मिर्ची रानी और पुदीना दीदी का उत्साह थमने में ही नहीं आता था। और इधर तो जहाँ भी वे जातीं, कोई न कोई नया किस्सा जरूर सुनाई देता। और जब सब्जीपुर और फलमप्रदेश के पुराने प्यार और झगड़े का लंबा किस्सा किसी बड़े-बुजुर्ग ने छेड़ दिया, तब तो चलना ही था किस्से में किस्सा!
वह चला और सुनने वालों की संख्या बढ़ती ही गई। बढ़ती ही गई…! फिर जितने लोग उतनी बातें। हर आदमी अपनी कीमती राय की पुटलिया खोलता और किस्से को भी अपने ढंग से कुछ न कुछ आगे बढ़ा देता। और किस्सा बढ़ता ही जाता था, द्रौपदी के चीर की तरह। लोगों के कौतुक और दिलचस्पी का कोई अंत न था।
सब्जीपुर और फलमप्रदेश के इस सनातन प्यार और झगड़े से वाकिफ कुछ लोगों ने कहा, “अजी, आपको क्या पता, कभी फल भी हमारे सब्जीपुर का हिस्सा थे और खुद को यहाँ का मानकर खुश होते थे। पर फिर किसी ने इनके दिमाग में कीड़ा डाल दिया कि नहीं जी, तुम कोई सब्जीपुर के हो? तुम्हारा इनसे क्या रिश्ता है, चलो यहाँ से।”
“किसी-किसी अकड़ूमल ने कहा, सब्जियों से हमारा क्या मुकाबला? हम तो जी राजा-महाराजों के खानदान के हैं। दिलों में नफरत पैदा हो जाए, तो यही होता है।” करमकल्ला जी बता रहे थे।
“अजी, बहुत सी ऐसी सब्जियाँ हैं, जो सब्जी भी हैं, फल भी। उनका आप क्या करेंगे?” कद्दूमल अपने फूले-फूले पेट पर हाथ फेरते हुए नाराज होकर बता रहे थे।
“पर यह सब भूलकर जबरन एक फलमप्रदेश बनाया गया, पुष्पमप्रदेश की तर्ज पर।” मूलीरानी दुखी होकर बता रही थीं और खीराकुमार अपनी गरदन हिलाकर जता रहा था कि मूलीरानी की बात एकदम ठीक है।
“फलमप्रदेश के लोग अपने को श्रेष्ठ और हमें हीन मानते हैं। पर यह बात तो ठीक नहीं।” खीराकुमार ने नाराजगी प्रकट करते हुए कहा।
“पर जनता तो हमें ही ज्यादा चाहती है। हम हर रोज उसके काम आते हैं। वरना तो फलमप्रदेश वाले हमें बिल्कुल ही जीरो समझ लेते और खुद को हीरो।” करौंदाकुमार का कहना था। प्याजकुमारी यानी प्याजो ने भी उसकी बात का समर्थन किया।
“पर हम हर किसी की जरूरत हैं और जरूरत पड़ने पर हमीं सबसे पहले काम आते हैं। हमीं से सबके भोजन का स्वाद है।” टिंडामल कह रहे थे।
टमाटरलाल का कहना था, “कितनी अजीब बात है कि जब लोग इन फलमप्रदेश वालों को उजाड़ते हैं तो मदद के लिए ये सब्जीपुर की ओर हाथ बढ़ाते हैं और जोर-शोर से कहते हैं कि सब्जीपुर वाले हमारे भाई हैं। सब्जीपुर बड़ा है, इसलिए हमें उनकी मदद चाहिए। उस समय ये लोग चिल्लाकर कहते हैं कि चलो, हम मिलकर लड़ाई लड़ें। तब उन्हें यह भी याद आ जाता है कि हमें मिलकर एक-दूसरे को बचाना चाहिए। पर बाद में ये सब भूल जाते हैं। और फिर हम सब्जियों के लिए वही दूर-दूर, जैसे ये नवाब हों और हम इनके नौकर-चाकर!”
“और फिर मोटी बात तो यह है न, कि हममें समानताएँ ज्यादा हैं, अंतर कम। तो फिर बिना बात का अलगाव कैसा? छोटे और बड़े की बात क्यों?” शांतात्मा लौकीदेवी ने सुलह का रास्ता निकालते हुए कहा।
इसी बीच नारियलचंद्र ने सद्भावना दूत बनकर बहस में उतरते हुए कहा, “मुझे आप क्या कहेंगे, फल या सब्जी? पर सच तो यह है कि मैं फल भी हूँ और सब्जी भी। इसीलिए मुझे तो सब्जीपुरम में रहना ही अच्छा लगता है। और फिर बात सिर्फ मेरी ही नहीं। ऐसे तो बहुत से हैं। जैसे मेरा पक्का दोस्त केला फल भी और सब्जी भी। आम फल है, पर आम का पना भी बनता है और आम का अचार भी। अनार फल है, पर अनारदाने की चटनी भला किसने नहीं खाई होगी? ऐसे ही गोभी को फूल कहा जाता है, खिलता भी वह एक बड़े और शानदार फूल की तरह है, पर है तो वह सब्जी ही न! और आँवला…! मशरूम…? इन्हें आप क्या कहेंगे? तो भेद-भाव की ये दीवारें तो बहुत छोटी हैं भाई!”
इस पर भी फलमप्रदेश वालों का दोहरापन खत्म नहीं हुआ, तो आखिर सब्जीपुर वालों ने फलों का घमंड तोड़ा।
पिछली बार बारिश में जब फलमप्रदेश पर मुसीबत आई और हमेशा की तरह ‘भाई ही भाई का साथ देता है’, कहकर उन्होंने गुहार लगाई, तो राजा बैंगनुल्ला शाह ने बड़ा खूबसूरत जवाब उन्हें दिया। उन्होंने अपने जवाबी पत्र में लिखा, “देखो भाई, जब तुम चाहो तो हम तुम्हारे भाई हैं, वरना बेगाने—यह परिपाटी अब नहीं चलेगी। अच्छी तरह सोच-विचार लो। अगर सिर्फ अवसरवादी दोस्ती करनी है, तो हमारी ओर से ना है!”
सब्जीपुर के राजा बैंगनुल्ला शाह की इस सीधी बात का फलमप्रदेश वालों ने शायद कुछ बुरा माना था, पर इसका असर यह हुआ कि उनका रवैया बदला और तेवर जरा ढीले पड़ गए। इसके बाद सब्जियों का अपमान उन्होंने नहीं किया।
मिर्ची रानी को जैसे ही इस पुराने इतिहास का पता चला, उनकी कलम आँधी और बिजली की तरह चलने लगी। उनका संकल्प था कि नाटक का एक पूरा अंक इसी पर निर्भर होना चाहिए। और पुदीना दीदी उसी समय इसे संगीत में निबद्ध करने की कोशिशों में लग गईं।
लोगों की उत्सुकता अब लगातार बढ़ती जाती थी। पूरे सब्जीपुर में हल्ला था कि पुदीना दीदी का यह महा सम्मेलन इस बार बेमिसाल होने जा रहा है। और लोगों ने दूर-दराज के गाँवों के अपने सगे-संबंधियों को भी न्योतना शुरू कर दिया था, ताकि वे भी सब्जियों के इस महासम्मेलन के साथ-साथ पुदीना दीदी और मिर्ची रानी के इस शानदार नाटक का आनंद ले सकें।
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
