Parenting Tips: आज भी याद है जब गर्मियों की छुट्टियां आतीं थीं तो जैसे हमें पूरी आजादी मिल जाती थी। न कोई पढाई का दबाव, न कोई रोक टोक और न ही कोई पाबंदी, कि बस शाम को ही खेलना है या दो घंटे ही खेलना है। बोनस होता था दादा-दादी या नाना नानी के घर पूरी छुट्टियां बिताना। लेकिन बदलते समय के साथ बचपन के इन खूबसूरत दिनों की परिभाषा भी बदलती जा रही है। साल भर तो बच्चे पढाई के साथ-साथ अलग अलग तरह के दबावों से गुजरते ही हैं लेकिन अब छुट्टियों के दिन भी बच्चों के हिस्से नहीं आते। आज पेरेंट्स छुट्टियों में भी बच्चों को अलग अलग तरह की एक्टिविटी क्लासेज जॉइन करा देते हैं। बढते कॉम्पिटीशन में मेरा बच्चा कहीं पीछे न रह जाए, बच्चे में टैंलेंट ढूढने वाले पेरेंट्स की भी कमी नहीं रही है। कभी म्यूजिक, कभी डांस तो कभी स्पोर्ट क्लासेज जॉइन करा गर्मियों की छुट्टी में वे बच्चे का टैलेंट तलाशने में लगे रहते हैं। कहीं आप भी तो ऐसे पेरेंट्स की लिस्ट में शामिल नहीं हैं। अगर हैं तो जरा अपने बचपन को याद करें और फिर तय करें कि क्या बच्चों की छुट्टियों में ये परफॉर्मेंस प्रेशर सही है। इन छट्टियों बच्चों को आप अपने बचपन वाली बेफ्रिकी भरे दिनों की छुट्टियां मनाने का तोहफा दें।
बच्चों को तय करने दें की उन्हें क्या करना है

साल भर इंतजार करने के बाद छुट्टियों में भी बच्चे परफॉर्मेंस प्रेशर से गुजरते रहते हैं। जरा याद कीजिए अपना बचपन हम क्या किसी एक्टिविटी क्लास में जाते थे। क्या छुट्टियों में हमारे पेरेंट्स हम पर कोई दबाव बनाते थे। ज्यादातर लोगों को जवाब होगा नहीं, तो फिर हम अपने बच्चों के साथ क्यों वैसा नहीं कर रहे। ये सही है कि आज बहुत से बच्चे अपना टैलेंट बचपन से ही निखारने का प्रयास करते हैं। लेकिन सभी बच्चे एक से नहीं होते। कई बार पेरेंट्स छुट्टियां शुरू होते ही दूसरे बच्चों को देखकर अपने बच्चे को भी हॉबी क्लास या किसी अन्य एक्टिविटी की क्लास जॉइन करा देते हैं। जिससे वो भी किसी न किसी टैलेंट या स्पोर्ट में माहिर हो जाए। मगर ऐसा करने से पहले आपको बच्चे से उसकी राय लेनी चाहिए क्या वह ये करना भी चाहता है या नहीं। अगर बच्चे का इंट्रेस्ट नहीं है तो उसके साथ जबरदस्ती ने करें। क्योंकि जिस तरह पढाई में कमजोर बच्चे से क्लास में टॉप करने की उम्मीद करना सही नहीं है वैसे ही बच्चे में टैलेंट पैदा करना या किसी खेल में चैंपियन होने की उम्मीद करना भी गलत है। इन्फोसिस की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति जो पेरेंटिग गुरु के रूप में भी जानी जाती हैं, वे भी यही मानती हैं। उनके अनुसार बच्चों को तभी हॉबी क्लास जॉइन कराएं जब उनकी रूचि हो। छुट्टियों में एक हॉबी क्लास भी बहुत है। बच्चों को भी ब्रेक चाहिए उन्हें छुट्टियों में खुद को भी एक्स्प्लोर करने का मौका मिलना चाहिए। तभी वे जान सकेंगे की वे क्या करना चाहते हैं।
ग्रैंड पेरेंट्स के साथ भी समय बिताना जरूरी

