fifty shades of grey novel in Hindi: मैं एक झटके से उठ बैठी। ऐसा लगा कि मैं अभी-अभी सपने में सीढ़ियों से गिरी थी। सिर चकरा सा रहा था। उठ कर देखा तो चारों ओर अंधेरा था और मैं क्रिस्टियन के पलंग पर अकेली हूं। किसी चीज़ ने मुझे जगा दिया है, बड़ा अजीब सा ही ख्याल था। वहां पड़ी अलार्म घड़ी पर नज़र डाली तो पता चला कि अभी तो सुबह के पांच बजे हैं पर मुझे ऐसा लग रहा है कि पूरी नींद ले ली है। ऐसा क्यों? अरे, ये तो समय का अंतराल है-जार्जिया में इस समय आठ बजे होंगे। ओह…मुझे तो अपनी गोली लेनी है। मैं झट से पलंग से उतर गई। सपना चाहे जो भी था, अच्छा हुआ कि नींद खुल गई। मैं पिआनो के हल्के स्वर सुन सकती हूं। क्रिस्टियन पिआनो बजा रहा है। यह तो मुझे देखना चाहिए। मुझे उसे पिआनो बजाते देखना अच्छा लगता है। मैंने कुर्सी पर पड़ा गाउन पहना और बड़े कमरे से आते सुरों की ओर चल दी।
अंधेरे में घिरा क्रिस्टियन रोशनी के एक बड़े से गोले के बीच बैठा है। उसके बालों का तांबई रंग चमक रहा है। देखने में लग रहा है कि उसने कुछ नहीं पहना हुआ पर मैं जानती हूं कि वह अपने पजामे में होगा। वह अपने में ही मग्न है और बड़ी प्यारी धुन बजा रहा है। मैं नहीं चाहती कि उसके ध्यान में रुकावट बनूं। मैं उसे थामना चाहती हूं। वह दिखने में कितना अकेला, तन्हा और उदास लग रहा है। हो सकता है कि यह उस धुन का असर रहा हो। उसने वह धुन खत्म की और फिर से उसे ही बजाने लगा। मैं चौंकन्नी होकर उसी तरफ बढ़ी जैसे कोई शमा परवाने की ओर खिंचती चली जाती है। उसने एक पल के लिए नज़रें उठाकर मुझे देखा और फिर उसकी निगाह अपने हाथों पर चली गई।
ओह! क्या उसे मेरा आना बुरा लगा?
“तुम्हें तो सोना चाहिए।” उसने फटकारा।
“तुम्हें भी तो सोना चाहिए।” मैंने भी हल्का सा विरोध किया।
उसके होठों पर तिरछी मुस्कान खेल गई।
“मिस स्टील क्या तुम मुझे फटकार रही हो?”
“हां, मि. ग्रे, मैं ऐसा ही कर रही हूं।”
“खैर, मैं सो नहीं सकता।”
मैंने उसके भावों को अनदेखा किया और हिम्मत दिखाते हुए साथ जाकर बैठ गई। मैं उसके कंधे पर सिर रख कर उन अंगुलियों को देखती रही, जो बड़े ही लगाव से पिआनो पर झूम रही थीं। वह एक पल के लिए रुका और फिर से पिआनो बजाने लगा।
“ये क्या था?”
“चॉपिन। तुम्हें पसंद आई।”
“मुझे तुम्हारी हर चीज़ पसंद आती है।”
वह मुड़ा और मेरे बाल चूम लिए
“मैं तुम्हें जगाना नहीं चाहता था।”
“तुमने नहीं जगाया। कोई और धुन बजाओ।”
“कोई और?”
“वही बाक की धुन, जो तुमने पहली रात बजाई थी, जब मैं यहां रुकी थी।”
“ओह, मार्सैलो?”
वह धीरे-धीरे से जतन से धुन बजाने लगा। मैं उसकी ओर झुकी और आंखें बंद कर लीं। वे उदास और दुख में डूबे नोट्स हमारे आसपास तैरने लगे। मैं उसकी सुंदरता में खो सी गई। काफी हद तक ये संगीत मेरी भावनाएं भी प्रकट कर रहा था। मैं इस असाधारण इंसान के दिल की गहराईयों तक जाना चाहती हूं, मुझे इसकी उदासी को, उसके कारण को समझना है। जल्द ही धुन खत्म हो गई।
“तुम हमेशा उदास धुनें ही क्यों बजाते हो?”
मैंने सीधा बैठकर पूछा और उसने कंधे झटक दिए।
“तो तुम छह साल की उम्र से पिआनो बजा रहे हो?”
उसने हामी भरी। एक पल के बाद बोला- “मैंने अपनी नई मॉम को खुश करने के लिए खुद को पिआनो सीखने के लिए झोंक दिया था।”
“…ताकि तुम उस परिवार में जगह पा सको?”
“हां, कह सकते हैं। तुम क्यों उठ गईं? तुम्हें तो कल की थकान उतारनी चाहिए।”
“मेरे लिए सुबह के आठ बजे हैं और मुझे अपनी गोली लेनी है।”
उसने हैरानी से भौं उठार्ई- “बहुत अच्छी तरह याद है। बेशक जब समय का अंतराल द आए तो थोड़ा हिसाब से ही चलना चाहिए वरना गोली का असर कम हो सकता है। अभी आधे घंटे तक इंतज़ार करना होगा।”
“तो इस दौरान हम क्या कर सकते हैं?”
“मैं कुछ बातों के बारे में सोच सकता हूं।” उसकी बात सुनते ही मेरे मन में अजीब सा एहसास होने लगा।
“या हम बातें भी तो कर सकते हैं।” मैंने सलाह दी।
उसने एक भौं उठाई।
” मैं तो वही ज्यादा पसंद करूंगा, जो मेरे दिमाग में है।” उसने मुझे गोद में खींच लिया।
“तुम तो हमेशा बात करने की बजाए सेक्स ही करना चाहोगे।” मैं हंसी और खुद को उसकी बांहों में साध लिया।
“सच, खासतौर पर तुम्हारे साथ। उसने मेरे बालों से नाक सटाते हुए, कान से लेकर गर्दन तक चुंबनों की बौछार कर दी। हो सकता है कि हम मेरे पिआनो पर कुछ करें!”
ओह! यह सोच ही मुझे सिहरा देने के लिए काफी थी, उसके पिआनो पर?
