balwan admi
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

सांझ ढलने वाली है। सूरज की पीली ज्योति अब लाल हो गई है। क्षितिज की मांग में लाल रंगोली दिख रही है। कोई नवोढा मानो सिंगार सज कर निकली हो। ठीक उसी तरह से संध्या रानी पृथ्वी पर उतर रही है। उसी वक्त दियोदर की सीम में एक बैलगाड़ी किचूड़-किचूड़ आवाज करती हुई आगे जा रही है। गाड़ी पर बैठा हुआ किसान हाथ में रस्सी लिए हुए बैल की पूंछ को सहलाता हुआ उन्हें आगे बढ़ने की ताकीद कर रहा था लेकिन गाड़ी के भारी बोझ के कारण बैल भी बेचारे मुश्किल से आगे बढ़ रहे थे। किसान ने दया बेचकर गाड़ी भरी थी। गाड़ी के पहिए जोर से लोहे के किलों के साथ टकराते थ और धरी का वह किला इस टक्कर के सामने टिकने का मानो निरर्थक प्रयास कर रहा था। ज्यादा देर तक वह इतना बोज ढो न सका। सह न सका। एक आवाज के साथ टूट गया। बैल का गला भींस गया। उसके साथ ही गाड़ी का पहिया दरी में से निकल गया और किसान उछल कर जमीं पर गिर गया।

मौत को देख, गया किसान अभी जमीन पर पड़ा न पड़ा कि खड़ा हो गया। उसने उतावली से बैलों को छोड़ दिया। गाड़ी एक और झुक गई थी। उसने देखा कि किला टूट चुका था।

आकाश ने मानो काली चद्दर ओढ ली थी। अभी थोड़े दिनों से अमीर खान नामक एक बागी का खौफ बढ़ गया था। गाड़ीवान इसीलिए डर रहा था। वह कुछ कर्तव्यमूढ बन कर खड़ा रह गया। अब क्या किया जाए? ठीक उसी वक्त उसने मुखौटा पहने हुए एक आदमी को आते हुए देखा। किसान की घिग्गी बंद हो गई। लेकिन दूसरे ही पल उसे एक विचार आया कि बापू चीमन सिंहजी के विस्तार में बागी भला कैसे आ सकता है? किसान के दिल में आशा की एक ज्योति जगी। उसने सोचा, अगर यह आदमी दियोदर जाता हो तो उसके द्वारा संदेश भेज दूं। दियोदर से आठ-दस आदमी आए और मेरी गाड़ी को ठीक कर जाए। कल्पना के अश्व दौडाता हुआ वह खड़ा था, उसी वक्त उस आदमी ने आकर उससे पूछा

  • “क्यों भाई इधर खड़ा है?”
  • “क्या करूं बापू! देखो ना मेरी गाड़ी का हाल?”
  • “और इसमें क्या है? गाड़ी की दरी ठीक कर दे? क्या तुम किसान नहीं हो?”

लेकिन बापू! आप देखते नहीं इतना सारा सामान गाड़ी में पड़ा है। गाडी को कैसे उठा सकता हूं? ”

  • “ओह यह बात है! ऐसा कर तू किला ठीक कर के ला..” एक पल के लिए वह किसान खड़ा रह गया। एक आदमी गाड़ी को भला कैसे ऊंची कर सकता है? और वह किला लगाये तो कैसे लगाये? लेकिन उस आदमी की दृढ़ता को देखकर किसान ने कुल्हाड़ी ली, लकड़ी की निकाली और किले को ठीक कर दिया। ठीक होते ही उस आदमी ने गाड़ी की दरी को ऊंची करने के बजाए गाड़ी ही को दो हाथों में ऊंची कर दी। उसने किसान से कह दिया“तुम चैन से पहिया चढ़ा ले। तब तक मैं इस गाड़ी को ऊंची ही रखूंगा।”

किसान ताज्जब हो गया। कितना बलवान है यह आदमी। उसने गाडी का पहिया चढ़ा दिया। उस आदमी ने आहिस्ता से गाड़ी जमीन पर रख दी और हंसता हुआ चलने लगा। किसान ने लगनशील होते हुए उस आदमी से पूछा- “बाबू कहां जा रहे हो?”

