Hindi Poem: रोज सब्जी मैं अपनी पसंद की ही बनाती हूँ,
खाने में मेरी पसंद चलती ही कब है ऐसा कहकर अक्सर मैं चुप हो जाती हूँ।
कपड़े में खूब बारीकी से छाँटकर लाती हूँ,
मेरे पास पहनने के लिए कपड़े ही कहा है ऐसा कहकर अक्सर में चुप हो जाती हूं।
ज्वेलरी भी मैं तुमको मनाकर खरीद ही लाती हूँ,
लेकिन तुमने मुझको दिलवाया ही क्या है ऐसा कहकर अक्सर में चुप हो जाती हूँ।
घूमने फिरने में भी अपने मन की ही चलाती हूँ,
लेकिन तुमने मुझको घुमाया ही कहां है ऐसा कहकर अक्सर में चुप हो हजाती हूँ।
थोड़ा सा जोड़ जाड़कर मैं अपना पैसा बचा ही लेती हूँ,
लेकिन तुमने मुझको दिया ही किया है ऐसा कहकर अक्सर में चुप हो जाती हूँ।
लेकिन मेरी यह चुप्पी ज्यादा देर की नहीं होती।
थोड़ी देर रूठ कर अक्सर मैं मान ही जाती हूँ।
क्योंकि हम महिलाओं को चुप्पी अच्छी नहीं लगती…
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