकिन नसरुद्दीन की नज़र सीधी और साफ़ थी, उसके हाथ अगर पीछे न बँधे होते तो यही लगता कि वह अपराधी नहीं है, अपराधी तो दरबारी हैं, जो वहाँ बैठे हैं।
फ़ैसले में देर नहीं लगी। नसरुद्दीन को मौत की सजा सुना दी गई।
केवल यह निश्चित करना था कि मौत किस ढंग की हो। अर्सला बेग बोला, ‘मेरी राय में मुजरिम को सूली दी जाए ताकि वह तड़प-तड़प कर मरे । ‘
नसरुद्दीन ने आँख तक नहीं झपकाई । खुशी से मुस्कुराता हुआ रोशनदान से आती सूरज की किरणों को ताकता रहा ।
अमीर ने सूली की सज़ा देने से मना कर दिया। बताया कि तुर्की के सुल्तान ने इस काफ़िर को सूली देने की कोशिश की थी। स्पष्ट है कि यह इस तरह की सज़ा से बेदाग़ छूटने की तरकीब जानता है, वरना ज़िंदा न बच पाता ।
बख्तियार ने सलाह दी, ‘इसका सिर काट दिया जाए। यह सबसे आसान मौत है। लेकिन सबसे यक़ीनी मौत यही है । ‘
‘नहीं।’ अमीर बोला, ‘बगदाद के ख़लीफ़ा ने इसका सिर काट दिया था लेकिन वह अब भी इसके कंधों पर सही सलामत है । ‘
एक के बाद एक दरबारी उठे और नसरुद्दीन को फाँसी लगाने, उसकी ज़िंदा खाल खिंचवा लेने की सलाह देने लगे। अमीर ने हर सुझाव को ठुकरा दिया। वह लगातार नसरुद्दीन की ओर ताक रहा था। उसे उसके चेहरे पर डर का निशान तक दिखाई नहीं दे रहा था। इन सुझावों को वह बेकार समझता था ।
तभी बगदाद का आलिम असली मौलाना हुसैन उठा। वह दरबार में पहली बार बोल रहा था। अपनी सलाह पर उसने अच्छी तरह विचार कर लिया था ताकि उसकी बुद्धिमता का सिक्का जम जाए ।
‘ऐ खल्क के शहंशाहे – आजम ! अब तक यह मुजरिम हर तरह की सज़ा से बेदाग छूट निकला है तो इससे यह साबित नहीं होता कि नापाक ताकतें अँधेरे की रूहें जिनका अमीर के हुजूर में नाम लेना मुनासिब नहीं, इसकी मदद करती रही हैं। ‘
यह कहकर आलिम ने अपने कंधे पर फूँक मारी। नसरुद्दीन को छोड़कर बाक़ी सभी लोगों ने ऐसा ही किया।
मौलाना हुसैन ने कहा, ‘मुजरिम के बारे में मिली ख़बरों पर गौर करके हमारे अमीरे-आज़म ने सारे सुझावों को ठुकरा दिया है। उन्हें अंदेशा है कि एक बार फिर नापाक ताकतें मुजरिम की मदद करके इसे सजा से बचा लेंगी। मौत का यह और तरीका है, जो मुजरिम पर अभी तक आजमाया नहीं गया है। वह तरीका है- पानी में डुबोकर मारने का । ‘
नसरुद्दीन चौक पड़ा। अमीर ने उसका चौकना देख लिया, ‘ओ हो, तो यह है इसका भेद ।’
नसरुद्दीन सोच रहा था, इन लोगों ने नापाक रूहों की बात की है। यह अच्छा शगुन है। अभी उम्मीद नहीं खोनी चाहिए।
बगदाद के आलिम ने कहा, ‘मैंने जो कुछ पढ़ा- सुना है उससे मुझे पता चला है कि बुखारा में एक पाक तालाब है- शेख़ तुरखान का तालाब । बदी की ताक़तें ऐसे तालाब के पास फटकने की हिम्मत नहीं कर सकतीं। मुजरिम को पाक पानी में काफ़ी देर तक डुबाए रखा जाए। यह यक़ीनन मर जाएगा।’
‘यही अक्लमंदी की और इनाम के काबिल सलाह है।’ अमीर ने कहा ।
नसरुद्दीन ने आलिम को डाँटा, ‘अरे मौलाना हुसैन, जब तुम मेरे कब्ज़े में थे तब क्या मैंने तुम्हारे साथ ऐसा ही सुलूक किया था? तुम्हारी ऐसी हरकत के बाद कोई किसी इन्सान का अहसान मानने पर यकीन करेगा?’
