मैं और तुम पति-पत्नी थे—गृहलक्ष्मी की कविता
Mein aur Tum Pati Patni The

Hindi Poem: तुम और मैं पति पत्नी थे, तुम माँ बन गईं मैं पिता रह गया।

तुमने घर सम्भाला, मैंने कमाई, लेकिन तुम “माँ के हाथ का खाना” बन गई, मैं कमाने वाला पिता रह गया।

बच्चों को चोट लगी और तुमने गले लगाया, मैंने समझाया, तुम ममतामयी बन गई मैं पिता रह गया।

बच्चों ने गलतियां कीं, तुम पक्ष ले कर “understanding Mom” बन गईं और मैं “पापा नहीं समझते” वाला पिता रह गया।

“पापा नाराज होंगे” कह कर तुम बच्चों की बेस्ट फ्रेंड बन गईं, और मैं गुस्सा करने वाला पिता रह गया।

तुम्हारे आंसू में मां का प्यार और मेरे छुपे हुए आंसुओं मे, मैं निष्ठुर पिता रह गया।

तुम चंद्रमा की तरह शीतल बनतीं गईं, और पता नहीं कब मैं सूर्य की अग्नि सा पिता रह गया।

तुम धरती माँ, भारत मां और मदर नेचर बनतीं गईं,

और मैं जीवन को प्रारंभ करने का दायित्व लिए

सिर्फ एक पिता रह गया…

फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है

माँ,  नौ महीने पालती है 

पिता, 25 साल् पालता है 

फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है

माँ, बिना तानख्वाह घर का सारा काम  करती है 

पिता, पूरी कमाई घर पे लुटा देता है 

फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है