“मैं काम को सीधे तरीके से करना चाहता हूं।” उसने कामुक नज़रों से देखा।
भीतर बैठी लड़की को तो सुन कर ही स्वाद सा आ गया पर मैं कुछ समझी नहीं।
“तुम कहना क्या चाहते हो?”
“मिस स्टील! हमेशा जानकारी पाने के लिए अधीर रहती हो। वैसे इस काम के लिए हमें क्या चाहिए?” उसने फिर से चुंबन देने शुरू कर दिए।
“हम दोनों!” मैं आंखें बंद करते हुए हौले से बोली।
“हम्म! हमारे बारे में?” उसने कंधे पर चूमने के बाद पूछा।
“वही अनुबंध।”
उसने मुझे हैरानी से देखकर आह भरी और मेरे गालों को अपनी अंगुलियों से थपथपाया।
“मेरे हिसाब से तो अनुबंध पर काफी समय से ध्यान ही नहीं दिया जा रहा।”
“ध्यान नहीं दिया जा रहा?”
“हां, हम अपने ही तरीके से चलते आ रहे हैं।”
“पर तुम तो इस बारे में बहुत कठोर थे?”
“खैर, वह तो पहले की बात है। नियम खत्म नहीं हुए, वे अब भी मौजूद हैं।” उसके भाव थोड़े सख्त हो आए थे।
“पहले…किसके पहले?”
“किसके पहले… और ज्यादा की मांग से पहले।” उसके भाव फिर से अजीब हो आए।
ओह
“वैसे भी हम दो बार प्लेरूम में हो आए हैं और तुम वहां से चीखते हुए नहीं भागीं।”
“क्या तुम चाहते थे कि मैं ऐसा करूं?”
“एनेस्टेसिया! तुमसे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती।” उसने साफ शब्दों में कहा।
“तो साफ शब्दों में बात है यह है कि तुम मेरे द्वारा नियमों का पालन तो चाहते हो पर ज़रूरी नहीं कि हम बाकी अनुबंध को भी मानें?”
“हां, उन्हें केवल प्लेरूम में मानना होगा। मैं चाहता हूं कि तुम वहां जाने के बाद अनुबंध को याद रखो और चाहूंगा कि नियमों को हमेशा और हर जगह याद रखो। इस तरह मुझे भरोसा रहेगा कि तुम सही-सलामत हो और मैं तुम्हें जब जी चाहे लेने के लिए आजाद रहूंगा।”
“अगर मैंने कोई नियम तोड़ा?”
“तो मैं तुम्हें सज़ा दूंगा।”
“पर तुम्हें मेरी इजाज़त की भी ज़रूरत होगी?”
“हां, वह तो लूंगा।”
“और अगर मैंने इंकार किया तो?”
उसने मुझे एक पल के लिए बड़ी उलझन के साथ देखा।
“अगर तुम इंकार करोगी तो मुझे तुम्हें बहलाने के लिए कोई तरीका खोजना होगा।”
मैं उससे छिटक कर खड़ी हो गई। मुझे कुछ दूरी चाहिए। उसने हैरानी और बेचैनी से मिली-जुली निगाहों से देखा।
“तो सज़ा वाले पन्ने बरकरार रहेंगे?”
“हां, अगर तुमने नियम तोड़ा तो!”
“मुझे उन्हें दोबारा पढ़ना होगा।” मैंने उन्हें याद करने की कोशिश की।
“मैं तुम्हारे लिए लेकर आता हूं।” अचानक ही उसके सुर में व्यावसायिक लहज़ा आ गया।
वाऊ! ये सब तो एकदम से गंभीर हो गया। वह पिआनो से उठा और स्टडीरूम में चल दिया। मेरी खोपड़ी भन्ना गई। ओह! मुझे थोड़ी चाय पीनी होगी। सुबह के पौने छह बजे हमारे तथाकथित संबंध का भविष्य तय होने जा रहा है और वह भी तब, जबकि उसका दिमाग कहीं और भी घिरा है-ये कोई ठीक बात तो नहीं लग रही। मैं रसोई की तरफ बढ़ी और स्विचों से जूझने लगी। मैंने उन्हें खोजा और केतली में पानी रख दिया। मेरी गोली। नाश्ते की मेज पर रखे पर्स में हाथ मारा तो वे मिल गईं। एक गोली निगलते ही काम हो गया। तब तक क्रिस्टियन भी लौट आया था और मुझे गहरी नज़रों से घूर रहा था।
“ये लो।” उसने टाइप किया हुआ एक पन्ना मेरी ओर बढ़ा दिया और मैंने देखा कि उसमें कुछ लाइनें काटी गई थीं।
नियम
आज्ञाकारिता:
सेक्स गुलाम को बिना किसी हिचक या संकोच के अपने मालिक का हुक्म मानना होगा। सेक्स गुलाम मालिक के आनंद के लिए तय की गई किसी भी तरह की काम संबंधी गतिविधियों के लिए हामी देगी। यहां वे गतिविधियां अपवाद हैं, जो परिशिष्ट 2 में कठोर सीमाओं के रूप में वर्णित हैं। वह पूरी खुशी और उत्साह से मालिक का कहा मानेगी।
नींद:
सेक्स गुलाम जब अपने मालिक के साथ नहीं होगी तो वह ध्यान रखेगी कि उसे रात को कम से कम आठ सात घंटे की भरपूर नींद मिले।
भोजन:
सेक्स गुलाम चुनी गई भोजन सूची(परिशिष्ट 4) से नियमित रूप से भोजन करेगी ताकि उसकी सेहत व ताकत बनी रहे। वह दो समय के भोजन के दौरान फलों के अतिरिक्त कुछ नहीं खाएगी।
वस्त्र:
सत्र के दौरान वह मालिक द्वारा दिए गए कपड़े ही पहनेगी। मालिक उसके लिए कपड़ों का बजट तय करेगा, जिसे वह प्रयोग में लाएगी। मालिक कभी-कभी उसे अपने साथ कपड़े खरीदवाने भी ले जा सकता है। यदि मालिक चाहेगा तो उसे उसके साथ के दौरान आभूषण भी पहनने होंगे।
कसरत:
मालिक अपनी सेक्स गुलाम को सप्ताह में चार तीन बार निजी प्रशिक्षक की सुविधा प्रदान करेगा। ये सत्र एक-एक घंटे के होंगे तथा ये समय आपसी रजामंदी से तय किया जा सकते हैं। निजी प्रशिक्षक सेक्स गुलाम की प्रगति के बारे में मालिक को सूचित करेगा।
व्यक्तिगत साफ-सफाई व सौंदर्य
सेक्स गुलाम खुद को साफ-सुथरा रखेगी और हमेशा शरीर के अंगों को वैक्सिंग या शेव करवाती रहेगी। वह मालिक की मर्जी से उसके द्वारा चुने गए ब्यूटी सैलून में जाएगी और मालिक जो भी उपचार करवाना चाहे, उन्हें बेहिचक करवाएगी।
व्यक्तिगत सुरक्षा:
सेक्स गुलाम आवश्यकता से अधिक शराब व धूम्रपान का सेवन नहीं करेगी और नशे की दवाएं नहीं लेगी। खुद को किसी भी तरह के अनावश्यक खतरे से दूर रखेगी।
व्यक्तिगत विशेषताएं:
सेक्स गुलाम अपने मालिक के सिवा किसी भी दूसरे व्यक्ति से शारीरिक संबंध नहीं रखेगी। वह सदैव मालिक से आदर से पेश आएगी। उसे एहसास होना चाहिए कि उसके इस बर्ताव का मालिक पर सीधा असर होगा। उसे मालिक की अनुपस्थिति में किसी भी तरह के गलत काम या बर्ताव के लिए दोषी ठहराया जाएगा।
यदि इनमें से कोई भी नियम तोड़ा गया तो मालिक के द्वारा तत्काल सजा दी जाएगी। जो वह स्वयं तय करेगा।
“अच्छा तो आज्ञा मानने वाली बात अब भी जारी रहेगी?”
