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पापा मुझे फिल्म देखने जाने दो

यह किस्सा उस समय का है जब मैं कक्षा 8वीं का विद्यार्थी हुआ करता था, चूंकि उस समय आठवीं कक्षा बोर्ड हुआ करती थी तो पढ़ाई का दबाव भी अधिक होता था। सुबह 7 से 12.30 तक स्कूल, फिर घर पर ही कुछ देर आराम करके मम्मी के साथ पढ़ने बैठना पड़ता था। उस समय जीटीवी नया-नया शुरू हुआ था। सिनेमा जाने की अनुमति थी नहीं।

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पकड़उवा बियाह

Hindi kahani : मई महीने की चिलचिलाती धूप में दिनेश बैजनाथपुर रेलवे स्टेशन से अपनी पुरानी जंग लगी हुई साइकिल पर बैठकर कुछ सोचते हुए घर की तरफ़ जा रहा था। धूप से बचने के लिए सिर पर गमछी से पगड़ी बनाकर ढँक लिया, जिसका पिछला हिस्सा मंद हवा के झोंके में धीमी गति से […]

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गृहलक्ष्मी की कहानियां – बहू के दाल के पराठें!!

“अरे! कितनी खूबसूरत, सुंदर, मनमोहक मुस्कान, बड़ी-बड़ी आंखों वाली यह किसकी लड़की है सरला”? किरण अपनी सहेली सरला से पूछती है।

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सपना – एक लघुकथा

वह मुझसे कैंपस बिल्डिंग की लिफ्ट में मिली। सालों बाद, मैंने उसे पहचान लिया। उसकी आँखों में आँसू थे। हाँ, वह रो रही थी। मुझे याद है कि वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। मैंने उससे बात की।

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खालीपन – गृहलक्ष्मी कविता

एक अजीब सी बात हो गई, कुछ अलग सी बात हो गई। यूं तन्हा से जब कर गए, तो जिंदगी वीरान सी हो गई। मेरे ख्यालों को कर गए खाली, और खालीपन सी बात हो गई। अब सिर्फ ख्याल बाकी हैं, और सांस खयालों में खो गई। यह खालीपन रहा होगा कहीं न कहीं तुममें […]

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इम्पॉर्टन्ट प्रश्न – गृहलक्ष्मी कहानियां

बचपन इंसान के जीवन का सबसे खूबसूरत समय होता है। चाहे उस समय इस बात को हम समझ पाएं या न समझ पाएं, लेकिन जब इंसान प्रौढ़ हो जाता है तब अवश्य ही उसको बचपन के उन दिनों की याद आती है और तब उसे एहसास होता है कि बचपन कितना सुंदर, बेफिक्र, मासूम होता है।

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एक व्हाट्सएप संदेश

मुन्नों कल से तुम्हें फोन मिला- मिला कर थक गई ।अब तुम्हारी तो नई-नई शादी हुई है, तो मजे कर रही होगी ,लेकिन अपनी मैं किससे कहूं। एक तुम ही तो मेरी अपनी हो, इसीलिए व्हाट्सएप कर रही हूं ।

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