पांडवों एवं कौरवों की लड़ाई में पांडवों की विजय हुई। पांडवों की जीत के बाद भगवान श्रीकृष्ण अपनी बुआ एवं पांडवों की माता कुंती से विदा लेने गए और बुआ से बोले-अब तो आपके पुत्रें की जीत हो गई है।
अब आप राजमाता बन गई हैं। सारे सुख अब आपको मिलेंगे, फिर भी बुआ आपको और क्या सुख चाहिए, माँग लो। कुंती ने कृष्ण से कहा- मुझे राजसुख मिल गया है, लेकिन मुझे इस सुख की बजाय दुःख, बाधा आदि की जरूरत है।
कृष्ण कहा- बुआ! लोग अपने जीवन को सुखी एवं खुशहाल बनाने के लिए सुख की माँग करते हैं और आप दुःख क्यों माँग रही हैं। कुंती ने जवाब देते हुए कहा-सुख में परमात्मा अर्थात् आप साथ नहीं रहोगे। यदि हमारे पास दुःख रहेगा तो आप हमारे साथ रहोंगे। ऐसी स्थिति में मुझे दुःख ही चाहिए, ताकि आप हमारा साथ नहीं छोड़ें।
सारः दुःख में ही परमात्मा की याद आती है।
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