कहते हैं एक फोटो, हजार शब्दों के बराबर होती है। जब भी हमारे सामने कोई फोटो आती है, तो मानों सारी यादें ताजा हो जाती है। कुछ दशकों पहले शायद ही किसी ने सोचा होगा कि हर हाथ में डिजिटल कैमरा होगा और जब मन चाहे कोई भी फोटो या सेल्फी ले सकेगा। मोबाइल के कारण हर हाथ में अब कैमरा आ गया है। लेकिन अखबारों या मीडिया में फोटोग्राफी का आज भी अलग महत्व है। 19 अगस्त को पूरा विश्व ‘वर्ल्ड फोटोग्राफी डे’ मनाता है। इस अवसर पर जानते हैं भारत की पहली महिला प्रेस फोटोग्राफर ‘होमाई व्यारावाला’ के बारे में, जो बोल्ड होने के साथ ही काफी स्मार्ट भी थीं। 

पुरुषों के पेशे में बनाई जगह, पहचान छिपाई

होमाई व्यारावाला का देश की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट बनने का सफर काफी कठिनाइयों भरा रहा।
Homai Vyarawala’s journey to become the country’s first woman photojournalist was full of difficulties.

होमाई व्यारावाला का देश की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट बनने का सफर काफी कठिनाइयों भरा रहा। बाद में भले ही लोगों ने उन्हें भारत की एक शानदार फोटो पत्रकार के रूप में पहचाना, लेकिन उन्होंने पहले अपनी पहचान छिपाए रखी। हालांकि उनकी तस्वीरें बोलती थीं। एक दौर था जब उन्हें महिला होने की वजह से काम ही नहीं मिलता था। काफी संघर्ष के बाद होमाई ने पुरुषों के वर्चस्व वाले प्रेस फोटोग्राफी के पेशे में अपनी जगह बनाई। 

होमाई ने ऐसे निकाला रास्ता 

वर्ष 1995 में होमाई व्यारावाला ने अपने संघर्ष की कहानी एक इंटरव्यू में बताई। साइकिल पर लंबी दूरी तय करते हुए उन्होंने अनगिनत यादगार तस्वीरें खींचीं। उन्होंने कहा कि आजादी के समय दफ्तरों में महिलाओं के काम करने को लेकर लोग गंभीर नहीं थे। मैं फिर भी फील्ड में भागदौड़ कर रही थी। मैं साड़ी पहने हुए और हाथ में बड़ा सा कैमरा लेकर अच्छे फोटो के लिए दिन भर भटकती थी। जब मैं भीड़ से गुजरती, लोग मुझे बड़ी ही आश्चर्य भरी निगाहों से देखते थे। मेरे फोटो तक कोई नहीं छापता था। मैं जल्द समझ गई कि महिला के नाम पर मेरी फोटो नहीं छपेगी। लेकिन मैं रुकी नहीं, मैंने एक उपाय निकाला और अपनी फोटोज अपने पति मानेकशॉ व्यारावाला के नाम से अखबारों के दफ्तरों में भेजनी शुरू की। मेरे तरीके ने काम किया और मेरी तस्वीरें छपने लगीं। 

फिर एक अजीब नाम की खोज, ‘डालडा-13’

होमाई का जन्म 9 दिसंबर 1913 को गुजरात में बहुत ही सामान्य पारसी परिवार में हुआ। वे बचपन से ही निडर थीं। उस दौर में उन्होंने पढ़ाई की। उनके पिता थियेटर आर्टिस्ट थे। उन्होंने फोटोग्राफी अपने मित्र मानेकशॉ व्यारावाला से सीखी और बाद में उन्हीं से विवाह किया। मानेकशॉ एक अखबार में फोटोग्राफर थे। शादी से पहले होमाई ने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट से भी फोटोग्राफी सीखी। उनके फोटोज कई इंटरनेशनल पब्लिकेशन्स में प्रकाशित हुए। सालों तक वे मानेकशॉ के नाम से अपनी फोटो छपवाती रहीं। बाद में उन्होंने अपने लिए एक अजीब सा नाम खोजा जो था,‘डालडा-13’। 15 जनवरी 2012 को उनका निधन हो गया। 

होमाई की कुछ यादगार तस्वीरें

साल 1947 में इलस्ट्रेटेड वीकली मैगजीन में भारत के आखिरी वायसराय लार्ड माउंट बेटन की तिरंगे को सलामी देते हुए फोटो प्रकाशित हुई।
In the year 1947, a photo was published in the Illustrated Weekly Magazine of India’s last Viceroy Lord Mountbatten saluting the tricolor.

साल 1947 में इलस्ट्रेटेड वीकली मैगजीन में भारत के आखिरी वायसराय लार्ड माउंट बेटन की तिरंगे को सलामी देते हुए फोटो प्रकाशित हुई। साथ ही भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की लाल किले पर पहली बार आजाद भारत को संबोधित करती फोटो भी छापी गई। इन दोनों ही फोटोज में क्रेडिट ‘मानेकशॉ व्यारावाला’ को दिया गया। बाद में जाहिर हुआ कि ये ऐतिहासिक फोटो मानेकशॉ व्यारावाला ने नहीं बल्कि उनकी पत्नी होमाई व्यारावाला ने खींची थीं। इसके बाद होमई की फोटोज को लोगों ने स्वीकारा।

क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड फोटोग्राफी डे

‘वर्ल्ड फोटोग्राफी डे’ का इतिहास 1837 से जुड़ा है, जब फ्रांसीसी जोसेफ नाइसफोर और लुइस डॉगेर ने 19 अगस्त, 1839 को फ्रांस सरकार ने ‘डॉगोरोटाइप’ आविष्कार की घोषणा की थी। यह फोटोग्राफी प्रक्रिया थी, जिसका पेटेंट भी प्राप्त किया गया था। आधिकारिक तौर पर वर्ल्ड फोटोगाफ्री डे मनाने की शुरुआत वर्ष 2010 में हुई थी। प्रत्येक वर्ष विश्व फोटोग्राफी दिवस की एक थीम होती है। 19 अगस्त, 2023 की थीम ‘अंडरस्टैंडिंग क्लाउड्स’ है।

मैं अंकिता शर्मा। मुझे मीडिया के तीनों माध्यम प्रिंट, डिजिटल और टीवी का करीब 18 साल का लंबा अनुभव है। मैंने राजस्थान के प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थानों के साथ काम किया है। इसी के साथ मैं कई प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबों की एडिटर भी...