“ओह हां।” वह हंसने लगा।
मैंने अपनी गर्दन हिलाई और इससे पहले कि मुझे एहसास होता, मैंने उसे देखकर आंखें नचा दीं।
“एनेस्टेसिया! क्या तुमने मुझे देखकर आंखें नचाईं?”
ओह! मर गए।
“शायद! तुम्हारी प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है।”
“हमेशा की तरह।” उसने कहा और उसकी आंखें एक अजीब से उत्साह से दमकने लगीं।
मैंने थूक निगला और अजीब सा डर शरीर में रेंग गया।
“तो…मैं क्या करने जा रही हूं?”
“हां?” उसने अपना निचला होंठ चाटा।
“तुम अब मुझे मारना चाहते हो?”
“हां, और मैं मारूंगा।”
“ओह सचमुच मि. ग्रे!” मैंने उसे दांत निपोरते हुए चुनौती दी।
“क्या तुम मुझे रोकने जा रही हो?”
“पहले तुम्हें मुझे पकड़ना होगा।”
उसकी आंखें एक पल के लिए चौड़ी हो गईं और अगले ही पल वह खड़ा हो गया।
“ओह सचमुच मिस स्टील!”
नाश्ते की मेज हमारे बीच थी। मुझे उस पल उसका वहां होना बहुत भाया।
“और तुम अपना होंठ काट रही हो। उसने सांस भरी और मेरी बाईं ओर आने लगा।
“तुम ऐसा नहीं करोगे।” मैंने उसे चिढ़ाया। तुम भी तो आंखें नचाते हो।”
“वह मेरी तरफ आता रहा और मैं दूसरी ओर खिसकती गई।
“हां! पर तुमने अभी-अभी इस खेल को रोमांचक बना दिया है।” उसकी आंखों में एक अजीब-सी जंगली चमक दिख रही है।
“तुम जानते हो कि मैं कितनी तेज़ हूं।” मैंने कहा।
“मैं भी हूं।”
वह अपनी ही रसोई में मेरा पीछा कर रहा है।
“क्या तुम जल्दी से आ रही हो?”
“क्या मैं आज तक आई हूं?”
“मिस स्टील! तुम कहना क्या चाहती हो? अगर मैंने आकर पकड़ लिया तो यह तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा।”
“क्रिस्टियन वह तो तब होगा, जब तुम मुझे पकड़ोगे। फिलहाल तो मैं पकड़े जाने के मूड में नहीं हूं।”
“एनेस्टेसिया! तुम्हें गिर कर चोट लग सकती है। फिर तो तुमसे नियम नंबर सात टूट जाएगा और इस समय तुम नंबर छह तोड़ रही हो।”
“मि. ग्रे! नियम हों या न हों। मैं तो जब से आपसे मिली हूं, तभी से खतरे में हूं।”
“हां, तुम खतरे में हो।” उसने कहा और उसकी भवें चढ़ गईं।
वह अचानक मेरी ओर लपका और मैं कतरा कर डाईनिंग टेबल की ओर निकल गई। दिल तेजी से धड़क रहा है। ओह! कितना मज़ा आ रहा है। हालांकि ये सही नहीं है पर मैं बिल्कुल बच्ची बन गई हूं। वह मेरी ओर बढ़ा तो मैंने उसे सावधानी से देखा। मैं खिसक गई।
“एनेस्टेसिया! तुम निश्चित रूप से जानती हो कि किसी मर्द को कैसे लुभाया या भटकाया जा सकता है।”
“मि. ग्रे! आनंद देना ही हमारा लक्ष्य है। वैसे मैं किस ओर से आपका ध्यान हटा रहीं हूं?”
“जिंदगी से। ब्रह्मांड से।” उसने एक हाथ हिलाया।
“तुम खेल में भी कितने मग्न दिख रहे हो।”
वह दोनों हाथ बगलों में दबा कर खड़ा हो गया।
“जान! मैं ऐसा सारा दिन कर सकता हूं पर अगर तुम पकड़ी गईं तो वो बदतर हाल करूंगा कि याद रखोगी।”
“नहीं, तुम ऐसा नहीं करोगे।” मुझे अपने पर इतना भरोसा भी नहीं करना चाहिए। मैं इस बात को मंत्र की तरह रटने लगी। सयानी लड़की तो जूते पहन कर भागने को तैयार बैठी है।
“कोई भी यही सोचेगा कि तुम मेरी पकड़ाई में नहीं आना चाहतीं।”
“मैं नहीं आना चाहती। यही तो बात है। तुम अपने शरीर को छुए जाने के बारे में जैसे सोचते हो, उसी तरह की सोच मैं अपने लिए सजा के बारे में भी रखती हूं।”
क्रिस्टियन का रूप एक पल में बदल गया। आनंदी क्रिस्टियन ऐसे मुंह बना कर खड़ा हो गया मानो मैंने उसके मुंह पर तमाचा जड़ दिया हो। उसका चेहरा काला पड़ गया।
“तुम्हें ऐसा लगता है?” उसने कहा
उसके मुंह से वे चार शब्द बड़े ही अलग तरीके से निकले। अरे नहीं! इन्हीं से मुझे एहसास हो गया कि वह क्या महसूस कर रहा था। मैं उसके भय और आशंका को भांप गई।
“नहीं, मुझे इतना बुरा नहीं लगता। बिल्कुल नहीं “
“नहीं। मैंने तो यूं ही कह दिया था।”
“ओह!” वह बोला
वह तो पूरी तरह से खो गया है मानो मैंने उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसका दी हो।
मैं एक गहरी सांस लेकर मेज के पास से हटी और उसके सामने खड़ी हो गई।
“तुम्हें इससे इतनी नफ़रत है?” उसकी आंखों में डर के साए देखे जा सकते हैं।
“नहीं-नहीं।” मैंने उसे दिलासा दिया।
वह अपने जिस्म को छुए जाने पर ऐसा ही महसूस करता है। नहीं, मुझे उस पर प्यार आने लगा। मैं इसे पसंद नहीं करती पर नफरत भी नहीं करती।”
पर कल रात… प्लेरूम में तो तुम.
