Humanity Story: ” हेलो ….हेलो…हम भीमा बोल रहे हैं!”
कई बार फोन लगाने के बाद अविनाश ने फोन उठाया।
देखा घर से फोन था ।
उन्होंने कहा
” हां बोलिए भीमा काका!,कैसे फोन किया?”
” मालिक…!, बड़े मालिक नहीं रहे।”
“अरे..कब…कैसे…!!!अविनाश की जुबान थरथराने लगी थी।
” आज सुबह तड़के ही चले गए मालिक..!साँस नहीं ले पा रहे थे..।” यह कहकर भीमा फूट-फूट कर रोने लगा।
” मालिक, अच्छा नहीं लग रहा !आपने जल्दी आइए।”
” हां बिल्कुल, अभी तुरंत ही। तुम अपना ख्याल रखना।”
“क्या हुआ जी !”पीछे खड़ी अविनाश की पत्नी अंजू ने कहा।
” अंजू ,दादा जी नहीं रहे !”
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“ओह,बड़ा ही दुखद ! हमें अंतिम समय में भेंट भी नहीं हो पाया।” अंजू ने दुखी स्वर में कहा
अविनाश ने कहा
” अभी अफसोस जताने का समय नहीं है। मैं जल्दी-जल्दी टिकट देखता हूं ।वहाँ पहुंचने में कम से कम सात-आठ घंटे लग जाएंगे।”
” हां तब तक मैं भी कपड़े पैक कर लेती हूं!” यह कर अंजू रसोई की तरह बढ़ गई।
उसने अपनी मेड से कहा
” कमला, तुम कल से मत आना ।दूध वाले को भी मना कर देना।
हमलोग भावनगर जा रहे हैं।दादाजी नहीं रहे।”
यह कहकर अंजू अपने कमरे में आ गई और सामान पैक करने लगी।
भावनगर में भीमा बड़े मालिक यानी अविनाश बाबू के दादाजी रघुवंश सिन्हा की लाश के पास बैठकर फूट फूट कर रो रहा था।
ऐसा नहीं था कि भीमा कोई जवान नवयुवक था। वह भी 55-60 साल का होने जा रहा था।
काफी देर तक रोने के बाद भी उसका भी हल्का नहीं हुआ ।
उसकी पत्नी रत्ना ने आकर उससे कहा
” सुनो जी ,इतना रोने से बड़े मालिक वापस तो नहीं आएंगे। तुम्हारी सेहत खराब हो जावेगी!
चलो चल कर झोपड़े में कुछ खा लो।”
” नहीं हमें हमको भूख नहीं है! बड़े मालिक के साथ मेरा मन भी मर गया ।”
भीमा की दोनों बच्चियां आकर भीमा से जिद करने लगी “बाबा, कुछ खा लो नहीं तो अब आप बीमार पड़ जाओगे!”
भीमा अपनी बच्चियों का कहना टाल नहीं पाया।
उसने अपनी बच्चियों से लाश के पास रहने को कह कर थोड़ी देर के लिए अपनी झोपड़ी में आ गया ।
चाय पीते वह पुरानी स्मृतियों में लौटने लगा।
कभी रघुवंश विला एक हंसता खेलता हुआ करता था।
रघुवंश विला के मालिक रघुवंश सिन्हा अपने बेटे -बहू और पोते अविनाश के साथ रहते थे।
एक हादसे में अविनाश के माता पिता की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।
इस हादसे को रघुवंश बाबू झेल नहीं पाए।वह अपने एक अंग से लाचार हो गए ।
उन्हें पैरालाइसिस का जबरदस्त स्ट्रोक आया था जिसके बाद वह लगातार बिस्तर पर ही पड़े रहे थे।
अविनाश अपनी माता-पिता की इकलौती संतान था। वह उस समय दिल्ली से मेडिकल की पढ़ाई पढ़ रहा था।
माता पिता की मृत्यु के बाद अविनाश के ऊपर पूरे घर की जिम्मेदारी आ गई थी।
सबसे ज्यादा उसके अपाहिज दादाजी की ।
उसने अपने पारिवारिक नौकर भीमा को बुलाकर उसे पूरे घर की ,खास तौर पर अपने दादाजी की जिम्मेदारी देकर अपनी पढ़ाई पूरी करने चला गया।
अविनाश अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी और शादी के बाद लगातार बाहरी रहा।
साल भर में मुश्किल से एक या दो बार वह अपने घर आ पाता था।
अविनाश का घर और दादा जी भीमा के भरोसे ही थे। भीमा एक तरफ से उस घर का ही एक हिस्सा हो गया था।
“आज काम करते हुए 15-16 साल हो गए। एक बार भी नहीं लगा कि हम यहां के नौकर हैं!”
भीमा ने चाय पीते हुए अपनी पत्नी से कहा।
” अब हमको या डर लग रहा है कि मालिक आकर अब हमें हवेली से निकाल ना दें!
अब हमारा यहां क्या काम?”
उसकी पत्नी भी इसी डर से डर रही थी।
उसने भी कहा
” अब हमारा यहां क्या काम? बड़े मालिक तो नहीं रहे। अब हमें नया बसेरा तलाशना चाहिए और काम भी!”
भीमा–” इस बुढ़ापा में यह घर छोड़कर जाएं भी तो कहां ? कहीं तो हमारा और ठिकाना भी नहीं है ।
कोई बात नहीं, भीमा ने ठंडी सांस भरते हुए कहा, मालिक आएंगे तो सारे निर्णय वही लेंगे ।”
शाम होते-होते अविनाश अपनी पत्नी और बच्चों के साथ वहां पहुंच गया ।
उसके बाद दाह संस्कार और कर्म क्रिया के साथ कब 13 दिन बीत गए पता ही नहीं चला ।
13 दिन के बाद जब सारे काम खत्म हो गए तो भीमा डरते हुए अविनाश के पास पहुंचा और हाथ जोड़कर बोला
“मालिक, बड़े मालिक तो रहे नहीं अब !हमारे लिए क्या आज्ञा है?
हम इस हवेली को छोड़ कर चले जाते हैं। हमें एक महीने की मोहलत दीजिए। हम कहीं नया ठिकाना ढूंढ लेंगे ।”
अविनाश चौंककर भीमा की तरफ देखा और बोला
” भीमा काका ,आपने दादाजी की इतनी देखभाल की बिल्कुल घर के एक व्यक्ति की तरह ।
आप का समर्पण और आपका स्नेह हम कभी भी नहीं भूल पाएंगे।
दादा जी की आत्मा आपको हमेशा ही ढूंढेंगी ।आप कहीं नहीं जाएंगे। आप यही रहिए और पहले की तरह दादाजी की इस अमानत की देखभाल करते रहेंगे।”
भीमा की आंखों में आंसू आ गए ।
“बहुत-बहुत धन्यवाद छोटे मालिक! इस बुढ़ापा में कहीं जाया भी नहीं जाता और फिर इस घर से बड़े मालिक से इतना लगाव हो गया था कि हम इस घर को इस जनम में कभी भी नहीं छोड़ सकेंगे।”
अविनाश ने उनके आगे हाथ जोड़ दिया और कहा
“भीमा काका ,अपना स्नेह और समर्पण यूं ही बनाए रखिएगा हमारी इस हवेली पर।”