  • “दियोदर”
  • “तो फिर मेरे जैसे गरीब का अंगना पावन करो!” वह आदमी हंस पड़ा। उसने आहिस्ते से अपने मुंह पर से मुखौटा हटाया। उस काले अंधकार में भी किसान ने उस चमकते हुए चेहरे को पहचान लिया।

ओहो बापूजी! चीमन सिन्ह जी! खुद आप?”

भीलडिया वाघेला चीमनसिंह जी यानी शक्ति के अवतार। जॉर्ज और एडवर्ड छाप के चांदी के सिक्के को हाथ में मसल दे ऐसी उनकी शक्ति।

दियोदर के चिमनसिंह जी और वाव के राणा हरिसिंह जी के बीच मामा-भांजे का संबंध। एक बार राणा हरिसिंह जी मामा के घर दियोदर गए थे। मामा और भांजा दोपहर के खाने के बाद चौपाट खेलने बैठे थे। चौपाट चलती थी, उसी वक्त हरिसिंह जी खड़े हुए और बाहर गए। फिर अंदर चले गए। करीब छः-सात बार ऐसा हुआ। इससे चिमन सिंह जी को शक हुआ। मिठाई खाते हुए जैसे कंकड़ आ जाए और खाने का मजा बिगड जाये, उसी तरह हरिसिंह जी बाहर जाए तब चिमन सिंह जी के रंग में भंग होता था। उन्होंने कुछ नाराजगी से पूछा- “भांजे! बाहर क्या है? बार-बार बाहर क्यों जाते हो?” – मतलब? चीमन सिंह जी ने आंखें तान कर पूछा।

  • “मामा! यह ऊंट मुझे अपने प्राणों से भी प्यारा है। यह ऐसा बलवान है कि मामा अगर वह रुठ गया तो सारे का सारा किला तोड़ कर चला जाए और मेरे इस ऊंट पर बुरी नजर डालने वाले भी बहुत लोग हैं”
  • “इसका मतलब यह कि मेरे दरबार में से भी दिन-दहाड़े तेरा ऊंट कोई चुरा ले जाएगा? भांजे क्या बात करते हो?” चीमन सिंह जी के भाल की रेखाएं तंग हो गई।
  • “लेकिन मेरा यह ऊंट किले को तोड़ कर चला जाए ऐसा तो है ही! उसके जितनी ताकत मैंने कहीं पर भी नहीं देखी!”
  • “भांजे! तब तो तेरे इस ऊंट को देखना तो पड़ेगा! कैसा बलवान है, मैं भी तो देख!”

हरिसिंह जी खुशी के मारे मामू को ऊंट दिखाने के लिए बाहर आए और ऊंट के एक-एक अंग के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करने लगे। चिमन सिंह जी ने ऊंट को भलीभांति देख लिया। फिर उन्होंने अपनी हथेली ऊंट की खूध पर रखकर भांजे से कहा- “भांजे! अब तेरे ऊंटको खड़ा कर दें तो मैं जानू कि वह बहुत बड़ा शक्तिमान है कि नहीं!”

– “ओहो मामा! इसमें क्या बड़ी बात है, तुम्हारे जैसे दस को वह ऊंचा कर सकता है।” हंसते हुए हरिसिंह जी ने कहा और उन्होंने उसको खड़ा करने के लिए लात मारी। ऊंट ने खड़ा होने की जी-जान से कोशिश की लेकिन खड़ा नहीं हो सका। दबी हुई हथेली को दूर हटाने के लिए उसने तन तोड़ मेहनत की। फिर लाचार हो गया। मामा की अतुलित शक्ति को देखकर हरिसिंह जी दंग रह गए। भांजा। तू कहे तो तेरे ऊंट को ऊंचा कर फेंक दूं। चीमन सिंहजी ने हंसते-हंसते कहा। वाव के राणा हरिसिंह जी गदगद होकर अपने मामू की शक्ति के बारे में सोचते रहे और बोले- मामा! तुम्हारे बल की बातें तो बहुत सुनी थी, लेकिन आज तो उसका साक्षात अनुभव किया।

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उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं