महाभारत की एक कथा है। सत्यभामा ने द्रौपदी से पूछा- “जंगल में रहते हुए भी तुम सुख से रह सकती हो, सो कैसे? हमें तो द्वारका के राजमहलों में भी सुख नहीं मिलता। सुख की कुंजी क्या है, हमें भी बताओ।”
द्रौपदी बोली- “दुःखेन साध्वि! लभते सुखानि- दुःख से ही सुख प्राप्त होता है। जो दूसरों के लिए कष्ट उठाने को तैयार है, वही सुखी हो सकता है। सुख से सुख प्राप्त नहीं होता। सुख चाहती हो, तो दूसरों को सुखी बनाने की कोशिश करो।” हम भूखे पड़ोसी की चिंता किये बिना नहीं रह सकते। हम दूसरों की चिंता करते हैं, तो दूसरा भी हमारी चिंता करता है। जैसा बीज बोयेंगे, वैसा फल पायेंगे।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