“क्रिस्टियन मैंने वह तुम्हारे लिए किया क्योंकि तुम्हें उसकी ज़रूरत थी। कल रात तुमने मुझे चोट नहीं पहुंचाई। वह एक अलग ही बात थी और मुझे तुम पर भरोसा है। पर जब तुम सज़ा देने की बात करते हो तो मुझे लगता है कि तुम मुझे चोट पहुंचाओगे।”
“मैं तुम्हें चोट देना चाहता हूं पर यह उतनी ही होगी, जितनी तुम सह सको।”
“क्यों?”
उसने बालों में हाथ फिरा कर कंधे झटके।
“मुझे इसकी ज़रूरत महसूस होती है।” उसने मुझे देखा और फिर आंखें बंद कर गर्दन हिलाई।” मैं नहीं बता सकता।”
“बता नहीं सकते या बताओगे नहीं?”
“नहीं बताऊंगा।”
“तो तुम जानते हो क्यों?”
“हां “
“पर तुम बताओगे नहीं?”
“अगर मैंने बता दिया तो तुम इस कमरे से चीखती हुई भाग जाओगी और वापिस नहीं आना चाहोगी। एनेस्टेसिया! मैं यह खतरा मोल नहीं ले सकता।”
“तुम चाहते हो कि मैं यहीं रहूं।”
“तुम मुझे जितना जानती हो, उससे कहीं ज्यादा मैं तुम्हें चाहता हूं। मैं तुम्हें खोने का दुख सह नहीं सकता।”
ओह मैं क्या करूं?
उसने मुझे घूरा और अचानक बांहों में भर कर चूमने लगा। उसने मुझे हैरानी में डाल दिया। उसके चुंबन में डर और ज़रूरत दोनों ही झलक रहे थे।
“मुझे छोड़कर मत जाओ। तुमने कहा कि तुम मुझे नहीं छोड़ोगी और तुमने नींद मेंमुझसे विनती की थी कि मैं तुम्हें छोड़कर न जाऊं।” वह हौले से बोला।
ओह! मेरे सपनों के कारनामे।
मैं नहीं जाना चाहती। कलेजा फटने को आ रहा है।
इस इंसान को मेरी ज़रूरत है। उसका डर मुझे साफ दिख रहा पर वह खोया हुआ है.. अपने ही अंधेरों में खोया है। उसकी आंखें बहुत फैली और सताई हुई दिख रही हैं। मैं उसे सहला सकती हूं, दिलासा दे सकती हूं और उसे रोशनी में लाने में मदद कर सकती हूं।
“मुझे दिखाओ।” मैं बुदबुदाई।
“तुम्हें क्या दिखाऊं?”
मुझे दिखाओ कि सज़ा से कितनी चोट लग सकती है?”
“क्या?”
“मुझे सज़ा दो। मैं जानना चाहती हूं कि यह कितनी बुरी हो सकती है।”
क्रिस्टियन मुझसे एक कदम परे खड़े होकर बेचैनी से देखने लगा।
“तुम कोशिश करोगी?”
“हां, मैंने कहा कि मैं करूंगी।” पर मेरा एक उद्देश्य भी है। अगर मैं ऐसा करूं तो हो सकता है कि वह मुझे अपने-आप को छूने की इजाज़त दे दे।
उसने पलकें झपकाईं- “एना! तुम बड़ी उलझी हुई लड़की हो।”
मैं खुद परेशान और बेचैन हूं। मैं इसे जानने की कोशिश में हूं। इस तरह मैं और तुम जान जाएंगे कि मैं ऐसा कर सकती हूं या नहीं? अगर मैं ऐसा कर सकी तो शायद तुम भी मुझे…… मेरे शब्द वहीं थम गए पर वह जानता है कि मैं उसे छूने की बात कर रही हूं। एक पल के लिए वह थोड़ा हिचकिचाया और मन ही मन जैसे सभी विकल्पों को तौलने लगा।
अचानक ही उसने मेरा हाथ थामा और मुझे सीढ़ियों से ले जाते हुए, प्लेरूम में ले गया। पीड़ा और आनंद, सज़ा और इनाम-उसके शब्द जाने कब से मेरे दिमाग में गूंजते रहते हैं।
“मैं तुम्हें दिखाऊंगा कि यह कितना बुरा हो सकता है और फिर तुम खुद ही सब तय कर सकती हो।” वह दरवाजे के पास खड़ा हो गया।
“क्या तुम इसके लिए तैयार हो?”
