हालांकि प्रेग्नेंसी के दौरान आपको अपने खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों पर नजर रखने की आवश्यकता होती है, खासकर यदि आपको गैसटेशनल डायबिटीज है।
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आजकल गर्भावस्था में डायबिटीज का बढ़ गया है खतरा, जानिए इससे कैसे बचें: Prevention of gestational diabetes
Prevention of gestational diabetes: गर्भावस्था के समय होने वाली डायबिटीज को जेस्टेशनल डायबिटीज के नाम से जाना जाता है। इस डायबिटीज का निदान पहले बार गर्भावस्था के दौरान ही होता है। डायबिटीज के अन्य प्रकारों की तरह जेस्टेशनल डायबिटीज से हमारे सेल्स की शुगर यानी ग्लूकोज को प्रयोग करने क्षमता प्रभावित होती है। इस डायबिटीज […]
गर्भावस्था के 24 से 28 सप्ताह के दौरान शुरू हो सकता है गैस्टेशनल डायबिटीज
यह क्या है? ऐसा मधुमेह गर्भावस्था में ही होता है जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बनता। यह गर्भावस्था के 24 से 28 सप्ताह के दौरान शुरू होता है। तभी इस दौरान ग्लूकोज़ स्क्रीनिंग टेस्ट किया जाता है। यह डिलीवरी के बाद भी जारी रहता है। यदि मधुमेह का कोई भी प्रकार गर्भधारण से पहले होता है तो इसे नियंत्रित करने पर मां या भ्रूण को कोई हानि नहीं होती लेकिन यदि माँ के रक्त में जरूरत से ज्यादा शर्करा घुल जाए तो यह प्लेसेंटा तक पहुँचकर, माँ व शिशु दोनों के लिए घातक हो सकता है। वे शिशु भी काफी बड़े होते हैं,जिनकी वजह से गर्भावस्था जटिल हो जाती है।तब प्रीक्लैंपसिया होने का भी डर रहता है।मधुमेह का इलाज न हो तो शिशु को जन्म के बाद पीलिया, सांस लेने में तकलीफ या ब्लडशुगर के घटे हुए स्तर की समस्या हो सकती है हो सकता है कि वह आगे चलकर मोटापे व टाईप-2 मधुमेह का भी शिकार हो जाए। यह कितना सामान्य है? 4 से 7 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में यह हो सकता है। मोटापे की वजह से यह रोग भी बढ़ता जा रहा है। यदि परिवार में पहले से मधुमेह की हिस्ट्री हो, माँ की उम्र ज्यादा हो तो जी.डी. का खतरा और भी बढ़ जाता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? हालांकि इसके लक्षण अस्पष्ट ही होते हैं। अचानक प्यास लगना बार-बार मूत्र आना थकान (गर्भावस्था की थकान से अलग) मूत्र में शुगर। (जांच से पता चलेगा) आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं? 28वें सप्ताह में आपकी ग्लूकोज स्क्रीनिंग जांच की जाती है यदि ज्यादा जरूरी लगे तो तीन घंटे की ग्लूकोज़ टॉलरेंस जांच भी कर सकते हैं।यदि इस जांच से जी.डी. का पता चले तो डॉक्टर आपको विशेष डाइट व व्यायाम की सलाह देंगे। आपको घर पर भी ग्लूकोज़ मीटर से अपने ग्लूकोज का स्तर जांचना होगा। यदि डाइट व व्यायाम से ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित न हो तो आपको इंसुलिन देना पड़ सकता है। इसके इंजेक्शन के अलावा ग्लोब्यूराइड दवा के तौर पर दे सकते हैं। हालांकि सही तरीके से ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित हो जाए तो गर्भावस्था की जटिलताएँ खत्म की जा सकती हैं। आपको अच्छी चिकित्सा देखभाल की जरूरत होगी। आप जानना चाहेंगी यदि गैस्टेशनल मधुमेह नियंत्रित रहे तो चिंता की कोई बात नहीं है आपकी गर्भावस्था सामान्य रहेगी व शिशु को भी कोई नुकसान नहीं होगा। क्या इससे बचाव हो सकता है? गर्भावस्था से पहले व इसके दौरान अपने वजन पर नजर रखें। बढ़िया खानपान पर ध्यान दें। पोषक आहार के साथ-साथ व्यायाम को भी न भूलें। फॉलिक सीसा की पूरी मात्रा लें। इस तरह जन्म लेने वाले शिशु को भी आगे चलकर मधुमेह का खतरा नहीं रहेगा। याद रखें कि गर्भावस्था में जी.डी. होने पर, गर्भावस्था के बाद टाईप-2 मधुमेह का डर बढ़ जाता है। अपना आदर्श आहार लें, वजन पर नजर रखें व शिशु के जन्म के बाद भी व्यायाम करती रहें ताकि खतरे को टाला जा सके। यह भी पढ़ें –कल्की से लें प्रेगनेंसी में स्टाइलिश फोटो क्लिक करवाने के आइडियाज