पेरेंट्स के छुट्टियों के दौरान टैलेंट सर्च या टैलेंट हंट कार्यक्रम के चलते बच्चों को उनके ग्रैंड पेरेंट्स के साथ समय बिताने का भी समय नहीं मिलता। बच्चों को अलग-अलग क्लासेज जॉइन करा देने की वजह से या तो वे ग्रैंड पेरेंट्स से मिलने जा ही नहीं पाते या बहुत कम समय के लिए जाते हैं। बच्चों की काउंसलर पल्लवी मोहपात्रा के अनुसार ग्रैंड पेरेंट्स के साथ समय बिताने से बच्चों के विकास में मदद मिलती है। बच्चे अगर ग्रैंड पेरेंट्स के साथ समय बिताते हैं तो न सिर्फ वे उनके अनुभवों से जीवन के बारे में सीखते हैं बल्कि वे पारिवारिक व नैतिक मूल्यों को भी समझ पाते हैं। यही नहीं अपने ग्रैंड पैरेंट्स जब अपने जीवन से जुडी बातें शेअर करते हैं तो बच्चे विपरीत परिस्थितियों में ढलना भी सीखते हैं। आज जब ज्यदातर लोग न्यूक्लियर फैमिली में रहते हैं ऐसे में बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत और दृढ बनाने में ग्रैंड पेरेंट्स के साथ बिताया हुआ समय मददगार साबित होता है। तो इन छुट्टियों को बच्चों को क्लासेज के नाम पर थकाने वाला न बनाकर उन्हें कुछ असल जिंदगी से सीखने वाला बना सकते हैं।
बोर होना भी जरूरी है
बहुत से पेरेंट्स बच्चे घर पर बोर न हों इस वजह से भी छुट्टियों में इन क्लासेज का सहारा लेते हैं। चाइल्ड बिहेवियर एक्सपर्ट बिंदू के अनुसार हर समय बच्चों को एंगेज रखना सही नहीं है। अगर वे हमेशा एंगेज रहेंगे तो वे खुद से निर्णय लेने में सक्षम नहीं हों पाएंगे कि उन्हें कब और क्या करना है। इसलिए कभी- -कभी बोर होना भी जरूरी है। जब उनके पास कुछ करने को नहीं होगा तो वे खुद ढूढने की कोशिश करेंगे कि क्या करें। इससे उनकी निर्णय लेने की क्षमता बढेगी। यही नहीं आजकल देखा गया है कि सोशल गैदरिंग में अगर बच्चों के हिसाब से कुछ नहीं होता तो वे मोबाइल में बिजी हो जाते हैं। स्कूल के दिनों में तो बच्चे भी बिजी होते हैं जिसकी वजह से वे पेरेट्स से भी कम इंट्रैक्ट कर पाते हैं। ऐसे में बच्चों को छुट्टियां बच्चों के साथ बातें करें, फैमिली फ्रैंड्स से मिलने जाएं जिससे बच्चे सोशलाइज करना सीख सकेंगे।
छुट्टियां हों एंजॉय करने वाली न कि प्रेशर वाली
‘बचपन के दिन भी क्या दिन थे उड़ते फिरते तितली की तरह’ आज जब कभी भी ये गाना सुनते हैं तो मुंह से एक ही बात निकलती है कि वो भी क्या दिन थे। न कोई फिक्र न कोई प्रेशर न कोई चिंता। लेकिन क्या आज बच्चों का बचपन ऐसा है। उन्हें कम उम्र से ही कॉम्पिटीशन और दूसरों बच्चों के साथ तुलना की वजह से प्रेशर झेलना पडता है। यही नहीं पहले की तरह बच्चे बेफ्रिकी से खेल भी नहीं पाते। उन्हें खेलने का समय कम मिलता है। ऐसे में छुट्टियों में उन्हें जो वो करना चाहते हैं वो करने दें। अगर वे कुछ भी नहीं करना चाहते तो उसकी चॉइस भी उन्हें दें। उन पर बनने वाले दबाव को कम से कम छुट्टियों में कम करने की कोशिश करें और उन्हें भी उनके मन की तितली बन उड़ने का मौका दें।