मैंने हामी तो भरी पर चेहरे का सारा खून जैसे किसी ने सोख लिया।
उसने दरवाजा खोला और मेरी बाजू पकड़े-पकड़े, दूसरे हाथ से बेल्टनुमा चीज़ रैक से निकाली। फिर वह मुझे कमरे के कोने में बने चमड़े के लाल बेंच के पास ले गया।
“बेंच पर झुको।” वह हौले से बुदबुदाया।
“हां! मैं ऐसा कर सकती हूं।” मैं चमड़े के मुलायम सोफे पर झुक गई। उसने मेरा गाउन ऊंचा कर दिया। मुझे हैरानी हो रही थी कि उसने इसे उतारा क्यों नहीं? ओह…मुझे पता है कि मुझे इस वार से दर्द होने वाला है… मैं जानती हूं।
“हम यहां इसलिए हैं क्योंकि तुमने हामी दी थी। एनेस्टेसिया! और तुम मुझसे दूर भागीं। मैं तुम्हें इससे छह बार मारने जा रहा हूं और तुम मेरे साथ गिनोगी।”
वह इन सब बेहूदी चीज़ों को छोड़ क्यों नहीं देता? वह हमेशा मेरी सज़ा का पूरा आनंद लेता है। मैंने अपनी आंखें नचाईं…क्योंकि मुझे पता था कि वह मुझे देख नहीं सकता।
पता नहीं क्यों, जब उसने गाउन उठाया तो मुझे लगा कि उसने मुझे निर्वस्त्र कर दिया हो। उसने धीरे से सहलाया और बोला-
“मैं ऐसा इसलिए कर रहा हूं ताकि तुम याद रखो कि तुम मुझसे दूर नहीं जाओ और हमारा साथ इतना रोमांचक है कि मैं तुमसे कभी अलग नहीं होना चाहूंगा।”
मैं भी तो यही चाहती हूं। अगर वह बांहें फैला कर बुलाएगा तो मैं उससे दूर छिटकने की बजाए हमेशा उसके पास ही जाऊंगी।
“……और तुमने मुझे देखकर अपनी आंखें नचाईं। तुम जानती हो कि मुझे इन बातों से कैसा महसूस होता है।” अचानक ही उसकी आंखों से उसके डर के साए हट गए और वह वहीं आ गया, जहां से चला था।
उसने जैसे मुझे छुआ और जिस तरह से सुर बदला, साफ देखा जा सकता था कि कमरे का माहौल बदल रहा था।
मैंने आंखें बंद कीं और खुद को उस चोट के लिए तैयार कर लिया। यह बड़ी तेज़ी से पड़ा और सचमुच बेल्ट की चोट चुभन वाली थी।
“एनेस्टेसिया, गिनो!” उसने हुक्म दिया।
“एक!” मैं चिल्लाई और ऐसा लगा कि कोई धमाका हुआ हो।
उसने फिर से वार किया। इस बार यह दर्द पूरी कमर में फैल गया। ओह……ये तो बुरी तरह से लगती है।
“दो!” मैं चिल्लाई क्योंकि इससे ज़रा दर्द का असर घट रहा था।
उसकी सांस उखड़ी हुई और बेचैन है। जबकि मैं अंदर ही अंदर ताकत पाने के लिए हिम्मत जुटा रही हूं। बेल्ट ने फिर से मेरी चमड़ी पर वार किया।
“तीन!” अचानक ही मेरी आंखों से आंसू टपक पड़े। ओह, ये तो मेरी सोच से भी ज्यादा सख्त वार था। हाथ से फटकारने से तो कुछ भी दर्द नहीं होता, जितना इससे हो रहा है। वह अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ रहा।
“चार!” मैं चीखी और अब तो आंसू गालों पर लुढ़कने लगे। मैं रोना नहीं चाहती। मुझे इसी बात से गुस्सा आ रहा है कि मैं रो क्यों रही हूं। उसने फिर से वार किया।
“पांच!” मेरा गला रुंधा गया और इसी पल में लगा कि मैं उससे कितनी नफ़रत करती हूं। एक और, मैं एक और सह सकती हूं। शरीर के पिछले हिस्से में तेज़ जलन हो रही है।
“छह!” एक बार फिर दर्द की लहर दौड़ गई। मैंने सुना कि उसने बेल्ट फेंकी और मुझे बांहों में खींच लिया। वह पूरी तरह से बेदम है और मेरे लिए दया दिखा रहा है। मैं उसके पास नहीं होना चाहती।
“नहीं…जाने दो।” मैंने खुद को उसकी पकड़ से छुड़ाते हुए पाया। मैं उसे पीछे धकेल रही हूं…जूझ रही हूं।
“मुझे मत छुओ।” मैं फुंफकारी। मैंने उसे आंखों में आंखें डाल कर घूरा और वह चकित भाव से मुझे देखे जा रहा है।
“तुम्हें ये सब पसंद है? मुझे इस हाल में लाना?” मैंने गाउन के बाजू से मुंह पोंछते हुए कहा उसने हैरानी से ताका।
“मैंने आज तक तुमसे बड़ा हरामजादा नहीं देखा।”
“एना!” वह गिड़गिड़ाया।
“खबरदार! मुझे एना कहा। ग्रे, तुझे अपने इन काले कारनामों से खुद ही निपटना होगा।” मैं मुड़ी और चुपचाप उस कमरे से निकल गई।
बाहर जाकर दरवाजे के पास ही पीठ टिका कर सोचने लगी कि मैं कहां जाऊं? क्या मैं भाग जाऊं? क्या मैं यहीं रुकूं? मैं गुस्से से पागल हो रही हूं, गालों पर बहते आंसुओं को सख्ती से पोंछ दिया। मैं चाहती हूं कि कहीं शरीर को सिकोड़ कर लेट जाऊं और अपने बिखरे विश्वास को सहेजने की कोशिश करूं। मैं इतनी पागल कैसे बन गई? बेशक इस प्रक्रिया में चोट तो आनी ही थी।
मैंने अपना पिछला हिस्सा सहलाया। आह! ये तो सूज गया है। कहां जाऊं? उसके कमरे में नहीं? मेरे कमरे में? या वह कमरा मेरा होगा, नहीं, मेरा है… मेरा था। तभी वह चाहता था कि मैं अपने पास एक कमरा लूं। वह जानता था कि मुझे उससे दूरी रखने की ज़रूरत होगी।
मैं उसी दिशा में चल दी। कमरे में अंधेरा था। मैं पलंग पर आराम से लेट गई। गाउन को अपने आसपास लपेटा और तकिए में मुंह छिपा कर ज़ोर-ज़ोर से सुबकियां भरने लगी।
मैं क्या सोच रही थी? मैंने उसे अपने साथ ऐसा क्यों करने दिया? मैं देखना चाहती थी कि वह किस हद तक बुरा हो सकता था? पर ये सब तो हद है। हां, वह भले ही यह सब करता आया हो पर यह मेरे बस की बात नहीं है।
शुक्र है कि सही समय पर आंख खुल गई। वह तो मुझे शुरू से ही चेतावनी देता आ रहा है कि वह एक आम आदमी नहीं है। उसकी कुछ ज़रूरतें हैं और मैं वे पूरी नहीं कर सकती। मुझे अब जाकर एहसास हुआ है। मैं कभी नहीं चाहूंगी कि वह मुझे दोबारा ऐसे मारे। वह दो बार मुझे मार चुका है। क्या उसके लिए यह सब एक खेल है? क्या अभी उसका दिल नहीं भरा? मैं सुबकियां भरने लगी। मैं उसे खोने जा रही हूं। अगर मैं उसे यह सब नहीं दे सकती तो शायद वह मेरा साथ भी नहीं चाहेगा। क्यों? क्यों? क्यों? मैं इस फिफ्टी शेड्स के प्यार में पड़ी ही क्यों? क्यों? मैं जोस, पॉल क्लेटन या अपने जैसे किसी इंसान को अपना दिल क्यों नहीं दे सकी?
