अपने शब्दों के चयन से करें वाणी का शृंगार-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Apne Sabdo ke Chayan se Kare Vaani ka Sringar

Hindi Kahani: हमारे शब्दों का चयन और उपयोग हमारे व्यक्तित्व को प्रकट करता है और हमारे सामाजिक संबंधों को प्रभावित करता है। संत कबीर दास ने बोलने वाले शब्दों के प्रति बखूबी चेताया है कि “ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए आपहुं शीतल होए।” उनके उपदेश में यह गहराई संदेश है कि मन की शांति और समर्पण के माध्यम से हम अपने और दूसरों के मन को भी शांति दे सकते हैं। वाणी में उपयोग होने वाले शब्दों में विनम्रता और सम्मान का संदेश होता  है।
यदि हम स्वयं ही अश्लील या गाली जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं, तो इससे हमारे संवेदनशीलता और सामाजिक संज्ञान में गिरावट आ सकती है साथ ही हमारे बच्चों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है । परिवार में हमारा यह स्वभाव ये भी दिखाता है कि हमारे व्यवहार में कितनी दुर्बलता है एवं संबंधों को प्रतिबिंबित करने की क्षमता में कमी है। इसलिए, हमें अपने शब्दों का सावधानीपूर्वक चयन करना चाहिए और परिवार में समर्थन और समझदारी का परिचय कराना चाहिए। 

शब्दों का चयन और उपयोग काफी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि वे हमारे विचारों और व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं।  जुबान का अच्छा उपयोग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब हम अपनी जुबान का उपयोग जागरूकता और समझ के साथ करते हैं, तो हम समाज में सदाचार, सहनशीलता, और समरसता को प्रोत्साहित करते हैं। इससे हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक संबंध मजबूत होते हैं और समृद्धि की दिशा में अग्रसर होते हैं। जाने अनजाने सनसनी से ओत प्रोत शब्दों का चयन करना और फिर इनका इस्तेमाल करना  इसको हवा देने का कार्य पारिवारिक माहौल में उलझने पैदा करने मे सक्षम होता है  ।हमारी जुबान का फिसलना परिवार और समाज में असहजता और विवाद का कारण बन सकता है। इसलिए, हमें सावधानीपूर्वक और समझदारी से अपनी भाषा का उपयोग करना चाहिए ताकि हम सही संदेश को स्पष्टतः संवेदनशीलता और समर्थन के साथ पहुंच सकें।
आज हम अपना काम निकलवाने की खातिर अपनी जुबान को किसी भी हद तक जाने को तत्पर रहते हैं । यह दुखद है कि कई बार लोग अपने उद्देश्यों के लिए अनैतिक तरीकों का सहारा लेते हैं। फ़िर चाहे शासन तंत्र में बैठे किसी पद से काम निकलवाना हो या फिर किसी निजी क्षेत्र में लालसा के वशीभूत होकर अपना मतलब सिद्ध करना हो,  जिसमें प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति बिना किसी जाति, धर्म, लिंग, भेद के समान रूप से भागीदार होता है । जबकि सफलता इस बात पर निर्भर करती है जब आत्म-समर्पण और नैतिकता कभी भी कमजोर ना होने पाए क्योंकि यह व्यक्तिगत और सामाजिक स्थिति को सुरक्षित रखने में मदद करता है।

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 नैतिकता, समर्पण, और साझेदारी के साथ काम करना तभी सुनिश्चित हो सकता है जब समृद्धि और समरसता के मामले में सभी की सामाजिक सहभागिता हो और हमारी जुबान किसी इंसान के लिए तलवार का काम ना करे I इसलिए, हमें अपने शब्दों का सावधानीपूर्वक चयन करना चाहिए और परिवार में समर्थन और समझदारी का परिचय कराना चाहिए। आज का बेलगाम मानवीय आचरण समाज में प्रत्येक वर्ग के लोगों में कुत्सित भड़काने के साथ-साथ एक भ्रष्ट वातावरण को उत्पन्न कर रहा हैं  अपनी उदंडता को सफेद जामा पहनाने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे कुतर्कों का सहारा लिया जा रहा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर लोगों की निजता भी सुरक्षित नहीं रही इस बारे अदालत ने भी मामले को संज्ञान में लिया है और चिंता ज़ाहिर की है I ऐसी स्थिति में, परिवार को नैतिकता और सदाचार की प्राथमिकता देना आवश्यक है ताकि समृद्धि और सामाजिक समरसता को बनाए रखने के लिए सही मार्गदर्शन मिल सके। शिक्षा प्रणाली में नैतिक मूल्यों को समाहित करना और परिवार जनों का समुचित समर्थन प्रदान करना महत्वपूर्ण है ताकि समाज में ईमानदारी, साझेदारी, और न्याय  मौजूद रह सके।
किसी भी काम में सफलता प्राप्त करने के लिए मेहनत और प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण होती है, लेकिन साथ ही दूसरों के साथ सहयोग और समर्थन भी महत्वपूर्ण हैं। परिवार में सहयोग और मेहनत से अगर सफलता हासिल करनी हो, तो नैतिकता भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। अनैतिक तत्वों से दूर रहकर सफलता की ऊंचाइयों को हासिल करना सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित कर सकता है। अच्छे नैतिक मूल्यों पर आधारित कार्य न केवल व्यक्ति को सफल बनाता है, बल्कि हमारी जुबान से निकले शब्द हमारे आस पास के पारिवारिक माहौल को भी सुधार करने में सहायक हो सकते हैं । लोगों को जागरूक रहना और अपनी जुबान से निकले अपने वक्तव्यों के प्रति सतर्क रहना महत्वपूर्ण है, ताकि भ्रष्ट आचरण की प्रक्रिया रोकी जा सके और सद्भावपूर्ण वातावरण बना रह सके।
संयम की कमी और तुच्छ भाषा का इस्तेमाल परिवार में नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। हमें अच्छे सामाजिक मानकों का पालन करने और एक दूसरे के साथ समर्थन और समझदारी में बढ़ने का प्रयास करना चाहिए, ताकि असहमति की जगह मधुरता और समरसता हो। बोलने की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे सही रूप से समझाना और उपयोग करना भी जरूरी है। निजता की सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है, और इसे सावधानीपूर्वक बनाए रखना चाहिए।
पारिवारिक माहौल में उचित मार्गदर्शन और समर्थन के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा की परिस्थितियों में सुधार की दिशा में सामाजिक तंत्र को समृद्ध करने में मदद कर सकता है। बात बात पर अनजाने  ही अपनी बातों में गाली समान शब्दों का प्रयोग बुरा प्रभाव डालता है I इसलिए जिह्वा के प्रदूषित होने से बचाने के लिए पारिवारिक माहौल का सहयोग भी उसे समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ सकता है। पारिवारिक माहौल एक शक्तिशाली संसाधन होता है जो व्यक्ति को उन्हें सहज और सकारात्मक रूप में स्वीकार करने में मदद कर सकता है। यहाँ तक कि यदि कोई व्यक्ति अशोभनीय भाषा या अपशब्दों का प्रयोग करता है, तो पारिवारिक समुदाय की सहायता से वह इस बुरे आदत से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।