sawal hi sawal
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बाकी अखबारों में भी इस खबर को खूब हाईलाइट किया गया था। किसी-किसी ने तो कल्पना से ही चित्रों की पूरी एक सीरीज बनाकर दर्शाया था कि ऐसे हुआ कंप्यूटर युग के उस महा जीनियस चोर का अंत।

‘द इंडियन टाइम्स’ ने कार्टून चित्रों के जरिए, बड़े मजेदार ढंग से पूरी कहानी पाठकों के आगे उपस्थित कर दी।

पुलिस कमिश्नर मि. कपूर ने अखबारों के संवादाताओं से बात करते हुए, निक्का की समझ और होशियारी की खूब जमकर तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि “बच्चे ही नहीं, बड़े भी निक्का की सूझ-बूझ, हिम्मत और दिलेरी से प्रेरणा ले सकते हैं।…” सभी अखबारों ने उसे प्रमुखता से छापा था।

गोपालपुर के घर-घर और हर मोहल्ले में भी उसके गुणों का बखान हो रहा था। सबके होंठों पर बस, एक ही बात थी कि “बच्चा हो तो निक्का जैसा! सचमुच कमाल की अक्ल है इसकी।…पकड़ा तो ऐसे पकड़ा कि चोर बेचारा चंगुल से निकल ही नहीं पाया।”

और सच तो यही है कि नौवीं कक्षा में पढ़ते हुए ही निक्का ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया था कि निक्का गोपालपुर का हीरो नहीं, सुपर हीरो हो गया था। वह जिधर जाता, लोग उसे देखने और उससे बातें करने को उमड़ पड़ते। बच्चे हों या बड़े, सभी उत्सुकता से भरकर फिर-फिर वही कहानी जानने को उत्सुक रहते थे, जिसे निक्का दर्जनों बार दोहरा चुका था।

एक ही सवाल लोग बार-बार पूछते थे, “अच्छा निक्का, तुम्हें अंदाज कैसे लगा कि चोर कोई ऐसा-वैसा नहीं है, और तुमने अपना फंदा कैसे डाला उसे पकड़ने को?…और आखिर में भैया, पकड़ कैसे लिया? तुम घबराए नहीं, तुम्हें डर नहीं लगा उस महाचोर पर हाथ डालते हुए?…”

सवाल ही सवाल, बल्कि सवालों की बौछारें।…

और निक्का जो इस छोटी-सी उम्र में ही कंप्यूटर उस्ताद बन गया था, बिल्कुल अपनी सीधी, सरल जबान में फिर से पूरी कथा सुनाना शुरू कर देता—

“ऐसा है अंकल, कि पिछले कई महीनों से रोज-रोज अखबारों में इस हाईटेक चोर के कारनामे छप रहे थे।…तो जैसे आप सब पढ़ते थे, वैसे ही मैं भी ये घटनाएँ पढ़ता था। पर मन अंदर ही अंदर मसोसता था कि कोई इसे पकड़ क्यों नहीं पा रहा? बार-बार मन में एक चैलेंज सा आता था कि अरे यार निक्का, अगर हिम्मत है तो तू इसे पकड़ के दिखा!…

“तो आखिर मुझसे रहा नहीं गया।…एक दिन मैं अपने कंप्यूटर पर काम कर रहा था तो अचानक दिमाग में आया एक आइडिया। फिर तो क्या हुआ, क्या नहीं, मुझे कुछ नहीं पता। बस, समझिए कि मैं कुछ बावला सा हो गया। रात-दिन बस मन में एक ही झक कि पकड़ना है…पकड़कर दिखा देना है दुनिया के इस सबसे जीनियस चोर को। मैं जानता था कि वह दुनिया का सबसे हाईटेक चोर है। पर छोटा सा ही सही, कंप्यूटर की दुनिया का मास्टर तो मैं भी था।…तो अंदर ही अंदर मैं जाल पर जाल बुनने लगा! तरकीबों पर तरकीबें…!

“बेचारे हाईटेक चोर ने भी बहुत जाल बुने थे। पर मेरी जासूसी के आगे बेचारा पानी माँग गया और खुद अपने ही जाल में फँस गया।…”

कहते-कहते निक्का के चेहरे पर एक बड़ी ही शांत, शालीन मुसकराहट नजर आने लगी। बेहद मासूमियत से भरी हुई।

कहीं जरा भी घमंड नहीं, और न बड़बोलापन।…

उस सभ्य और शालीन चोर को पकड़ने के लिए ऐसे ही किसी निक्का उस्ताद की जरूरत थी।…

ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंBachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)