ओह! जब मैं वहां से आई तो वह मुझे कैसी मायूस निगाहों से देख रहा था। मैंने बेरहम रवैया दिखाया क्योंकि मैं खुद टूट गई थी… क्या वह मुझे माफ कर देगा?…क्या मैं उसे माफ कर दूंगी? मेरे दिमाग में तरह-तरह के ख्याल चक्कर काट रहे हैं, गुलाटियां लगा रहे हैं और उछल-कूद कर रहे हैं। सयानी लड़की बैठी सिर हिला रही है और अंदर रहने वाली लड़की का तो कोई अता-पता नहीं है। मेरी आत्मा गहरे अंधेरों में मंडरा रही है। मैं कितनी अकेली हूं। मुझे मेरी मॉम चाहिए। मुझे वे शब्द याद आए, जो उन्होंने विदा लेते समय कहे थे:
डार्लिंग अपने दिल की सुनो और मेहरबानी करके बातों पर ज़रूरत से ज्यादा विचार मत करो। बच्ची! तुम अभी छोटी हो और तुम्हें बहुत से अनुभव लेने हैं। उन्हें अपने जीवन में घटने दो। हां, तुम सबसे बेहतर की उम्मीद रखती हो।
मैंने अपने दिल की सुनी और अब टूटे दिल और शरीर के साथ बैठी हूं। मुझे यहां से जाना ही होगा… बहुत हुआ। बस, अब यहां से चल दूं। वह मेरे किसी काम का नहीं और न ही मैं उसके किसी काम की हूं। हम एक साथ जी भी कैसे सकते हैं? पर साथ ही उसे फिर से न देख पाने की कचोट भी होने लगी। ……मेरा फिफ्टी शेड्स।
मैंने दरवाजा खुलने की आवाज़ सुनी। अरे नहीं-वह यहां आ गया। उसने पास की मेज़ पर कुछ रखा और मेरे साथ आकर लेट गया।
हम्म! उसने सांस ली और मेरा दिल चाहा कि उससे छिटक परे चली जाऊं लेकिन जैसे पूरा शरीर अपंग हो गया। मैं अब हिल भी नहीं सकती।
“एना! प्लीज़ मुझसे नाराज़ मत हो।” उसने मुझे पीछे से बांहों के घेरे में लिया और बालों में नाक फिराने लगा। फिर गर्दन चूम ली।
“मुझसे नफ़रत मत करो।” उसकी आवाज़ सुन कर ही मेरा गला रुंधने लगा। मेरा दिल कचोट रहा है और मैं सुबकियां भरने लगी। वह मझे लगातार चूमता रहा पर आज उसका एक भी चुंबन मुझे अच्छा नहीं लगा रहा है।
हम कितनी देर यूं ही लेटे रहे, दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। उसने मुझे थामे रखा और धीरे-धीरे मेरा रोना थम गया। सुबह होने पर भी हम यूं ही लेटे रहे।
“मैं एक दर्द निवारक गोली एडविल और अर्निका क्रीम लाया हूं।” उसने बड़ी देर बाद कहा।
मैंने उसकी ओर मुंह घुमाया। मेरा सिर उसके बाजू पर टिका है। उसकी भूरी आंखों में एक चौकन्ना-सा भाव है।
मैं उसके खूबसूरत चेहरे को ताक रही हूं। वह कुछ ही समय में मेरे लिए कितना प्यारा बन गया है। वह बिना कुछ कहे अपलक भाव से मुझे ही ताक रहा है। ओह! यह कितना सुंदर है। जी करता है कि बस देखते ही रहो। यह कितने थोड़े ही समय में मेरे लिए अपना बन गया है। मैंने उसके गालों और दाढ़ी को अपनी अंगुलियों से छुआ। उसने आंखें बंद कर गहरी सांस ली।
“मुझे माफ कर दो।” मैं हौले से बोली।
उसने आंखें खोल कर उलझन भरी निगाहों से देखा।
“किसलिए?”
“मैंने जो कहा, उसके लिए।”
“तुमने तो ऐसा कुछ नहीं कहा, जो मैं नहीं जानता था।” उसकी आंखों में सुकून के साए लहरा गए- “माफ कर दो, मैंने तुम्हें चोट पहुंचाई।”
मैंने कंधे झटके। मैंने ही तो कहा था और अब मैं जानती हूं। मैंने थूक गटका। अब मुझे अपनी बात कहनी ही होगी।” मुझे नहीं लगता कि मैं वह सब बन सकती हूं, जो तुम मुझसे चाहते हो।” उसकी आंखों में वही डर दोबारा लौट आया।
“मैं तुमसे जो भी चाहता हूं, तुममें वह सब है।”
“क्या?”
“मैं समझ नहीं पा रही। मैं हुक्म मानने वालों में से नहीं हूं और तुम पक्का जान लो कि अपने साथ ऐसा बर्ताव दोबारा नहीं होने दूंगी। तुमने कहा कि ये सब तुम्हारी जरूरत है।”
उसने एक बार फिर से आंखें बंद कर लीं और चेहरे कई रंग तैर गए। आंखें खोलीं तो एक नया ही रूप सामने था।
“तुम ठीक हो। मुझे तुम्हें जाने देना चाहिए। मैं तुम्हारे लिए सही नहीं हूं।”
मेरी खोपड़ी पर लगा एक-एक बाल सिहर उठा। ऐसा लगा कि पल भर में वह मुझसे कितना दूर चला गया था।
“मैं जाना नहीं चाहती।” मैं बोली। हद हो गई। या यह सब भुगत या यहां से चली जा। मेरी आंखों से गंगा-जमुना बह निकली।
“मैं भी नहीं चाहता कि तुम जाओ। तुमसे मिलने के बाद मेरी जिंदगी में एक नई बहार आ गई है।” उसने मेरे गाल पर बह आये आंसू पोंछते हुए कहा।
“मैं भी! क्रिस्टियन, मैं तुमसे प्यार करने लगी हूं।”
उसकी आंखों में छिपा डर साफ दिख रहा था।
“नहीं!” ऐसा लगा कि उसका दम ही निकल गया हो।
“एना! तुम मुझसे प्यार नहीं कर सकतीं। एना! …ये गलत है।”
“गलत? क्या गलत है?”
