मैं हिंदी की शिक्षिका हूं-गृहलक्ष्मी की कविता: Hindi Diwas Poem
Mein Hindi ki Sikshika Hun

Hindi Diwas Poem: हिंदी है मधुर बोली हिन्दुस्तान की
मैं अपना मान बढ़ाती हूं
हा मैं हिंदी पढ़ती हूं
गर्व मुझे है अपनी हिंदी पर
मैं अपना स्वाभिमान बताती हूं
नहीं सिखाती गणित का फार्मूला
ना हीं मैं विज्ञान पढ़ाती हूं
मैं तो दोहा और कविताओं से
परिचय करवाती हूं
नहीं जानती हूं हिस्ट्री और सिभिक्स
ना ही मैं अंग्रेजी बताती हूं
मैं तो हिंदी की दीवानी हूं
बस हिंदी ही जानती हूं
सरल सुलभ और सुसज्जित
सुदृढ़ और संस्कारी
हिंदी पर जाऊं मैं तो बलिहारी
हिंदू की पहचान हिंदी
भारत की आन बान और शान हिंदी
कहानियों और कविताओं से
मन सबका मोह लेती हूं

सबके दिल में अपने लिए स्थान बना लेती हूं
प्रेम भाव और समर्पण
हिंदी भाषा में है एक अनोखा अर्पण
सबके मन को भाती है
हर दिल में बस जाती है
लगती सुरीली गीत ये भोली
कहती गाथा बड़ी अनोखी
राज खोलती गहरी गहरी
हिंदी अपनी बड़ी अनोखी
मेरे शिष्य मेरी मान बढ़ा रहे
वाद विवाद प्रतियोगिता में
अपना परचम फहरा रहे
जीत का डंका बजा रहे
गीत खुशी का गा रहे
मैं संतुष्ट हूं अपनी हिंदी से
और गर्वित हूं
अपनी हिंदी की शिक्षिका होने से …!!