तय किया गया कि सूरज डूबने के बाद नसरुद्दीन को शेख तुरखान के तालाब में डुबोकर मार डाला जाए और उसे थैले समेत डुबो दिया जाए।
सारे दिन तालाब के किनारे कुल्हाड़ियाँ बजती रहीं। बढ़इयों ने एक ऊँचा तख़्ता बनाया। हर बढ़ई के पीछे एक-एक सिपाही खड़ा था। इसलिए बेचारे चुपचाप काम करते रहे। उनके चेहरों पर दुख की छाया थी। जब काम ख़त्म हो गया तो उन्होंने मजदूरी लेने से इन्कार कर दिया। मजदूरी बहुत ही कम थी। नीची नज़रें किए वे वापस चले गए।
तालाब के एक किनारे और तख़्ते पर कालीन बिछा दिए गए। दूसरा किनारा रियाया के लिए खाली छोड़ दिया गया।
मुखबिरों ने ख़बर दी कि सारे शहर में खलबली और नाराज़गी फैली हुई है। सतर्क अर्सला बेग ने तालाब के चारों ओर सिपाही तैनात कर दिए।
इस डर से कि कहीं रियाया नसरुद्दीन को रास्ते में ही छीन न ले अर्सला बेग ने चार थैलों में चीथड़े भरवा दिए थे। उसका इरादा था कि ये चारों थैले खुलेआम भीड़-भरे बाज़ारों में से तालाब पर भेजे जाएँगे और जिस पाँचवे थैले में नसरुद्दीन होगा, सूनी गलियों में से ले जाया जाएगा। उन चारों थैलों के साथ आठ-आठ पहरेदार होंगे जबकि असली पाँचवे थैले के साथ सिर्फ तीन सिपाही होंगे। इससे किसी को यह संदेह नहीं हो जाएगा कि उसी थैले में नसरुद्दीन है।
अर्सला बेग ने पहरेदारों से कहा, ‘तालाब से जब मैं तुम्हारे पास ख़बर भेजूँ तो झूठे थैलों को एक के बाद एक साथ ही ले आना। लेकिन असली थैले को थोड़ी देर बाद जब फाटक पर मौजूद भीड़ नकली थैलों के साथ चली जाए तब लोगों की नज़रों से बचाकर लाना । ‘
ढोल पीटकर शाम को बाज़ार बंद करने का ऐलान कर दिया गया। लोग तालाब की ओर चल पड़े। थोड़ी देर के बाद अमीर की सवारी आई । तख़्ते पर उसके आसपास मशालें जला दी गईं। दूसरे किनारे पर अँधेरा फैला हुआ था । तख़्ते पर से वहाँ खड़ी भीड़ दिखाई नहीं देती थी केवल उसके हिलने-डुलने और साँस लेने की आवाज़ सुनाई देती थी। रात की हवा के झोकों पर सवार अनजाना और परेशान करनेवाला शोर फैलता चला जा रहा था।
बख़्तियार ने ऊँची आवाज़ में नसरुद्दीन की सजा का ऐलान किया। हवा थम सी गई। ख़ामोशी छा गई। और इस ख़ामोशी से डरकर अमीर का बदन काँपने लगा।
हवा ने आह भरी। भीड़ में हज़ारों सीनों से आह उठी ।
अमीर ने काँपते हुए कहा, ‘अर्सला बेग, अब क्या देर है ? ‘
शहंशाह, ‘मैंने ख़बर भेज दी है। ‘
अचानक अँधेरे से आवाजें आने लगीं। हथियार खड़कने लगे । कहीं लड़ाई शुरू हो गई थी। डर के मारे अमीर चौंक पड़े। खाली हाथ आठ सिपाही मंच के सामने रोशनी में आ खड़े हुए।
‘मुजरिम कहाँ है?’ अमीर चिल्लाए, ‘क्या लोगों ने उसे सिपाहियों से छुड़ा लिया? क्या वह भाग गया? अर्सला बेग, तूने यह सब क्यों होने दिया?’
‘शहंशाह, आपके नाचीज़ गुलाम ने यह ख़तरा पहले ही भाँप लिया था। उस थैले में सिर्फ चीथड़े थे। ‘
तभी दूसरे किनारे से लड़ाई-झगड़े की आवाजें आने लगीं। अर्सला बेग ने जल्दी से अमीर को समझाया, ‘आका, उन्हें यह थैला भी ले लेने दीजिए। इसमें भी चीथड़े हैं। ‘
सिपाहियों से पहला थैला कहवाख़ाने के मालिक अली और उसके दोस्तों ने छीना था। दूसरा यूसुफ लुहार के साथ लुहारों ने तीसरा कुम्हारों ने और चौथा बिना छीना झपटी के सकुशल पहुँच गया।
मशालों की रोशनी में भीड़ को दिखाते हुए सिपाहियों ने उस थैले को उठाया और उलट दिया। चीथड़े बाहर निकल पड़े।
परेशान और हैरान भीड़ निराशा से चुपचाप खड़ी रही। यही अर्सला बेग की चाल थी। वह जानता था कि नासमझी से इन्सान नकारा हो जाता है।
पाँचवे थैले से निबटने का समय आ गया था। न जाने क्यों उसे लाने वाले पहरेदारों को रास्ते में देर हो गई थी। अभी तक वे आए नहीं थे।