“ज़रा देखो! मैं तुम्हें खुश नहीं रख सकता।” उसका स्वर बुझा हुआ है।
“पर तुम मुझे खुशी देते हो।” मैंने त्योरी चढ़ाई।
“नहीं, अभी तो ऐसा नहीं है। कम से कम मैं अब जो कर रहा हूं। उसके साथ तो नहीं।”
मेरे दिमाग में पिछली सेक्स गुलामों का ध्यान आ गया। बेचारी लड़कियां! शायद यहीं इनके मेल में कमी आई होगी।
“क्या हम इन चीज़ों से कभी उबर नहीं सकते?” मेरा सिर भन्ना रहा है।
उसने अपनी गर्दन हिलाई। मैंने आंखें बंद कर लीं। मैं उसे देख नहीं पा रही।
“तो मैं जाना चाहूंगी… “मैं हल्की कराह के साथ उठी।
“नहीं, मत जाओ।” वह भयभीत लगा।
मेरे यहां रहने का कोई तुक नहीं है। अचानक ही मैं थकान महसूस कर रही हूं और
यहां से जाना चाहती हूं। मैं पलंग से उतरी तो वह पीछे-पीछे आ गया।
“मैं कपड़े बदलने जा रही हूं। थोड़ा एकांत चाहूंगी।” मैंने सपाट सुर में कहा और बाहर बड़े कमरे को देखा और याद किया कि कैसे कुछ ही घंटे पहले मैं वहां पिआनो पर उसके कंधे पर सिर टिकाए खड़ी थी। तब से कितना कुछ घट गया है। मेरी आंखें खुल गई हैं और मैंने जान लिया है कि वह मेरे प्यार के लायक नहीं है। मेरा डर सामने आ गया है। अजीब बात यह है कि इससे मुझे आजादी का सा एहसास हो रहा है।
दर्द इतना है कि मैंने उस ओर ध्यान न देने की सोच ली है। ऐसा लगता है कि शरीर सुन्न हो गया है। मानो मैं खुद ही शरीर से परे हटकर उसकी दुर्दशा देख रही हूं। मैं झट से नहाई और सब कुछ मशीनी तरीके से करती गई। बॉडी वाश से साबुन निकाला। शरीर पर मला। पानी से नहा कर शरीर पोंछा। बाल नहीं धोए थे इसलिए शरीर को सुखाने में देर नहीं लगी। अपने सूटकेस से निकाली गई जींस और टी-शर्ट पहनी। जींस पहनते समय हुए दर्द ने एक बार सब याद दिला दिया। उसी वजह से मेरा दिमाग ज़रा दूसरी ओर चला गया और मैंने इसी में अपनी भलाई जानी वरना सोच-सोच कर दिमाग की नसें चटक रही थीं।
सूटकेस बंद करने लगी तो वह तोहफा दिखा, जो मैं उसके लिए लाई थी। ब्लानिक एल 23 ग्लाइडर की मॉडल किट! इसे बना कर तैयार करना होता है। मेरी आंखों में फिर से आंसू आने लगे……हमने एक साथ कितने खुशियों से भरे पल बिताए हैं। मैंने उसे बैग से निकाला। जल्दी से कागज़ का एक टुकड़ा लिया और बॉक्स पर एक पुर्जा लिख कर रख दिया:
यह मुझे खुशनुमा पलों की याद दिलाता है।
धन्यवाद
एना!
मैंने खुद को शीशे में देखा। आंखें जैसे मुरझाई हुई और भूतिया-सी दिख रही हैं। मैंने बालों को जूड़े में बाधा और रोने से सूज गई आंखों को देखकर भी अनदेखा कर दिया। मेरे सारे सपने और उम्मीदें कैसे बिखर गए हैं। नहीं, नहीं मुझे अब इस बारे में और नहीं सोचना चाहिए। अभी नहीं और कभी नहीं! गहरी सांस लेते हुए मैंने अपना सामान लिया और ग्लाइडर को उसके तकिए पर रख कर बाहर आ गई।
क्रिस्टियन फोन पर है। वह काली जींस व टी-शर्ट में है। उसका चेहरा फक्क पड़ा हुआ है।
“उसने क्या कहा। वह चिल्लाया और मैं चौंक गई। कम से कम वह हमें सच तो बता सकता था। उस नंबर का क्या है? मैं उससे बात करता हूं। वेल्क! ये तो अति हो गई है। उसने लगातार मुझे ही देखते हुए कहा। खोजो उसे… “फिर उसने फोन बंद कर दिया।
मैं काउच के पास आई और सामान लेते हुए उसे अनदेखा करने की कोशिश की। मैंने उसमें से मैक निकाला और उसे रसोई की शेल्फ पर रख दिया, वहीं कार की चाबी और फोन भी रख दिए। वह हैरानी और डर के मिले-जुले भावों से देख रहा है।
“मुझे वे पैसे चाहिए जो टेलर को बीटल बेच कर मिले थे।” मैं बेलाग बोल रही हूं।
“एना! मुझे ये चीज़ें नहीं चाहिए। वे तुम्हारी हैं।” उन्हें साथ ले जाओ।
“नहीं क्रिस्टियन! मैंने केवल तुम्हारे साथ के कारण उन्हें रखा था। अब उन पर मेरा हक नहीं है।”
“एना! ऐसे मत कहो। ज़रा सोचकर बोलो।” वह इन हालात में भी मुझे फटकारने से बाज़ नहीं आया।
“मैं ऐसी कोई चीज़ नहीं रखना चाहती, जो मुझे तुम्हारी याद दिलाए। मुझे बस मेरी कार के पैसे दे दो।”
“क्या तुम सचमुच मेरा दिल दुखाने की कोशिश कर रही हो?”
“नहीं। बेशक नहीं… मैं तुमसे प्यार करती हूं। मैं ऐसा नहीं कर रही है। मैं खुद को बचाने की कोशिश कर रही हूं क्योंकि तुम मुझे उस तरह नहीं चाहते, जैसे कि मैं तुम्हें चाहती हूं।”
“प्लीज एना! वो सामान ले जाओ।”
“क्रिस्टियन मैं लड़ना नहीं चाहती। मुझे मेरे पैसे दे दो।”
उसने आंखें सिकोड़ीं पर मैं आज उससे डर नहीं रही।
“क्या चेक ले लोगी?”
“हां। तुम इस काम मेें तो होशियार हो।”
वह मुस्कुराया नहीं और सीधा अपनी स्टडी की ओर चल दिया। मैंने उसके कमरे की कलाकृतियों और चित्रों पर नज़र मारी। अचानक ही पिआनो पर नज़र गई। अगर उस समय बात न बिगड़ी होती तो शायद हम पिआनो पर ही…। उस सोच ने मन को और भी उदास कर दिया। आज तक उसने मुझसे प्यार नहीं किया। क्या कभी किया है? हमने हमेशा शरीर का नाता जोड़ा है, मन का नाता तो कभी जुड़ा ही नहीं।
क्रिस्टियन लौटा और मुझे एक लिफाफा थमा दिया।
“टेलर को अच्छे पैसे मिले। वह एक क्लासिक गाड़ी थी तुम उससे पूछ लेना। वह तुम्हें घर छोड़ देगा।” उसने मेरे कंधे की ओर संकेत किया। मैंने मुड़कर देखा तो टेलर हमेशा की तरह सूट-बूट में लैस खड़ा दिखा।
“नहीं, ठीक है। मैं खुद जा सकती हूं। धन्यवाद!”
“क्या तुमने हर कदम पर मुझे नीचा दिखाने की ठान ली है?”
“मैं अपनी आदतें क्यों बदलूं?” मैंने माफी मांगने के अंदाज़ में कंधे झटके। उसने कुंठा से आंखें मूंद कर बालों में हाथ फिराया।
“प्लीज़ एना! टेलर को तुम्हें घर छोड़ आने दो।”
“मैं कार लाता हूं। मिस स्टील।” टेलर ने अपना हक जताया और चला गया।
मैंने मुड़कर क्रिस्टियन को देखा। हम चार कदम की दूरी पर हैं। वह आगे आया और मैंने कदम पीछे हटा लिया। उसकी आंखें दुख और गुस्से जल रही हैं।
“मैं नहीं चाहता कि तुम यहां से जाओ।” उसकी आवाज़ में तड़प छिपी है।
ये उपन्यास ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – fifty shades of grey(फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे)
“मैं यहां नहीं रह सकती। मैं जानती हूं कि मैं क्या चाहती हूं और तुम वह मुझे नहीं दे सकते और मैं तुम्हें वह नहीं दे सकती, जो तुम चाहते हो।”
उसने आगे आकर मेरे हाथ थाम लिए।
मैंने हाथ परे करने चाहे। मैं अब उसकी छुअन भी नहीं सह पा रही। मैं ऐसा नहीं कर सकती।
मैं अपना सामान लेकर बाहर निकल गई और वह कुछ दूरी रखते हुए मेरे पीछे आने लगा। उसने लिफ्ट का बटन दबाया और मैं उसमें चली गई।
“अलविदा क्रिस्टियन।” मैंने कहा
“एना गुडबाय!” उसने हौले से कहा और उसके आंखों में भी दिल टूटने के वही भाव दिख रहे थे, जिन्हें मैं महसूस कर रही थी। अचानक लगा कि मुझे अपनी राय बदलकर उसे दिलासा देना चाहिए।
तभी लिफ्ट का दरवाजा बंद हुआ और मैं अपने ही बनाए जहन्नुम की ओर चल दी।
टेलर ने दरवाजा खोला और मैं कार में बैठ गई। मैं उससे नज़रें बचा रही थी। शर्मिंदगी और शर्म के मारे मुंह नहीं उठ रहा था। मैं बुरी तरह से हारी थी। मैंने चाहा था कि अपने फिफ्टी शेड्स को अंधेरों से बाहर खींच लाऊं पर ऐसा नहीं कर सकी। खिड़की से बाहर कुछ देर तक देखने के बाद अचानक ही ऐसा लगा कि कुछ गलत हो गया था। ओह नहीं, मैं तो उसे छोड़ आई थी। वह मेरी जिंदगी का इकलौता मर्द था, जिसे मैंने चाहा था। इकलौता मर्द, जिसे मैंने अपना शरीर सौंपा। अचानक ही दर्द की लहर दौड़ उठी। आंखों से आंसू बहने लगी और मैंने उन्हें झट से पोंछकर बैग में धूप के चश्मे के लिए हाथ मारा। हम लाल बत्ती पर रुके तो टेलर ने मेरे लिए लिनन का एक रुमाल निकाला। न कुछ बोला और न ही मेरी ओर देखा, मैंने बड़े ही आभार से उसे ले लिया।
“धन्यवाद!” उसके इस दयालु बर्ताव ने मेरे दिल को छू लिया और मैं उस आलीशान गाड़ी की पिछली सीट पर बैठी रोती रही।
अपार्टमेंट पूरी तरह से खाली होने के कारण और भी दुखदायी लग रहा है। मैं यहां कुछ ही दिन रही हूं इसलिए अभी घर जैसा एहसास भी नहीं होता। मैं अपने कमरे में गई और सीधा जूतों सहित पलंग पर गिर गई। वहीं बिना हवा का हेलीकॉप्टर वाला गुब्बारा भी टंगा है। चार्ली टैंगो भी मेरी तरह ही लग रहा है। मैंने गुस्से में आकर उसे वहां से उतारा पर फिर अपने गले से लगा लिया।
ओह-मैंने क्या कर दिया?
मेरा दर्द सहन नहीं हो पा रहा…मानसिक दर्द… शारीरिक दर्द… यह दर्द तो चारों ओर है… यह मेरी हड्डियों तक में घुसा पड़ा है। दुख… मैंने तो इसे खुद ही मोल लिया है। अंदर ही अंदर भीतर रहने वाली लड़की बुरी तरह से कुढ़ी पड़ी है। उसे मेरी हरकत पसंद नहीं आई। इस तकलीफ के आगे बेल्ट की मार से हुआ दर्द तो कुछ भी नहीं है। मैं गुब्बारे और टेलर के रूमाल के साथ ही वहीं सिकुड़ कर लेटी रही और अपने-आप को इस दुख के हवाले कर दिया।
